छत्तीसगढ़ के तिहार मा सामाजिक समरसता
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छत्तीसगढ़ के पावन भुँइया मा समरसता के धारा गाँव-गाँव मा सदाकाल ले कलकल-छलछल बोहावत आवत हे इही कारण हे के इहाँ आजो सुख-शांति ,प्रेम अउ भाईचारा के दर्शन होथे।छत्तीसगढ़ महतारी के दामन मा अंते जइसे कभू दंगा-फसाद के दाग देखे ल नइ मिलय।
समरसता के मतलब होथे--सम रस होना अर्थात सबके सुख-दुख ला एक समझना,मिलजुल के एक-दूसर के सुख-दुख मा शामिल होना,दूसर के खुशी ला अपनो खुशी समझना।रस के मतलब होथे--आनंद। बिना कोनो धार्मिक, जातिगत, गरीब-अमीर ,ऊँच-नीच के भेदभाव के समानता के भाव ले सामूहिक रूप ले आनंद के अनुभव करना हा समरसता आय।
रस के एक अउ अर्थ भाव या विचार होथे। वो जम्मों भाव जेमा 'वसुधैव कुटुम्बकम" ,मनखे-मनखे एक समान, सबो जीव हा एके परमात्मा के अंश आय के भावना समाये रइथे ,समरसता कहे जा सकथे। समरसता मा 'सर्वे भवंतु सुखिनः ' के उद्घोष होथे अउ वोकरे अनुसार आचरण बनाके व्यवहार करे जाथे।
समरसता के उपर कहे गे सबो लक्षण हमर छत्तीसगढ़ के तिहार मा साफ-साफ देखे ला मिलथे। धन्य हे हमर वो पुरखा मन जेन मन अनेकता मा एकता लाये बर नाना प्रकार के लोक पर्व ,तिहार मनाये के रीति-रिवाज बनाये हें। अलग-अलग रंग के फूल मन ले बहुतेच सुंदर गुलदस्ता कइसे शोभा पाथे तेला छत्तीसगढ़ के तिहार मा देखे जा सकथे। छत्तीसगढ़ के तिहार मन तो समरसता के साक्षात दर्शन ये।
छत्तीसगढ़ मा अइसे कोनो तिहार नइये जेला सब झन मिलजुल के नइ मनावत होहीं। जग जेंवारा, संत गुरु घासीदास के जयंती, हरेली,पोरा, सवनाही, माता पहुँचनी, गाँव बनाना, कमरछठ, गणेश पूजा, दुर्गा पूजा ,दसेरा,देवारी आदि लोक पर्व,तिहार मन ला सब कोई बिना भेदभाव के मिलजुल के मनाथें। ये तिहार मन ला मनाये बर गाँव मा हाँका परथे, कहूँ-कहूँ तो वो दिन काम बूता तको बंद रहिथे जेकर पालन सब झन करथे।
महमाई मा जेंवारा बोंवाथे ता नरियर चढ़ाये ला बिना कोनो भेदभाव के सब जाथें।वो गाँव भर के महमाई होथे।कखरो घर जेंवारा बोंयाये रहिथे ता सेवा करे बर आनो मन जाथे।गाजा -बाजा के संग जेंवारा ठंडा, गणेश विसर्जन, दुर्गा विसर्जन करे बर सब जाथें। होली हा तो प्रेम, भाईचारा के बड़का तिहार मानेच जाथे। देवारी के समिलहा आनंद ला भला कोन भुला सकथे? गोवर्धन पूजा के दिन जब राउत मन गोबर के पहाड़ बना के पूजा करथें अउ गाँव भर के बरदी(गाय-गरुवा) ला वोमा ले नँहकाथें तहाँ ले वो गोबर के टीका बस्ती के सकलाये लोगन एक दूसर के माथा मा लगाके मिलथें-जुलथें।सबके चेहरा मा खुशी अउ निर्मल प्रेम झलकत रहिथे।राउत मन वो गाँव मा रहइया सबो जाति-धरम के लोगन घर जोहारे ला जाथें। मातर गाँव भर के मन मिल के जगाथें।एक जगा बइठ के पान-परसाद पाथें।बखत परे मा सब झन चंदा तको दे के मड़ई-मेला के आयोजन करथें। मँड़ई के उछाह के का कहना? गौरी-गउरा के पूजा मा कोनो प्रकार के आड़-छेप नइ राहय। कोनो-कोनो गाँव मा ताजिया निकलथे ता सब झन देख के खुश होथें।
कुल मिलाके देखे जाय ता छत्तीसगढ़ के तिहार मन कृषि संस्कृति ले जुड़े हें अउ समरसता के सबले बड़े उदाहरण आयँ। ये समरसता ला शिक्षा के द्वारा बहुतेच बढ़ाये जा सकथे काबर के शिक्षा हा वैज्ञानिक सोच पैदा करके पाखंड, रुढ़िवाद ,जातिवाद ला दूर करके एकता ला, समानता ला बढ़ाये के काम करथे।
चोवा राम वर्मा 'बादल '
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