कहिनी
// *भइंसा* //
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हम जानथन कि सबो जानवर म सबले चउतरा कोलिहा ल माने गे हावे । तभे तो चउतरा मनखे ल कोलिहा कस चउतरा हे कहिथे । जांगर म भइंसा ल कहे गे हावे काबर कि ओहर बहंगर होथे ते पाय के कभू-कभू मनखे ल भइंसा कस कमाथे फेर खाए नि जाने घलो कहि देथे । बिलई ल अशुभ मानथें ओला मारे म भारी पाप होथे कहिथें । कभू कारी बिलई ल देख डारबे त डर - डरावन लागथे । बिलई कभू डहर म ए पार ले ओ पार आर-काट कर दिस त काम नि होय कहिथे । गाय ल बड़ सिधवा माने गे हावे तभे कोनों मनखे के सुभाव ल देख के ओला गउ बरोबर सिधवा हे कहिथें ।
जानवर म छेरी के घलो अलगेच चिन्हारी होथे दिन भर लपर - लपर चरई अऊ नरियई ल देख के काकरो सुभाव ल कभू छेरिया कस लपर - लपर करथस कहि देथें । इही जानवर के डांड़ म कुकुर घलो के बड़का नांव हे , कुकुर के बेवहार अऊ सुभाव ले जनाथे कि ओहर गरीबहा लागथे कभू खाय बर नि पाय त लांघन परे रहिथे । संगे - संग स्वामी भक्त घलो होथे । मनखे मन कभू काम - बूता नि करे त ओला कुकुर कस किंजरत हावे कहि देथें ।
चिराई-चिरगुन मन म घलो अइसनहे देखे जाथे घुघुवा के नरियाय ले अशुभ मानथें । काकरो छानही परवा म घुघुवा चिरई के नरियाय ले ओ घर म मनखे के हानि होथे सियान मन बतावंय । कउँआ कभू छानही म कांव - कांव नरियाइस त समझव घर म पहुना आय के सोर -संदेशा मिल जाथे । तइहा समें म परेंवा चिरई ल सोरिहा के रुप म देखे जावत रहिस । कागज म चिट्ठी लिख के ओकर घेंच म ओरमा देवंय तहं ले परेंवा ल उड़िया देवंय ओहर संदेशा पहुंचा देवंय । घर म मिट्ठु पोसें रहिथे ओला जइसन सिखोय -पढ़ोए रहिथें वइसन ओहर बोलथे । घर म कोनों आथें त ओमन ल राम-राम कहे बर नि छोड़े अऊ आव भगत करत देखे बर मिल जाथे ।
कतको चिरई-चिरगुन मन शुभ अऊ अशुभ संकेत देवत रहिथें वइसनहे जानवर मन के घलो चिन्हारी करे गे हावे । जिनगी म ये जीव-जन्त मन समे-समे म काम आवत रहिथें ते पाय के चिरई - चिरगुन मन ल मनखे अपन तीर म पोंसे-पाले रहिथें ओमन के दाना - पानी के बेवस्था करथें । चिरई मन ल दाना - पानी देवई घलो बड़का पून के कारज आय ।
हीरापुर गाँव म हिरउ नांव के एकझन किसान रहिस । ओला चिराई-चिरगुन अऊ गरुवा - भइंसा पोंसे के भारी सउंख रहिस । ओकर घर के कोठा गाय - गरुवा म भरे रहय । ओहर भइंसा घलो राखे रहय एकठन भूरवा अऊ दूसर ह करिया रंग के रहिस। दूनों भइंसा के हुलिया एके बरोबर रहिस सींग-सींघोट उमर म एकठन चार , दूसर छै दांत अऊ पूछी चंउरी रहिस । फेर एकठन भूरवा रंग के खातिर अलगेच दिखत रहिस। भूरवा भइंसा थोरिक फंकटहा रहिस अऊ करिया भइंसा जबर सिधवा रहय ।
हिरउ दूनों भइंसा के नांव घलो धरे रहिस भूरवा भइंसा के नांव सोन अऊ करिया भइंसा के नांव मणि रखे रहिस। सहिच म दूनों भइंसा हिरउ बर सोन अऊ मणि रहिन । हिरउ अऊ ओकर गोसाईंन मंगली सोन अऊ मणि दूनों ल भारी मया करे । संवारे पुचकारय समे म चराय ले जावय अऊ ओमन बर हरीयर - हरीयर कांदी लूके लाने। तरिया म पैरा धरके रगड़ - रगड़ के धोवय । हरियर कांदी ल खाके भइंसा मन के देहें चिक - चिकावत रहय । कोठा म पखरा के कोटना म पानी - पसिया , कोढ़ा अऊ कूना बोर के खवावय। हिरउ के मया के कारन भइंसा मन घलो हिरउ ल भारी पतियावय। हिरउ कभू - कभार कुछू काम ले एको - दू दिन बर गाँव जावय त दूनों भइंसा मन उदास हो जावंय । हिरउ के गोसाईंन घलो मया करे फेर हिरउ के बिना ओमन ल सुन्ना लागे ।
एक दिन करिया भइंसा आधा रात के घेंच म बंधाय गेरवा ल छटका के कोला - बारी कोती खुसर के नार - बियांर अऊ भाजी - पाला रहिस तेन ल चर दिस अऊ कुछू नि जानत हौं कहिके कलेचुप आके फेर कोठा म अपन जघा बइठगे । बिहनिया बेरा हिरउ के गोसाईंन मंगली बारी कोती गिस त देख के अब्बक होगे । सब नार - बियांर ल चर दे रहिस । हिरउ के गोसाईंन भइंसा के खूर अऊ ओकर गोबर ले चिन्हारी कर डारिस कि करिया भइंसा बारी के नार बियांर ल चर के खूंद - कचर डारे रहिस फेर करिया भइंसा कोठा म कलेचुप बइठे रहिस त ओला विश्वास घलो नि होवत रहिस कि करिया भइंसा ह चरे हावे ।
एकदिन हिरउ भइंसा चरा के लूदिया तलाव म धोके घर लानत रहिस , करिया भइंसा आघू म रहे अऊ भूरवा भइंसा पाछू कोती दूनों धीरे - धीरे घर आइन घर के मुहाटी ले नाहक के जइसे परसार म भइंसा पहुंचिस त ओमेर हिरउ के लइका माड़ी म गोंगनिया करत खेलत रहिस । हिरउ के गोसाईंन रंधनी कुरिया म खुसरे रहिस । जइसे भइंसा के गोड़ के अवाज ल सुन के सकपकावत ए ! ' मोर लइका '.... चिल्लावत मंगली कहिस ! करिया भइंसा मंगली के अवाज ल ओरख दारिस अऊ तुरते उहीच मेर ठाड़ होगे एको पांव आघू नि बढ़ाइस । लइका खुंदाय बर बांच गिस अऊ जबर अलहन टरगे । जानवर मन मूक जरुर होथें फेर अपन के मालिक बर वफादार अऊ संवेदना घलो रहिथे।
एक दिन भूरवा भइंसा बीमार पर गिस । करिया भइंसा ओला अपन जीभ म चाट के मया करत रहिस । काबर दूनों एके संग रहंय खाय -पीए अऊ चरे घलो एके संग एके जघा चरंय । दूनों एक दूसर ल भारी मया करंय । हिरउ बइद गुनिया अऊ डाक्टर ल देखाइस । इलाज करवाइस फेर भूरवा भइंसा अपन मुहूँ ल करिया भइंसा के कान म लेगिस अऊ जोर से नरियाइस अऊ अपन परान ल निकाल दिस। अइसे लागिस कि करिया भइंसा ल कुछू कहिस होही ।
भूरवा भइंसा के मरे ले ओकर संगी करिया भइंसा के आँखी ले आंसू के धार थिरकत नि रहिस।चिरइ - चिरगुन मन म घलो भारी मया के संगे - संग संवेदना घलो रहिथे । हिरउ भूरवा भइंसा ल चार झन मिलके बोह के लेगिन । समे गुजरत गिस थोरिक दिन के पाछू मंगली अपन गोसईंया ल कहिस...' करिया भइंसा एकेठन हावे एला बेच के आने भइंसा बिसा लेतेन '। ' ठीकेच कहत हावस तोर सलाव बने नीक लागत हावे '.....हिरउ कहिस !
थोरिक दिन गुजरे के पाछू एकझन गरुवा - भइंसा के कोंचिया हिरऊ घर आइस अऊ मोल - भाव करके ओ करिया भइंसा ल बिसा डारिस । जब हिरउ ह कोठा ले भइंसा ल ढिले गिस त भइंसा जान डारिस कि मोला बेंच दिस । करिया भइंसा कोठा ले रोवत निकलिस काबर कि भूरवा भइंसा ओला मरे के बेर कहे रहिस होही कि हिरउ ल कभू झन छोड़बे । फेर ओकर तो वश के बात नि रहिस । मालिक हिरउ के घर अऊ गाँव छुटगे ए दुख म करिया भइंसा ल जबर पीरा होइस।
' करिया भइंसा के निकले ले कोठा सून्ना - सून्ना लागथे ' ... उदास मन ले हिरउ कहिस ! ' हव जी महूँ ल सून्ना लागथे '..... भरे गला ले मंगली कहिस ! ' शुक्रवार के भैसमा बजार भराथे एको दिन बजार चल दिहा अऊ भइंसा बिसा के लेके आहा '.....मंगली समझावत कहिस ! ' ले न का होही ए दारी के अवइया बजार म चल देहूँ ' ... धीरज धरावत हिरउ कहिस ! शुक्रवार के दिन आइस तहं ले...' संदूक के रुपिया ल निकाल के देतो बजार जाहूँ '....हिरउ कहिस । सबो रुपिया ल निकाल के दे दिस । ' बढ़िया सही भइंसा लेके आहा जी ' ....मंगली कहिस । ' तैं फिकिर झन कर भूरवा अऊ करिया भइंसा कस लेके आहूँ '.....हिरउ कहिस !
तीर - तखार म कतको अकन मवेशी बजार लगथे जेमा भैसमा , हरदीबजार (कोरबा ), किरवई (रायपुर) , बेलरगाँव (धमतरी), उतई (दुर्ग), खैरा , डभरा अऊ घोघरी ( सक्ती ) , बिर्रा, लखाली , खूंटीघाट , आरसमेटा अऊ बलौदा (जाँजगीर -चांपा) , गोंड़खाम्ही , तखतपुर (बिलासपुर) , दरमोहली (मरवाही) , झाबर (पेण्ड्रा) , लटोरी (सरगुजा) अऊ कतको जघा म मवेशी बजार लगथे । जेमा भैसमा बजार कोरबा जिला के सबसे बड़का अऊ नामी मवेशी बजार हावे ओहर शुक्रवार के लगथे । जेकर सोर दूरिहा - दूरिहा ले बगरे हावे।
हिरउ शुक्रवार के दिन भैसमा बजार गिस , बजार के छेदहा भांठा म गरुवा - भइंसा , छेरी - पठरु कुकरी - छेमरी के बजार लगे रहिस। हिरउ सबो रुपिया ल गठरी म बांध के कनिहा म कोंथियाय रहिस । ओहा भइंसा के गोहंड़ा ल किंजर - किंजर के देखत जावत रहिस । अपन मन पसंद के छांटत - निमारत रहिस तइसनहे बेरा म ओ करिया भइंसा अपन के जून्ना मालिक हिरउ ल दूरिहा ले चिन्हारी कर डारिस । देखते - देखत ओहर दउंड़ के हिरऊ के तिर म आके ओला अपन जीभ म चाटे लगिस अऊ अपन के पूछी ल घलो टांगे लागिस । हिरउ ओला अपन हाथ म मुड़ी अऊ पीठ ल संवारे लागिस । ' मोला बिसा लेते अऊ अपन घर ले जाते '.... करिया भइंसा रोवत कहिस अइसे लागिस ! फेर भइंसा के भाखा अऊ इशारा ल हिरउ नि समझ पाइस होही।
बिचारा करिया भइंसा ल लवठी म पीटत अऊ हांकत कोचिया लेगिस । फेर करिया भइंसा उदास होगिस। गोहंड़ा ले छांट के एक रास पड़वा हिरउ बिसा के घर लेके आइस । एक झन किसान समारु ल अंकड़ा भइंसा के जरूरत रहिस ओहर करिया भइंसा ल कोंचिया करा ले बिसा के अपन घर लेगिस। करिया भइंसा ल जोड़ी मिले बर मिल गिस फेर ओकर मन उहां नि लागत रहिस । भूरवा भइंसा के सुरता म ओहर रो दारे । करिया भइंसा ल उंहा खाय - पीए ल बढ़िया देवंय फेर ओकर मन खाय पीए कोती नि लागे भलुक हिरउ के घर सुरता आवय । एक दिन करिया भइंसा रात के गेरवा ल झटक के टोर दिस अऊ कोला कोती के डाहर ले भागत - भागत अपन जून्ना मालिक के घर आ गिस ।
बिहनिया बेरा मंगली घर के फइरका उघारिस त ओहर अब्बक होगे करिया भइंसा मुहाटी म ठाढ़े रहय । मंगली भइंसा ल भीतर कोती आय बर इशारा करिस तभे ओहर भीतर खुसरिस अऊ कोठा म पखरा के कोटना म भराय पेज पसिया ल एक सांस म सर - सरउवन पी दारिस। अइसे लागत रहिस कि कतका दिन के खाय पीए बर नि पाय रहिस । अपन जून्ना घर म आके ओला बड़ सुग्घर लागिस फेर ओला एहू बात के डर सतावत रहिस कि ओकर नवा मालिक खोजत आही अऊ लेके जाही इही बात ओला संसो धर ले रहिस । जून्ना घर के मालिक अऊ मालकिन के मया दूलार अऊ भूरवा भइंसा के कहे गोठ ओला इंहा तक झिंक लाने रहिस।
' हमर करिया भइंसा आ गहे त ओला राख लेथन '..... मंगली कहिस ! ' ठीक कहत हस ले राख लेवत हन '......हिरउ कहिस ! ' ओकर मालिक आही त ओकर कीमत ल दे देबो '....मंगली समझावत कहिस ! ' ले ठीक हे पड़वा मन संग ओहू रहे रही '..... हिरउ कहिस ! पन्दराही के कटे ले ओकर मालिक समारु खोजत आ गिस । ' मोर करिया भइंसा ल लेके जाहूँ ' .... समारू कहिस ! ' अइसे कर समारु ओकर तैं कीमत लेले '....मंगलू कहिस ! ' मोर भइंसा अंकड़ा हावे ओकर जोड़ी बर तो बिसाय हौं '.....समारु कहिस ! ' ठीक बात हे लेजा तोर भइंसा ल '....हिरउ कहिस ! समारु भइंसा ले जाय के कतको उदीम कर देखिस फेर भइंसा जाबेच नि करिस ।
अपन मालिक के मया अऊ भूरवा भइंसा के सउंपे बात के खातिर करिया भइंसा ओ घर ल नि छोड़िस सहीच म ओहर मणि आय । जेकर चिन्हारी अंधियार म घलो हो जाथे काबर के ओहर रग - रग ले अँजोर दिखथे । जानवर घलो मन म संवेदना अऊ मानवता के गुन रहिथे । करिया भइंसा म ए गुन देखे बर मिलिस । जानवर घलो अपन मालिक बर वफादारी रहिथे अऊ जिनगी भर साथ देथें।
*✍️डोरेलाल कैवर्त " हरसिंगार "*
*तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)*
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