Monday 24 April 2023

पल्लवन-- पहिली सुख निरोगी काया

 पल्लवन--


पहिली सुख निरोगी काया

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ये सृष्टि के जम्मों जीवधारी मन सुख के तलाश म लगे हें। मानव के तो ये हा जन्मजात स्वभाव आय। सुख ह एक ठन भाव आय जेकर अनुभव मन ह करथे। वो सबो जिनिस अउ क्रियाकलाप जेकर ले मन ल खुशी जनाथे ल सुख कहे जाथे अउ जेकर ले मन खिन्न हो जाथे---कष्ट के अनुभव होथे दुख कहिलाथे। चित्त ल जेन आनंद मिलथे उही ह सुख आय। सुख पहिली के दुख पहिली ये प्रश्न के उत्तर देना ओतके कठिन हे जतके मुर्गी पहिली के अंडा पहिली? ये सुख अउ दुख के माया बड़ विचित्र हे।कोनो दुख के फल ह समे बिते म सुख के रूप म मिल जथे त कोनो सुख ह आगू चलके घोर कष्ट के कारण हो जथे।कष्ट के कारण बनइया सुख ल हिनहा माने जाथे।दिन-रात,धूप-छाँव,अँजोर-अँधियार होथे ओइसने सुख-दुख होथे ये तय हे। 

  हमेशा न तो दुख राहय न सुख राहय।कोनो घटना ह,कोनो जिनीस ह ककरो बर दुख के कारण हो सकथे त ककरो बर सुख के। दुख अनगिनत हे ओइसने सुख के गिनती नइये।सुख के बात करन त मनीषी मन मोटी-मोटा सात प्रकार के सुख--निरोगी काया(स्वस्थ शरीर),घर में माया(धन-दौलत), आज्ञाकारी बेटा-बेटी, सुलक्षणा नारी(संस्कारी पत्नी), राज में पाया(स्वदेश म निवास ), पड़ोसी भाया (

अच्छा पड़ोसी), माता-पिता के साया(माता-पिता के छत्र-छाया अउ ऊँकर सेवा) ल प्रमुख बताथें।

   एमा पहिली सुख निरोगी काया हरे। इही ह अउ बाँकी जम्मों सुख के अधार ये।तन के अस्वस्थ रहे ले चना हे त दाँत नइये वाले किस्सा हो जथे। तन ह स्वस्थ रइही तभे मन ह ठीक रइही। तन बीमार त मन बीमार। मन बीमार हे त सुख के अनुभव होबेच नइ करै।शरीर ल मंदिर के उपमा दे जाथे ।ये शरीर रूपी मंदिर ल पवित्र साफ-सुथरा,बने-बने रखना हम सबके कर्तव्य आय। तन अउ मन स्वस्थ हे त संतोष रूपी धन मिलथे तहाँ ले संतोषी परम सुखी हो जथे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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