Sunday 9 April 2023

आवव घूमन देवबलौदा-सुधा वर्मा -----------------------------

 आवव घूमन देवबलौदा-सुधा वर्मा

-----------------------------

रायपुर म जगन्नाथ मंदिर बनगे रहिस हे। अब उंहा कलश स्थापना के तइयारी चलत रहिस हे। नेहा अउ अंशिता मंदिर ल देखे बर गीन। मंदिर के ऊपर फुनगी तक बांस के सीढ़ी बनाये गे रहिस हे। इही सीढ़ी ले चढ़के लोगन मन ऊपर म कुछु डारत रहिन हे। नेहा संग ओखर पापा घलो रहिस हे। नेहा के संगवारी अंशिता घलो रहिस हे। अंशिता ह नेहा के पापा जी ले पूछिस.......


अंशिता -  काका जी सब झन येमा काये डारत हावंय?


पापा जी -  तूमन देखे होहू के हर मंदिर के ऊपर म पीतल या कांसा के फुनगी होथे। येला कलश कहे जाथे। येला चढ़ाये के बाद ही मंदिर के बनना पूरा होथे।  कलश चढ़ाये के बाद देवी देवता के प्रतिमा के प्राण  प्रतिष्ठा होथे। ये कलश के अंदर कुछ चीज डाले जाथे। 


अंशिता - जगन्नाथ मंदिर म तो  हीरा मोती, मूंगा ,माणिक, सोना चाँदी सब कुछ डालत हावंय। इंहा चौबीस घंटा के समय देय गे हावय  लोगन आवत जात हावंय अउ डालत जात हावंय।


नेहा - पापा यदि कलश नइ चढ़ाये जाही तब का पूजा नइ होवय।


पापा - हाँ बेटा, येखर से मंदिर अधूरा रहि जथे। इंहा रायपुर के तीर म " देवबलौदा " के मंदिर हावय। ये कलचुरिकालिन शिवमंदिर आये। ये ह स्थापत्य अउ कला के नजर ले बहुत महत्वपूर्ण हावय। ये मंदिर म कलश नइये। पुराना गजेटियर म एक चित्र हावय जेमा कलश दिखथे।


नेहा - अच्छा त बाद म कहां गायब होगे?


पापा - ये मंदिर के कलश के अपन कहिनी हावय। जुन्ना कथा के अनुसार देव बलौदा अउ आरंग के भाण्डलदेव  मंदिर ल एक ही मनखे बनाये हावय। जब दूनों मंदिर पूरा बनगे तब वास्तुकार ह भाण्डलदेव मंदिर के फुनगी म चढ़थे। ओ ह बिना कपड़ा के रहिथे। ओखर बहिनी ह देव बलौदा के मंदिर के फुनगी म चढ़थे। एक ही समय म दूनों झन दूनो मंदिर के फुनगी म रहिथें। दूनों झन एक दूसर ल बिना कपड़ा के देख लेथें अउ  फुनगी ले कूद जथें। कूदते ही ओ मन पत्थरा के बन जथें। ये कहिनी ऊपर भरोसा नइ होवय के अतेक दूरिहा ले कइसे एक दूसर ल देख सकथें।


नेहा - फेर उंहा पूजा नइ होवत होही?


पापा - हाँ अइसना मंदिर म पूजा नइ होवय। फेर समय के संग  श्रद्धा के कारण लोगन मन पूजा करे ले लग जथें।


अंशिता - काका जी कभू हमू मन ओ मंदिर ल देखे बर जाबो।


पापा - हाँ चलव आज ही चलबो।


नेहा - आज ही?


पापा -  हाँ काबर नहीं ? आज ही जाबो काबर के मोर छुट्टी हावय। "चरौदा " रायपुर अउ भिलाई के बीच म हावय। " चरौदा " तीन किलोमीटर अंदर म " देवबलौदा " हावय।

तीनों झन कार म बइठ के चरौदा बर निकल जथें।


 ( रायपुर ले चरौदा जाये बर निकल जथें ड)


अंशिता - काका जी ये मंदिर कब बने रहिस हे?


पापा जी - ये मंदिर ह सन् 1300 म बने रहिस हे।


नेहा - ये मंदिर कइसना दिखथे?


पापा जी - ये मंदिर बलुआ पत्थर ले बने हावय। ये मंदिर म मंडल ,अंतराल, अउ गर्भ गृह हावय। येखर ऊंचाई 40 फीट हावय। ये ऊंचाई के जानकारी ल 1881-82 म  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के ओ समय के महानिदेशक एलेक्जेंडर कनिंघम ह देय रहिस हे।


पापा - देखव अब हमन दक्षिण डाहर मुड़बो। 


अंशिता - अब हमन ल तीन किलोमीटर अउ जाना हे।


पापा -अरे वाह तोला तो सुरता हावय।


नेहा -  अब हमन चुप रहिबो, मंदिर म पहुंच के ब़ात करबो।


पापा - हाँ, हमन तभे बात करबो जब मंदिर देखबो।


(नेहा के कार मंदिर के तीर म आ जथे। सब झन मंदिर के आगू म  उतर जथें।)


नेहा - देखव मंदिर के बाहिर म कतेक सुंदर सुंदर मूर्ति हावय। ये जगह तो रीछ के शिकार करत हावंय। मंदिर के भीतरी म चार स्तम्भ हावय जेखर ऊपर घलो मूर्ति बने हावय। फेर ये प्रवेश द्वार म बने मूर्ति मन बहुत सुंदर हावय।


पापा - देखव ये मंदिर के प्रवेश द्वार  पूरब डाहर हावय। येखर कारण सूरज के पहली किरण मंदिर म प्रवेश करथे। ये मंदिर के एक दरवाजा उत्तर डाहर भी खुलथे। उत्तर.म तरिया हावय त उही डाहर खुलथे। तरिया ल चारो डाहर ले पथरा ले घेरे गे हावय। मंदिर के मंडप के ऊंचाई साढ़े चार फीट हावय। चलव भीतरी जाबो, चार सीढ़ी उतर के जाना हे। ये मंदिर ल दू चरण म बनाये गे हावय अइसे लगथे। भीतरी मंदिर अउ बाहरी दीवार। मंदिर के बाहरी दीवार म ओ समय के जनजीवन ल उकेरे गे हावय। विष्णु के विभिन्न अवतार ल  उकेरे गे हावय। नृसिंह, वाराह,वामन अउ कृष्ण के मूर्ति मन तो  जीयत जागत लागत हावय।


नेहा - पापा लगथे ये मूर्ति मन अपन पूरा कहिनी सुनावत हावंय। मूर्ति मन बहुत ही कलात्मक हावय। हर स्तम्भ म एक कथा हावय।


अंशिता - दीवार मन में भी मूर्ति ले कथा उकेरे गे हावय।


पापा ये मंदिर ह वास्तु शिल्प के नजर म सबले ऊपर के स्थान म हावय। ये मंदिर ह शिव अउ वैष्णव भक्त मन ल अपन डाहर खींचथे। इंहा देवबलौदा महोत्सव के भी आयोजन होथे। महोत्सव म विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम अउ कला संस्कृति ले जुड़े व्यक्तित्व के सम्मान करे जाथे। ये महोत्सव के द्वारा सांस्कृतिक मेलमिलाप के परम्परा के विकास होइस।


अंशिता - काका जी अब घर जाबो।


पापा - हाँ, अब घर लहुटबो।नेह


नेहा - पापा हमर रायपुर के तीर म भी कतेक सुंदर जगह हावय जिंहा हमन घूमे बर आ सकथन।


पापा - ये जगह तो पुरातात्विक नजर ले बहुत महत्वपूर्ण हावय। चलव सब झन कार म बइठव।


( सब झन कार म बइठ के रायपुर आये बर निकल जथें) 

---------------------------------------------------------------------

No comments:

Post a Comment