Sunday 9 April 2023

सरस्वती सुता* ( लघुकथा ) - विनोद कुमार वर्मा

 .                  *सरस्वती सुता* ( लघुकथा )


                   -  विनोद कुमार वर्मा 


     ' *का लड़की ला सलीका से बात करना नि सिखाय हॅव वर्मा जी? कइसन संस्कार दे हॅव?* *हमन कस विद्वान मन ला बुद्धु कहना कहाँ तक उचित हे? ' - एक विद्वान अपन अहंकार म मरहम-पट्टी लगावत* *वर्मा जी उपर गोली दागिस !* 


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       निर्णायक समिति के छै विद्वान साहित्यकार ड्राइंगरूम म दू घण्टा ले गहन विचार-विमर्श करत कोई फैसला नि ले पात रिहिन। विषय गहन-गंभीर रिहिस कि पाँच लाख रूपिया अउ ताम्रपत्र कोन साहित्यकार ला प्रदान किये जाय? छटनी के बाद अन्त म दू साहित्यकार- पाण्डेय जी अउ दीवान जी बचे रिहिन जेकर उपर निर्णय के गुरुत्तर भार छहो मनीषी के कंधा म आन पड़े रिहिस!  दुनों के लेखन म कोई कमी नि रिहिस। चयन समिति के तीन झन पाण्डेय जी के पक्ष मा त तीन झन दीवान जी के पक्ष मा रिहिन। चयन समिति के अध्यक्ष  रामनाथ पशोपेश में भी चाहत रिहिन कि पुरस्कार के निर्णय बिना पक्षपात के योग्यता के आधार म ही होना चाही। दुनों साहित्यकार ला संयुक्त रूप से पुरस्कार देना संभव नि रहिस काबर कि नियमावली म पुरस्कार एक ही साहित्यकार ला देहे के प्रावधान रिहिस। 

       चयन समिति के संयोजक वर्मा जी के बंगला के बाहर फैसला के इंतजार म दुनों साहित्यकार के सैकड़ों समर्थक डटे रिहिन, मानो चुनाव के परिणाम घोषित होने वाला हो ! पुरस्कार के राशि बड़े रिहिस वइसने दुनों साहित्यकार घलो बड़े कद के रिहिन- एक प्रगतिशील गुट के,त दूसर स्थानीय गुट के। पुरस्कार के घोषणा के बाद ढोल-नंगाड़ा के साथ जुलुस निकलना तय रिहिस काबर कि दुनों स्थानीय अउ प्रतिस्पर्धी गुट के साहित्यकार रिहिन। सेठ रावलमल के स्मृति म प्रति वर्ष दिये जाने वाला ये पुरस्कार प्रदेश म सबसे बड़े साहित्यिक सम्मान माने जाथे। 

        ड्राइंग रूम म नौ बरस के निकिता बार-बार आत-जात रिहिस। आखिरकार निकिता के सब्र के बाँध ह टूट गे। ओहा शिकायती लहजा म बोलिस- का दादाजी आपमन दू घंटा ले इहाँ  बुद्धु जइसन बइठे हॅव? इहाँ ले कब जइहा? मोला टीवी म डोरेमान देखना हे!

      ' हमन एक फैसला नि ले पात अन बेटी ....' - वर्मा जी के बात अधूरा ही रहि गे। निकिता तपाक ले बोलिस- मोला मालूम हे दादा जी, आप सब मन थोड़ा-थोड़ा बुद्धु हॅव!...... मैं फैसला कर देहूँ ,फेर मोला पचास रूपया चाही! '- निकिता के गोठ-बात ले वर्मा जी ला छोड़ सबो हैरान-परेशान हो गइन। 

       वर्मा जी ओला पचास रूपिया दे के पूछिस- एकर का करबे बेटी?

     ' मोला अपन सहेली मन ला अभी चाकलेट खिलाना हे! मैं पाँच मिनट म आवत हौं। '- अतना कहि के निकिता फुर्र ले उड़ि गे!

     सबो छै विद्वान असहज अउ असमंजस के स्थिति म रिहिन काबर कि आज नानकुन टूरी सबो  विद्वान ला ' बुद्धु ' के मानद उपाधि ले सम्मानित करके फुर्र हो गे रिहिस! प्रदेश के छै बड़े साहित्यकार ला एक साथ अतेक बड़े मानद उपाधि ले आज तक कोनो सम्मानित नि करे रिहिन होहीं! 

         नानकुन टूरी गोटानी असन पेट। 

           कहाँ जाबे टूरी रतनपुर देश!

       ये जनउला के जवाब नि दे पाय ले प्रतियोगी परीक्षा देवइया लइकन के जइसन स्थिति परीक्षाहाल म होथे, वइसने असहज स्थिति म आज विद्वान मन बइठे रिहिन।  

        ' मोर नातिन के गोठ ला आप मन बुरा मत माना...... जब भी मैं कोई समस्या म फँसथों- एही ओकर हल निकालथे! '- वर्मा जी अपन आवाज म मिश्री घोल के विनम्रतापूर्वक बोलिस। 

      ' का लड़की ला सलीका से बात करना नि सिखाय हॅव वर्मा जी? कइसन संस्कार दे हॅव ?हमन कस विद्वान मन ला बुद्धु कहना कहाँ तक उचित हे ? ' - एक विद्वान अपन अहंकार म मरहम-पट्टी लगावत वर्मा जी उपर गोली दागिस!

        ' अरे नहीं त्रिमूर्ती जी, लइकन के गोठ ला नि धरना चाही! '- फेर वर्मा जी के जवाब ले विद्वान मन बिलकुल भी संतुष्ठ नि दिखत रिहिन। 

        ' कम से कम रामनाथ जइसन अकादमी सम्मान पवइया बुजुर्ग साहित्यकार के अपमान बर्दाश्त ले बाहिर हे! ' - त्रिमूर्ति जी अपन भड़ास ला फेर निकालिन। 

    वर्मा जी चुप रिहिन। थोरकुन देर म निकिता दउड़त आ गे अउ ड्राइंगरूम के कोना म रखे डिजीटल वजन मशीन ला खींच के बीच मा ले आइस। फेर अपन मयारूक दादा जी ला आदेश दीस- दुनों झन के पुस्तक के वजन करव दादा जी!

      वर्मा जी पुस्तक के वजन करिस त डाॅ पाण्डेय के कुल 12 ठिन पुस्तक के वजन 06 किलो अउ डाॅ दीवान के 22 ठिन पुस्तक के वजन 06 किलो 200 ग्राम निकलिस।...... सबो विद्वान साहित्यकार निकिता के कार्यवाही ला ध्यानपूर्वक देखत रिहिन अउ कुछ-कुछ समझे के  कोशिश घलो करत रिहिन।

       ओकर बाद निकिता काफी देर तक दुनों साहित्यकार के पुस्तक मन ला अलट-पलट के देखिस अउ कुछ सोंचे के बाद  घोषणा करिस- पाण्डेय अंकल ला पुरस्कार मिलना चाही!

      एक विद्वान प्रश्न करिस- बेटी, दीवान जी के पुस्तक के संख्या जादा हे अउ वजन घलो 200 ग्राम जादा हे फेर तो दीवान जी ला ही ये पुरस्कार मिलना चाही!

       विद्वान साहित्यकार के प्रश्न के प्रत्युत्तर म निकिता प्रश्न करिस- आप मन पुरस्कार के फैसला काबर नि कर पात हॅव अंकल?

      विद्वान कुछ सोंचकर जवाब दीस- बेटी, दुनों के लेखन एक समान गुणवत्तापूर्ण हे,फैसला नि होय के एही कारण हे!

      निकिता कहिस- पाण्डेय अंकल के पुस्तक के फोंड साईज छोटा हे जेकर कारण ओकर  पुस्तक म शब्द संख्या जादा हे! गुणवत्ता एक जइसन होय के कारण शब्द संख्या ह पुरस्कार के आधार बनही!  

     सबो विद्वान निकिता के तर्कशक्ति ला देख आश्चर्यचकित रिहिन। अब सबले बड़े साहित्यकार रामनाथ जी के बोले के बारी रिहिस- शाबास बेटी! तैं सचमुच सरस्वती-सुता अस। हमन तो केवल सरस्वती सेवक अन!......  ज्ञान के संग अहंकार हा फलथे-फूलथे, एही कारण  फैसला लेहे म चूक घलो हो जाथे। तोर ए बात भी सही हे कि विद्वान आदमी थोड़ा-थोड़ा बुध्दु होथे! .... तोर फैसला एकदम सही हे बेटी.... पुरस्कार पाण्डेय जी ला ही  मिलही! 


             - विनोद कुमार वर्मा 

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