*झन्नाटा तुँहर द्वार*
साहित्य लेखन के गद्य विधा में ब्यंग लेखन घलो हे।. जेकर जनम निबंध के रूप में होथे। ब्यंग लेखन मा सपाट बयानी न करके जबानी घात करत अउ हास्य के पुट भरत अपन बात ला पूरा करथे। सही मामने मा सामाजिक सरोकार के उतार चढाव मानवीय संवेदना मा सुख दुख के सबो हिस्सा ला अनुभव करे रथे भोगे रथे देखे रथे खरा खोटा के हिस्सेदारी मा जे खोंचकर हिरदे मा पाये रथे। तब एक जिम्मेदार कलमकार अइसन विधा मा कलम चलाए के साहस करथे। यहू सच हे कि तुकबंदी मा कविताई करना तो सहज हे। फेर व्यवस्था अउ विकृत परिस्थिति ले कलम उठाके दू दू हाथ करना सहज नइये। एकर जानबा के बाद घलो झन्नाटा तुँहर द्वार के सिरजक आदरणीय महेन्द्र कुमार बघेल जी अइसन साहसिक काम रहे हे। एकर बर सादर बधाई।
एक ठन पाठक होय के नाता ले किताब पढ़े के मौका लगिस। मोर जानकारी मा झन्नाटा तुँहर द्वार बघेल जी के पहिली कृति आय। जेकर भीतर 25 ठन ब्यंग लेख ला सँघेरे गेय हे। ओइसे बघेल जी के गद्य अउ पद्य दुनो मा ब्यंग के तासीर झलकत रथे। एकर सेती घलो इन ला ब्यंगकार कहे मा परहेज नइ होना चाही। अलग अलग विषय के माध्यम ले सामाजिक राजनैतिक आर्थिक के सँग संसकार अउ संस्कृति के बात ला कटाक्ष करत चले हे। ब्यंग तो है ही सँगे सँग मन ला गुदगुदावत अपन बात ला पूरा करे मा सफलता हासिल करे हे। गरीब शोषित पीड़ित मजदूर किसान गँवई गाँव के बिगड़े हाल इँकर मूल विषय अउ मुद्दा आय। ये हर किताब के कतको विषय संगत शिर्षक के लेख मा देखे ला मिलथे। ये सही हे कि बघेल जी इही भुगतमान समाज के आवाज बनके खड़े होय मा कमी नइ करे हे। इँकर इशारा ब्यंग के माध्यम ले अँधियार मा भटकत धोखा फरेब गिरे ब्यवस्था ले तंग मनखे ला अँजोर देखाए बर हे।
किताब के जम्मो लेख मा प्रतिनिधि रचना के रूप मा झन्नाटा तुँहर द्वार ला माने जा सकथे ये मोर मत आय। इही शिर्षक हर किताब के नामकरण मा संबलता पाय हवे। आवरण सज्जा मा मौन चित्र दर्शाए गेय हे वो हर घलो ब्यंग के परिभाषा ला बताए बर सार्थक हे।
झन्नाटा तुँहर द्वार सुनके ही मन मा हास्य के रस छलके लगथे। फेर असली आनंद तो ब्यंग ला पढे के बाद मिलथे। आज ये झन्नाटा जेन हर मंद मदिरा दारू शराब के पर्यायवाची के रूप मा जगा पाय हवे। अउ यहू आसा करे जा सकथे कि किताब अपन नाम के बल मा ही नाम कमाही।।.
गरीब अमीर छोटे बड़े राजा रंक सबो के जिनगी मा झन्नाटा जगा बना डारे हे। जेकर कुप्रभाव मानव समाज ला दीमक अउ घुन्ना कीरा असन फोकला करत हे। जेकर दरद लेखक के ब्यंग मा देखे ला मिलथे।
ब्यंगकार के भाषा सरल सहज हे। छत्तीसगढ़ी के आत्मा अउ मरियादा ला सम्मान देवत गाँव में आम लोगन तक पहुंच बनाए मा सफल हें। हिन्दी अउ अँगरेजी के शब्द मन ला अइसे समोए हें जइसे मीठा खीर मा काजू किसमिस। लेखक एक शिक्षक होय के नाता ले वाक्य के क्रमबद्धता के पालन बहुते चतुराई ले करे हें। जेकर ले कोनो भी पाठक के पाठन क्रम नइ टूटे अइसे भान होथे। एकरे सँग ब्यंग मा जेन मारक क्षमता होना चाही हमर असन के समझ बर सटीक अउ सार्थक लगथे। पूरा किताब ला पढ़े के बाद कुछ वाक्यांश के उदाहरण तो दिये ही जा सकथे। जेकर ले जान सकथन कि ब्यंग अपन दिशा कोन किसम ले तय करे हे। अउ लेखक कोन किसम ले अपन ब्यंगकार होय के सबूत देथे। अलग अलग विषय मा उकेरे अलग अलग ब्यंग के तासीर ले सने वाक्यांश - -
*. हाइटेक के जमाना मा जेन हर बात बात मा झूठ लबारी बइमानी करे बर सीखगे उही मन ला पंचायत मा सबले योग्य मनखे समझे जाथे। आइसन धुरंधर मन ला पाँच साल तक कोनों खतरा नइ रहय।।
*ब्यंगकार अपन प्रतिकार ला दर्शाथे तब प्रतिकात्मक बिम्ब ले सीधा मार करे मा पीछू नइ हटे हे जइसे कि---
पाँच साल ले कुरसी के चारो खूरा ला सलामत रखना हे तब ओकर बताय रसता मा चल नइते कोन जनी कब कते खूरा हर रट ले टूट जाही।
*शासन प्रशासन डहर ले एक घाँव मा सोला ठन खरीदी बिक्री के उदारवादी नीति हर गली गली मा पहुंच बनाके कल्याणकारी योजना के नवा इबारत लिखत हे।
अलग अलग विषय में उकेरे कतको बात जे हर लेखन के देखे सोचे समझे के अउ ओकर उपर कलम चलाय के सामर्थ ला बताथे। कुछ वाक्य जेला अउ रखना उचित लगथे-----
*. सामाजिक समरसता के वातावरण मा जिन्न अउ हलवाई के बीच मा पहिली छमाही के शिखर वार्ता शुरू हो जाथे। ओकर बाद दुनो महानुभाव मन के बीच भुगतान संतुलन के मामला हर वर्चुअल ढंग ले सेट हो जाथे।
*. बिहान दिन थुकलू मिडिया के जम्मो राष्ट्रवादी चैनल मा भारी सक्रियता दिखना शुरू हो जाथे। (बँरेडी मा ईमानदारी)
*. अपन बूध के खइरपा ला उघार के देख गोतियार मिलावटखोर मन हमर रँधनी खोली तक मिलावट के पक्की सडक बना डारे हें।
*. अइसन दिन घलो मत आय कि हवई चप्पल पहिर के सड़क मा रेंगे बर घलो ठेकेदार डहर ले पाबंदी हो जाय।. (सपना के पंचनामा)
*. बाकी नब्बे परसेंट वाले के भाग मा तो काल हे। जेन अमृत चाँटे के भरम मा अपन हिस्सा मा मिले अम्मट गोम्मट के भरोसा राष्ट धरम निभावत हे। (अमृत चाँटे के भरम)
ब्यंग मा हास्य मिँझारे के कला मा यहू वाक्य मन हें--
*. सबो रद्दा के पाई मन के एके कथा कहानी हे प्रेशर ला थाम्हे लोटा भर पानी। परियावरण ला बचाय खातिर खुल्ला मा खुलासा करे के लोटाई परम्परा ला धरासाई करे बर घर भितरी शौचालय।
*. सास हर गद्दी ला छोडऩा नइ चाहे अउ बहू तत्काल गद्दी ला हथिया लेना चाहथें।
जेवन पानी के बेरा नाक मुँहुँ ला मुरेरना सास के जनम सिद्ध अधिकार हे।
*. गौठान योजना ह गाय के सराय कम पंच सरपंच अउ सचिव मन के सेल्फी जोन जादा लगथे।
*. जब ले गुटका पाउच यामू नाम के सनपना मा सवार होके आय हे तब ले पुरकू कला ला नवा जिनगी मिल गेहे।
*. बजट के चरचा अउ खरचा के योजना बनावत कते साहेब के भला लार नइ टपकत होही। इहाँ लरहा साहेब के कोनों कमी हे का?
*. कलयुगी शिष्टाचार मा नारद मुनि के खानदानी चिराग मन ला रिपोर्टर जर्नलिस्ट अउ किसम किसम के नाम ले जाने जाथे।
अइसन किसम के ब्यंग बाण ले किताब भरे पड़े हे। जे हर पढत बेरा मन ला गुदगुदाए के सँग चिंतन करे बर मजबूर कर देथे। समाज ला तुतारी मा हुदरत नवा दिशा देखाए बर सबो बिषय अपन जगा मा सामर्थ्यवान हे। विषय छोटे फेर विषय वस्तु अपन आसपास के गंभीर मुद्दा हे। जेकर भयावह रूप ला इशारा करत चेताए मा चतुराई दिखाए हे। गौठान बराती दारू स्कूल गुटका पाउच साहित्यिक मंच के प्रपंच टूरा टूरी के गैर संस्कारी मौज मस्ती के सँग बाजारवाद के विकराल रूप ला देखावत ब्यंगकार के कलम सहजता मा घलो सजोर चले हे।
मँय अबूझ पाठक ही आवँव। न तो समिक्षक ना आलोचक।ये हर पाठकीय लेख ही आवे। तभो ले एक बात कहे के मन होगे कि ब्यंग के लम्बाई ला कम करे जा सकत रिहिस।
जेकर ले पाठक बिचक के संभावना रथे। ओइसे भी आज के बेरा मा पाठक के अंकाल हे। कम मा जादा कहे के सीख घलो आगू चलके काम के हो सकथे। फेर लेखक जब तक अपन बात ला पूरा नइ करे रहय नइ हिताय। ये ओकर मजबूरी हो सकथे। मूल विषय मा कइ ठन पक्ष ला जोड़े मा लेखन के बढना सहज हे। शिर्षक नामकरण घलो बहुत महत्व के होथे। एक दू ठन मा लेख पढ़े मा जानबा होथे कि बात कोन विषय ले अवतरित हे। कुछ कमी के बाद घलो सफल ब्यंगकार के रूप मा बघेल जी के ये कृति पठनीय हे। ये आपके पहिली कृति आय। अवइया बेरा के संकलन मा सबो भरम टूट जाही इही आसा ले झन्नाटा दार शुभकामना के साथ बधाई।
राजकुमार चौधरी "रौना"
टेड़ेसरा राजनांदगांव।
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