Sunday 9 April 2023

मोरो अवार्ड लहुँटा लौ .....

 मोरो अवार्ड लहुँटा लौ .....


          बड़ लम्भरी लाइन लगे रहय । लाइन बाड़ते जाय , कमतिआये के नावेच नइ लेवय । गरीब आदमी ला जनाबा घला नइ रहय के , काये बात के लाइन आय । लाइन भई लाइन । ओला हरेक दारी कस लाइन म शामिल होना रहय । जल्दी अमरे के फेर म , बीच म खुसरे के कोशिस घला करिस । जे घाँव खुसरे ल धरे , तिही घाँव ओला धकिया देवय । ओकर किस्मत म बदे रहय गा ....... लाइन के सबले आखिरी जगा ........ इही करा पहुँच के अपन आप ल सुरक्षित पइस । युद्ध जीते कस ...... छाती ल तनिया के ठाढ़हे रहय । जनम जनमांतर ले लाइन लग लग के किस्मत के भरोसा करइया मनखे ला हरेक दारी चुचुवाये बर परय ....... । फेर उहू बड़ जिद्दी , कुछु न कुछु पाये के आस म , जेन करा लाइन देखतिस , तिहीच करा , लग जतिस । 

          चलो लाइन में जगा मिलिस – सोंच सोंच के बड़ खुश रहय । सूट बूट , झकाझक धोती कुरता अऊ महंगा महंगा जींस पहिरे मनखे के पीछू ठाढ़े म कतेक गरब अनुभौ करत रिहिस होही ओहा , तेकर अंदाजा लगाना मुश्किल हे । लाइन लगे लगे अपन आगू वाला ला पूछ पारिस - काये बात के लाइन हरे दाऊ येहा ? वो मनखे हाँसिस ...... अऊ पूछत किहिस - ते का करबे जान के अऊ लाइन म लगके ? गरीब मनखे किथे - बड़े बड़े मनखे मनला लाइन म लगे देखेंव , त मोला लागिस .. निश्चित इहाँ कन्हो न कन्हो महंगा चीज मिलत होही । मोला केवल दू किलो राहेर दार अऊ दू किलो गोंदली चाही दाऊ , तेकरे बर महूँ लगे हँव । रांधना तो दूर , बड़ दिन ले देखे तको नइ अन , दूनों चीज ल । आगू वाला बतइस - अरे मुरूख इहाँ मांगे बर निही , दे बर लाइन लगे हे । गरीब मनखे हा , पहिली दारी सुनत रहय – देवइया के लाइन घला लगथे कहिके । मुँहू ल फार दिस । थोरेच बेरा म फेर पूछिस – तेंहा काये देबे , अऊ कोन ल देबे ? आगू वाला हा फेर हाँसिस अऊ किहिस - जेन जिनीस दे रिहिन बिया मन ...... उही ला ... देवइया मन ला वापिस लहुँटाहूँ । गरीब मनखे सोंच म परगे ...... कहींच नइ धरे हे सारा हा ........ , कालाच लहुँटाहूँ कहिथे घेरी बेरी ? अमीर मनखे के बात सुनके , गरीब मनखे के हिम्मत जवाब दे लागिस । महूँ ल कभू कुछू दे होही , अऊ तिर म गेंव , तँहले उही ल मांग पारिस , त कइसे करहूँ ? एक घाँव सोंचिस , तेकर ले , लाइन ले निकल के पल्ला छाँड़ दऊंड़थँव । फेर सोंचिस - यहू कहींच नइ धरे हे ... तभ्भो ले लहुटाये के जबर हिम्मत देखावथे ...... महूँ देखा सकत हँव । छाती फेर तनागे । आगू वाला दाऊ पूछ पारिस – त काला लहुँटाबे जी तेंहा ? गरीबहा मनखे किथे - वा ..... तेंहा मोला बता हस का , जइसे मंच म जाके तैं बताबे तइसने महूँ उहींचे घोषणा करहूँ । होशियारी मार दिस , फेर माथा म फिकर के रेखा उभरगे ।

          बड़ समे होगे खड़े खड़े । आगू के कतको दाऊ बदलगे । ओहा बित्ता भर नि टरिस । उहीच करके उहीच करा । जे आये ते हा को जनी कइसे अगुवा जाय पता नइ चले ....... । खड़े खड़े ओला लगिस , ओकर पाछू बड़ लम्भरी लाइन लग चुके होही ……. पाछू डहर हांथ करके टमड़ीस ...... कन्हो मरे रोवइया नइ रहय । गरीब मनखे समझगे , उही दुनिया के सबले आखिरी मनखे आय , तभ्भो ले , ओकर आस नइ टूटिस , लाइन ले टरबेच नइ करिस । 

         इही बीच ..... गरीब मनखे सोंचत रहय ...... काला लहुँटाथे येमन ..... मंच म जाथे ..... बोलथे ..... तँहले जम्मो झिन थपड़ी पीट के खुसी मनाथें । ध्यान लगाके देखे लागिस । एक झिन मंच म चइघिस , वोहा बड़े जिनीस कारखाना के मालिक रिहिस , जेकर करा एक घाँव बूता मांगे बर गे रिहिस । ओ कारखाना मालिक ला बड़े बड़े बूता करे बर सरकार हा बड़े जिनीस अवार्ड , संग म बड़ अकन पइसा घला दे रहय । ओहा अपन उही अवार्ड ल लहुँटावत , मंच ले बोम्बियावत रहय – सरकार हा ..... उद्योगपति के न हितवा रहिगे न मितवा । हमर करिया धन ल विदेश म जमा करन नइ देवत हे , समे म टेक्स पटाये बर दबाव डारत हे , अइसन करके हमन ल कंगला बनावत हे , मे सरकार के इही बात के बिरोध म सरकार ले मिले अवार्ड अऊ पइसा ल लहुँटावत हँव । बड़ थपड़ी पीटिन कोट वाले मन । 

          दूसर अइस , ओहा बड़का खेलाड़ी रिहिस .. । खेल के मैदान ले जादा , कतको अऊ मैदान के ..... । बड़ अकन पइसा अऊ नाव कमाये रिहिस । खेल ले रिटायर होये के आगू , ओकर योगदान ल देखत सरकार ह ओला खेल रतन के अवार्ड ले सम्मानित करे रहय । उही ल वापिस करत , कहत रहय – सरकार हमर शोषण करत हे । हमर इनाम के कार म टेक्स मांगथे , हमर नाम के विज्ञापन के कमई म नजर मारथे , बिना ड्रग्स के पदक जीते के दबाव बनाथे । मे अइसन सरकार के बिरोध म अपन खेल रतन अऊ ओकर संग मिले पइसा ल वापिस लहुँटावत हँव । जींस वाला मन के थपड़ी के मारे , कोन जनी अऊ का किहिस , नइ सुनइस । 

          तीसर अइस , झकाझक धोती कुरता पहिरे रहय । नेता समझिस ओला । गरीब सोंचिस , ये बेर्रा काला वापिस करही । येला अतका मिले हे , जेला , वापिस लहुँटात लहुँटात सात पीढ़ही घला कमती परही । तभे ओ मनखे हाथ म माइक धरिस अऊ केहे लागिस - देश म बड़ अराजकता बगरे हे । हमन ला न प्रशंसा करन देवत हे , न चाटुकारिता । हमर कन्हो गोठ बात ल ध्यान नइ देवत हे । अऊ त अऊ हमर संगवारी मन बेर उज्जर संसदीय आतंक के शिकार होवत हें । हमर संगवारी मन के सुरक्षा नइ करत हे । में अइसन सरकार के हरेक बूता के बिरोध करत अपन साहित्यिक अवार्ड ल लहुँटावत हँव । गरीब सोंचिस - अरे , मेहा येला नेता समझे रेहेंव , येहा मोर कस गरीब आय , बड़ हिम्मत करिस । ये दारी , थपड़ी पिटइया बहुतेच कमती झिन बांचे रिहिन , वीडियो रिकार्डिंग चलत रहय , देख डरहीं अऊ जान डरहीं , तँहले हमन ला मिलइया अवार्ड नइ मिलही सोंचके .... येकर संगवारी मन ओ तिर ले टरक दिन । गरीब फेर सोंचत रहय - मोर नंबर आही त काला लहुँटाहुँ .... चलत रहय मन म । दिन उप्पर दिन बीते लगिस , पाख निकल गे , बछर घला नहाक गे , मौका नइ अइस ओकर । ठाढ़हे ठाढ़हे थकगे ..... पूरा पाँच बछर नहाके के पाछू नम्बर लगिस ।  

          गरीब के नम्बर जब अइस तभो ओला मंच म चइघन नइ दिन । उही करा ले पूछना शुरू कर दिन - तैं काला लहुँटाबे रे ...... तोला काये मिले होही तेमा । गरीब किथे – में अइसन थोरेन बताहूँ .....  । जम्मो झिन ल मंच म बला के घोसणा कराथव , मोर दारी अइस त ....... । माला ले लदाये एक झिन मनसे हा उठ के तिर म अइस अऊ किहिस – तोला देख के नइ लागे के , तोला कभू कहीं चीज दे होबो , फेर तेंहा तोर भाग के सेती पायेच होबे तेला नइ कही सकँव .... ले आ मंच म अऊ घोसणा कर ...... इहीच समे ह तो तोर आय । बड़ खुश होगिस गरीब मनखे हा अऊ केहे लागिस - जिनगी भर भरमाथव तूमन , हमर नाव ले राज करथव , हमरे हक ल मारथव , छेरी बोकरा कस पुजावत हन तुँहर राज म । पाँच बछर म मौका मिलथे , फेर गम नइ पावन , तुहींच मनला फेर बइठार पारथन अपन मुड़ी म ।  मोला तूमन अजादी के समे जनता अवार्ड दे रेहेव , ओकर संग बड़ अकन सम्पति - भूख , गरीबी , लाचारी , अऊ तंगहाली घला दे रेहेव , तुँहर काम के बिरोध स्वरूप इही सबो ल , महूँ लहुँटावत हँव । तुँहर ये अवार्ड के बोझा मोर ले नइ सहे जावत हे अभू । सम्हालत सम्हालत मोर कनिहा कूबर कोकरगे । धरव तुँहर अवार्ड , अऊ हमू ल अपन तरीका ले जियन दव । कन्हो थपड़ी नइ पीटिन ।

         लबर लबर मरइया मनखे मन के मुहूँ धरागे । जम्मो के थोथना उतरगे । अऊ मनसे मन जब अपन अवार्ड ल वापिस करिन तब , एमन ल काहीं फरक नइ परे रिहिस । फेर ये दारी सोंच म पर गिन – येहा अपन अवार्ड ला लहुँटा दिही , त हमन कइसे जीबो , काकर बल म पदनी पाद पदोबो , काकर टोंटा ल मसकबो ? भारी फिकर हमागे । गरीब मनखे हा अपन बात कहिके मंच ले उतरे लगिस । टूटहा नाड़ा के झोला धरके उतरे के समे , एक झिन मनखे ह ओकर झोला ला ...... आश्वासन के दार चऊँर  ले भर दिन , जनता अवार्ड ल वापिस ओकर खींसा म खोंच दिन अऊ जोर जोर ले माइक म नरिअइन – जब तक हमन जिंदा रहिबो , तुँहर अइसने सेवा करत रहिबो , तुँहर तिर कहींच बात के तकलीफ नइ आवन देन । गरीब मनखे के मन म घुस्सा अतेक रहय के , खींसा ले अवार्ड ल हेर कें फेंक देतिस , तइसे लागत रहय । फेर , नान - नान नोनी बाबू के , भूख ले कलबलाये मुहूँ के सुरता आगे । आश्वासन के भरे झोला पाके मने मन पुलकत ..... कलेचुप लहुँटगे ..... बगेर अवार्ड लहुँटाये । 

         रद्दा म , आश्वासन के झोला भरइया के संगवारी मन ताकत बइठे रिहिन ..... उही मन रद्दा म गरीब के झोला के पेंदी म छेदा कर दिस । घर के जावत ले , खींसा म अवार्ड छोंड़ , कहीं नइ बाँचिस । आतेच साठ गरीब के सुवारी पूछिस ‌- लहुँटा डरेव अवार्ड ल , जतका मिलत रिहिस तऊनो नइ मिलही अभू । झोला कोती इशारा करिस बपरा हा .... । सुवारी तुरते देखिस – झोला म ..... आश्वासन के चार दाना ...... हड़िया कस सीथा लटके रहय । खींसा ला टमर डरिस । सिर्फ जनता अवार्ड के कागज बाँचे रहय । करम फाटगे गरीब के ......... । फेर चुचवावत बइठगे । जनता अवार्ड ल माथा म चटकाये , मुड़ी धुनत लाइन लगतेच रहिथे अभू घला । पाँच बछर म मौका मिलथे , जनता अवार्ड लहुँटाये के , फेर अभू तक न ओकर अवार्ड लहुँटे हे न ओकर संग आये भूख , गरीबी , बेकारी , तंगहाली अऊ बदहाली के सम्पति ..... । जगा जगा गली गली गुहार लगातेच हे गरीब मनखे – प्लीज .............. मोरो अवार्ड लहुँटा लौ ........ प्लीज ।  

 हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा

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