(लघुकथा)
नशा
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रतिहा 8 बजे घर आयेवँ त 3 बछर के नाती हा परछी मा घोंडे मनमाड़े चिहुर पार-पार के मम्मी कार्टुन कहि-कहि के रोवत राहय अउ ओती ओकर महतारी हा अपन सास संग टीवी मा सीरियल देखे मा मगन राहय।
मैं हा थोकुन खिसियावत कहेंव-- ये का होवत हे बहू।बाबू ला चुप कराये ला छोंड़ के तैं टीवी मा मगन हच।ये हा काबर रोवत हे?
कार्टुन देखहूँ कहिथे पापा।
त लगा दे।कोंन मार नइ देखय तेमा।रोज तो देखत रहिथे।
लगाये रहेंव पापा।वोला नइ देखवँ कहिथे--वो कहिच।
त जेला देखहूँ कहिथे तेने ल लगा दे।
वो हा पहिली आठ बजे आवय पापा अब रतिहा 9 बजे आथे।
अच्छा अब लइका मन ला तको रात जगाये के उदिम होये ल धरलिच।मैं हा लम्बा साँस लेवत कहेंव-- कइसनो करके एला चुप करा।
वोहा अपन मोबाइल मा गेम लगा के बाबू ला देवत कहिच-- ये ले रे खेल।
अतका ला सुनके बाबू हा चुप होके टुंग ले उठके बइठगे।
मैं अपन माथा ला धरके बइठगेंव।
चोवा राम वर्मा 'बादल '
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