*फैशन*
देवारी तिहार लकठावत हे ता लइका मन बर कपडा़ बिसाय बर कपड़ा दुकान जाना परगे।समय मा ओनहा कपड़ा बिसाबे त दर्जी मन खिले बर तैयार होथे।
कतको झन नम्मी के नवा खाथे त कपड़ा दुकान में गिराहकी लगे रिहिस।सेठ संग जय जोहार करे के बाद वो अपन कर्मचारी मन ला कपड़ा देखाय बर किहिस।उही बेरा मा एक झन सियान गिराहिक अपन जवनहा लइका बर बंगाली(कुरता)छांटत सेठ ला बतात राहय।
हम तो आजकल के लइका मन के मारे हलाकान हन सेठ!
काली गांव में दुर्गा ठंडा होही।मोर टूरा के पूरा संगत एके रंग के बंगाली पहिर के दुर्गा बिसर्जन करबो किके योजना बनाय हे।टूरा नवा बंगाली बर फोन करदिस अचानक।रंग रंग के तमाशा चलत हे गा आजकल।सुते बर अलग कपड़ा।घूमे बर अलग कपड़ा।बिहा्व के अलग ड्रेस।में तो कथंव वाह रे टेस!!!
मोर ऊमर एकठन लुंहगी पहिरत निकलगे गा।फेर का करबे।धान में बीमारी लगे हे तेकर खातिर दवाई बिसाय बर आय रेहेंव।फेर का करबे!!!दवाई उधारी मा लेगहूं ददा! उंकर फैशन ज्यादा जरुरी हे।
सियान के मजबूरी के गोठ सुनके में मुस्कावत रहिगेंव।
रीझे यादव टेंगनाबासा
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