Sunday 9 April 2023

दुकान /छत्तीसगढ़ी नाटिका* ------------------------------ -रामनाथ साहू

 *दुकान /छत्तीसगढ़ी नाटिका*

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-रामनाथ साहू





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पात्र-



1.लाखन- किराना दुकानदार



2.उर्मिला-लाखन के परानी



3.रूपलाल-गांव के एकझन किशोर



4.बजरंग- रूपलाल के पिता



5.भेलाबाई-रूपलाल के माता



अउ आन आन लेनदेन करइया मनखे




स्थान-गांव के नून तेल वाला किराना दुकान



                  दृश्य 1


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( नून तेल वाले किराना दुकान में रंग रंग के पन्नी म रकम रकम के चीज  मन ओरमें  हें । कई  ठन बरनी मन म  रंग- बिरंगी मीठी गोली मन दिखत  हें । दु- चार  झन लइका पिचका मन लेन- देन घलव करत भी दिखत  हें। अचानक मंच में गुलाबी रोशनी बगर  जाथे अउ रूपलाल अपन धुन म नाचत नोट असन जिनिस ल खुद देखत सब ल बतावत  दुकान कोती जात दिखथे ।)


                  


                  गीत

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 बजार म बेंचाथे


 रंग रंग के समान।


 रंग रंग के समान


भई रंग रंग के समान।


             


पइसा निकाल,


रुपया निकाल


नही त निकाल


दु टुकना धान ।


बजार म बेंचाथे


रंग रंग के समान ।



उखरा बेंचाथे


चिंवरा बेंचाथे


अउ   बेंचाथे


बोरे    अथान


बजार म बेंचाथे


रंग रंग के समान।



सीजर बेंचाथे


बीड़ी बेंचाथे


अउ    बेंचाथे


खिली बिरा पान ।


बजार म बेंचाथे


रंग रंग के समान।


i



(रूप लाल   के नाचत नाचत किराना दुकान में प्रवेश। )



रूपलाल-  हावस कका  हावस ग ।



लाखन- अरे तोर  आगु म हंव अउ  तँय            पूछ मरत हस। का ये बता ।



 रूपलाल - मोला खाजी दे । खाजी दे ।



( रूपलाल लाखन ला पांच सौ के नोट ल वोकर हाथ म धरावत हे ।)



 लाखन - ये बाबा रे !  अतेक बड़े नोट ल  कहां पाए बाबू ...!



रूपलाल -तोला वोकर से का मतलब? तँय सामान  देना ।



लाखन - ले न ।



( लाखन हर रूपलाल के हाथ ल पांच सौ के नोट ला छीन ले थे ।अउ वोकर चेथी म एक  रहपट तान के  लगा देथे )



लाखन- जा कह देबे  अपन ददा ल। 



( रूपलाल रोवत -रोवत घर कोती जावत हे ।) 



रूपलाल (रोवत -रोवत ) -मार डारिस रे। मार डारिस रे ।  जावत हंव ददा ल  कईहाँ।



लाखन - हां ,जा ...जा  कह देबे अउ वोला लेके आबे ।



( शोरगुल ल सुन के लाखन के घरवाली उर्मिला निकलथे ।)



उर्मिला - का  होइस  ।



लाखन- अरे देखना पांच सौ के नोट, घर ल चोरी करके लाने  हावे कहु लागत हे । 



 उर्मिला - ए बाबा रे ।ये लइका तो मार खाए के बुता करे हे ।



लाखन -लगाय तो  हंव एक रहपट ।



 उर्मिला- मोरो  कोती ल  एक रहपट अउ नइ  लगाय रथा ।



 (रूपलाल  रोवत- रोवत मार डारिस  रे ...!मार डारिस रे... ! कहत अंदर कोती चल देथे । मंच म पूरा अंधियार छा जाथे ।)


                   *



                 दृश्य 2


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(रूपलाल अपन बाप बजरंग के अंगठी ल धर के तीरत- तीरत लाखन के दुकान कोती लानत हे । वोहर अब ले भी बरोबर रोवत हे ।  वोमन ल अइसन  आवत देख के लाखन  घलव   थोरकुन हड़बड़ाथे । वोहर मंच के कई चक्कर लगाथे । मंच म कई ठन रोशनी मन बदलत रथें ।)



लाखन- आ आ बजरंग भाई ।मैं तोरे करा जवइया रहंय।



बजरंग- ले कछु नइ होइस । हमी मन आ गयेन ।



लाखन-  आ गए अच्छा  होइस ।नहीं त मंय तो मैं दुकान बंद करके  तोर करा जाए रथें ।



 बजरंग- मै आगें कुछ नहीं  होइस।



लाखन - ये तोर लइका ल  का तँय पांच सौ  के पत्ती देय रहे चना चरबनी खाय बर ।



 बजरंग- देय बर  तो  मइच  हर देय रहें ।


 लाखन - अच्छा, अब मोरे सोचना हर गलत हो गय ।



बजरंग - नहीं कुछ गलत नहीं होय ये।



रूप लाल -ददा येहर  चेथी  ल तान के मारे हे । तान के मारे हे...!



 लाखन-  हाँ गलती तो होय हे ।



बजरंग - हाँ थोरकुन ...! येई गलती की  थोरकुन बने तान  के दे देय तँय हर ।


जानत हस न तँय येहर मोर एकेझन अउ एकेठन  अगलउता टुरा ये।



लाखन-येकरे बर तो थोरकुन बने जमा पारें।



रूपलाल-ददा येहर चेथी ल तान के मारे हे।तान के मारे हे ।



बजरंग-हाँ  बेटा हाँ ।



रूपलाल- ददा येहर चेथी ल तान के मारे हे।तान के मारे हे । (सुबुक सुबुक सुबकत...)तँय तो घर म येला हमू मन मारबो कहत रहे।



लाखन-ले बजरंग भईं ।मार लेवा दुनो बाप बेटा।


(लाखन  भुइँया म बइठ जाथे ।)



बजरंग-मारबो मारबो पाछु।पहिली वो पान सौ के नोट ल तो दे।



(लाखन उठके बजरंग ल पान सौ के नोट ल निकल धराइस ।मंच म अंधियार छा जाथे ।)



                    *



                दृश्य 3


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नेपथ्य म बड़बडाय  के बहुत जोरलगहा आवाज आत हे । बजरंग के घरवाली अउ रूपराम के महतारी भेलाबाई के पोठ आवाज हर सुनाई परत  हे । मंच म प्रकाश के कई ठन सुतरी मन  एती- वोती होवत हें । प्रकाश थीर होथे तब वोइच दुकान के दृश्य हर फेर परगट होथे ।



रूपराम (रोवत- रोवत)- दई ,येहर  बड़ जोर से मारे  हे। यह बड़ जोर से मारे हैं ।  चेथी ल  बड़ जोर से मारे है ।ददा हर येला मारबो कहत रहिस  घर म। अउ इहां  आके नि मारिस । तँय मार न  येला ।



भेला बाई (हाथ ल हलावत..)-चल  बेटा मैं जावत हंव।  मंय अमर के चुम्मा ले लहाँ- कतका  बड़े दुकानदार  तेकर ।



         (बड़बड़ात दुकान म प्रवेश)



 लाखन- अरे , मैं  वो पांच सौ के नोट ल तोर बाप बजरंग ल दे देय हंव।



रूपलाल(रोवत- रोवत) -दई ,येहर  बड़ जोर से मारे  हे। यह बड़ जोर से मारे हैं ।  चेथी ल  बड़ जोर से मारे है ।



भेला बाई- खभरदार! दुकानदार ! तँय मोर लइका ल काबर मारे।येहर मोर अगलउता लइका ये। खाए पिए बर मंय पंजा ल देंय त तोला का तकलीफ होवत हे। 



रूपलाल(रोवत- रोवत) -दई ,येहर  बड़ जोर से मारे  हे। यह बड़ जोर से मारे हैं ।  चेथी ल  बड़ जोर से मारे है ।



लाखन- अरे वह पांच सौ के नोट ल तोर सियान ले गए हे ।अब तँय अउ काबर आय  हस।



 भेला बाई (तमक के )- दुकानदार भेला बाई आए  हे ,तोर भेला ल फोरे ।



रूपलाल(रोवत- रोवत) -दई ,येहर  बड़ जोर से मारे  हे। यह बड़ जोर से मारे हैं ।  चेथी ल  बड़ जोर से मारे है ।



      (लाखन भुइँया म बइठ जाथे । )  



लाखन-ले भेला बाई मोर भेला ल फोर दार।ले जल्दी कर।


(लाखन अपन मुड़ ल तरी कर लेथे।)



रूपलाल(रोवत- रोवत) -दई ,येहर  बड़ जोर से मारे  हे। यह बड़ जोर से मारे हैं ।  चेथी ल  बड़ जोर से मारे है । तँय फोर दे येकर मुड़ ल।



भेला बाई- मारेच हर मार नइ होइस बेटा।गोठ हर सबला बड़खा मार आय।देखना कइसे मुड़ ल तरी कर देय हे।



रूपलाल(रोवत- रोवत) -दई ,येहर  बड़ जोर से मारे  हे। यह बड़ जोर से मारे हैं ।  चेथी ल  बड़ जोर से मारे है ।अब तहुँ घलव नइ मारस .....



(रूपलाल मुठा बांध के अगास कोती ल देखे लागथे ।मंच म लाल तेज लाल रोशनी बगर जाथे ।फेर तुरन्त अंधियार छा जाथे ।)



                   *



                दृश्य 4


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          शाम के समय ये ।  चिरई- चिरगुन उड़त अपन जगहा म जावत हें । येती लाखन अपन दुकान म लेन-देन करत है। बनेच मनखे  दुकान म  हैं। धीरे... धीरे...अंधियार हर सब कोती ल तोपत हे। अब आगु म आवत भैंसा जइसन करिया जिनिस मन नइ दिखें ...पूरा के पूरा  'भैंसा मुंधियार' हो गय हे।  फेर लाखन  के दुकान म  बिजली  मन झकास बरत हांवय ।



नेपथ्य ले आरती गाये अउ घण्ठी के अवाज सुनई परथे। 



 लाखन-  हाँ ...झुमकी का लेवे  तँय ?



झुमकी- कक्का मोला अचार बोरे  के बने  मसाला दे ।



लाखन-ले बेटी ,येहर पांच किलो आमा बर ये।तोर महतारी ल कह देबे ।



झुमकी-हाँ कका।  ये मसाला के कतका लागही।



लाखन- मसाला के पैंसठ रुपया। तँय का कहत हस बेटी शुकवारा..?



शुकवारा-चहा पत्ती!



लाखन-खुल्ला लेबे के पाकिट वाला।



शुकवारा-खुल्ला कका ।कहाँ के पाकिट वाला चाय पिबे।



लाखन(हाँसत...)-काबर बेटी ,तोर सियान तो मिस्त्री बुता म पोठ पइसा कमात हे....



शुकवारा-अउ येती कोरी ख़इरखा खवइया ठाढ़े हें ।



लाखन -हाँ ,कुछु भी कह ले ।


 


( केवल प्रसाद  के प्रवेश )



केवल प्रसाद -  लाखन भाई  ! का किलबोल शोरगुल होत रहिस  वो दिन ?



लाखन-  जान दे भाई ! बाघ फाँदा म फंस  गए ...



(लाखन के गोठ पुर नइ पाय रहिस के अंधियार कोती ल एक ठन पथरा आथे अउ लाखन के मुड़ म बने जोरदार लागथे। )



लाखन (उकड़ू बइठत)-देखे भई ...!



(अंधियार कोती ल रूपलाल के अवाज उदगरथे- तान के मारे रहय चेथी ल।)



लाखन-ले हो गय अब बरोबर । चल आंखी कान बांच गिस तेन हर बड़े बात ये ।



(लाखन केवल प्रसाद ल सब गोठ ल संक्षिप्त म बताथे ।)



केवल प्रसाद- भल के राज ...नइये।



लाखन- चल बाबू रूपलाल,मंय तोला पीटें वोकर बदला म तँय मोला मार देय ।होगय अब दूनों बराबर...!




(मंच म अंधियार छा जाथे ।)



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             दृश्य 5


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 वइच संझा के  बेरा  फेर अभी अंधियार नइ होय ये । लाखन के दुकान के दृश्य । लाखन के मुड़ म पट्टी असन जिनिस  बंधाय दिखत हे।  लाखन की दुकान म आज भीड़ -भाड़ नि दिखत  ये । अभी तो पूरा के पूरा सुन्ना हे । लाखन अपन परानी उर्मिला के संग बइठ के दुकान के  बगरे समान मन ल जमावत हे।  सड़क में नाना प्रकार के स्वर सुनाई परत हे।



( रूपलाल के दुकान  तीर म प्रवेश ।अब वोकर हाथ म लाल रंग के दु हजार के नोट पर लहरत हे ।फेर वोहर सीधा दुकान नइ आय सकत ये ।येकरे सेथी  धुरिहा ले ही लाखन ल  वो दु  हजार के नोट ल हलावत बतात हे ।)


 लाखन - दुकानदार... दुकानदार...खाए के खाजी देबे का ? 



लाखन(अपन मुड़ के पट्टी ल छुवत ) - देख तँय हर वो दिन मोला  पथरा फेक के मारे। मैं तोला भागत देखें ...! मैं तोर आवाज ल सुने ।



 रूपलाल-  सुने होबे ... जरूर सुने होबे । देखे होबे ...जरूर देखे  होबे। 



लाखन- ले अब मार मूच बराबर। मैं तोला मारें चल  बाद म तँय मोला मारे । लेन-देन बिल्कुल... बराबर ।



(रूपलाल थोरकुन नजदीक म आय के हिम्मत करथे ।)



रूपलाल-  सच्ची कहत हस...!!



 लाखन -बिल्कुल सही कहत हंव।



 रूपलाल- तब देना खाई खजानी कुछु कुछु ...!



लाखन- ले बराबर का का लेबे त ? (रूपलाल दुकान  म अपन मनपसंद के कई ठन समान ले लेते अउ दु हजार के नोट ल लाखन ल धरा देथे । )



रूपलाल(तमक के)- का तँय मोल लेढ़वा - थेथवा समझ गय जी दुकानदार। मंय अतेक मूरुख नइ होंव जउन हर दु हजार  के नोट  ल भंजा के चरबनी खाँहा । चल चल मोर पइसा फ़िरो ।



लाखन- बिल्कुल धर।


(रूपलाल नोट ल धर लेथे अउ रेंगे कस करथे ।)



लाखन- अरे अरे मोर समान ल छोड़ न त ...!



लाखन(समान ल वापिस करत)- धर ले धर ।



रूपलाल(हाँसत)-हा...! हा...!! अब मोला ये समान मन ल दे ।



लाखन- ले भेला बाई के औलाद ...! ले समान ले।फेर रुपया दे।



रूपलाल(नोट ल फेर देवत)-ले धर।



लाखन अपन समान काट के बाकी पैसा वापस कर देथे ।



रूपलाल- यह दे अइसनहे दुकानदार हर बने लागथे। ये हाथ पैसा ले वो हाथ सामान दे। अउ का बस...!



रूपलाल समान ल लहरात... लहरात दुकान ल वापिस  होवत हे ।   मंच में अंधकार छा जाथे।


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                दृश्य 6


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   वइच दिन के दृश्य। वही दुकान के दृश्य ।लाखन मन  दूनों परानी अपन इहां बुता में लगे  हें । दुनों झन दुकान के समान ल जमात हें।  तभे गर्रा धुंका बरोबर  भेला बाई के प्रवेश ।


       आते साथ  वोहर धड़धड़ात दुकान म घुस गय । वोकर एक हाथ में अपन लड़का रूपलाल के कान हर धराए हे।



भेला बाई(तमक के)- कइसे दुकानदार । तँय कइसे दुकानदार  अस।लइका दु हजार के नोट धर के इहाँ आइस से अउ खाजी मांगिस हे से  अउ तँय धड़ॉक  ले दे देय ।



 लाखन- हां  खाजी तो ले गिस  हे तोर पूत हर ।



भेलाबाई - तँय ठीक से दुकान चला ना जी ,दुकानदार...



(  भेला बाई के गोठ ल सुनके उर्मिला उठ कर खड़ा हो जाथे।)



 उर्मिला- अरे पांच सौ के नोट  ल दे के थे  लइका ल खाजी चरबनी बर भेजथस अउ ....



 भेला भाई - वो सब मैं नइ  जांनव । वह तो पांच सौ के नोट रहिस। दु हजार के थोरहे रहिस।



 लाखन- हाँ...तोर लइका लेन- देन तो  करिस हे। 



भेलाबाई-  तोला  येला सौदा देये के पहिली सोंचना रहिस...आगु पाछु ल।



उर्मिला-लइका ल ये दु हजार के नोट  ,तइचं  हर तो देय रहे होबे।



भेलाबाई- यह साले  हरामी हर ये नोट ल वोकर ददा के  जेब ल निकले हे।



लाखन- अब का किया जाय तउन ल बता ...



भेलाबाई- अब का करबे।येहर नोट चोरा डारिस...!नोट ले तँय खाजी चरबनी देइच्च डारे...। ये खइच डारिस...।नोट हर तो खुंचरा होइच गय...



(भेलाबाई वसनहेच गर्रा धुंका कस वापिस फिर जाथे।मंच म अंधियार छा जाथे ।)



                  *


  


                दृश्य 7


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 समय अंतराल- एक हफ्ता के बाद ।समय वोई सँझाती  बेरा। लाखन के दुकान धड़ाधड़  चलत हे।  आज तो बहुत ही भीड़- भाड़ हे  इहाँ।अवइया काल हरेली तिहार हे,तेकर चलते बहुत  लेनदेन  होवत हे।


  मंच में रूपलाल फिर परगट होथे। वोकर हाथ म सौ के नोट हे । वोहर वोला  लहरात लाखन के दुकान म आ जाथे।



रूपलाल- दुकानदार !  ये दुकानदार...!



 लाखन-हाँ काये जी। रुक थोरकुन काय कहत हावस त..?



रूपलाल- मंय खाय के खजानी लेहुँ कहत हंव।



लाखन-अउ तँय तो वोकरेच बर आथस।



रूपलाल- बढ़िया तो हे।तोर दुकान ल बढ़िया चलात भी तो हावन जी।



(रूपलाल सौ के लम्बरी नोट ल वोला बढोवत आंखी म सब समान मन ल तउलत रथे।)



लाखन - कतका ...!सौ के नोट...!!


(थोरकुन विचार करत...अपन आप म कहत) पांच सौ के नोट चरबनी खाय बर  अउ दु हजार के नोट चोरा के लाने रहिस हे ,ये टुरा हर...अब यह दे सौ के लम्बरी ल बतात हे।कोन जानी का ये...!



लाखन- रा... बाबू रा...!तोला समान देय नइ सकाय ।कोंन जानी तोर महतारी भेलाबाई के का मन हे।



रूपलाल-नहीं, मंय तो लेबे करीहाँ।



लाखन- नही नहीं तँय जा वापिस।मंय।अउ झमेला खड़ा नइ करंव ।



रूपलाल (रोवत रोवत) -मोर पइसा के ये समान नइ देत ये रे ।समान खाजी खजनिया नइ देवत ये रे।



 रूपलाल रोवत घर कोती जावत हे।


मंच म अंधियार हो जाथे ।




                      *



 


              दृश्य 8


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 समय -वही दिन तत्काल दस- पंदरा मिनट बाद । लाखन अपन दुकान म  रचे बसे  हे । फेर बीच-बीच म वोहर नजर  उठके आगु कोती ल  जरूर जरूर निहार लेत हेच - जइसन  वोहु ल कुछु  होनी-अनहोनी  के आशंका हे।




 वोई अनहोनी के रूप म   भेला बाई के प्रवेश ।एक हाथ म  वोकर टुरा के हाथ अउ दूसर म वो सौ के नोट हे।



भेलाबाई-  दुकानदार ! ये दुकानदार! 



 लाखन - कइसे का हो गिस।



भेलाबाई-मोर ये लइका हर सौ के नोट धरके आय रहिस हे, तब तँय वोला काबर कुछु नइ देय ।



लाखन- हाँ...! देय बर तो नइ देय हंव।



भेलाबाई- काबर नि देय अस। कावर कछु नहीं दे येला ।



लाखन- हाँ, देय बर तो नइ देंय हंव।



भेलाबाई-  येहर मोर अकेला  लइका ये ।खाए -पिए पर सौ के नोट देके भेजें हंव। 



लाखन- नइ तो देंव हंव ...



भेलाबाई-  खबरदार ! खबरदार !! तोला ठीक से दुकान चलाना हे तब चला। नहीं तो दुकान बंद कर ।हमन आने दुकान खोलवा लेबो। मोर लइका बेचारा  शौक करके आए रहिस हे तब वोकर शौक पूरा  होना रहिस न।



भेलाबाई  अंधियार म डाँटत कुचरत लुका जाथे।




                      *


                दृश्य 9


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 वोइच शाम के समय ये । आज फेर चिरई- चिरगुन उड़त अपन जगहा म जावत हें । येती लाखन अपन दुकान म लेन-देन करत है। बनेच मनखे  दुकान म  हैं। धीरे... धीरे...अंधियार हर सब कोती ल तोपत हे।  फेर लाखन  के दुकान म  बिजली  मन झकास बरत हांवय ।



नेपथ्य ले आरती गाये अउ घण्ठी के अवाज सुनई परथे। 



रूपलाल एक ठन दहला ल धर के नाचत ये गीत ल फेर दुहरावत झुमरत आगु बढ़त हे- 



बजार म बेंचाथे


 रंग रंग के समान।


 रंग रंग के समान


भई रंग रंग के समान।


             


पइसा निकाल,


रुपया निकाल


नही त निकाल


दु टुकना धान ।


बजार म बेंचाथे


रंग रंग के समान ।



उखरा बेंचाथे


चिंवरा बेंचाथे


अउ   बेंचाथे


बोरे    अथान


बजार म बेंचाथे


रंग रंग के समान।



सीजर बेंचाथे


बीड़ी बेंचाथे


अउ    बेंचाथे


खिली बिरा पान ।


बजार म बेंचाथे


रंग रंग के समान।




वोहर नाचत  जाके लाखन के दुकान तीर पहुंच जाथे।



रूपलाल-दुकानदार ये दुकानदार...!



लाखन- हाँ बता।



रूपलाल- सिगरेट हे...!



लाखन-



रूपलाल-बीड़ी हे... काड़ी हे?



लाखन-दे का धरे हस  तउन ल ।



(रूपलाल आगु जाके वोला रुपया ल धराथे । लाखन रुपया ल धरे तो नही फेर वोहर रूपलाल ल धर डारथे अउ साँय... साँय  तीन रहपट वोकर चेथी म जमा देथे।)



रूपलाल-मार डारिस रे... मार डारिस रे!



लाखन- जा भेज बे बजरंग अउ भेलाबाई ल। फेर येहर मोला मारे रहय तेकर बदला नोहे।तोर लइका करा का बदला लहाँ। आज तोर दई अउ ददा ल देखहाँ।




मंच म अंधियार छा जाथे।फेर रूपलाल के रोये के अवाज धुरिहा जावत शांत हो जाथे।




             *समाप्त*                   



*रामनाथ साहू*





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