Saturday 1 April 2023

मूर्ख दिवस के गाड़ा-गाड़ा बधाई

 मूर्ख दिवस के गाड़ा-गाड़ा बधाई

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मूर्ख दिवस बस एके दिन,एके अप्रेल के काबर मनाये जाथे? येला तो रोज-रोज मनाना चाही ,काबर के एको पल --एको घड़ी अइसे नइ होही जब कोनो मूर्ख नइ बनत होही अउ कोनो नइ बनावत होही ।ये दुनिया म सब कोई एक-दूसर ल मूर्खे बनाये म लगे हावयँ।अउ करोड़ों म एकाध झन कहूँ दूध म रगड़-रगड़ के नहाँये होही-- अइसे तो एकर संभावना रेती म तेल निकाले सहीं बहुतेच कम हे तभो ले कहूँ मिलीगे त मान लव ये इक्कीसवीं सदी म वोकर ले मूरख कोनो नइये।अइसन मनखे मन ल आज के समे म भोकवा--जोजवा अउ नइ जाने का का महाउपाधि फोकटे-फोकट म मिल जथे ,आन उपाधि सहीं ककरो तेल मालिश करके या फेर खर्चा पानी करके बिसाये ल नइ परय।

    मूरख बने अउ बनाये बर दू जिनिस--स्वार्थ अउ प्रेम के कच्चा माल जरुरी होथे।तभे तो कहे गे हे--" सुर नर मुनि सब कै यहि रीती।स्वारथ लाग करहिं सब प्रीती।" अब भला बतावव ,ये दूनों चीज के कहूँ कमी हे का?नइये--हाँ अतका हो सकथे ,ककरो करा जादा मात्रा म हे त ककरो करा कम मात्रा म हे। ये मामला म --आज के सबले बड़का देवता धामी --भगवान,पैगम्बर कस जिंकर मान-गउन होथे वो चतुरा मन --हाँ चतुरा कहना ठीक होही काबर के धूर्त कहे म मानहानि के केस हो सकथे--- मतलब नेता मन अउ कतकोन नाना नामधारी उपदेशक मन सबले धनी मानी हें।भले कोनो कहि दय के पाँचो अँगरी एक बरोबर नइ होवय फेर इहाँअपवाद के नियम लागू होथे तेकर सेती पाँच ल कोन काहय--बीसों अँगरी बरोबर होथे।  ये मन लुड़हार-सुल्हार के,मीठ-मीठ गोठियाके, रंग-रंग के वादा के चारा गूँथ के लालच के गरी म फँसा के अइसे मूरख बनाथें के न तो खात बनय न उगलत बनय।

  ये मन सरी जगत ल अउ सरी जनता ल मूरख बनावत रहिथें फेर अइसे बात नइये के ये मन मूरख नइ बनत होहीं,ये मन ल कोनो मूरख नइ बनावत होहीं? मूरख बनना अउ बनाना सर्वव्यापी हे।काल के चक्का कस घूमते रहिथे।येहू मन मूरख बनथें। जनता ह जब "सोनार के सौ पइत अउ लोहार के एके पइत" कहिके चुपेचाप वोट देये के बेरा--दारू-पानी,मुरगा बोकरा,रुपिया-पइसा--अपन-अपन श्रद्धा भक्ति के अनुसार झोंके रहिथें तभो ले एती खाके वोती ठोंकथे त इँकर बया भुला जथे। कभू कभू इडी ,सीडी ह एती-वोती,आधा हकीकत आधा फसाना म फँसाके डीडी कर देथे त येमन ल डोकरी दाई सुरता आ जथे।ओइसने "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" वाले मन के जब भंडा फूटथे त अंठी-कंठी,बाना-बिंदरा,कट्टरता,अंडा-झंडा-डंडा सब फेका जथे।जेल म नरक झलके ल धर लेथे।हूर तो मिलय नहीं, कट-कटाकट चाबत मच्छर मन ले जरूर मुलाकात होथे।

  अगर मूर्ख होना अउ मूर्ख बनाना बुराई होही त मैं पूज्य कबीरदास जी ल हाजिर-नाजिर जानके, कसम खाके घोषणा करत हँव के -

 "बुरा जो देखन मैं चला,बुरा न मिलिया कोय। 

जो दिल देखा आपनो, मुझसे बुरा न कोय।।

     हम एक बात अउ बताना चाहत हन के कोनो ल मूर्ख बनाना सहज होथे फेर खुद ल मूर्ख मानना अब्बड़ कठिन होथे फेर हम सौभाग्यशाली हन के मूर्ख मन के संगति म रहिके हम ला जल्दी समझ आगे के हमर ले बढ़के बोदा बइला कोनो दूसर नइये। हम जान डरेन ये दू लाइन हमर उपर बिलकुल फीट बइठथे-

मल मल धोए शरीर को,धोए न मन का मैल।

नहाये गंगा गोमती, रहे बैल के बैल।

    येकर मतलब ये नइये के हमर जिनगी व्यर्थ होगे। नहीं नहीं --एकदम सार्थक होगे काबर के महामूर्ख --बोदा बइला ले सुखी कोनो प्राणी नइ होवय अइसे बताये जाथे। वोला तो का दुख ,का सुख के पतेच नइ चलय।कुछु समझ म आही तभे तो पता चलही। हमर हाल अउ चाल इही हे।

 मानौ चाहे झन मानौ--सब ले जादा व्यर्थ तो चतुरा मन के जिनगी हो जथे काबर के वो मन सब चीज म डिमाक लगावत रहिथें। टेंशन इँकरे उपज ये। बी पी,शुगर अटेक-सटेक इँकरे सँगवारी ये।दिखय नहीं फेर अँधविश्वास ल इही मन थइली म धरे रहिथे। मूर्ख ल मूर्ख बनाना सब ले कठिन कारज होथे काबर के वो उही हाबय त अउ कइसे बनाबे ।एकर उलट बड़े-बड़े पढ़े-लिखे चतुरा मन ल बहकाके ,उकसाके,प्रेम जाल म फँसाके,लालच के चाशनी चँटवाके झटकुन मूरख बनाये जाथे। प्रेम जाल के बात निकलगे त जेती देखव तेती चारों मुड़ा बिछाये दिख जही। ब्वाय फ्रेड मतलब बउराय फ्रेड,गर्ल फ्रेड मतलब जेब म नजर गड़ियाये फ्रेड के ट्रेंड चलत हे। बेंड बाजा भले नइ बजय फेर इँकर जिनगी के बारा जरुर बज जथे। अइसन मूर्ख मन संग दुनिया भर के मूर्ख मन ल मोर महामूर्ख कोती ले "मूर्ख दिवस ' के सपरिवार गाड़ा-गाड़ा बधाई हे।

 

चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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