Saturday 29 April 2023

बछरू ढिलागे. महेंद्र बघेल

 बछरू ढिलागे.

                महेंद्र बघेल 


बड़े बिहनिया ले चिरई के चींव-चींव अउ पवन पुरवाही के बेरा म कपाट के सखरी ल कोन तो खट-खट बजावत हूॅंत करईस। मॅंय कपाट ल खोलके देखेंव त बहिरी म मितान गोबरधन ह ठाढ़े रहय। कुछु अनहोनी के डर म पूछेव - "सब बने -बने न मितान।" मितान ह सब बने बने कहिस त महू ल बने लगिस। तब मॅंय कहेंव - " सब कुछ चंगा हे त आपके बिहनिया ले इहाॅं पधारे के का राज हे..,धन्य हमर भाग जो आपके चरण कमल के धुर्रा ह हमर परछी के टाईल्स म परिस ,येहा पहिली मरझुरहा दिखत रहिस अब दर्पण कस चमकही।" अतिक म बेलबेलहा मितान ह अपन जवाबी हमला ल मोर उपर भवाॅंके फेकिस -" का करबे मितान रातकुन बछरू ह ढिलागे रहिस तब ले मोर मूड़ी ह पिरावत हे। घर म गोसइन ह मोर बर भड़कतिस ओकर पहिली घर ले टसको-टसको करत हॅंव।"

      बात समझ म आवत गिस कुछ तो गड़बड़ हे।मॅंय मितान ल स-सम्मान कुरसी म सउॅंहत माधो कस बइठारके अपन गोसइन ल चहा-पानी बर इशारा करेंव। तुरते-ताही कप म भाप निकलत गरम-गरम चहा ह मितान के शान म प्रस्तुत होगे फेर चुहकत -चुहकत गाय-बछरू के विषय म तत्कालिक गोष्ठी के बोहनी घलव होगे। जिहाॅं मॅंय अउ मितान बस दूनो, नइ तीसर कोनो। एक तो मितान ह बिन बुलाय अतिथि रहिस फेर मुख्य अतिथि के रोब झाड़त बिना मूड़ी-पूछी के शुरू होगे..,मॅंय कार्यक्रम के अध्यक्ष असन मुटुर-मुटुर देखत ओकर वक्तव्य ल सुनत-सुनत अपन बारी के अगोरा म तुकते रहिगेंव।

           मौका देखके मॅंय बोलेव -  "कस मितान तॅंय अपन गोसइन ल अतिक कार डर्राथस ,बछरूच ह तो ढिलाय हे न , महानदी के मेन गेट ह थोरे ढिलाय हे जेमा सुरक्षित जगा खोजत हस।"

  गोवरधन ह गेनेन-मेनेन करत लटपट म जबान ल खोलिस- " मत पूछ छोटे घर म सबे झन ला गाय के बिना जतन के पीये बर दूध-दही चाही।गोसइन ह कहिथे गोबर-कचरा के कंझट ल टार ,सबला बेच-भाॅंज दे..।फेर इहाॅं फोकट म का कहिबे एकेक गाय के पाछू  पाॅंच-पाॅंच सौ रूपया देय बर तैयार हॅंव फेर कोनो अपन घर लेगे बर राजी नइहें।काम के नाम म..,न बेटा, न बहू,न बाई , आखिर म गोबर-कचरा करे के जिम्मादारी मोर...।अइसने परेशानी के सेती बड़े भैया गोकुल ह सबो गाय ल एती-ओती ढिल दिस। अब महूॅं ह विचार करत हॅंव.., न गाय रही न बछरू ढिलाही...।"

              ये अंदर के बात आय कि मितान के घर जब-जब बछरू ढिलाथे तब-तब हमर घर म बिहने ले गोष्ठी के आयोजन होना तय रहिथे। बछरू ढिलाय के एक अपन अलगे सांस्कृतिक महत्व हे।येकर ले दू परिवार के बीच मुॅंहुॅं-कान धोय के बेरा म दूधरू संवाद घलव स्थापित होथे। हम यहू कहि सकथन कि जब-जब मितान ल फोकट म स्पेशल चहा पीये के मन होथे तब-तब उॅंकर बछरू ढिला जथे। बछरू के गरदेंवा ल खूॅंटा म बाॅंधे के जगा अरझाय के पाछू इही कहानी हे। गरदेंवा ल अरझाव अउ परोसी घर चुहकी लगाव..। येती बछरू के ढिलाय ले गाय ह बड़ खुशी मनाथे काबर इही दिन ओकर चिराग ह अघावत ले गोरस पी पाथे।

            गोष्ठी म क्षेपक ल जोड़त गोबरधन ह अपन बहू के बहुआयामी चरित्र के बखान करत बताइस कि -- "बहू ह गाय-गरू ल पैरा-भूसा खवाय बर नइ जाने, गोबर-कचरा के जैविक महत्व ल एकोकन नइ माने। गोबर के नाम ल सुनतेच नाक-भौंह कोचर जथे, मुॅंहुॅं-कान ओथर जथे। फेर दूध ल मुनुबिलई कस सपासप पीये बर सबले आगू उही ह रहिथे। दूध ल पीयत-पीयत अपन झाॅंपी के जोरन ल निकाल के एके डायलाग मारथे गाय हमारी माता है,गोबर माटी हमको नहीं सुहाता है।"

        गोबरधन के बहू गायत्री ह गाय के सेवा-जतन ल ननपनेच ले थोरको नइ जानिस। बाप-महतारी मन ओकर दिमाग के कोरा भुइयाॅं म सिरिफ डाॅक्टर अउ इंजिनियर बने के सपना बोईन फेर माल-मवेशी के सेवा जतन अउ घरेलू काम -काज के बीजा नइ छीच सकिन।जब मां-बाप मन खुदे अपन बेटा-बेटी ल गाय-गरू के सेवा-जतन बर नइ सिखोहीं त कोई अपने-अपन थोरे सीख जाही। अइसन म बेटा-बहू अउ बेटी मन का पथरा ल ककरो सेवा जतन  कर पहीं.., बस बाते-बात म सिरिफ गोबरे कचरा करहीं.., भला अउ का कर सकहीं..। किसान के घर म बहू-बेटी के अइसन सोच ह समाज म होवइया बदलाव के तरफ इशारा करत हे।

    जेमन किसान नोहे उनकर बारे म हम का कही सकथन। ओ परिवार मन गाय के सेवा-जतन ल तो दूर गाय के बारे म चर्चा वाले पन्ना ल चर-चर ले चीरके फेंक देंथे। अउ ओमन कुकुर पोस के कुकर के प्रति अपन श्रद्धा  भाव ल भूॅंक-भूॅंक के सादर समर्पित करथें।

           गाय के नाम म नाक-कान कोचरइया मन के अपन पहिली पसंद ठेमना बेलाटी कुकर रहिथे।येमन कुकुर ल अपन गोदी म बइठार के चूमत-चाॅंटत ओ माई स्वीट हार्ट..,ओ माई क्यूटी..,ओ माई डियर बेबी कहत- कहत आत्मिक अउ परमात्विक खुशी महसूस करथें।पता नहीं येमन काकर हार्ट के स्वीट सवाद ल कब-कब चींख-चाॅंट डरे रहिथे ते। संग म अपन लइका ल नइ सुताहीं फेर कुकर ल छोड़ नइ सकें। अपन मन पारले, पतंजलि बिस्कुट म मन ल मड़ा लिहीं फेर कुकुर ल ब्रांडेड एनर्जी वाले बिस्कुट खवाहीं।अउ कुकर के गोबर-कचरा ल साफ करत असम्हार खुशी के अनुभो करथें कि धन्य भाग..., जे हमर काया ह लेड़ी बिने के काम अईस।शहर म पढ़े-लिखे मनखे के घर म गाय के जगा कुकुर जरूर मिल जही। कहुॅं कुकुर ह खोंची-खाॅंड़ दूध दे देतिस ते पता नहीं अउ का होतिस।

         पढ़ई-लिखई म थोरको डिस्टर्ब झन होय इही सोचके मां-बाप मन लइका मन ल गोसेवा करे बर नइ तियारें।उही माॅं-बाप मन जब सास -ससुर बन जाथे तब अपन बहू ले गोबर-कचरा करे के आशा रखथें। जब अपन बेटी ल नइ सिखा सकेन तब बहू (दूसर के बेटी) ले का आशा..।

     एती बहू रानी के सेती गोबरधन ल खुदे टिमारी करना पड़थे।ओ मने-मन म गदकत रहिथे कि चलो बछरू ढिलइस ते बने होइस, आज दूध-दूहे के कंझट ले छुटकारा तो मिलिस संग म पड़ोसी ल गुड मार्निंग करे के गरम-गरम मौका तो घलव मिलगे। कुल मिलाके आज गोबरधन बर बछरू के ढिलाना शुभ हे।

           खेत जोते बर ट्रैक्टर लुवे बर हार्वेस्टर ये मशीन मन के नाम लेके पैरा भूसा के हाल-बेहाल हे। किसान भाई मन पैरा म आगी ढील देथें, चारो मुड़ा धुॅंगियामय हो जथे तब अइसे लगथे जनो-मनो मछिंदर भाई मन ॲंटवा वाले आइटम ल खो-खो के भूॅंजी म कन्वर्ट करत हें। गांव होय चाहे शहर गली-खोर, सड़क-धरसा, पाई-परिया, भर्री-भाठा जइसे सार्वजनिक जगा मनके हालत पतली हे। जेकर जइसे मरजी, उही उठावत कुरिया-परछी। बरदी बर चरागन नइहे, जम्मो चरागन ल हुसियार अउ टोपी वाले नंबरदार मन चर डरिन। लमा-लमा के खइरखाडाॅंड़ (दईहान) म कोठार बनगे, बड़े-बड़े बिल्डिंग तनगे।गाय बर न बैठे के जगा न चरे के.., तब लगथे अब बहुते जल्दी बरदिहा मन लुप्त प्राणी के नाम ले जाने जाहीं। बाढ़त मॅंहगाई ल भला ते कम कर डारबे फेर बरदी चराय बर चरवाहा खोजई के बूता म तोर खून अउॅंट जही।

          आपरेशन व्हाइट रिवोल्यूशन के नारा ह खुद भूखमरी के शिकार होके चारा माॅंगत हे,श्वेत क्रांति ह दिनोदिन पटपटावत अश्वेत होवत हे। हालत इहाॅं तक पहुंच गेहे कि किसान मन अपन घरके गाय-गरू ल सुनसान जगा नइते बीच जंगल म बरोय (छोड़े ) के एकतरफा अभियान चलावत हें। किसान भाई मन के ब्लड म गाय-गरू पोसे के इच्छा खतम होगे हे त का डेयरी फारम के भरोसा म आपरेशन फ्लड ह सफल हो जही।

        सरकार ह जनता बर झउॅंहा म गोबर बीनत अउ गंजी म सू-सू झोंकत नवा-नवा योजना बनाके लावत हे..। जनता मन के रूझान के सेती गाॅंव-गाॅंव ह.. झोंकत, बीनत अउ नोट गीनत गोबरमय हे। कोठा म गाय के कीमत दूध दूहत ले,गोबर बीनत ले अउ सू-सू के झोंकत ले हवय। दूहानू गाय बर दाना-भूसा के वेवस्था दूहात ले.., फेर परम आदरणीय गोसान मन गाय ल नगर भ्रमण बर भेज देथें।तेकरे सेती माडर्न गाय-गरू के दिनचर्या म ये हाइटेक अउ विकास के हवा ह भारी उलटफेर करके रख देहे। ताजा उदाहरण के रूप म देखब म आथे कि  जम्मो गाय समाज ह बात-बात म धरना प्रदर्शन बर सड़क म रोम देथें।अउ रातकुन सड़क के बीचोंबीच बैठके भावी योजना के खाका खींचथें कि बजरहा झोला म हमला कइसे हमला (आक्रमण) करना हे, डिग्गी म थोथना ल कैसे खुसेरना हे। 

          रद्दा रेंगइय्या मन कतको हार्न बजावत रहॅंय येमन टस ले मस नइ होंय भलुक बरन चढ़ाके कननखी देखत गारी देवत हे तइसे नजर आथें। इनकर समाज के बाउन्सर (गोल्लर) मन के बाते निराला हे रातभर खेतखार के बेंदराबिनास करहीं अउ बिहने ले बीच सड़क म कोलगेट कइसे घींसे जाथे ओकर प्रभाती प्रदर्शन करथे। अइसे भी येकर भूॅंकरई ले जनता मन कम परेशान नइ रहॅंय। गाय समाज डहर ले बीच सड़क म घेक्खरपना अउ धान-पान के चरई ल देखके अइसे लगथे जनो-मनो आजादी के अतना दिन बाद गौठान बने के खुशी म येमन स्वतंत्रता दिवस मनावत हें।

            अउ एती गौठान योजना ह गाय के सराय कम, पंच- सरपंच अउ सचिव के सेल्फी जोन ज्यादा लगथे ओ तो शुक्रगुजार हे बिहान वाले दीदी मन के जेन जैविक खाद बनाके थोरिक इज्जत के फालूदा बने ले बचावत हे।

              कभू-कभू सू-सू गोबर बेचइय्या मन चलाकी के चक्कर म गोबर म पानी मिलाके वजन बढाय बर सोच डरथें। त का तउलईया के दिमाग म थोरे गोबर भराय हे..., तोर चतुराई ल नी समझही..। तब चतुरामन के जवाब.., गाय ह पोंकही त हम का करबो,गाय जइसन करे हे तइसन ल लाय हन..।

         सू-सू मंडी के मनिज्जर मन के सूॅंघे के शक्ति ह बेलाटी कुकर ले घलव तेज रहिथे।वो मन सूॅंघ के बता देथें कते ह गाय के ओरिजिनल सू-सू आय..,तभे तो आज तक कोनो हितग्राही मन ओरिजिनल सू-सू म बैला के सू-सू ल मिलाय के हिम्मत नइ कर पाइन।

          अब तो जेन ल गोधन ले एलर्जी हे उही गोबरधन बनगे..,हमर देश म गोबरधन के कोई कमी हे का..।मॅंय चौकीदार..,मोर घर ह -तोर घर..जइसे नारा ले प्रेरित होके देश म एके नारा चलत हे महूॅं गोबरधन..। तेकरे सेती गरवा समाज के पदाधिकारी मन सड़क म आके बैठ गेहें। जनों मनो उनकर सियान गरवादेव ह उनला हूमेलासन अउ भड़कासन सीखोवत हें। अउ अवइय्या- जवइय्या मन के हाथ-गोड़ ल टोरके नवा ईबारत लिखत हें।

 इहाॅं ले उहाॅं सुबे ले साॅंझ तक जे डहर देखबे उही डहर सड़क ह अघोषित गौठान बनके रहि गेहे।तब लगथे ये सरकारी गौठान ह भूत बंगला तो नइ बन जही। कुलमिलाके जब कोठा म गायेच नइ रही तब बछरू ह कहाॅं ले ढिला जही...।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

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