Saturday 1 April 2023

कहानी बिसाखा

 कहानी बिसाखा


*कहिनी : बिसाखा*

          पोखन लाल जायसवाल


      बिसाखा रात दिन समझातिस फेर घरवाला के आगू वोकर कभ्भू नइ चलिस। ननकू बिसाखा के एको बात नइ धरिस, न गुनिस। दू ले तीन होगे, तीन ले चार अउ पाँच घलो होगे। दू बेटा अउ एक बेटी के बाप बनगे, फेर कोन जनी काबर ओकर आँखी नइ खुलिस। चेथी के ऑंखी चेथी कोती रहिगे। अपन परिवार बाढ़े के संग घर के कोनो संसो-फिकर नइ करत रहिस। इही हाल ल देख के वोकर दाई-ददा उँकर ले छुटकारा पा लिन। ननकू के चेत आही कहिके दाई-ददा मूल के संगेसंग ब्याज के मोह ल छोड़ दिन। चार कुरिया अउ आठ परानी के घर म अब एक के जगा दू चूल्हा म जेवन बने लगिस। दाई-ददा अपन पढ़ंता छोटे लइका संग रहे ल धर लिन। भले अपने जाॅंगर भरोसा रहिन। अतका होय ले घलव ननकू के चेत चेथीच म रहिस। बिसाखा बपुरी ह कइसनो करके चारो परानी के मुँह म चारा डारे के उदीम करत रहय। 

        ननकू जतका कमाय ततका ल उड़ा देवय। एको आना घर म नी लावय। दिनभर हरर-हरर कमातिस अउ संझौती पी के ढरका देतिस। चार झन लगवार मन ल घलव पिला देतिस, फेर लइका मन बर कभू चना-फल्ली नइ जानिस। बिसाखा कभू लइकामन बर चिंता करे कहय त उल्टा कहे लगतिस , "बिसाखा! भगवान जनम दे हे के पहिली सबो परानी के खाय के बेवस्था खुदे कर देथें, त मैं काबर संसो करँव? इँकर चिंता कर अपन लहू काबर अउँटावँव?" अतका सुन के बिसाखा मुड़ धर रोय लगिस। चिरई चिरगुन मन घलव चोंच म दबा के लानथें अउ अपन पिला मन ल ओसरी पारी खवाथें। सरी दुनिया अपन लोग-लइका के चिंता करथें। फेर ...याहा का मनखे के संग धरा दे हे मोर ...। कभू दाई ददा ल कोसय, त कभू भगवान ल अउ कभू अपन किस्मत ल दोष दे लागय बिसाखा ह। ...ऑंसू बहाय ले जिनगी ह नइ चलय कहिके, बपुरी ह खुदे चुप होइस। मन ल मनाय घलव, मोर जिनगी भर रोना बदे होही त कोन काय करही? ननकू के नशा के आदत छुटबे नइ करिस। हाँ ननकू के एक ठन बढ़िया बात इही रहिस, के नशा पानी करे के पाछू ओहा कोनो ल कभू गारी-गुफ्तान नइ करय। आन नशेड़ी मन कस कभू बिसाखा ऊपर हाथ घलव नइ उठाइस। एकर ले बिसाखा अपन लइका मन के बरोबर चेत कर लेवत रहिस हे। धीरे-धीरे दिन बीतत गिस। बिसाखा लइका मन के हाथ पिंवरा घलो डरिस। दूनो बेटा बहूमन संग शहर म जाके रोजी मंजूरी कर जिनगी जीयत हावयॅं। गाँव म बारो महीना बूता नी मिले ले जिनगी मुश्किल होगे रहिस। गाॅंव म खनती कुदारी के दिन तो अब तइहा के बात होगे हे। कोनो मेंड़ म ढेलवानी नी देवय। राहेर ओनहारी घलव अब नोहर होगे। बेंदरा के बहाना कर मनखे अलाल होवत जावत हे। गाँवभर ओनहारी बोही त बेंदरा कतेक ल खाही। ...फेर....। गँवइहाँ मनखे घलव कमती पइसा म का कमाबो कहिके शहर के रस्ता धर लेथे। जतका जादा कमाही तेला भले किराया भाड़ा दे के दूसर के भोभस भरहीं। 

        बेटी सोनकुँवर आठ कोस भर के दुरिहा गाँव म बने घर-दुआर म गे रहिस। बिसाखा एक सरविन नारी-परानी जात काला परखतिस? सास-ससुर दू बछर पहिली ओसरी-पारी सालभर म सरग सिधार गे रहिन हे। देवर बाँटे भाई परोसी होके अपन परिवार म भुलागे रहिस, ओकर ले का आस रखे जा सकत रहिस? बिसाखा सात-आठ एकड़ के जोतनदार किसान के बेटा संग सोनकुँवर ल बिहा दिस। ननकू ल पीए-खाए ले फुरसत मिलतिस त कुछु करतिच। 

       कहे गेहे बइठे-बइठे तरिया के पानी नइ पूरय। वइसने सोनकुँवर के ससुरार म होइस। दमाद ल कभू कमई-धमई ले मतलबे नइ रहिस। घूम-घूम के खाना बस ओकर बूता राहय। बइठाँगुर दमाद कभू-कभू ससुरार आइस त ससुर के रस्ता चले लगिस। कभू-कभू पियइया मनखे रोजे पीए धर लिस।  सोनकुँवर घलव महतारी बिसाखा सही घरवाला ल समझाना चाहय त कूट-कूट ले मार खावय। तीन आँसू रोये बिगन दिन नइ बीतत रहिस। "तोर ददा ल नइ समझा सकेच, त का मोला समझा पाबे।" अइसन सुन सोनकुँवर कहिस, "तैं समझना नइ चाहबे त ब्रह्मा घलो नइ समझा सकय, मोर जइसन नारी-परानी ल कोन कहय? जउन ल तुमन पाँव के पनही समझथव। तुम भुला जथव कि पनही हर ही काँटा-खूँटी ले बचाथे, भोंभरा जरे ले बचाथे। तुम का जानव पनही के मरम ल।" अतका सुन गुस्सा तरवा म चढ़गे।  आव देखिस न ताव, सोनकुँवर ल फेर पीटे ल धर लिस। सिहरत ले मार खाय के पाछू महतारी बिसाखा ल फोन करिस अउ कहिस, "दाई! जब ले तोर दमाद आय हे तब ले रोज बइहाय हे, सिरीफ पियईच करत हे। कछु कहे म सिहरत ले मारथे, पीटथे।...." सोनकुँवर के गोठ सुन बिसाखा फफक-फफक के रो डरिस।  महतारी के मया तुरते सोनकुँवर के ससुरार के रस्ता नापे धर लिस।

        दमाद बाबू ल तिर म बिठा समझाय लगिस। "देख बाबू! बाप पुरखा के जउन जमीन हे, ओला बरोबर कमा। खेती अपन सेती होथे। रेगहा दे म खेती बिगड़त हे।" अपने ससुर ल देख का करे हे जिनगी भर, सिरीफ पिए के।" 

       "मैं तोला अपन बेटी ल मंद-मउहा पीके मारे बर नइ दे हँव। आज अपन बेटी ल अपन घर लेगे बर आय हँव।" 

       "तइहा के सियान मन मानिन त मानिन, घर ले बिदा होय के बाद बेटी बर बाप घर ले सबर दिन बर छुट्टी हो जथे। मोर घर के दुवारी मोर बेटी बर हमेशा खुल्लाच हे। आज मैं लेके जाथँव।"

         अतका सुन के दमाद बाबू गिड़गिड़ाय लगिस, "मैं सोनकुँवर बिगन नइ जी सकँव। ओला झन लेगव।"

       "एक्के शर्त म सोनकुँवर इहाँ रही, जब तें मंद मउहा छोड़ के काम बूता करबे। अपन दाई ददा के संग अपन खेती ल खुदे करबे।" बिसाखा कहिस। 

         बिसाखा जानत रहिस कि बेटी अउ दमाद एक-दूसर ले दुरिहा नइ रहे सकयॅं, अउ गृहस्थी के गाड़ी ल जिनगी के भुइयाँ म चलाय बर दूनो एक-दूसर के सारथी बने ल परही। बिसाखा के तीर सही निशाना म परिस।

          दमाद बाबू सोनकुँवर ले माफी माँगत अपन सास बिसाखा के शर्त मान लिस। अउ ठान लिस कि आज ले मंद-मउहा के दाहरा म डूबकी नइ लगावँव। सोनकुँवर महतारी बिसाखा ल पोटार रोय लगिस। फेर ए दरी ओकर ऑंखी ले खुशी के आँसू बोहात रहिस।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह) जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग.

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