सफेदपोश (लघुकथा)
शराब माफिया विक्रांत जेकर अंडर म सैकड़ों कोचिया शराब के अवैध कारोबार मा लगे हवय।
एक दिन साहू मास्टर संग ओकर भेंट होगिस जउन ओला पढ़ाय रहिन। ओकर मन म मास्टर जी बर बड़ इज्जत हे। मास्टर जी ल विक्रांत के बेवसाय के पता चलिस तब
उन ल समझावत कहिथे- शराब कतको जिनगी ला बरबाद करत हवय तैं जानत हवस। ये कारोबार ल बंद कर दे अउ कुछु दूसर काम-धंधा शुरु कर। शराब बंद होही तभे सब जघा खुशहाली आही।
विक्रांत कहिथे - मैं तो काली बंद कर देहूँ सर, फेर मोर असन अनगिनत विक्रांत हवय, जेन सफेदपोश मन के संरक्षण मा हवय । इन कभू नइ चाहय कि शराब बंद होय। एक विक्रांत जाही त इन चार अउ पैदा कर देहीं। थाना के पेट्रोल खर्चा, विपक्षी मन के गाडी के खर्चा, कोनो बड़े आम सभा के माइक,लाइट पंडाल के खर्चा, बड़े-बड़े महोत्सव मा भारी भरकम चंदा ये सब इन कहाँ ले मैनेज करहीं...?
रुख के ऑघां-थांघा ल काटे ले कोनो फरक नइ परय सर ? हमन तो ऑघां-थांघा आन फेर येकर जर ला कोन खतम करही..?
अजय अमृतांशु
🙏
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