*महतारी के पीरा*
मौसम के बिगड़े मिजाज के सेती दू दिन ले मोरो मिजाज बिगड़गे रिहिस।जुड़ सर्दी अउ खांसी ह जब घरेलू दवा मा नी माढ़िस त सरकारी अस्पताल गेंव।
बीमरहा मन के रोहो पोहो भीड़ के मारे अस्पताल गजगजात रहै। मनमाने भीड़ ला देखके थोरकुन वार्ड मन कोती घूमे ला चलदेंव।ता एक ठ वार्ड में केप केप करत मनखे के माथ मा हाथ रखत ओकर दाई कलपत रहै।
तें काबर दारु पीथस बेटा! अपन नान-नान लोग लइका के तो खियाल कर!
त ओकर बेटा कहत रहै-दारु के संग अब ऊपर जहूं तभे छूटही दाई।हाथ गोड़ कांपथे एकर बिना।जीयत ले नी छूटे।
त वो सियानिन बखानत कथे-वो रोगहा सरकार के नांव बुता जाय जे दारु दुकान के ताकत में सरकार चलाथे।कतको घर के दिया बुताके अॅंधियार करत हे।का उंकर घर लोग-लइका नी होही???
ओकर वाजिब सवाल अउ दुख ला देखके महूं सोच मा परगेंव।का इंकर हाय कोनो ला लगत होही????
रीझे यादव
टेंगनाबासा
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