Sunday 9 April 2023

पल्लवन -सरला शर्मा


 

पल्लवन -सरला शर्मा

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     पल्लवन कहे ले मन मं सबले पहिली विचार आथे नानकुन पौधा या नार जेहर खातू पानी पा के डारा , पाना मेल के लहलहावत रहिथे ..समय पा के फूलथे , फरथे ठीक इही तरह गद्य साहित्य मं कोनो हाना , सूक्ति , महत्वपूर्ण वाक्य के व्याख्या करना होथे । पहिली बात जौन मन मं जागथे ओहर आय के पल्लवन के जरूरत काबर परथे ? छोटकुन वाक्य जेहर सारगर्भित तो रथे फेर ओकर आघू , पाछू के प्रसंग , ओकर प्रभाव ल फरिया के कहे  बर परथे त छोटकुन वाक्य ल समझाए बर बहुत अकन शब्द तो लागही न इही हर पल्लवन आय । विचार हर तभे तो लहलहाही जब चिंतन , मनन के खातू पानी मिलही ओ खातू पानी शब्द रूप मं मिलही ..त जतके सरल , सहज भाषा मं विचार , सूक्ति , हाना मन के व्याख्या होही ओतके सहजता से लोगन समझ पाहीं ...माने गूढ़ , गहन , गम्भीर विचार ल शब्द समूह के द्वारा समझे सकहीँ इही हर पल्लवन आय । 

       इही देखव न संत , महात्मा मन  कभू कभू कठिन जीवन दर्शन ल प्रतीक रूप मं कहि देथें जेला आम आदमी ल समझे मं कठिनाई होथे त कभू कभू अर्थ के अनर्थ घलाय तो हो जाथे । गागर मं सागर भरे के गुन हर सराहे लाइक गुन आय फेर उही रहस्य ल समझाना हर पल्लवन आय । पल्लवन बर ऐतिहासिक , पौराणिक , सामाजिक या कोनो महापुरुष के कथन के चयन भी करे जा सकत हे । 

    चिटिकन बिलम के दू , एकठन उदाहरण देख लिन ....

1. बिछल परे के हर गंगा ...

    गंगा नहा के पाप मुक्त होना , पुण्य कमाना सबो झन चाहथें फेर गंगा तक पहुंचना अउ पुण्य कमाना के बात अलग हे । कोनो काम ल करत करत अचानक सफलता मिल जाना या गिर परे के संकोच ल मेटाये बर हर हर गंगा कहना अलग बात होथे । 

असफ़लता के लाज ल लुकाये बर भगवान के मर्जी इही रहिस जी ..चला जाय देवा कहना इही तरह होथे । 

2 . कहां जाबे धमना किंदर बुल के इही अंगना ....

      धमना सांप जेन हर बिखहर नइ होवय ..त मनसे ओकर से डेरावयं घलाय नहीं । बपुरा धमना कोला बारी , अंगना त कोठी तरी किंजरथ रहिथे । धमना के ओढ़र मनसे ल कहे गए हे के अपन घर दुआर , अंगना परछी ल छोड़ के कतका दिन बाहिर मं किंदरबे ? गांव गंवतरी , सगा सोदर , हितू पिरितू कतका दिन संग दिहीं ? आखिर अपने अंगना मं लहुट के थिरावत बनथे । 

एक इशारा एहू तो आय के पर के घर कतको धन दोगानी रहय चार दिन के पहुनई सुहाथे फेर मनसे गरु हो जाथे , मान पान सिरा जाथे तब अपने अंगना मं लहुटे बर परथे । 

     लोकाक्षर के बुधियार लिखइया , पढ़इया मन चिटिक पल्लवन डहर ध्यान देइन । अब तक आप मन गद्य के संस्मरण ,उपन्यास, नाटक , लेख , कहानी , चिट्ठिपत्री , रिपोर्ताज असन विधा मन के चर्चा बढ़िया ढंग से करत आये हव । 

एदारी पल्लवन ले के हाजिर होए हंव थोरकुन ध्यान देवव । 

    सरला शर्मा 

      दुर्ग



पुरौनी 

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     पल्लवन बर हाना ही नहीं कोनो भी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक , धार्मिक , सूक्ति ल चुने जा सकत हे । एक ही वाक्य के पल्लवन अपन अपन सोच के अनुसार किये जा सकत हे , जरूरी नइये के हम पल्लवन करइया से सहमत होइ जइसे " सरग निसेनी मं पांव धर दिस " पहिली मत के अनुसार , मनसे दुनियादारी छोड़ के भगवान के भोग राग , पूजा पाठ मं लग गिस । धर्म प्रधान पल्लवन ....

दूसर विचार एहू तो होही के घर गृहस्थी , चार पैसा कमाई धमाई छोड़ के अपन हैसियत ल भुला के करोड़पति बने के या राजा राठी बने के सपना देखत हे । जेला कहिथन कपोल कल्पना ....।

    छत्तीसगढ़ी मं आने भाषा के भी वाक्य , सूक्ति मिंझर गए हे त ज्ञानवर्धक तो ओहू हर आय ..। पारम्परिक कथन ...अस्सी कोस नौबासा ( आजकल कोस नहीं किलोमीटर )  सोला आना , रत्ती भर विश्वास नइये , चार पईसा ..आउ बहुत अकन हें .....समय के संग जौन बदलाव आये हे ओला माने च बर परही त पल्लवन के समय घलाय ध्यान देहे बर परही । 

       सुरता राखे बर परही के गद्य ल सजोर करे बर , शब्द विन्यास , भाषा शैली , वाक्य विन्यास के अभ्यास करे च बर परथे अउ पल्लवन हर इही विशेषता मन ल जगर मगर करथे । पल्लवन हर स्वतंत्र विधा के रूप मं अभियो प्रतिष्ठित नइ हो पाए हे तभो जइसे रिपोर्ताज ल , डायरी ल , पत्रलेखनआदि अर्वाचीन विधा मन ल स्वीकृति  मिलिस तइसने धीरे बाने छत्तीसगढ़ी मं पल्लवन ल उचित आसन मिलबे च करही ..। 

    लोकाक्षर समूह के बुधियार लिखइया मन से बिनती हे चिटिक ध्यान देवव ...निश्चय ही बहुत जल्दी  छत्तीसगढ़ी ल पल्लवन संग्रह मिलही ...। 

   सरला शर्मा


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