Tuesday, 28 October 2025

पेट निकलगे*. ब्यंग (टेचरही)

 *पेट निकलगे*.  

                                 ब्यंग (टेचरही)

          जेकर पाचन तंत्र मजबूत होथे वो करोड़ों खाके हजम कर लेथे। पेट ला निकलन नइ देवय। वो मन जानथे कि पेट निकलना घलो मनखे के अपराधिक प्रवृत्ति ला उजागर करथे। खानपान के सेवन ले पेट निकलथे ये भ्रम हे। जे मन एक जुवार के जेवन  ला तीन बखत पुरो के खावत हें  ओकर पेट पीठ सँग भरत मिलाप करत हे। ये दुनिया मा जंग पेट के नाँव ले ही छिड़े हे। 

*पापी पेट हवे जग जीता, साँझे खाय  बिहाने रीता*. इही पेट के महानता आय कि चेपटे गाल लटके पेट सुखड़े पीठ उपरिया हाड़ वाले दैहिक भूगोल के चित्र देखाथे। काकरो भी निकले पेट ला देखके मन मा संका पनपे लगथे। बाढ़े पेट आदमी के हैसियत के दर्शन कराथे। तभोले सोचना परथे कि आखिर एकर पेट निकलिस तौ निकलिस कइसे। अंदरूनी रहस्य अइसनो हो सकथे कि दू रूपिया वाले चाँउर बर तैं दिन भर लाईन मा खड़े रहिथस अउ इन मन जे जगा मा खड़े होथे लाईन उँहे ले शुरू होथे। बिना नाप तोल के बोरा घर तक जाथे। तब तो पेट निकलना ही हे। जिनगी पराधीन मा कतका सुख पावत हे पेट पहिचान करा देथे। 

           स्व के आधारशिला ले पनपे देंह के कपड़ा सवा दू मीटर मा स्वर्गीय होवत ले सिलाथे। पर के पेट मे लात मारे ले ही खुद के पेट निकलथे। इही मूल मंत्र ले ही पेट निकाले के नवाचार फलत फूलत हे। ओइसे लात मारे बर गरीब के पेट उत्तम जगा हे। मंदिर के घंटी होय चाहे गरीब के पेट कोनो भी बजा सकथे। तँय कबे कि एकर पेट कइसे रातोरात निकलगे। बफे सिस्टम के जेवन ला थारी छलकत झोंका, नइ निकलय। आखिर इँकर पेट निकले के  का रहस्य हे। रहस्यवादी विचारधारा ले सुखाए पेट वाले मितान हर अंगद मेघनाथ के संवाद कस फटकार देवत किहिस - - - - रे अधम! पेट के रहस्य ला जाने बर पेट मे झन खुसर। ना हि उपरिया आवरन ला तमड़। ये मत भूल कि एकर पेट के रहस्य तोर पेट ले जुड़े हे। तोर ला नँगाके खाए हे तोर हक मारे हे पेट मा लात मारे हे।पेट निकाले बर गरीब मजदूर किसान के लहू ला मिनरल वाटर कोल्ड-ड्रिंक के रूप मा पीना परथे। बइमानी कालाबाजारी जमाखोरी अउ सरकारी दफ्तरिहा होगे तब घूसखोरी वाले स्वसाशित आचरण बनाए ला परथे। जेकर पेट लाखो कामगार के खून पसीना ले जूड़े हे वोकर घर के स्वाद सुगंध कुरिया ले परसार मा नइ जावे। एकरे सँगे सँग नीयत मा नियति के तालमेल बइठाए हे तब कहू जाके एकर पेट निकले हे। 

       खानपान ले पेट निकलथे ये सहज सुभाव आय। फेर अपन हाथ जगन्नाथ हे वोकर लाँघन अउ फरहरी दुरिहा रथे। हे मूरख मित्र आखिर तोला ये बात कब समझ मा आही कि खाना फकत मुँहूँ ले नइ होवय। एकर बर ग्यारहवां इन्द्रीय के उपयोग करे जाथे। बिना गैस्टिक अउ बदहजमी के पेट फुलना अघोषित घटनाक्रम हे। फेर लूट के खाना माँग के खाना धोखा देके खाना अपन ईमान बेच के खाना नैतिक अधिकार के प्रायोजन आय। कभू भिखारी के पेट निकले देखे हावस। किसान जे खुदे अन्न के कुबेर पति हे देखे हावस। चाहे तो वोकर पेट जादा निकलना रिहिस। फेर खातू बीजा दवई मजूरी के लागत अउ बाजारवाद के पसरा मा भाजी खरीदे बर भाजी मोल धान बेचथें तेकर पेट ला का तमड़बे। मँहगाई के मार ले जौन बाँचिस वो सोंहारी हाथी ला सुखड़ू बनाके रखे हे।

            शासक होय के पहिली शोषक  बनना जरूरी हे। ईमानदारी ले कर्त्तव्य निभाए बर कसम खाये के पहिली सस्ता दाम मा ईमान बेचे बर खरीददार खोजना परथे। बिना उपरी कमाई वाले अभागा विभाग मा नौकरी करना माने दाहरा के भरोसा बाढ़ी खाना हे। अउ कहूँ बने जगा के बाबू होगे तब तो जीभ शिकारी कुकुर असन लफलफावत मिलही। अइसन गुनिजन के पाचन तंत्र आवक से लेके निकासी तक साथ निभाथे। आखिर हमू इँकर चबाए से लेके लीले तक लार बनके समर्पित भाव ले खड़े रथन।

        आखिर मा मितान किहिस! मिहनत अउ ईमानदारी ले पेट निकाले के सोचत हावस तौ भूल जा। अइसन मन के पेट पीठ सँग मिलके रक्त संचारक धमनी ला चपक देय हे तंत्र के बीजा मा चिरौजी गायब हे फोकला चुचरे ले आपातकालीन राहत मिलत रही। खवइया मन जंगल खागे सरकारी सड़क अउ भवन खागे। अन्न पानी के छोड़ अउ कतको हे जेला बाप कस माल खागे। इँहा प्रतियोगी भाव ले खाए के ढर्रा चलत हे। तहूँ ला पेट निकालना हे तौ जतका गुन धरम हे सब ला अपना। फेर ये झन चिचिया के बोल कि एकर पेट निकलगे वोकर पेट निकलगे।मोर असन के बस अइसने बानगी रथे कि---

दुवारी मा अमीरी अउ गरीबी भेट नइ होतिस। 

सिहासन धन दुगानी बर तो मुरियामेट नइ होतिस। 

न ओखी खोज के लड़तिन सबो मिल बाँट के रहितिन। 

बने होतिस ये दुनिया मा कहूँ ये पेट नइ होतिस। 


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

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