Thursday 13 April 2023

पल्लवन--बर न बिहाव,छट्ठी बर धान कुटाय

 पल्लवन--बर न बिहाव,छट्ठी बर धान कुटाय

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कोनो भी मनखे ह अपन जिनगी के बिते समे म मिले अनभो ले सीख के अउ वर्तमान म चलत उतार-चढ़ाव के विचार करके भविष्य के सपना देखथे। 

  भविष्य के सपना देखना बुराई नोहय फेर कुछु न काँही ,रात-दिन उही सपने के उधेड़-बुन म डूबे रहना---वोकरे फिकर म परे रहना बुरा होथे। ककरो अइसन करे ले  वोकर तन अउ मन दूनो कमजोर होये ल धर लेथे।

   लोगन कहिथें के ऊँचा सपना देखना चाही फेर उहू ऊँचा सपना का काम के जेन ह बादर सहीं अमराबे नइ करही? भलुक मनखे ल तो अपन शक्ति अनुसार अइसे चीज के इच्छा पालना चाही जेन ह पूरा हो सकय।

    समाज म अइसन मनखे तको मिल जथें जेन मन बड़ लुकलुकहा होथें। जइसे के चार महिना पाछू घर-परिवार म मान ले कोनो छोटे से एक घंटा के पूजा पाठ करवाना हे जेकर जोखा एक -दू दिन पहिली अच्छा से करे जा सकथे तेकरो बर रोज-रोज ये करना हे-वो करना हे,ये समान नइये,वो समान नइये,ये लागही, वो लागही,कइसे होही, का होही--इही म बूड़े रहिथें।  पहिली-पहिली ले अइसे-अइसे मनगढंत बात करत रइथें  अउ अपन उर्जा ल जबरदस्ती खइता करत रहिथें जेकर वो समे कोनो जरुरते नइ राहय।अपन तो परेशान होबे करथे, दूसरो मन ल हलकान कर डरथें। उही बिचार ल घरिया--उही ल डसा----पिचकाट हो जथे।

      कभू-कभू तो मनखे अतेक दूर के बात ल सोच लेथे अउ ओइसने कारज करे ल धर लेथे जेला देख-सुन के अजरज के संग हाँसी लागे ल धर लेथे।अरे भई भविष्य के कोंख म का हे तेला भला कोन जाने सकही? कई झन तो मान ले अइसे होही त------मैं अभी ले ,पहिली ले अइसे कर लेथवँ----इही फिकर म दुबरावत रहिथें। मान ले के ये गणित ह जिनगी के गणित म हमेशा फिट होही अइसे जरूरी नइये।

    सोचे जाय के ---ककरो न तो मँगनी-जँचनी होये हे,न तो बिहाव होये हे अउ ये सोच के वोकर एक दिन बच्चा होही ,वोकर छट्ठी म सगा-सोदर,गाँव,परिवार मन के ल भोजन करवाये बर लागही कहिके मनमाड़े धान ल कुटवाये ल धर लिही त ये तो मूरखपना होही। अभी तो पता नइये के बिहावेच ह होही धन नहीं ते--छट्ठी छेवारी के तो बाते दूरिहा हे।

 तेकरे सेती सियान मन कहिथें बिना चिंता करे उचित समे म उचित काम करना चाही।जब के आमा तब के लबेदा ह ठीक होथे। पहिली ले कोहा मारना बेकार होथे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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