Thursday 13 April 2023

पल्लवन-रोग बाढ़ै भोग ले

 पल्लवन-रोग बाढ़ै भोग ले

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 शरीर के कोनों भी अंग के वो जम्मों गड़बड़ी(विकार) जेकर ले दुख-दर्द जनाथे वोला रोग कहे जाथे।जेन अंग म रोग होथे वो अंग ह सही ढंग ले काम नइ करै।जइसे कोनो मशीन म खराबी आ जथे ओइसने कई कारण ले ये शरीर रूपी अद्भुत मशीन  म तको खराबी आ जथे।

  रोग अउ भोग के एकदम पक्का गठजोड़ होथे।भोग का ये? वो जम्मों जिनिस जेन ह मनपसंद लागथे--- जेकर उपयोग करे ले शरीर ल सुख के,आनंद के-- अनुभव होथे भले ये सुख ह क्षणिक होथे-हमेशा नइ राहय--भोग म गिने जाथे।भोजन ह तको भोग ये। स्वादिष्ट भोजन खाये--जीभ ह स्वाद लेइस--बढ़िया लागिस। 

   शरीर के पाँच कर्मेन्द्रिय,पाँच ज्ञानेंद्रिय अउ एक मन (जेन दिखय नहीं)--कुल मिलाके मोटी-मोटा ग्यारा इंद्री होथे। येमा मन ह काम,क्रोध, लोभ, मोह--आदि भावना के भोग करथे।ये सबो ग्यारा ठन इंद्री मन के अपन-अपन बुता हे--अपन अपन इच्छा हे ,विषय हे।इँकर बारे म एक बात अजरज के हावय के दसों स्थूल इंद्री जेमन दिखथें वो मन---नइ दिखय तेन सुक्ष्म इंद्री मन के बगैर काम नइ कर सकैं।इन ताला के मास्टर चाबी मन सो रहिथे।जइसे के गोड़ के काम ये रेंगना। गोड़ ह मन के कहे बिना नइ रेंगय या फेर जेती कइही तेती रेंगही। मंदिर कोती जाये ल कइही त मंदिर कोती रेंगही--भट्ठी कोती जाये ल कइही त भट्ठी कोती।ओइसने सबो इंद्री के हाल होथे।

    अब विचारे के बात हे के--भोग ह रोग ल कइसे बढ़ावत होही ? भोग बने हे त उपभोगे बर तो बने होही? सही बात ये उपभोगे बर बने हे फेर कइसन उपभोग करना हे जेकर ले रोग झन बाढ़ै--इही बात ल समझना हे। भोग के एक मतलब प्रसाद होथे। प्रसाद मतलब पवित्र जिनिस।अइसन प्रसाद ले रोग नइ बाढ़ै।प्रसाद ल प्रसाद जइसे पवित्र भावना ले खाये जाथे।कोनो पेट के फूटत ले खाही ह मरबे करही।

   कहे के मतलब हे के भोग म संयम होना चाही,पवित्र भावना होना चाही।"अति सर्वत्र वर्जयेत " के विचार होना चाही अउ ये विचार ह अमल म आना चाही, नहीं ते भोग ह तो आगी ये जतके जादा हवा दे जाही--जतके जादा असंयमित होके उल्टा-सीधा भोगे जही--वो वोतके मनमाड़े भभकबे करही---रोग ल बढ़ाबे करही।

    संयम कोन करही ---उही  सुक्ष्म इंद्री मन ह। रोग झन बाढ़ै तेकर  बर मन ल साधे ल परथे। दार्शनिक,चिंतक मन के संगे-संग आज के आधुनिक चिकित्सक,वैज्ञानिक मन तकों बताथें के जम्मों शारीरिक अउ मानसिक ब्याधि(रोग) के जड़ मन हर आय। गोस्वामी तुलसी दास के कहना हे के---

मोह सबन ब्याधिन कर मूला।

तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।।

  रोग मत बाढ़ै तेकर बर डाक्टर चाही, दवाई चाही। दवाई के योग चाही।कहे गे हे "योग मिटावै रोग।" आध्यात्मिक दृष्टि ले संयम,ध्यान, सदज्ञान इही मन योग ये। संतुलित आहार,विहार,सम्यक विचार ह योग ये। सदगुरु ह वैद्य आय। इच्छा म काबू पाना ह परहेज आय---

सदगुरु बैद वचन बिस्वासा।

संजम यह न बिसय कै आसा।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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