Tuesday, 28 October 2025

भरम

 भरम 

                    कोस्टा पारा के रहवइया मन पानी भरे बर ठेठवार कुँवा म जाय । संझा बिहाने ओकर कुँवा म पनिहारिन मन के रेम लगय । मुलाखात अऊ गोठ बात के बने जगा घला रहय । एक दिन .. पानी भरके जात एक झन बहू छोकरी के हँउला ह .. उँकर घर म कपाट के चौंखट म ठेंसइस ... बहू छोकरी ले दे के सम्हलिस फेर रेंगान म गिरे पानी म गोड़ पर गिस ... हँउला सुद्धा गिरिस । मुड़ फुटगे ... रथिया पीरा उचिस .... पेट भितर लइका मरगे ... बहू घला बिहान होत .. दुनिया ल छोंड़ दिस ।  

                    गाँव भर हल्ला मातगे । बिशाखा ह अपन बहू ल कहत रहय – ठेठवार कुँवा म झन जाय कर ओ ...। तोर बड़े दई ह चौंरा म ... आँखी बटेर के निच्चट निहारत बइठे रहिथे । काकरो सुख देखे नी सकय । चरचर ले अंगुरी फोरत बखाने लगिस - कोढ़ी होके मरही दुखाही हा ... । देख ... फुलकरहिन के बहुरिया के का गत होगिस ... ओकरेच करनी आय । बहुरिया पूछिस – उँकर मनके अब्बड़ बनथे माँ ... ? बिशाखा किहिस – बनथे तभो ये हाल ... हम तो ओला फुटे आँखी नी सुहान ... हमर का नी करही ..। बहुरिया बिगन सवाल दागे हव कहत मुड़ हलइस ।  

                    सांझकुन पानी भरे के बेर .. बिशाखा के मुलाखात पनिहारिन मन संग होइस । पनिहारिन मन पुछे लगिन – अई काकी .. तैं कइसे या । देरानी निये का ... ? समे तो नी आय हे का या ... ? बिशाखा किहिस – समे अइगे हे तेकर सेती मय आय हँव । बइठे बइठे मोरो जांगर खिरत रिहिस .. कुछ दिन मिंही आहूँ ... सऊँख घला नी लागथे तेमा या ... देखव .. उही बहाना सबो बहुरिया संग मेल मुलाखात घला होगे । असल कारन सब समझ गिन । 

                    दूसर दिन बिहाने ले बांगा धरे बिशाखा फेर दिखगे । बिहिनिया बुता काम के बेर काकरो ले जादा गोठ बात नी होइस .. सब लकर धकर अपन बांगा भरिन अऊ चलते चलिन । बिशाखा के उमर जादा नी रिहिस फेर देंहे मोटागे रिहिस .. निहरे नी सकय । माड़ी पिराय ते अलग । टेंड़ा म पानी हेरत बन जाय फेर बाल्टी डोरी म नी सकय । कइसनों करके पानी भर डरय त बांगा ला उचा नी सकय । दूसर बोहाय तब  .. घर तक टेंग रेचेक करत लेगय । चार बेर पानी डोहारत कनिहा कोकरगे ।

                    संझा बिशाखा नी अइस । मुंधियार ओकर बहू .. हँउला धर के निकलिस । पारा के मन पूछिन – अई .. कइसे अभी जाथस या .. ? बहू मुचुक मुचुक करत चल दिस । चौंरा म बड़े दई ले मुलाखात होगे । टपर टपर पाँव परिस । बड़े दई पूछिस – मुंधियार काबर कर डरे बेटी .. संझकेरहा नी आते या .. ? बहुरिया किहिस – थोकुन देरी होगे बड़े दई । बड़े दई हा ... पानी भरे बर मदत करिस .. बांगा ल ओकर मुड़ म मढ़हइस । घर म बहुरिया ह .. बांगा ल उतारे नी सकिस .. ओकर घरवाला उतारिस । उतारत उतारत अपन घरवाला ल पनघट के बात बता पारिस । बिशाखा ललछरहा सुनिस ... रंधनी ले लकर धकर निकलत .. बहुरिया ल खिसियइस .. तहन जेठानी बर शुरू होगे । 

                    बिशाखा केहे लगिस – उही टोनही के सेती मेहा माड़ी पीरा म .. पाँच बछर ले कल्हरत हँव । मोर जांगर चलतिस ते तोला जावन नी देतेंव .. । तोला झन मिलबे .. झन गोठियाबे केहे रेहेंव ... फेर तहूँ  नी मानेस ... भुगतबो ... तैं देख लेबे ... ओकर पांगे फरक नी परे ... । 

                    बिहिनिया ... बहुरिया के पेट पिराना शुरू होगे । पिरा के मारे तहल बितल करे लगिस ।  सुइन ल बलइन । गोड़ डहर ले निथरत लहू देख ... सुइन हाथ उचावत चल दिस अऊ अस्पताल लेजे के सलाह दिस । बिशाखा मन ... रोज कमइया ... रोज खवइया ...  घर म पइसा नी रहय ... फिफियागे ... का करन ... कइसे करन ... समझ नी आत रहय ... बहू के जेवर पहिली ले गहना धराय रहय । माथ धरे बइठे ... सबो झन के बीच ... केवल बिशाखा के मुँहु .. अपन जेठानी ला गारी देवत चलत रहय .. में केहेंव न .. अब भुगतो सबो .. । सुइन के मुलाखात लहुँटती बेर ... बिशाखा के जेठानी ले होइस । उनला सरी बात पता लगिस । 

                    जेठानी मन पइसा वाला रिहिन । तुरत अपन चरपहिया तैय्यार करके रुपया के बंडल धरके पहुँच गिन । सुक्खा हाथ धरे बइठे रहँय ... कोन्हो मना नी कर सकिन । जिंहाँ आपरेशन के सुविधा रहय ते जगा ह ... चालीस किलोमीटर धूर ... । भरती होगिन । लहू बहुत रिस चुके रिहिस । आपरेशन के समे लहू .. कोन दिही ... । बिशाखा अऊ ओकर घरवाला उइसने कमजोर ... बेटा के लहू मिलय निही । बड़े दई के लहू मिलगे ... । कानाफुसी बिशाखा कहे लगिस – अई टोनही के लहू ला चघाबो तेमा ... । ओकर घरवाला हा ... लाल आँखी देखइस ... बिशाखा तरमरात रहिगे । आपरेशन सफल होइस ..  फूल असन लइका निकलिस । सब के हिरदे उछाह ले भर गिस । बिशाखा के मन म गोंजाय भरम अऊ बोजाय मइल दुनों धूर हो गिस । 

                    गाँव भर हल्ला हो चुके रहय ... बिशाखा हा अपन जेठानी ला टोनही कहिथे तेहा गलत नोहे । दू दिन पहिली फुलकरहिन के बहुरिया ला भख दिस ... आज दूसर के नम्बर आगे .. । सांझ होत .. बइसका म ... गाँव निकाला के फैसला होगे । 

                    चार दिन पाछू ... सबो लहुँटिन । रामबाँड़ा म सकलाय रहँय गाँव के सियान मन । सब इही सोंच के आय रहँय के बिशाखा के जेठानी ल खुसरन नी देना हे ... इही मेर ले  बिदा कर देना हे । 

                    गाड़ी दम ले रूकिस । बहू अऊ नानुक लइका ला छोंड़ .. एक एक करके सबो उतरिन । बिशाखा हा जेठानी ला उही तिर अगोरे बर कहत ... घर भितरि निंगिस । जेठानी के गोड़ ठोठकगे । गाँव के मन .. बहू अऊ लइका ला नी देखिन .. सब समझगे ... तुरते फैसला बता दिन । जेठानी पिछ्गुच्चा होवत टप टप आँसू गिरात सुसके लगिस ।  

                    बिशाखा ह ... भितरि ले लोटा म पानी अऊ आरती धरके निकलिस । जेठानी ला आये के इशारा करिस । जेठ हा ... जेठानी के हाथ ला धरके छेंक लिस अऊ हाथ जोरके माफी कहत .. बिदा मांगिस । 

                    बिशाखा के हिरदे म उँकर बर सन्मान जाग चुके रिहिस । बिशाखा ह हाथ म धरे समान ल उहि तिर मढ़ाके भागत आगे ... जेठानी ला पोटार लिस । बम्फार के रो डरिन दुनों । बिशाखा हा न केवल जेठानी ले .. बल्कि पूरा गाँव ले माफी मांगिस । गाड़ी ले उतरत बहुरिया ह .. बड़े दई के हाथ म लइका ल धरा दिस । देरानी जेठानी के मिलन होगे । सरी घटना के जनाकारी गाँव भर ल होगिस । टोनही के भरम ले सब उबर गिन । 

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

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