Sunday 9 April 2023

दादी के सोच-नाटक

 दादी के सोच-नाटक

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भाग एक


( सरला के गाँव बहुत बड़े रहिस हे। ओ ह आदर्श गाँव रहिस हे। ये गाँव नदी के तीर म रहिस हे। नदी के पानी गाँव तक आ गे रहिस हे। ये गाँव ह ऊंचाई म रहिस हे तभो ले नीचे के मंदिर तक पानी आ गे रहिस हे। सरला ह अपन सहेली संग नदी के पानी देखे बर गे रहिस हे। सरला ह जब मंदिर ल देखिस त सोच म पड़गे।)


सरला - ये नदी के पानी मंदिर तक आ गे हावय। मैं तो कभू सुने भी नइ रहेंव के नदी के पानी मंदिर तक आये रहिस हे।


मीना - हाँ मोर दादी ह घलो बताथे के कतको पानी गिरय फेर पानी ह अपन सीमा ल नइ लांघय।


सरला - हाँ आज नदी ह अपन सीमा तोड़ दिस। अथाह पानी सुने रहेंव फेर आज देखे हंव।


मीना - चल सरला सरपंच चाचा ल बताबो।


( दूनों झन गआँव डाहर जाथें। सरपंच के घर तीर पहुँच जथें।)


सरला - सरपंच चाचा ,सरपंच चाचा।


सरपंच - ( सरपंच दरवाज खोलथे ) काये?


( लइकामन अँगना म आ के खड़े हो जथे )


सरला -" सरपंच चाचा नदी के पानी तो मंदिर तक हुँच गे हावय। का हमर गाँव के मंदिर बुड़ जही चाचा।"


सरपंच - नहीं बेटा, आज तक तो हमन सुने नइअन के कभू नदी के पानी मंदिर तक आये हावय।


( उही बेरा म बहुत घबराये खोरबाहरा ह आथे। ओ ह सरपंच ल बोलथे।)


खोरबाहरा - " सरपंच चाचा, गाँव ह बुढ़ने वाला हे, पानी ह गाँव के मंदिर तक आ गे हावय। हमर गाँव तो बहुत ऊंचाई म हावय।नदी के पानी बहुत गहराई म रहिथे त अतेक पानी कइसे आ सकत हे?"


सरला - हाँ चाचा बता न.।


मीना - हाँ चाचा, का हमर गाँव बुढ़ सकत हे का? 


सरपंच - ?हाऔँ, काबर नहीं? एक संग धुंआधार बारीश होही त बुढ़ सकझत हे।



खोरबाहरा - सच म काका? हमन ल का गा़ँव खाली करे बर रही?


सरपंच - नहीं , हमन ल गाँव खाली करे बर नइ परय।


( आवव बइठव मैं तूमन ल कुछ बताना चाहत हंव। सरपंच कुर्सी म बइठ जथे आउ बताना शुरु करथे।)


सरपंच - सुनव पहिली बहुत बारीश होवय फेर ये पानी ह महिना भर म गिरय। झड़ी चलय। कभू धूप निकलय भी त एक दू घंटा बर। रिमझिम बारीश के अपन मजा होवय।


 तीनो एक संग - एक महिना तक रिमझिम रिमझिम बारीश होवय?

 

सरपंच - हाँ ,येला झड़ी कहिथें। सावन के महिना तो झड़ी के नाम से ही जाने जाथे। शिवजी के पूजा होथे। सब मंदिर जाथें। कोनो छतरी ले के जाथें त कोनों भीगत जाथें। स्कूल भी वइसने जाथें।


सरला - पानी म भीगे म तो बहुत मजा आवत रहिस होही चाचा?


मीना - आजकल तो दू तीन घंटा ही बारीश होथे।


खोरबाहरा - हाँ, मैं तो सरलग दू दिन के बारीश भी नइ देखे हंव।अउ का होवत रहिस हे चाचा?


सरपंच - पानी जब धीरे धीरे याने रिमझिम रिमझिम गिरथे त सब पानी धरती के भीतरी चल.देथे। येखर कारण तालाब ,बोर अउ कुआँ के पानी के स्तर ह बाढ़थे। आज ले चालिस पचास बछर पहिली तो बीस फुट म पानी मिल जाये।


खोरबाहरा - आज तो भाई दू सौ फीट में भी पानी नइ मिलय।


मीना - अब समझ म अइस चाचा।


सरपंच - काये समझ म अइस मीना बता?


मीना - आज जब एक दू घंटा म तेज बारीश होथे त  सब पानी तेजी से बोहा जथे।


सरला - ये सब पानी कहाँ जाथे?


 सरपंच - ये सब पानी नदिया ले बोहावत समुद्र म चल देथे।


मीना - आजकल  पहिली सरिख बारीश काबर नइ हो्य? दू तीन घंटा में ही बादल काबर खाली हो जथे?


सरपंच - अब सुनव तूमन। हमर विकास होवत हावय, हमर मन के रहन सहन बदलत हावय। अब हमन पेड़ काट के सुंदर सुंदर फर्निचर बनाथन। एक से एक डिजाइनदार दरवाजा बनावत हावन। चुल्हा म खाना बनाये बर भी लकड़ी चाही। सोफा डायनिंगटेबल सब लकड़ी काट कर ही बना रहे हैं। फर्निचर बर सरई, बीजा, शीशम,खम्हार अउ बबूल ल काटत रहिथन।जलाये बर बबूल ल काटथन।खो


खोरबाहरा - तब तो एक दिन ज़गल ह खतम हो जही, खेत खार के पेड़ सिरा जही काबर के पेड़ तो लगावत ही नइअन। अब हमन ल छाया कहाँ ले मिलही? जलाये बर लकड़ी नइ मिलही त खाना कइसे बनाबो।


सरपंच - ( अँगना म टहलत रहिथे) हाँ खोरबाहरा हमन पेड़ ल काटत जात हन अउ पेड़ नइ लगावत हन। पेड़ के संख्या कमती होलत हावय। येखरे कारण बादल ह अपन रद्दा भुलावत हे।


सरला - का बादल के चले के भी रद्दा होथे सरपंच काका?


सरपंच - हाँ सरला, बादल ह हवा के संग संग चलथे। हवा के बहे के दिशा होथे. ये दिशा हवा के दाब ऊपर.निर्भर.रहिथे। हवा के दाब ह ताप के कारण कम ज्यादा होथे।


मीना - येखर से का होथे चाचा?


 सरपंच - बादल तो हवा के दिशा में ही दउंडथे। हवा के दिशा तापक्रम ऊपर तय होथे। तापक्रम कम ज्यादा पेड़ पौधा के कारण होथे।

 

सरला - अइसे कइसे होथे चाचा?


सरपंच - तापमान जेन डाहर कमती होथे बादल ह उही डाहर चल देथे। हवा उही दिशा डाहर बोहाथे। हवा के दबाव कम ज्यादा पौधा मन के कारण होथे। जेन डाहर हरा भरा पेड़ पौधा रहिथे बादल उही डाहर जाथे। बादल ह अपन भीतरी म जमा पानी के बूंद ल उही मेर गिराये ले लग जथे।


खोरबाहरा - मतलब बारीश होये ले लग जथे?


सरपंच - हाँ, ओ मेर बारीश होथे अउ बहुत मात्रा म होथे। ये हरियाली के कारण बादल अपन रास्ता बदल देथे। आजकल हरियाली गायब होवत जात हावय इही कारण से बादल ह अपन भीतर रखे पानी के बूंद मन ल एक संग गिरा देथे।


मीना - बाढ़ घलो आ जथे।


सरपंच - हाँ बहुत अधिक पानी गिरथे तेन.ह धरती म न जाके समुद्र डाहर चल देथे।


सरला - इही कारण से कुआँ, तरिया अउ बोर सुखावत जात हे। चलव चल के देखबो के पानी कहाँ तक भरे हावय।

( सरपंच चाचा कहिस के अभी रात होगे हावय अब कल जा के देखबो)


भाग दो


( रात हो जथे, रला, मीना अउ खोरबाहरा अपन अपन घर चल देथें। घर पहुंचे के बाद सरला के दादी ह पूछथे)


दादी - सरला कहाँ गे रहेस?


सरला - सरपंच चाचा घर गे रहेन। दादी तैं जानथस नदी के पानी मंदिर तक आ गे हावय?


दादी - हाँ मोला सुखरु बतावत रहिस हे। पहिली बेर नदी के पानी अतेक दूरिहा तक आये हावय। गाँव ह तो ऊंचाई म हावय। पानी हमेंशा अपन मर्यादा म रहिस हे। ये समय म अपन सीमा ल तोड़ दिस।


सरला - हाँ दादी, सरपंच चाचा बतावत रहिस हे के हमन पेड़ तो काटत हन फेर लगावत नइअन इही कारण एक संग बहुत पानी गिरथे।


दादी - हाँ सरला, इंसान बहुत सुवार्थी होवत जात हे। जेन प्रकृति ले अउ जंगल ले ओला सब कुछ मिलत हावय ओखरे दोहन करत हे।


सरला - कइसे दादी?


दादी - मनखे पेट्रोल निकालत हावय,कोयला ,लोहा, मैगजीन उ सोना खदान ले निकालत हावय। धरती ल खोदत जावत हे येखर ले धरती के संतुलन बिगड़त हावय। भूकंप आवत हे।कारखाना अउ कार गाड़ी के धुआँ के कारण कार्बन डाई आक्साइड, नाइट्रोजन हवा म बढ़त जात हावय। ये सबके कारण अति बारिश अउ सूखा होथे। चलव जल्दी खाना खा के सुत जथन। बिहनिया मंदिर जाके देखबो के कतका पानी हावय।


सरला - हाँ दादी चलव खाना खाबो। 

( दूनो झन खाना खा के सुत जथें। बिहनिया जल्दी उठ के दूनों झन मंदिर डाहर जाथे। ऊंखर संग म गाँव के कुछ मनखे मन घलो जाथें। मंदिर के तीर म पहुंचथे त सरला दऊंड़त नदी डाहर चल देथे अउ जोर से चिल्लाथे।)


सरला - दादी ईईईईईईईई


दादी - का होगे ?


सरला - हमर गाँव बोहागे हे दाई हमर गाँव बोहागे।

( तब तक सब मंदिर के तीर म पहुंच जथें अउ देखथें के नदी के किनारा कट के बोहा गे हावय। एक मात्र  बरगद के रुख बांचे हावय फेर ओखर चारो मुड़ा के माटी बोहागे हावय। दादी ,सरपंच,खोरबाहरा, मीना, अउ सुखरू सब ल अचरज होथे।)


दादी - येला नदी के कटाव कहिथें सरला।


सरपंच -  अइसना काबर होगे?


दादी - बत़ावव सरपंच, लइकामन जानना चाहत हें।स


सरपंच -आपे मन बतावव दादी, काली बर तो मैं बहुत अकन जानकारी देय हंव।


दादी - सब झन धियान लगा के सुनव,ओतरफ देखव। बरगद के पेड़ ह कटाव के बाद भी खड़े हावय। ओखर जड़ म चारो तरफ मिट्टी भरे हावय।


मीना - अइसे काबर दादी?


दादी -पेड़ पौधा के जड़ ह माटी ल बोहावन नइ देवय। माटी ल बांध के रखथे। नदी के पानी ऊपर तक आही तभो ले पेड़ के जड़ के कारण माटी कटय नहीं।


सरपंच - सही बात आये दादी, नदी के किनारे किनारे के पेड़ मन ल गाँव के मन काट क लेगें हावंय। नवा पेड़ उगे नइये।


दादी - ये कटाव हमला सीख देवत हे के पेड़ कट गे हावय। कुछ पेड़ सूख गे हावय त अब पेड़ लगाना हे।


मीना अउ सरला - हाँ दादी चल पेड़ लगाबो।


दादी - हाँ अब हमन पेड़ लगाबो।


भाग तीन


दादी -  ( सरपंच डाहर देखत ) देख सरपंच तैं पूरा गाँव के खेत अउ बाड़ी म जेन पेड़ मन अपन आप उगे हावय तेन मन के सकेला कर।कुछ पौधा शहर जा के जंगल आफिल ले ले आन। अब हमन पन गाँव के दूनों डाहर एक ेक किलोमीटर तक नदी के किनारे म पेड़ लगाबो। आज गुरुवार आये। दू दिन म बहुत अकन पेड़ सकेल के मंदिर म ला के रखव। रविवार के बिहनिया ले पेड़ लगाये बर शुरु करबो। दिनभर म पूरा पेड़ लगा लेबो। हर दस फीट के बाद पौधा लगाबो। चार लाइन म पौधा लगाबो याने नदी के किनारे चालीस फीट तक पौधा लगही। कुछ बैल गाड़ी घलो ले आना।


सरपंच - बैल गाड़ी ल काये करबो?


दादी - चार छै झन एक एक गाड़ी म पौधा रख के जाहीं, आधा आधा किलोमीटर म पौधा ल गिनती करके रखत जाहीं। रखत बनही त दस दस फीट म छोड़त जाहीं। जेखर करा मोटर साइकिल हावय ओमन उही म जायें।जेखर करा साइकिन हावय त अपन साइकिल म जावंय। सब पौधा ल दू किलोमीटर म बगरा देना हे।


सरपंच - दादी चमन करा ट्रेक्टर हावय। ओला बोल देबो त ओ ह शहर के जंगल आफिस ले पौधा ला के नदी तीर म छोड़ दिही।स


सरला - शनिवार के तो आफिस बंद रहिथे।


सरपंच - महिना के दूसरा अउ चौथा शनिवार के आफिस बंद रहिथे।ये शनिवार तो तीसरा आये, खुले रहिही।


( सब झन वापस होवत रहिथें त दादी कहिथे )


दादी - हमर नाऊ रामधीन ल कह देना पत्तल ले के आही। तूमन समाज के बड़े बरतन ल लान लेना। काली बर राम कोठी के धान ल कुटा के साफ करना हे।


खोरबाहरा - काबर दादा?


सरला - दादी हमन पिकनिक मनाबो का ?


दादी - हाँ बेटा, सब झन इंहे रांध के खाना खाबो। सब मिलके काम करबो अउ खाना भी खाबो। सब झन अपन अपन बारी के साग भाजी  ल साफ करके काट के ले आना। हमन इंहा मिंझरा साग बनाबो।


सरपंच - दादी काली बर तो तिहार असन लागही।


दादी - सरपंच पेड़ लगाना घलो एक तिहार आये।


सरपंच - हाँ दादी, रविवार के बहुत बढ़िया लागही। चावल, सब्जी अउ बाकी सब सामान के इंतजाम मैं कर लेहुं।


(सब अपन अपन घर चल देथें। रात के सब झन अपन अपन काम के बारे म सोचथें। दूसर दिन सब अपन अपन बारी अउ खेत ले पेड़ उखाड़ के लानथे। कुछ पेड़ तो गाँव के गली खोर म उगे रहिस हे सब ल उखाड़ के मिट्टी लगा लगा के रखथें। शुक्रवार के सांझ कन सब चौपाल म सकलाथें।)


सरपंच - कतका पेड़ सकलाये हावय?


( सब अपन अपन पेड़ के संख्या बताथें।)


सरपंच - ठीक हे हजार ले ज्यादा पेड़ सकलागे हावय। काली बर जंगल विभाग ले तीन चार हजार पेड़ मंगवा लेबो।  काली मोर संग कोन शहर जाही?


( उही बेरा म चमन आ जथे)


चमन - सरपंच चाचा काली मोला सुरता करे रहेव। मैं गाँव के काम बर अपन ट्रेक्टर ल दे दूहूं। का काम करे बर हे बता दे।


सरपंच - काली बर शहर जाबो चमन। तीन चार हजार पेड़ जंगल विभाग ले लाना हे। सब पौधा मन ल नदी किनारे छोड़ना हे।


चमन - ठीक हे चाचा।


एक मनखे - काली बिहनिया के बजे निकलबो?


सरपंच - काली बिहनिया आठ बजे सब झन निकलबो।


( शनिवार के सब पन अपन बारी के साग भाजी तोड़के काट छिल के तइयार कर लेथें।)

(शनिवार के शाम के ट्रेक्टर आथे। ओमा गाँव के चार छै झन चढ़के पौधा के संग संग नदी किनारे चल देथें। सब झन मिलके दू किलोमीटर के दूरी म पौधा ल बगरा देथें। रात के अपन अपन घर चल देथें।)


(रात के सब अपन अपन घर म खाना खा के सुत जथे। बिहनिया कुछ मन बड़े बड़े बरतन अउ कुछ मन छेना लकड़ी धर के मंदिर तीर जाके रख देथें।सब झन अपन अपन घर के काटे साग भाजी ल ला के एक बरतन म रखथें। शनिवार के पाँच झन महिला मन राम कोठी के धान ल कुटा के साफ करके रखे रहिथें। रविवार के बिहनिया सब चावल ल धर के मंदिर आथें।। सब झन अपन अपन घर ले बासी, अंगाकर रोटी, पेज पी के पेड़ लगाये बर निकलथें।

मंदिर के तीर म साग भाजी अउ सब बरतन रखाये रहिथे।)


खोरबाहरा -  भाई रामचरण सब बरतन ल मंदिर किनारे लान तो।


रामचरण - हव भाई लानत हंव। मोर गाड़ा म नून मिर्चा, तेल मसाला सब हावय। गौटनिन ह सब देय हावय।


खोरबाहरा - लकड़ी नइ आये हावय?


रामचरण - रघु ह अपन गाड़ा ल लानत हावय।ओमा पानी घलो हावय।दोना पतरी अउ पिलास्टिक के गिलास हावय।


खोरबाहरा - अउ माचिस भाई? माटीतेल घलो चाही।


रामचरण - सुरता करके राखे हंव भाई, सबो जिनिस ह आवत हावय।


खोरबाहरा - जा तो भाई ईंटा लान ले, मंदिर म हवन के ईंटा रखे हावय।


रामचरण - अरे भाई ईंटा घलो लानत हावंव। गौटनिन ह सब सुरता करके जोरे हावय।


खोरबाहरा - हव भाई, गौटनिन ह तो सबके देखरेख करथे। का करबे ? किसँमत खराब हावय। गौंटिया गुजरगे। बेटा बहु विदेश चल दिन। नतनिन सरला ह अकेल्ला होगे हावय।


रामचरण - सरला ह तो गौटनिन के आँखी आये।


खोरबाहरा - ओ दे रघु के गाड़ा आवत हावय।


( रघु  गाड़ा ले के आ जथे। सब सामान ल उतारत जाथे। पहिली ईंटा ल उतार के चुल्हा बना देथे। पानी के हऊंला मन ल उतारथे।माटी तेल, छेना अउ लकड़ी ल उतार के रखथे।)


रामचरण - लान भाई छेना लकड़ी ल , माटी तेल अउ माचिस दे।


रघु - हव भाई ले। (सब सामान ल रखथे। चांऊर ल धो के रख देथे। सब झन के घर के कटे साग भाजी ल एक कढ़ाई म धो के  एक कपड़ा ल दसा के ओमा रख देथे। तेल मसाला ल एक जगह रख देथे। गाँ व के पेड़ पौधा ल ट्रेक्टर म भर के चमन ह आ जथे।)


दादी( गौटनिन ) सरला, मीना अउ गाँव के बहुत झन मनखे मन नदी डाहर जाथें। चमन ह ट्रेक्टर के पेड़ पौधा ल नदी किनारे के बीच के जगह म गिरावत जाथे।


कुछ मनखे मन गढ्ढा खोदथें, ये ह दस दस फीट के दूरी  म चार लाइन म खोदथें। अब नदी के चालीस फीट के पार म पौधा लगाये के शुरु करथें। दू किलोमीटर ल चार हिस्सा म बांट के सब मनखे मन बंट जथें। कुछ मनखे मन ढोल बजा के भजन गिये.ले लग जथें। लइकामन पेड़त्रल पकड़ के नाचत रहिथें ओखर बाद लगाये बर देथें।


खोरबाहरा -  सरपंच चाचा नदी ह तो दस फीट के माटी ल बोहा के लेगे हावय। हमन तो आपन उमर म नइ देखे रहेन।


सरपंच - हव भाई नदी ह हमर गाँव डाहर दस फीट सरक गे हावय।


दादी - हाँ बेटा ,हमन तो अपन उमर म अइसना कटाव देखे नइ रहेन।मोर बिहाव होइस त ये मेर जाम के बगीचा रहिस हे। आमा के रुख रहिस हे सब कटागे या फेर मरगे।


(देखत देखत ग्यारह बज गे।)


खोरबाहरा - चल भाई रघु रांधबो, ग्यारह बज गे हावय।


रघु - चल मैं आगी सिपचावत हंव।


रामचरण - चल रांधबो।


( तीनो झन मिलके साग भात रांध ले थे।

एक बजे तक पेड़ लगाये के काम पूरा हो जथे। चमन ह सब झन ल अपन ट्रेक्टर म बइठार के नदी पार ले मंदिर तक लानथे। सब झन मंदिर के बोर म हाथ गोड़ धोथें। नदी के पार ह तो बोहा गे रहिस हे त हाथ गोड़ धोवत नइ बनत रनिस। सब झन लाइन लगा के बइठ जथें, करीब सौ झन मनखे रहिथें।)


( सब झन एक संग खाये बर बइठथें। चार झन लइकामन परोसे बर आ जथें। खोरबाहरा अउ रघु ह पिलास्टिक के गिलास म पानी देथें। दादी अउ सरला सरपंच खड़े होके देखत रहिथें के सब झन ल खाना मिलत हे के नहीं। सब झन खा लेथें तेखर बाद म खोरबाहरा,रघु,चमन ,रामचरण, दादी, सरपंच अउ सरला खाये बर बइठथे। रामधिन नाऊ पूरा पतरी के इंतजाम करे के बाद खाये बर बैठिस। 


खाना खाये के बाद सब आराम करथें। तीन बजे असन ट्रेक्टर म पानी भर के नवा लगाये पौधा म डारथें। सांझ के पांच बजे सब काम हो जथे त सब ट्रेक्टर ,गाड़ा म वापस गाँव लहुटथें। सब सामान ल घलो वापस लेड जथें। साग भात बांचे रहिथे तेन ल दादी घर पहुंचा देथें।)


दादी - चलव सब झन रात कन मोर घर म खाना बनाहु खाहु।


सरपंच - हव दादी चल तोर अँगना म थिराबो।


( सब झन गौटनिन घर जा के अँगना बरवट म बइठ जथे। घर के बारी म फेर ईंटा रख के खाना बनाना शुरु करथें। सब झन के गोठबात करत तक खाना बन जथे। सब खाये बर बइठथें। पतरी बांटे जाथे।  सब ल पिलास्टिक के गिलास म पानी देय जाथे। )


गौटनिन - आज पिलास्टिक के  गिलास म आखरी बर पानी पी लव। सरपंच अब गाँव के समाज बर पाँच सौ गिलास ले लेबे। अब सब ल उही म पानी पीना हे अउ धो के रखना हे। येखर रखरखाव  सब के जिम्मेदारी आये।


सरपंच - हव गौटनिन अब येखरो इंतजाम करबो।


गौटनिन दादी - आज अतेक बढ़िया काम होय हावय। अब हमर नदी के कटाव रुकही। पेड़ ल मरन नइ देना हे। अभी तो बरसात आवत हावय फेर पेड़ सूखना नइ जाही।


रघु - मैं अपन गाड़ा म पानी लेग के डारहुं। अभी बरसात के दिन हावय त ज्यादा फिकर करे के जरुरत नइये।


सरपंच - ये सब सरला अउ मीना के कारण होये हावय। ये मन चिंता नइ करतिन या फेर सवाल खड़ा नइ करतिन तब ये काम नइ होतिस।


दादी - हाँ, सही बात आये।


रघु - हम तो सोचे भी नइ रहेन के हमर गाँव के दस फुट माटी बोहागे हावय।


खोरबाहरा - हव भाई ये नोनी मन घूमत घूमत नदी डाहर चल दे रहिन हे अउ अतेक पानी ल देखके डर्रागे रहिन हे। ओखर बाद सरपंच तीर मिले बर गीन।


सरपंच -हाँ भाई अब तो इही लइकामन ल ही जागना जरुरी हावय। कइसे सरला बेटी?


सरला - हाँ चाचा, हमन समझ गे हन।


( खाना खा के सब झन अपन अपन घर चल देथें।)

दादी रात कन सरला ल कहिथे....

दादी - सरला आज तोर सवाल ह पूरा गाँव ल जगा दिस।अब हमन ल पेड़ लगाना चाही। गाँव म सब झन जाग गे हावंय। अब तो हरियाली ही हरियाली दिखही।


सरला  - हाँ.दादी।

सुधा वर्मा, रायपुर

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