*एकदम शुरुआती तईहा म गाय हर नगद मुद्रा (करेंसी) , विनिमय के साधन रहिस। बाद म वोहर सम्पत्ति (मिल्कियत ) बनिस। येकर बाद वोहर चीज- बसूत (वस्तु -जिंस-कमोडिटी) बनिस अउ अब बीते पांच छै बच्छर ले, भरमार टेक्टर अउ एल.पी.जी. सिलेंडर के चलते वोहर बोझा कचरा- कुटा बन गय हे।*
*गाय*
----------------
*(छत्तीसगढ़ी लघु नाटिका)*
पात्र-
गाय अउ बनेच झन ग्रामीण जन
-
*दृश्य 1*
--------------
नेपथ्य म -
सूयवसाद भगवती हि भूया अथो वयं भगवन्तः स्याम
अद्धि तर्णमघ्न्ये विश्वदानीं पिब शुद्धमुदकमाचरन्ती (ऋग्वेद 1:164:40)
गउ हर अघन्या ये।येला किसी भी हालत म मारे के काम नइ ये।हरियर बंद -घास अउ शुद्ध जल के सेवन ले येमन सदा स्वस्थ रहें ।जेकर चलते हमन उत्तम सद्गुण , ज्ञान अउ ऐश्वर्य वाला बनी ।
( गोवर्धन अउ पूर्णिमा के घर के दृश्य ।मुँहटा म सादा गाय बंधाय हे ।गोवर्धन के सुवारी अपन घर ल आरती सजा के निकल थे । टीके के समान धर के गाय ल दिया -बाती बता के घर जाए कस करथे ।)
गोवर्धन- चल, अच्छा होइस गाय तो मिल गय ।
पूर्णिमा- हाँ...! गाय अइस हे तब घर हर कतेक सुहावन लगत हे ।
(पूर्णिमा अउ गोवर्धन दुनों के दुनों फुसर फिया बातचीत होथें ।)
गोवर्धन -हमार गाय ।
पूर्णिमा- हमार गाय !
गोवर्धन -हमर गौमाता
पूर्णिमा -हमर गौ माता
गोवर्धन- अब गाय के बने देखरेख करे बर लागही। येहर पिलाती ये ।येला बने खवाय पियाय बर लागही ।
पूर्णिमा- बने खाही पिही तब तो बने गोरस पानी दीही ।
गोवर्धन - गाय माने गोरस पानी ।बिना गोरस के कइसन गाय।
पूर्णिमा - साल भर में बरसात हर तीन महीना के होथे। उसने गौमाता हर अपन जीवन में पाँच सात बेंत पिला देथे। बाकी दिन तो उँकर सेवा करे बर पड़थे।
गोवर्धन-चल ठीक चल ठीक । अब मंय कांदी लुए जावत हंव।
पूर्णिमा-अउ मंय खली चुनी चुरोवत हों
(पूर्णिमा भीतर कोती चल देथे अउ गोवर्धन हंसिया डोर धर के कांदी लुए निकल जाथे । )
*
*दृश्य- 02*
-------------
घृतक्षीरप्रदा गावो घृतयोन्यो घृतोद्भवाः।
घृतनद्यो घृतावर्तास्ता मे सन्तु सदा गृहे॥
घृतं मे हृदये नित्यं घृतं नाभ्यां प्रतिष्ठितम्।
घृतं सर्वेषु गात्रेषु घृतं मे मनसि स्थितम्॥
गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठत एव च।
गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाम्यहम्॥
नेपथ्य म ये श्लोक के संगीतमंय पाठ होवत हे । मंच म गोवर्धन अउ पूर्णिमा के घर के दृश्य।कोठा म गाय बंधाय हे।पूर्णिमा वोला देख के बहुत खुश होवत हे ।वोतकी बेर राम खिलावन के प्रवेश ।वोहर जा के गाय के तीर म पहिली खड़ा होथे फेर वोकर प्रदक्षिणा करथे । फेर भेदहा मुस्कुरात गाय तीर म खड़ा हो जाथे।
पूर्णिमा(थोरकुन गुस्सा के साथ)- कइसे भई, तँय तो परोस के गांव के मनखे अस।तोला मंय आत- जात देखे हंव।फेर तँय अभी कइसन बेधड़क इहाँ हमर कोठा म खुसर आय हस।अउ आ गय तब आ गय फेर तँय हमर ये लक्ष्मी ल पाँगे बरोबर प्रदक्षिणा करत हस।
रामखिलावन- अब तोर से का बात करहां...?अउ रहिस बात प्रदक्षिणा के त मोर गउ माता मोर लक्ष्मी के मंय प्रदक्षिणा करत हांवय ।
पूर्णिमा(रोष म भरके) -का कहे तँय।मोर लक्ष्मी ...मोर कोठा म बंधाय गाय हर तोर कइसन लक्ष्मी हो जाही ।
रामखिलावन-कोठा म बंधाय भर ले मोर जिनिस तोर हो जाही ।येहर मोर गाय ये। येला मंय पांच दिन ल खोजत रहेंय ।एकझन हितु हर बताइस हे, तब मंय ये दे भेंट डारें मोर गाय ल।
पूर्णिमा-ये खबरदार...! मोर कोठा म बंधाय जिनिस मोर ये।तोर अउ कत्थु होही।जा वोला आन डहर खोज ।
रामखिलावन- ये तँय ख़बरदार ऊपर म रह...!! जाके थाना रिपोर्ट करहां तब पता चल जाही तोर हेकड़ी हर ।
( कोठा म बंधाय गाय ल ढीले कस करथे । तब पूर्णिमा वोकर आगु म कूद के गाय के डोर ल धर लेथे । मंच म पींयर अंजोर बगरत लाल हो जाथे । )
रामखिलावन-तब तुमन अइसन म नि मानव ...(बाहिर निकल के )कनहुँ हावा भई ,ये गांव ग्राम म जउन हर मोर फरियाद ल सुनिहा।
मनखे 1-का होगय भई । काबर तँय गांव के मनखे मन ल खोझत हस ।
रामखिलावन-ये घर वाला मन, मोर गाय ल चोरी करके अपन घर म बांध राखे हांवे । अउ मंय देख डारें अउ मांगत हंव तब नि देत यें । घर म महिला भर हर हे अकेल्ला (अकेली) ।
मनखे1- अरे भई, वोमन तोर गाय ल काबर बाँधहीँ । जउन बंधाय हे,तउन हर तो खुद वोमन के गाय होही ।
रामखिलावन-एकरो से बात नइ बने । येहर तो येमन के मनखे असन लागत हे।
मनखे2-तोर गोठ ल सुन डारें । तोर गोठ हर गुड़ी पंचायती म टुटही जी । जा गुड़ी जोर...
रामखिलावन(बड़ गुनत) -हाँ ...ठीक कहत हस ।
( मंच म धीमा प्रकाश होवत अंधियार छा जाथे /परदा गिर जाथे । )
*
*दृश्य -3*
------------
सुरूपा बहुरूपाश्च विश्वरूपाश्च मातरः।
गावो मामुपतिष्ठन्तामिति नित्यं प्रकीर्तयेत्॥
( नेपथ्य म श्लोक के संगीतमय स्वर हर अति विलम्बित लय म गूँजत हे । झमाझम गुड़ी जुरे हे । गाय के फैसला होना हे । )
सरपंच-हाँ भई अंनगिहा !का बात हे ? काबर तँय हमन ल सुमरे हावस ?
रामखिलावन ( सबला जोहार -बन्दगी करत)- सबके शरण हंव । सरपंच साहब , तोर गांव के गोवर्धन अउ पूर्णिमा मन मोर गाय ल बांध के राखे हें । अउ मांगत हंव तब देवत नि यें ।
सरपंच-येहर तो जँउहर हो गय ! गोवर्धन कइसे अइसन बुता कर सकत हे?
रामखिलावन(हाथ ल पीटत)-कर सकत निही , कर डारे हे।
पंच 1- रुक न जी अंनगिहा , थोरकुन ठहरबे कि नही ।
रामखिलावन- ठीक हे, तुमन फैसला करव । मंय कुछु नइ कहंव ।
(नेपथ्य म चित्र- विचित्र संगीत उभरत रइथे अउ सबो पंच अउ सरपंच आपस म फुसुर फ़िया करत दिखथें । फेर छेवर म सरपंच हर मुठा बांधत दिखथें जइसन वोहर कुछु निष्कर्ष म पहुंच गय हे । अब संगीत हर राग -तोड़ी के झलक दिखावत बंद हो जाथे । )
सरपंच - अंनगिहा भई !
रामखिलावन-हाँ सरपंच जी ।
सरपंच- हमन कहबो कि तँय गाय के रसीद बता ,तब तँय कहबे; येहर घर के पिला ये । हमन कहबो गवाही लांन तब तँय तोर आदमी मन ल लांन खड़ा करबे । अउ अइसन गोठ गोवर्धन घलव करिही ।
रामखिलावन-तब फिर का होही।
पंच 2- साखी गवाही ।
रामखिलावन - फेर काकर ?
पंच3 - साक्षात गौ माता के ।
राम खिलावन( अचम्भा म आँखी बटरत ) - वो कइसन जी !
सरपंच - चल देख ले । हमन गाय ल ढील के दुनों गांव के सिवाना बीच म जाबो ।दुनों कोती एकदम बराबर । वो जगहा म जाके गाय ल खोलबो । गाय खुद अपन कोठा ल चिन्ह लिही ।जउन घर म जाके गाय खड़ा हो जाही । गाय वोकर आय ।
रामखिलावन( परेशान दिखत )-बिल्कुल मंय तियार हंव । देखिहा न सब झन गाय मोर घर म जा हमाही !
( मंच म अंधियार हो जाथे फेर गाय नरियाय के अवाज जरूर आथें ।)
*
*दृश्य 4*
-----------
घृतनद्यो घृतावर्तास्ता मे सन्तु सदा गृहे॥ घृतं मे हृदये नित्यं घृतं नाभ्यां प्रतिष्ठितम्। घृतं सर्वेषु गात्रेषु घृतं मे मनसि स्थितम्॥ गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठत एव च।
( नेपथ्य म गाय के स्तवन पाठ हर मध्यम स्वर म गूँजत हे।गाय ल गेरुँवा म बाँध के पंचायत वाला मन दुनों गांव के सीमा म लान खड़ा करे हें ।अउ बनेच झन मनखे सँग म आंय हें ।)
सरपंच- चल भई , हमन सत धरम ल धर के दूनों गांव के सीमा म खड़ा हन ।
(गोवर्धन पूर्णिमा अउ रामखिलावन मुड़ ल धरें हें ।)
सरपंच-ले पंच भई । गौ माता ल ढील दे ।
पंच- हाँ, सरपंच ।तँय कहत हस तब ढील देवत हंव गाय ल ।
सरपंच- हाँ, भई । हमन गाय ल ढीलत हन । वोला तुमन अपन मन मर्जी ले जावन दिहा ।रास्ता छेकिहा झन ।
(पंच 2 गाय ल ढील देथे । गऊ माता तो बाँ ...कहत अपन पूछी ल टांग के भागथे ।सब वोकर पीछू म भागथें । गाय भागत ...भागत एक ठन आन गांव म जा के एकठन डोकरी के घर म घुसर जाथे । अब ले भी गोवर्धन अउ रामखिलावन मोर गाय मोर गाय कहत रथें । )
डोकरी-कोन आ दाई ददा हो ।अउ तुमन मोर ये गंवाय गाय ल कइसन आज लान देया । कहाँ रहिस येहर ?
सरपंच-का येहर तोर गाय ये बई ?
डोकरी- हाँ, बेटा येहर मोर गाय ये ।
गोवर्धन-हमर गाय।
रामखिलावन-मोर गाय।
सरपंच-अरे चुप भी करव । काकर गाय ये ।तेहर दिख गय । अभी तुमन दुनों के दुनों थाना पुलुस म पकडईहा । अंनगिहा ,येहर कइसे म तोर गाय होइस ।
रामखिलावन( तरी मुड़ करके )- मंय येला चरे गय रहिस तब छेंक के ले गय रहें अउ चार दिन बांधे रहें ।
सरपंच-गोवर्धन पूर्णिमा ! तुमन के किसे होइस ?
गोवर्धन-हमू मन बांधे रहेन चार दिन।
डोकरी- चला बेटी बेटा हो ! मोर गउ माता मोला मिल गय । कनहुँ बांधे रहा । मंय अब सब समझ गय हंव फेर सरपंच बेटा विनती हे जान- जुवान दे येमन ल ।
सरपंच- तँय कहत हस तब तोर गोठ ल राखेच बर लागही, नही त येमन ल सीधा भेजे रथें सरकार -दुआर ।(दुनों कोती ल देखत ) चलव भागव इहाँ ले असतिया हो !
सरपंच-ले दई, जावत हन अपन गाय ल अब सम्भाल ।
( मंच म अंधियार छा जाथे ।)
*
*दृश्य 5*
-------------
यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत् स्थावरजङ्गमम्।
तां धेनुं शिरसा वन्दे भूतभव्यस्य मातरम्॥
( नेपथ्य म पहिली असन ही स्तवन हर गूँजत हे ।बहुत दिन बीत गय हे । नावा जमाना आ गय हे । डोकरी दई संकेला गय हे । मंच म पूर्णिमा गोवर्धन अउ रामखिलावन सब थुलथुल डोकरी डोकरा बनके किंजरत हें ।एक ठन दूसर गाय हर बोंबियात नरियात एती वोती भागत हे । वोहर ये घर वो घर खुसरे के कोशिश करत हे ।)
गोवर्धन- देख तो को हर खुसरत हे।
पूर्णिमा - यह दे काकर गाय ये।
गोवर्धन -खेद खेद वोला ...
(पूर्णिमा लाठी धरके गाय ल भगाथे ।गाय दूसर मुंहटा म खुसरे के कोशिश करथे ।)
दूसरा - चल हट।
तीसरा- भाग भाग ।
चौथा- चल छि ! घर हर गोबरईन गंधा गय ।
पांचवा- छि!छि! मोर घर म तो येहर गोबर कर दिस।
सरपंच-अंनगिहा ,अब तो ले जा ये गाय ल ।
रामखिलावन- नई ले जांव ।मोरो घर म अब जगहा नि ये। कोठा ल उजार के वोला बैठक खोली बना देय हंव...
( गाय हर बाँ ...बाँ नरियात जाथे अउ बीच सड़क म बइठ जाथे । तेज से तेज संगीत बाजत जाथे अउ पंचम स्वर म ही छेवर वो जाथे। तेकर पाछु अंधियार मंच म बहुत ही मद्धिम राग विहाग के स्वर मन के झलक सुनइ परथे । पूरा अंधियार हो जाथे ।)
*समाप्त*
*रामनाथसाहू*
No comments:
Post a Comment