Tuesday, 28 October 2025

छत्तीसगढ़ी कहानी- करगा

छत्तीसगढ़ी कहानी-  करगा 


                                                                    


                                          चन्द्रहास साहू


                                  मो - 8120578897


आज बिहनिया ले बादर गरजत हे, बिजली कड़कत हाबे। कोनो हा उछाह मगन होथे तब कोनो गरीब ला संसो धर लेथे। करिया-करिया बादर आमा-अमली कोती ले आइस अउ गौटिया घर के छानी ऊपर टँगा गे अब। ...अउ बरसे लागिस। 


"तेहां जइसन चाहबे वइसने करहुँ फेर तलाक झन दे। तोर बिना मोर जग अँधियार हो जाही।''


गोसइया अब्बड़ समझावत हे। फेर गोसाइन तो गाँव-गोहार पार डारिस।


"इस बैल के साथ एक पल भी नही रह सकती मैं। आई कैन नॉट लिव विथ दिस बुल। आई वांट डाइवोर्स अदरवाइस आई विल गो कोर्ट एंड पुलिस स्टेशन।''


भूरी डोमी कस फुफकारत हाबे आज वोहा। लहू के संचार बाढ़गे। धड़कन बाढ़गे। आँखी लाल होगे। गुस्सा मा हफरत हे अउ गोड़ काॅंपत हाबे सोनिया के। 


"लिसन, ससुरजी ! तुम लोगो का नाम लिख के मर जाऊँगी। रियली, आई विल डाई।''


ससुर जी भलुक अंगरेजी के आखर ला नइ समझिस फेर भाव ला तो जान डारिस। महाबिपत अवइया हाबे। मुड़ी ला गढ़िया के ठाड़े हाबे। .....अउ गोसाइया दिनेश ? का कर डारही बपरा हा। 


"जौन साध हे तोर जम्मो ला पूरा करहूॅं। गाँव छोड़ के शहर मा रहे के साध हाबे ते वहुँ ला पूरा करहूॅं। ददा-दाई संग तारी नइ पटत हाबे ते चल दुनिया के कोनो शहर मा। जी लेबो लड़-झगड़ के फेर तलाक झन माँग। ये अतराब मा अब्बड़ नाव हाबे मोर ददा के वोकर नाव ला मइलाहा झन कर ...।''


रो डारिस दिनेश हा फेर बहुरिया सोनिया ? भकरस ले भीतिया के कपाट बाजिस अउ तारा-बेड़ी लग गे। रोये चिचियाये बरतन-भाड़ा पटके के आरो आवत हाबे अब। 


                   बिहनिया के पानी अउ पहाती के झगरा जम्मो एक होगे। भीतिया के झगरा परछी मा आगे अब। परछी ले दुवारी, ....अउ दुवारी ले खोर मा अमरगे। अउ खोर मा अमरगे तब का बाचीस ? इज्जत तो गवाॅं डारे हाबे अब गौटिया के लिंगोटी उतारत हे-गाँव वाला मन।      


                 एक मनखे के दस मुँहू होगे। हड़िया के मुँहू ला तोप डारबे फेर मनखे के मुँहू ला कइसे तोपबे। गॉंव भर सोर होगे। खैरागढ़िया गौटिया के बहुरिया-बेटा दुनो झन मा अब्बड़ झगरा माते हाबे। आज उघरा होवत हाबे उकरो ओन्हा हा। खाल्हे पारा के  गरीब के गोठ तो अचरी-पचरी, कुआँ-बावली, खेत-खार नरवा-नदिया मा लसुन मिरचा लगा के, भूंज बघार के गोठियाथे गाँव वाला मन। 


"कतको चद्दर ओढ़ ले गौटिया खजरी तो खजवाबे करही..?"


"सिरतोन खजरी धरे हाबे गौटिया के बहुरिया ला। देवता बरोबर गोसइया के मान नइ राखिस।''


"नांदिया बइला बरोबर समहरे रहिथे। न गोड़ के पनही हीटे न मुँहू के मुहुरंगी मेटाये।''


"रूपसुन्दरी हाबे ओ ! हिरवइन बरोबर। फेर चाल मा कीरा परगे हाबे वोकर।  दिखे बर श्यामसुंदर अउ पादे बर ढ़मक्का।''


"शहर के टूरी अउ उधार मा चूरी कभू नइ माॅंगना चाही। दुनो के रंग झटकुन उतर जाथे। गौटिया के बहुरिया के रंग घला उतरत हाबे।''


आनी-बानी के गोठ गोठियाये लागिस गाँव वाला मन। आधा बस्ती सकेलागे हाबे आज गौटिया घर के गम्मत देखे बर।


                गाँव भर के सुख-दुख मा पंदोली देवइया खैरागढ़िया गौटिया काखरो तीन-पाँच मा नइ राहय। एकलौती बहुरिया ला अउ जादा दुलार देथे फेर बहुलक्ष्मी के रक्सा कस बरन ला देख के मूड़ धर लेहे गौटिया हा। अब्बड़ आगी उलगत हाबे बहुरिया सोनिया हा। दहेज प्रताड़ना टोनही प्रताड़ना घरेलू हिंसा आनी-बानी के धारा के डर देखाथे बहुरिया हा। का करही ?  कोन समझाही वोला ? गौटिया-गौटनिन के जी पोट-पोट करत हे। कभू कोट-कछेरी गेये नइ हाबे। काकरो लन्दर-फंदर मा नइ राहय तभो ले ये अलहन ले कइसे बाँचव भोलेनाथ ! गौटिया मुड़ धर लेथे। 


"बहुरिया ला कुरिया ले बाहिर कोती निकालो भई ! कोनो अनित कर डारही ते फाॅंसी हो जाही हमर ?'' 


अब्बड़ झन उदिम कर डारिन सोनिया ला कुरिया ले निकाले बर। कपाट के गुजर ला उसाल डारिस गोसइया दिनेश हा फेर सोनिया नइ निकलिस। संसो अउ बाढ़गे कोनो अहित कर डारही तब ?


"सिधवा ला जम्मो कोई डरवाथे गौटिया। अइसन पदनी-पाद पदोइया बहुरिया ला झन डर्रा। मोरो चुन्दी हा घाम मा नइ पाके हाबे भलुक अनभव के विद्या ला झोंक के पाके हावय। चेहरा मा झुर्री आय हे तौन सीख अउ परीक्षा के चिन्हारी आवय। जिनगी के पहार ला पैलगी करत कनिहा नवे हाबे अइसन टूरी बर पुरव अउ बाँचव।''


उदुप ले बईगिन डोकरी आइस अउ किहिस। वहुँ तो सुन डारे रिहिन नवा बहुरिया के चरित्तर ला। भलुक कोनो मंतर नइ जाने फेर ये घर के बिपत टरइया आवय-बईगिन डोकरी हा। गौटिया के चेहरा मा संसो के डांड़ कमतियाइस  बईगिन डोकरी ला देख के। 


"ये पहार कस बिपत ला टार दे बईगिन काकी ! मोर सिधवा लइका दिनेश के घर टूटे ले बचा दे। तलाक लुहूॅं कहिथे बहुरिया हा। हमन ला पुलिस कछेरी......।''


"हाॅंव सुन डारेंव गौटिया ! संसो झन कर।''


गौटिया के बात ला अधरे ले काॅंट दिस बईगिन डोकरी हा।


"हेर बेटी ! कपाट ला।''


कोनो आरो नइ आवय अउ आथे तब जइसे जम्मो कोई के करेजा काँप जाथे। 


"मुझे ज्यादा परेशान मत करो। मर जाऊँगी मै। रियली,  आई विल डाई।''


सोनिया के आरो आय, फेर बंबियावत हाबे। बरतन पटकत हाबे, कूदत हाबे बही बरोबर,चिचियावत हाबे, बाय-बैरासु धर लेहे तइसे। जम्मो कोई बरजिस अब। 


अउ अब्बड़ आरो कर डारिस जम्मो कोई  खिसियावत-दुलार करत फेर कपाट नइ उघरिस।


"का करंव ?'' 


बईगिन डोकरी हक्क खा गे। कुछु गुनिस अउ पेरा परसार कोती चल दिस। ..... अउ आइस तब नानकुन झिल्ली मा कुछु धरे हाबे। 


"अब्बड़ मरे के साध हाबे न। तब, ले मर।''


झिल्ली मा कॉकरोच अउ छिपकली रिहिस, कपाट के पोंडा कोती ले ढ़ीलत किहिस। 


"अब सोज्झ मा निकलही अउ टेड़गा मा निकलही। गाँव के कमेलिन मन गउँहा-डोमी संग बुता कर लेथे फेर शहरनिन मन तो कॉकरोच अउ छिपकली ला देख के ठाड़ कुदथे। अब देख तमासा अंगरेजी मीडियम वाली टूरी के।''


डोकरी फुसफुसाइस। अब सिरतोन रोये के, चिचियाये के आरो आवत हाबे।


"प्लीज सेव मी ! बचाओ ! कॉकरोच और छिपकली काॅंट देंगे मुझे, मर जाऊँगी ...। प्लीज सेव मी, प्लीज सेव ।'' 


कपाट हीट गे अब। अउ बईगिन दाई ला पोटार लिस। डर मा लद-लद काँपत हाबे सोनिया हा। चेहरा लाल होगे हे-लाल बंगाला कस। 


"नानचुन कीरा-मकोरा ला डर्राथस बेटी ! कुछु नइ करे। काबर रिसाये हस ओ बता। का जिनिस के कमती होगे  हे तोला ? मेंहा तोर बर लड़हूॅं ये गौटिया-गौटनिन अउ तोर गोसइया दिनेश ले। जम्मो कोई बर पुर जाहू मेंहा।''


बईगिन डोकरी दुलारत किहिस अउ पोटार लिस। ऑंसू ला पोंछत पीठ मा थपकी देवत चुप कराइस सोनिया ला।..... अउ सिरतोन सोनिया ला अइसे लागथे हितु-पिरितु कोनो हाबे ते-इही दाई बईगिन डोकरी हा। सुख-दुख के संगवारी। जम्मो कोई के चरित्तर ला देख डारिस। नाव बड़े दरसन छोटे गौटिया-गौटनिन अउ बइला बरोबर भोकवा गोसइया दिनेश के।


"नाक उच्चा करके बड़का खानदान ले बहुरिया लाने हस तब वोकरो धियान राख। बहुरिया चलाये के ताकत नइ रिहिस तब अइसन बड़का घर ले नत्ता काबर जोरेस गौटिया ! कोनो मरही-पोटरी ला ले आनतेस। ताहन रातदिन गोबर बिनवावत रहिते। बिजनेसमैन के बेटी संग नत्ता जोरे हस। वोकरो तो मान राख।.....अब तो ये बहुरिया इहाँ एक पल नइ राहय। तोला कोट-कछेरी रेंगाही तब चेतबे।''


बड़का अटैची ला तनतीन-तनतीन कुरिया ले निकालिस डोकरी हा। सोनिया जम्मो जोरा-जारी आगू ले कर डारे रिहिन।


"चल जाबो तोर मइके अउ थाना-कछेरी। दहेज प्रताड़ना के केस करबो। तब चेथी के अक्कल आगू कोती आही। .....मालपुआ खाके अब्बड़ मोटा गे हाबे, थोड़को सोंटाही ये गौंटिया हा।''


गौटिया-गौटनिन तो सुकुरदुम होगे बईगिन के गोठ सुनके। 


"ये का अइन्ते-तइन्ते गोठियावत हस काकी ?''


गौटिया गरजिस फेर बईगिन आवय जम्मो के बीख ला उतारत-उतारत अब्बड़ बीखहर हो गे हाबे। 


"मोला छोड़ के झन जा सोनिया ! बईगिन दाई  मोर घर टूटे ले बचा दाई !'' 


दिनेश रोवत हाबे।


"चुप रोनहा नही तो....! तोरे सेती मोर फुलकस बेटी के ये दुरगति होये हाबे।''


बईगिन बिन पेंदी के लोटा निकलगे। गौटिया के बहुरिया ला मनाये-बुझाये बर बलाये हाबे अउ भभकावत हे सोनिया ला। ससन भर देखिस जम्मो कोई ला। सोनिया संग बईगिन डोकरी  घर ले बाहिर निकलगे अउ ऑटो मा बइठ के रायपुर रोड कोती जावत हाबे अब।


                   सोनिया रायपुर के बिजनेसमैन के बेटी आवय। इंजीनियरिंग के पढ़ाई करे हाबे अउ दिनेश ? गाँव के खेती करइया। भलुक बी ए करे हाबे फेर नौकरी नइ मिलिस। खेत-खार कमा लेथे-मेड़ मा बइठ के।


सोनिया अब्बड़ मना करिस बिहाव नइ करो कहिके फेर चीज के लालच कोन ला नइ राहय। "गौटिया के एकलौता बेटा के गोसाइन बनबे बेटी ! राज करबे। धन्धा-पानी चल गे ते मालामाल अउ नइ चलिस तब बंठाधार। पचासों एकड़ अचल संपत्ति के मालकिन हो जाबे। कभू लाँघन नइ मरस। गौटिया-गौटनिन कतक जीही पाँच बच्छर कि दस बच्छर। गौटिया घला अंगरेजी मीडियम वाली शिक्षित सुशील बहुरिया खोजत हाबे। अब्बड़ दुलार करही जम्मो कोई।''


अइसना तो कहे रिहिन सोनिया के ललचहा ददा हा। अउ सोनिया अब्बड़ मना करिस फेर ददा के गोठ ला कहाँ टार सकही ? बिहाव होगे धूमधाम ले। निभत हाबे अब फेर संगी-संगवारी आइस छे महिना पाछू अउ कहे लागिस ओरी-पारी।


सोनिया ! तुम्हारा पति तो  बैल है और उनके साथ खूॅंटे से बॅंधे हुये तुम गाय बन गई हो।''


"गजब की जोड़ी है दोनों की।''


"न बात करने का सऊर है दिनेश को, न रहन सहन का।''


"तुम तो कॉलेज की क्वीन थी। हाई सोसायटी हाई स्टेटस। ....और अब गोबर में सड़ रही हो।'' 


"तलाक ले लो सोनिया ! अभी भी वक्त है। अभी बच्चा भी नही है। कही बाद में न पछताना पड़े।''


"दिलीप और अक्षय तो आज भी तेरा इंतजार कर रहें है।''


"क्या हुआ दोनों अभी बेरोजगार है तो, वेल एजुकेटेड है।''  


संगी-सहेली मन आय रिहिन तब अइसने तो कहि के खिल्ली उड़ाये रिहिन सोनिया के। ...अउ कोनो खिल्ली उड़ाथे तब, आगी लग जाथे तन-बदन मा। आज तो वोकरे संगी-संगवारी मन गाय कहि दे रिहिन। सोनिया तो बेरा खोजत हाबे  तलाक लेये बर। ....अउ आज दिनेश खेत कमाये बर गेये हाबे-रोपा लगाये के दिन ये।


"दोपहर के जेवन अमराये बर चल देये कर बेटी ! अब मोरो जांगर नइ चले। नौकर मन घला आये-जाए मा अब्बड़ बिलमा डारथे। लइका बेरा मा खाही तब सुघ्घर होही ओ !''


"मैं नही जाऊँगी। किसी का खाने-पीने का ठेका नही ली हूँ। जिसको भूख लगे तो समय पर आकर खाये।''


सोनिया सोज्झे सुना दिस अगियावत। गौटिया के मुँहू सिलागे बहुरिया के गोठ सुनके। अपंगहा गोड़ मा रेंगत गिस जेवन अमराये बर गौटिया हा अउ सबरदिन बर खोरवा होगे। बस, एकरे सेती चार गोठ सुना दिस दिनेश हा अउ इही झगरा आवय। तलाक तक गोठ अमरगे। बेरा बखत मा दुलारत समझाइस गौटिया-गौटनिन बईगिन डोकरी हा फेर सोनिया के छाती मा वोकर संगी-संगवारी के गोठ लटक गे हाबे। -"बइला संग बिहाव करके अपन जिनगी ला बरबाद कर देस सोनिया ! अभिन घला कतको झन तोर अगोरा करत हाबे। तलाक लेके रायपुर लहुट जा। गोबर संग गोबर कीरा झन बन।'' 


जम्मो ला सुरता करत करू मुचकावत हाबे सोनिया हा। अपन जीत दिखत हे अब। गाँव के खाल्हे पारा छुटही अउ रायपुर रोड अमर जाही ताहन एक्सप्रेस बस मा बइठ के उड़ा जाहूँ। चेहरा के गुलाबी बाढ़गे सोनिया के। 


"रहा ले, ऑटो वाले बाबू ! हमर घर कोती चल।


बईगिन डोकरी किहिस अउ वोकर मोहाटी मा ठाड़े होगे ऑटो हा।


"रायपुर जाहूॅं दाई !''


"हाॅंव बेटी ! चार पहार रात ला काॅंट ले ताहन चल देबे।''


सोनिया बईगिन डोकरी घर चल दिस अब।


                         सुरुज नरायेन आज झटकुन अपन घर चल दिस फेर कमेलिन मन बिलम के  घर लहुटत हाबे। अँधियार होगे। चिखला-माटी मा सनाये बड़की बहुरिया सुशीला मुचकावत आइस अउ बईगिन डोकरी ला बताये लागिस।


"दाई ! आज रोपा लगाई बुता हा लघियात झर जातिस ओ। फेर भइसासुर वाला खेत मा नाग-नागिन मन अब्बड़ पदोइस।''


"बने पूजा पाठ नइ करे रेहेव का ओ ! भिम्भोरा मा ?''


"गोलू के पापा हा करे रिहिन दाई ! फेर का करबे ? थरहोटी अउ नानकुन टेपरी मा रोपा लगावत अब्बड़ बिलम गे जम्मो कोई। गोलू के पापा हा छुट्टी लेके बुता मा पंदोली दिस तब होइस झटकुन। नही ते रबक जातेंन। काली इतवारी मनाही।''


बईगिन डोकरी के बहुरिया सुशीला किहिस अउ गोड़धोनी कोती चल दिस। 



"गोलू के पापा मिनेश कुमार तो चार दिनिया आवय बेटी ! सबरदिन के किसानी बुता ला सुशीला करथे ओ। रोपा घरी अउ मिंजाई के घरी मा आके वोला पंदोली दे देथे मिनेश हा।''


सोनिया ला बतावत हाबे बईगिन डोकरी हा।


          "भलुक कमती पढ़े हाबे फेर अब्बड़ गढ़े हावय ओ मोर बेटी कस बहुरिया सुशीला हा ! गोठ-बात हिसाब-किताब आदत-बेवहार जम्मो मा अब्बड़ सुघ्घर हाबे सुशीला हा। महिला समूह के अध्यक्ष हाबे अभिन। अवइया बेरा मा सरपंच बनाबो कहिके गाँव वाला मन रुंगरुंगाये हाबे। कलेक्टर के मीटिंग मा जाके हिन्दी अंगरेजी मा गोठिया लेथे अउ गाँव के बइठक मा हमर मयारू भाखा छत्तीसगढ़ी मा। अब सुशीला ला चौथी पढ़े हाबे, कोनो नइ पतियाये। जम्मो ला सीखोये हाबे मोर बेटा मिनेश हा।''


सोनिया हुॅंकारु देवत हे। ससन भर देखथे अब बहुरिया सुशीला ला। सुघ्घर दिखत हाबे। भलुक दिनभर बुता करे हाबे तभो ले नइ कुमलाये हाबे सुशीला के चेहरा हा। सुशीला जेवन के तियारी करत हाबे रंधनी कुरिया मा। अब मिनेश घला घर अमरगे चिखला-माटी मा सनाके। 


"बेटी जात हा धान के थरहा आवय ओ। माइके ले तियार होके ससराल मा गड़िया देथे। बने मया पाके फरथे फुलथे अउ अपन वंश ला बढ़ाथे धान के पौधा बरोबर। बाली के पूजा होथे अउ करगा बोदरा ला फेंक देथे। ममहावत धान के बाली बन सोनिया ।  करगा बोदरा बनबे तब कोनो नइ भावय। आज फोन करके देख ले दिलीप अउ अक्षय ला घला। तोर अगोरा नइ करे भलुक तोला जूठा कहि। जतका मया तोला दिनेश करथे वोतका दुनिया के कोनो मनखे नइ करे। तोर उछाह बर टेक्टर ला बेच दिस अउ फोरव्हीलर बिसाइस। दाई के गहना-जेवर ला बेच के तोला सोना मा बूड़ो दिस-तोर उछाह बर। टूटहा पनही ला पहिर लेथे फेर तोर बर दर्जन भर ले आगर सेंडिल बिसाये बर नइ बरजिस। रिकम-रिकम के लुगरा लिस- तोर उछाह बर। दवई  के पइसा ले तोर बर सेंट बिसाइस। भूखाये रिहिस तभो तोर बर इज्ज़ा-पिज्जा बिसाइस। देवता भलुक नो हरे फेर सुघ्घर इंसान आवय बेटी। अउ ये दुनिया मा  सब मिलथे फेर इंसान नइ मिले। दिनेश हा तोर उछाह बर सब करही ओ ! फेर ओकरो उछाह बर  एककन संसो कर। गोठ-बात, रहन-सहन तौर-तरीका अचार-विचार जम्मो ला सीख जाही मोर सुशीला बरोबर। बेटी ! तलाक झन ले वो !''



सोनिया रोवत हाबे सिरतोन कभू करू जबान नइ देये हाबे दिनेश अउ वोकर दाई ददा मन, गुनत हाबे। 


"चलो दाई ! जेवन करबो। गोलू के पापा ला आरो कर।''


"गोलू के पापा आ गा ! मिनेश आ बेटा।''


बईगिन डोकरी आरो करिस। ... अउ आइस तब तो सोनिया सुकुरदुम होगे। इंजीनियरिंग कॉलेज के इलेक्ट्रॉनिक्स एन्ड टेलीकॉम्युनिकेशन डिपार्टमेंट के एचओडी आवय डॉ मिनेश कुमार। सोनिया तो वोकरे मार्गदर्शन में अपन रिसर्च वर्क ला पूरा करे हाबे।


"गोसाइन-गोसइया हा गाड़ा के चक्का घला आवय सोनिया। अउ दिनेश हा सुघ्घर लइका आवय। मेंहा जानथो। मोर गोसाइन चौथी पढ़े हाबे। फेर मोला गरब हाबे मोर घर परिवार खेत-खार जम्मो ला सम्हाल डारिस। अउ कुछु कमती हाबे दिनेश मा तब तेहां सीखो। सीख जाही जइसे मोर मयारुक सुशीला सीख गे।''


मिनेश किहिस गरब करत अउ जम्मो कोई फुटू साग संग जेवन करे लागिस अब । सोनिया के अंतस मा जागे करगा मरगे अब। अउ ममहावत धान के बाली कस दिनेश के मया ममहाये लागिस। आँखी के आगू मा दिनेश के सुघराई दिखत हाबे अब।........... अब बिहनिया के अगोरा करत हाबे लहुटे बर। 


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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया


आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी


जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़


पिन 493773


मो. क्र. 8120578897


Email ID csahu812@gmail.com

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ओम प्रकाश अंकुर:

 करगा एक ठाहिल अउ संदेशपरक कहानी हे

                       

   कहानी - करगा


   कहानीकार -  चंद्रहास साहू 


    समीक्षक - ओमप्रकाश साहू "अंकुर"


युवा कहानीकार चंद्रहास साहू जी के कहानी मन के बात करथन त वोमा छत्तीसगढ़ के संस्कृति, संस्कार सुघ्घर ढंग ले झलकथे।वोकर कहानी म माटी ह ममहाथे।इंहा के सिधवापन के बरनन करथे त दूसर कोति चालाक मनखे मन के बखिया घलो उधेड़थे। वोकर कहानी म सुघ्घर संदेश समाय रहिथे। अउ उही कहानी ह सफल माने जाथे जेमा कोनो उद्देश्य ल लेके लिखे जाथे जेकर ले समाज म जागरूकता आथे। फकत मनोरंजन बर लिखे कहानी ह भलुक कहानी होथे? अइसने सुघ्घर संदेशपरक कहानी हावय - करगा।

      खैरागढ़ के गौंटिया के एकलौता बेटा के नांव दिनेश हावय। वोहा बीए तक पढ़े हे पर सरकारी नौकरी नइ मिल पाइस अउ  खेती किसानी ल करत हावय। सिधवा लइका दिनेश के बिहाव शहर के बिजनेसमेन के लड़की अउ इंजीनियरिंग के पढ़ाई कर चुके सोनिया ले तय होथे।  बेवहार के मामला म सोनिया दिनेश के बिल्कुल उल्टा हावय। शहरी परिवेश म पले बढ़े सोनिया ल दिनेश ह बइला जइसे लागथे। दिनेश ह वोकर सबो सउक के धियान राखथे पर सोनिया के मन म तो तलाक के भूत सवार होगे हावय कि इंहा ले कइसे छुटकारा पावंव।उंकर सहेली मन के ताना ह एमा अउ जले म नून डारे के काम करे हावय। सोनिया के गोसइया दिनेश ह अउ गौंटिया ह सोनिया ले अरजी करथे कि तलाक के नांव मत ले भले शहर म जाके बस जाबो। दूसर कोति दहेज प्रताड़ना के डर घलो गौंटिया -गउटनिन अउ दिनेश म समागे हावय जइसे कि कइ ठन केस म देखे ल मिलथे जब लड़का पक्ष ल झूठा केस म फंसा जाथे।

   सोनिया के बेवहार ले गौंटिया परिवार के हांसी उड़त हे। गांव म नाना प्रकार के बात होवत हे।कोट कछेरी ल कभू जाने नइ गौंटिया मन ह पर शहरिया बहू के चक्कर म फंस गे हावय?

  इहि झगड़ा के बीच म कहानीकार ह एक पात्र गांव के बइगिन डोकरी के माध्यम ले कहानी ल आगू बढ़ाथे। पहिली तो डोकरी दाई ह सोनिया के पक्ष लेके गोठियाथे त गौंटिया अउ दिनेश ह अकबका जाथे काबर कि समझाय के बजाय वोकरे हां म हां मिलाथे। पर वो सियनहिन के उद्देश्य उंकर घर ल टोरना नइ बल्कि बनाना रहिथे। वोहा सोनिया ल ये समझा के कि काली तोला तोर मइके पहुंचाबो कहिके अपन घर ले जाथे।

  एती बइगिन डोकरी के बहू सुशीला अपन नांव के अनुरूप बने बेवहार सुशील हावय। भले कम पढ़ें लिखे हे पर अब्बड़ मिहनती हावय।संगे संग वोमा संगठन शक्ति घलो हावय तेकर सेति अवइया चुनाव म वोला गांव वाले मन सरपंच पद म लड़ाबो कहिके सोचत हावय। वहीं सुशीला के गोसइया मिनेश अब्बड़ पढ़े लिखे हे। ये उही मिनेश हरे जउन कालेज म इंजीनियरिंग के पढ़ाई करे हावय वोकर विभागाध्यक्ष हरे। जबकि वोकर गोसइन सुशीला ह कम पढ़ें लिखे हे पर दूनों के जिनगी के गाड़ी सुघ्घर ढंग ले चलत हावय। ये सब के पता सोनिया ल चलथे। मिनेश ह घलो वोला

जिनगी के मर्म समझाथे। बइगिन डोकरी ह सोनिया ल वोकर गोसइया दिनेश के कतको अच्छाई ल बताके ये सिद्ध करथे कि तंय ह वोला बइला समझ के कत्तिक बड़े भूल करत हस।

तोर कत्तिक खियाल राखथे। अपन सउक ल तियाग करके तोर सबो मांग ल पूरा करथे। ये प्रकार के संवाद ले कहानीकार ह कहानी के मुख्य पात्र सोनिया के हिरदे परिवर्तन करथे। अउ वोहा सोचथे कि सचमुच आज तक मोर गोसइया दिनेश ह कभू कड़वा बोली नइ बोले हे। मंय ह अपन रूखा बेवहार ले वोला अब्बड़ पीरा पहुंचाय हौं तभो ले आज तक मोला एक चटकन नइ मारे हावय। बइगिन डोकरी ह वोला समझाथे कि बेटी ह धान के थरहा कस होथे बेटी जेला दूसर जगह लाके गड़िया देथे। धान के बाली ह कइसे सुघ्घर लागथे उही म कोनो करगा होगे त वोला उखान के फेंक दे जाथे। त बेटी धान के बाली बनव न कि करगा। ये सब बात ल सुने के संगे -संग मिनेश अउ सुशीला के सुघ्घर जांवर जोड़ी ल देखके सोनिया म हिरदे परिवर्तन होथे। वोला अपन गलती के अहसास होथे।

तलाक अउ मइके जाय के साध ल छोड़के अपन गोसइया के संग सुघ्घर जिनगी बिताय बर राजी हो जाथे।


कहानीकार ह ये कहानी के माध्यम ले बताय हावय कि एक गांव म शहरिया अउ जादा पढ़ें लिखे बहू लाय ले का का परेसानी झेले ल पड़थे। कइसे दहेज प्रताड़ना अउ आने झूठा केस म फंसाथे। शहरिया बहू के नाना प्रकार के सउक ले घर वाले मन कइसे हलाकान हो जाथे। संगे संग कहानीकार ये संदेश देथय कि जब जुग जोड़ी म बंध जाथंव त बात सिर्फ पढ़ाई-लिखाई के हिसाब ले मत आंकव। बेवहार बड़े चीज होथे।  जिनगी म सामंजस्य बिठा के चलना चाही ताकि कोनो घर - परिवार झन टूटय। काकरो दिल झन टूटय। हमला धान के बाली बनना चाही न कि करगा।

  कहानी के भाषा शैली के बात करथन त पात्र के अनुरूप भाषा के प्रयोग करे गे हावय। कहानी के मुख्य पात्र सोनिया जउन ह इंजीनियरिंग के पढ़ाई करे हावय अउ शहर के लड़की हरय वोकर बर हिंदी के संगे -संग अंग्रेजी शब्द के उपयोग करे गे हावय। गंवइहा पात्र मन बर ठेठ छत्तीसगढ़ी के उपयोग होय हे। कहानी म हाना के सुघ्घर उपयोग हे जेकर ले कहानी ह सुगठित हावय। कहानी के शैली सरल,सरस अउ नदिया के धार कस सुघ्घर बहत नजर आथे। एक सफल कहानी "करगा" खातिर कहानीकार आदरणीय चंद्रहास साहू जी ल गाड़ा- गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे। कहानीकार चंद्रहास साहू के कहानी ह करगा नइ  बल्कि ठाहिल हे। कहानी लंबा हे पर  पाठक मन ल बांध के राखथे।


      ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

       सुरगी, राजनांदगांव

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