Saturday 1 April 2023

चक्का जाम* *(छत्तीसगढ़ी कहानी)*


      *भीड़ के कापुरुषता के बयान करत एकठन कहानी*  -


      *“फेर तुमन बुताय नई लागौ।"*

     *“सरकार हर फायर बिरगेड, आगीच्च*    

     *बुताय बर बनाय हे । येहर वोकर बुताच*  

     *आय... | ये दे मैं फेर फोन करत हौं...।* 

     *हाँ... वो दे गाड़ी निकलत हे...।"*


   



                      *चक्का जाम*


                 *(छत्तीसगढ़ी कहानी)*



                     जब ले बनवारी हर खईता होय हे तब ले वोकर परानी पुरानमती के जी हर ये दूनो बईला मन मा ही अटके हावे। वोकर इच्छा हावे कि ये मनला अपन मालिक के कमी होय के गुमान झन होय।


          बनवारी हर ये कोठा समेत पूरा के पूरा कुरिया, जऊन करईन छवाय हे, वोला खपरा छाँहा.. कहके इच्छा राखत रहिस फेर वोहा आ गय मस्तिक जर के चपेट मा... अऊ पुरानमती संगे-संग ये बईला मन घलो अनाथ हो गईन । बनवारी के ये दुनों बईला बेनिया रहिन। दूनो के सींग तरी कोती बेनी कस ओरमे रहिस ,तेकर सेती बनवारी हर वोमन ला बड़का बेनिया अऊ छोटे बेनिया नाँव धरे रिहिस... |

"बड़खा, बेटा... पैरा कुटी अऊ कूना के भिंझरा ला खा।" पुरानमती कोटना के पानी मा वोमन ला सानत किहिस, "अउ

देखत रह, बड़का ला कहे त तैं नई समझे...

आना!"

            पुरानमती के ये मीठ झिड़की ला सुन के बड़खा अऊ छोटे बेनिया सिरतोन खाये बर दत जावे ।


        पुरानमती ला दुनो बइला बने संग दीन। भुतीहार बनिहार के भरोसा नाँगर-कोपर चला के वोहर खेती ला समोख डारे। आज सात बच्छर के इकन्नी-दुअन्नी करत वोकर डेरा अउ गरुवा के कोठा दुनो खपरा के छानही के तरी माढ़े हे। वोकर नून-रोटी घलो बने चल जावत हे।अपन बर पानी-पसिया पूरे हे अऊ आन ला ढरकाय घलो है। सब पारा परोस के परोसी मन घलो वोला मानत हावे। एती पुरानमती अपन नानकुन घर परिवार मा मगन रिहिस। वोला अपन गोसान बनवारी के सुरता अब्ब ले भी बन्नेच आये।


*               *               *               *


           जेठ असाढ़ी के समे रहिस। वो दिन कोन जानी का फरक पर गय फेर अतका तो पक्का रिहिस के कोंहो हर अनदेखनई कर के

ये उजोग ला नई करे रहिस। पहिली रसोई कुरिया कोती फेर पूरा पूरा छानही हर आगी के लपेटा मा आ गय। किल्ली- गोहार पर

गय। गाँव भर के मनखे जुर गईन फेर खाली हाथ... । हाँ, हाथ हर पूरा खाली नई रहिस। वोमे एक एक ठन मोबाईल जरूर दिखत रहिस।

"फोन करव... फोन करव... ! फायर ब्रिगेड बाला मन आ के आगी बुताहीं।"

"बुताय लागा गा दई ददा हो...! ये दे आगी हर वो कोती ला अमरत हाबे।" पुरानमती छाती पीटत कलप उठिस।


         एके पईत के न कै ठन अंगुली मोबाइल फोन मा अंगली मन नाचे लागिन।

“जल्दी फोन करव... ! जल्दी करव... !!”

"जल्दी करव रे... !आगी हर बढ़त जावत हे।"

"तुमन के पाँव परत हौं । आगी ला बुताय लागौ। मोर बइला मन ला बचाय लागौ।"

"करतेच्च तो हन काकी। ये दे तुरतेच फायर बिरगेड के गाड़ी आवत हे। तुरतेच बुता दीही।"

"कोन जानी गाड़ी कै बजे आही। वोतका ला तो इहाँ राखेच हो जाही। जइसन बनही तुईच्च मन करै लागौ। करै लागौ.. ! तुँहर पाँय

परत हावों।"

“बई, धीरज धर... ! गाड़ी आतेच्च होही...।"

“फेर तुमन बुताय नई लागौ।"

“सरकार हर फायर बिरगेड, आगीच्च बुताय बर बनाय हे । येहर वोकर बुताच आय... | ये दे मैं फेर फोन करत हौं...। हाँ... वो

दे गाड़ी निकलत हे...।"

"ये ददा गा! ये दाई ओ! आगी हर तो कोठा कोती बगर गय... । मोर बईला... मोर बईला... ।”

           सब देखिन पुरानमती अइसन कहते-कहत गझाय आगी मा

कूद दिस। थोरकुन बेरा के बाद मा वो जगहा मा गंध हर बदल गया। नाक मा मरघटी मा जऊन गंध आथे तऊन हर पेले लागिस... । दू

चार मनखे तो रूमाल-गमछा मा नाक ला तोप के वो जगहा ले पराय घलव लागिन। बाकी मन एकदम गुस्सा मा भर गईन... अतेक फोन करे के बाद घलो सरकारी फायर बिरगेड अभी ले नई आ पइस हे...


     येती आन-तान साँटा घर नई होय के सेती आगी हर बुताय लागिस। वोकर जोर हर कम पर गय फेर मनखे मन के घुस्सा हर देखे के

लाईक रहिस। इहाँ सब्बो कछु सोहा हो गय अऊ अभी ले गाड़ी नई अइस। मनखे मन गोठ करतेच रिहिन के फायर बिरगेड के घंटारा

अऊ सीटी हर सुनई दिस। ये ला सुन के मनखे मन के गुस्सा हर अऊ बाढ़ गईस । रा. रा... आवन दे साले ला... फेर बतावत हन!


       अऊ गाड़ी के आते साथ सिरतोन वोला बताय के सुरुच कर दिन। गाड़ी वाला किरिया-कोस खावत रहय के वोकर तरफ ला एको मिनट के गलती नई होय ये । गाड़ी ये, आखिर चक्का म ही ढुल के आही, उड़िया के तो आय सकय नीही। फेर वोकर गोठ ला कोन

सुनैया हे। बस्स! एकेच गोठ... इहाँ जान चल दिस लेकर बाद तँय आय हवस... । अतका मा बाँचे-खोचें जतका रहिस वो सब्ब ला

आगी हर बरोबर कर दिस। अऊ ऐती मनखे मन अपना रिस ला गाड़ी अऊ गाड़ी वाले मन के उपर उतार दिन । तोड़-फोड़ करके

मशीन ला चले कि लाईक नई राहन दिन।


      एकर बाद मुआवजा के रकम बर चक्काजाम करे बर वो करा ले उठके चल दिन।

“फेर पुरानमती के मुआवजा कोन ला मिलिही। वोहर तो अकेल्लाच रहिस।"

'अरे कतको हें, तैं चल न चक्का जाम कोती...।" उत्तर देवइया हर कहिस। तब तक ले चक्का जाम हर गझा गय रहिस।


*रामनाथ साहू*



No comments:

Post a Comment