Saturday 1 April 2023

गणित के पाठ* *(छत्तीसगढ़ी कहानी)*




*गजट म पद खुलिस, वोहर*

*फारम भरिस अऊ ये दे* *पक्की नौकरी वाला सरकारी मास्टर बन गय।* *नामी प्रायवेट इस्कुल के पूँजीपति मालिक हर ये छै पैसा ही*

*सरकारी नौकरी करही! हाँ, वोहर करिस अऊ सहर के वो नामी सरकारी इस्कूल के सरकारी मास्टर बन गय ।*



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                   *गणित के पाठ*


                    *(छत्तीसगढ़ी कहानी)*



                  सुनीलचंद ला समझ नई आवत रिहिस के ये बनेच्च अकन रूपिया घर मा माढ़े हे तेकर का किया जाय । रहे बर तो वोहर अवल नंबर के वणिक बुद्धि वाला मनखे रिहिस । बनिजी मा वोकर अब्बड़ विसवास रिहिस । वोकर पिता वोला जब घाघ अऊ भड्डरी के हाना मन ला अरथावत कहे- उत्तम खेती - मध्यम बान अऊ अधम नौकरी भीख निदान... । तव येला सुनत वोहर मुचमुच हाँसत रहे... । वोहर ये हाना के पद क्रम ला बदलत कहे मन मा... उत्तम

नौकरी माध्यम बान, अधम खेती भीख निदान... | फेर ये पईत पत्र-

पत्रिका, इडिया - मीडिया ।

म देखत-झाँकत वोकर सोच हर बलद गय

हे । नावा शब्द कार्पोरेट जगत... वोला अब्बड़ नीक लागथे । तेकर सेथी अपन मन  मा वोहर नावा पद लिख लेये हे... उत्तम बान..

मध्यम नौकरी अऊ खेती तो सफ्फाच भीख निदान ।


         फेर अतकेच पूँजी मा कल-कारखाना तो ठाढ़ होय सके नीही। उकानी- दूकानी कुछु जमिस नहीं तव वोकर धियान मा अईस के चल... इसकूल खोल दिया जाय फेर ये जगहा मा जऊन भी सरकारी इसकूल हे तऊन मन अब्बड़ नामी हे। वोमन के मुकाबला मा इसकूल ठाढ़ करना अब्बड़ कठिन बुता होही । फेर वोहर एईच्च बुता मा झंपा गय । नावा प्रायवेट इसकूल खोल दिस। वोहर रिहिस इस्कूल के संचालक, संस्थापक आदि-आदि कईठन पद के काबिजदार... ।


            इस्कूल ला तो बनेच्च चले बर रिहिस। वोहर चलिस घलो बने। बनेच्च लइका भरती होवत गईन । फेर सरकारी इस्कूल मन के

चमक, सान मा अबले घलो काँही परकार के कमी नई होय रिहिस। वोमन अपन सम गति ले निर्बाध चलत रहिन । अब ले भी वोमन

बर आकर्षण बने रहिस । वोमन के खास चिन्हारी रहिस ।


            आज सुनीलचंद के चेहरा मा संतोस के जगहा मा एकठन विचित्तर मुस्कान हर तउरत रिहिस । ये मुचमुचई हर विचित्तर के

संगे-संग थोरकुन टेढ़ा घलो लागत रिहिस । आज वोहर खुद सरकारी इस्कुल के मास्टर बन गय रिहिस । गजट म पद खुलिस, वोहर

फारम भरिस अऊ ये दे पक्की नौकरी वाला सरकारी मास्टर बन गय। नामी प्रायवेट इस्कुल के पूँजीपति मालिक हर ये छै पैसा ही

सरकारी नौकरी करही! हाँ, वोहर करिस अऊ सहर के वो नामी सरकारी इस्कूल के सरकारी मास्टर बन गय ।


       ये बखत वे सरकारी इस्कुल अऊ वोकर अपन मालिकाना हक वाला प्रायवेट इस्कुल मा काँटा के टक्कर रहे । बराबरी करे के

 कोसिस तो, सुनीलचंद के वो प्रायवेट इस्कुल डेफोडिल पब्लिक इस्कुल हर करत रहे, सरकारी इस्कुल हर कई मामला मा वोकर ले

कतेक आगु रहे। ये मामला मन मा पढ़ई हर तो सामिल रहिबे करिस काबर के सरकारी इस्कुल मा स्नेही गुरुजी असन दू चार

पोट्ठ मास्टर मन अबले घलो समरपित भाव ले लईका मन ला पढ़ोवत रहें । अऊ कोन जनी काबर ये गुरु मन सुनील चंद ला एक्को

नई सुहावे फेर आगु मा वोहर कुछ नहीं कहे सके। स्नेही गुरुजी मन घलो वोला जूनियर, नावा- नेवरिया होय के बाद घलो बनेच्च सम्मान देवय... । एक परकार ले वोला डराँय... वोकर ले भय खाँय ।


*                   *                *                 *


             आज सरकारी इस्कुल के मास्टर मन के प्रदेश व्यापी हड़ताल के चौबीसवां दिन ये । कछु सिरझत ये न पाकत ये... । हाँ, सरकारी

इस्कुल मा लईका मन रोजिना आवँय अऊ मास्टर नई रहे के सेती...छुट्टी हो गय... रे... कहत परा जावँय | 


         ऐती सुनीलचंद के डेफोडिल मा टापी टाप... पढ़ई हर होवत रहे । वोहर खुद अपन

इस्कुल मा रोजाना कस अढ़ई घण्टा बइठे... | कभु-कभु तो तीन चार घण्टा तक बइठे । वोतका बेरा ला हड़तालिया मास्टर मन

तियार होके आ जाँय रहे अऊ सुनीलचंद हर वोमन के अगुवा रहे । वोहर जुलुस के नेतृत्व करे... प्रदर्सन निकाले... ग्यापन देवय...

नाना विध बुता मा वोहर आगु रहे । साथी मन... हमन ला पीछु हटे बर नइये...। हमुमन के बाल बच्चा हे... हमू मन के सपना हे

कुछु... । सरकार ला हमर माँग ला पूरा करेच्च परिही... । लईका मन के पढ़ई! अरे हमरो तो लइका- पिचका हे । जब तक हमर माँग पूरा

नइ हो जाही... तब तक हमन ला इस्कुल नई जाना हे... लइका मन ला नई पढ़ाना हे ! बोलो हमारी एकता... जिन्दाबाद... ! कोरी

कईरखा आवाज एके सुर मा उबके ।


         आज हड़ताल के चौंतीसवां दिन ये । वोहर पाँच छै दिन ले अट करत हे... । स्नेही मास्टर नई दिखत ये अऊ अऊ दू चार झन मन

घलव नई दिखत यें आजकल ये पंडाल-चंदैनी के तरी मा । स्नेही कहाँ हे? सुनीलचंद गरजत पूछिस ।

'वोहर अब इस्कुल जावत हे चोरी-लुका, अऊ क्लास लेवत हे...।"

'अच्छा, मेरिट मा लानही लइका मन ला...।"

“मेरिट तो ये बच्छर तुँहर डेफोडिल ला आहीं, सुनील सर ।"

“ये स्नेही के अतका हिम्मत ! दस के संग ला छोड़ के अपन मन मरजी करत हावय । का सरकार हर कुछु करिही तव ओकर

बाँटा नई झोंकाही वोहर । "


       सुनीलचंद अपन व्यापार बर... अपन डेफोडिल बर समरपित रहिस । वोहर दु -चार झन अपनेच कस संगवारी मन ला धर के

सरकारी इस्कूल मा आ गइस ।

“स्नेही...! एती निकल के आ !" वोहर दहाड़िस अऊ स्नेही के जवाब ला अगोरे के जरूरत नई समझिस। खुदे किलास के भीतर धुसर गय अऊ पाठ पढ़ावत स्नेही

के कालर ला धर खींचत बाहर ले आनिस अऊ अपने चप्पल ला उल के साँय...साँय चार चप्पल पेला दिस... साले बड़ा आये पढ़ाने

वाला... संगठन ला एईच्च हरामी कस मन तोड़थें... !


        स्नेही हर लईकाच मन के आगु परछी मा बेहोस हो के गिर गय।



*रामनाथ साहू*


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