Saturday 1 April 2023

नारी विमर्श के एकठन कहानी


*नारी विमर्श के एकठन कहानी*  -



*जा अगास... तोर उड़े बर तो पूरा के पूरा अगास* *हे...उड़...। मैं तो छाया अँव... मोर जगहा तो घर के* *भीतर हे न..! एसो के चईत- वईसाख म मोर बिहाव होही घर के मन कहत*

*रहिन... ।*


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                *छाया अऊ अगास*


                (छत्तीसगढ़ी कहानी)



“आ... अगास। खेलवे त इकरा... ये दे काँची कुचलिया... "छाया अगास ला काँची मन ला बतावत अपना कोती बलाईस।

“मैं ये छोकरी वाला खेल नई खेलव...!"अगास अपन गेड़ी मा चढ़े-चढ़े थोरकुन अकड़त किहिस, "तैं गेड़ी चढ़े जानथस छाया?"

"गेढ़ी चढ़े बर पूछथस अगास, देखा मोला थोरकुन!" छाया किहिस अऊ अगास के हाथ ले वोकर गेड़ी ल ले लिस अउ

वोकरेच आगु म वोमन मा चढ़के नाच के बता दिस।


         छाया के गेढ़ी चढ़ई ला देखिस त अगास के आँखी बटरा गय, बोहर किहिस, “छाया, तैं तो गेढ़ी चढ़के नाचे घलो जानथस! अतका सुनना रहिस कि छाया हर एक पईत फेर... अऊ देखवे अगास... कहत वोईच्च गेड़ी मा एकठन आन किसिम के नाच बता

दिस फेर ये उदिम मा अगास के वो गेड़ी मन के आँगुर-आँगुर हर काँप गय। वोमन के चुल हिल गय। जब छाया हर गेड़ी मन ला अगास ला धराईस त वोमन के हालत देख के अगास हर पलपला उठिस। फेर ओकर आँसु गेड़ीमन

के बिगड़े हालत बर कम... छाया के निकता प्रदर्सन हर जादा जिम्मेवार रहिस।


       अपन लचपयाये गेड़ी मन ला धर के अगास अपन घर कोती आ गईस अऊ घर मा आके बमफार के रोये लगिस।

"का होईस!" वोकर महतारी येला देख के नरियाईस।

“काहीं नहीं... बड़े दई! ये छोकरा बाड़ा हर आज दिन भर म मोर खातिर दू पईत रो डारिस न...।" अगास के जगहा मा छाया हर

उत्तर दिस। वोहू हर अगास के पाछु-पाछु आ गय रहिस।

‘‘तोर खातिर! वो कईसन वो... छाया... बेटी?" अगास के महतारी पूछिस।

"एक पईत तरिया मा तऊरत... तऊरत मैं वोकर ले जादा अगवा गँय। तब...दूसर पईत वोकर गेड़ी ला थोरकुन छू पारे तव

ये दे... । छाया किहिस अऊ... लान...लान मैं बना देवत हौँ... तोर गेड़ी ला कहत...छाया वोकर गेड़ी ला लेके डोर ला छोर के फेर

बाँध दिस वोमन ला चमचम ले... । अऊ अगास ला देखके बिजरा दिस। वोला देखके अगास फेर सुरु कर दिस जोर जोर से... ।

"देख बड़े दई... येहर अब सोझे सोझ बर रोवत हे... काल इस्कुल मा जाँच परीक्षा मा मोर ला दू नंबर कम पाईस तभ्भो रोन -रोनहू हो गय रहिस.... येहर... हाँ!" छाया हर अतका किहिस  अउ अगास ला देखके, एक पईत फेर बिजरावत उहाँ ले आ गय ।

“छोकरा ... ये छाया बई ले चार महीना के बड़खा होके वोला नई सकस त.. रो डारथस ।" अगास के महतारी घलो वोला डपटत

किहिस। ये बात ला छाया घलो सुनिस त फेर वोहर वापिस आ गय अऊ डबडबावत आँखी वाला अगास के हाथ ला धर के वोला बाहिर निकाल लानिस ।


         अब दुनो के दुनो करा बाटी मन  से राजा-परजा के खेल खेलिन। ये पईत तो अगास हर जीत उपर जीत जमा करत जावत

रहे। अगास हर छाया ला सात पईत हरा देये रहिस। अब तो अगास के चेहरा मा जितईया के दरप हर दप-दप करते रहे त छाया के

आँखी मा संतोस के भाव उतर आय रहे ।

“हरही.. टूरी... हार गय.... !" अगास हर छाया ला देखत गाये के सुरुच्च कर देये रहिस।

“ले ... काय होईस अगास तैं जीत गय त... अईसनहे सब्बो दिन जीततेच रह मोर भई! ले अब मैं जावत हँव...।" छाया किहिस

अऊ अपन घर कोती जाय लागिस फेर वोकर नंजर बड़े दई कोती चल दिस जेहर पाछु मा ठाढ़े ये सब दिरिस ला देखत रहिस। वोहुँ

हाँस भरिस, ‘“छाया, अगास ल कै पईत जीत वाय?"

"तहुँ वो बड़े दई. य.. वोईच्च हर जीतिस हे.. मैं हार गय हों।" वो कहिस।


            छाया अपन घर चल तो दिस फेर वोकर जी हर तो एईच कोती लगे रहे । थोरकुन बेर मा कागज के दु ठन हवाई जहाज बनाके अगास घर

फेर आ धमकिस अऊ आ अगास हवाई जहाज उड़ियाबो कहत बोला फेर बला के बाहर ले आनिस । हवाई जहात उड़ाये के खेल एक पईत फेर भदक गय! सर्र.. !

सर्र... ! हवाई जहाज मन उड़त रहें। फेर छाया के जहाज अगास के जहाज ला उप्पर जावत रहे।

"मोला ये कचिया कागज के जिहाज ला देये हे अऊ अपन निकता कागज के ला ले लेये हावे तेकरे सेथी जिहाज हर उप्पर

जावत हे।'' 

''नहीं...रे... भई...! वोईच्च कागज के दुनो जिहाज मन बने हे... | ले येला तै ले..ले... । वोला मोला दे दे, छाया किहिस

अऊ अपन जिहाज ला अगास ला देके वोकर ला अपन ले लिस फेर अबके बार वो कचिया कागज के जिहाज हर छाया के हाथ मा उप्पर

जाये लागिस।


        अब्ब फेर बारी आ गय रहस अगास के आँखी मन के डबडबाये के। ये ला देख के छाया किहिस... तीन पईत ! अऊ अब वोकर जिहाहर अब उड़बे नई करत रहे।

छाया अब घर आ गईस अऊ मन मा संकलप लिस कि आज फेर अगास घर नई जाँवों न वोला अऊ रोवावों ।


            समे हर पाँख वाला होथे जरूर फेर दिखय नहीं... । देखते देखत

अगास अऊ छाया दूनों के दूनों सेकण्डरी-इस्कूल मा पहुँच गईन फेर खेला - कूदा कम नई होये रहे। बारहवीं किलास के पास- फेल सुनके आवत वोमन रद्दा के

बर रुख के तरी मा एक घरी सुरताये बर ठाढ़ हो गईन। दूनों के मन

हर कुलेल मारत रिहिस काबर कि वोमन दुनों के दुनों  पास हो गय रहिन।


        अचानक अगास अपन जघा ले उचकिस अऊ भूईयाँ कोती ओरमत एक ठन डार ला धर के साँय... साँय... झूले लागिस। वोला

देख के छाया कब मानने वाली रिहिस... | वोहू हर एक ठन आन डार ला धर के वोईच्च बुता मा मात गय । फेर वोकर पेंग हर तो

धरती ला लेके अगास ला छूवत रहय... । अगास वोला अईसन करत देख कछु अनहोनी गिरई... परई झन हो जाय कहके अपन हर रुक गय तव छाया भी रुक गईस। फेर अगास हर अपना कका के ये बलखरही बेटी ला बरोबर देखत रहय। अऊ वोकर आँखी मा रिस, हिजगा के भाव हर बरोबर दिखत रहय। छाया हर ये पईत फेर अगास ला सात परसेंट जादा पाये रहिस परीक्छा मा... ।


      अगास ये पईत रोईस तो नहीं फेर चुप्पे चाप धर आ गईस अपन बैसकल ला धर के... ।


        असाढ़ मा फेर इस्कुल कालेज खुले के दिन आईस तव अगास हर छाया बर हाथ हलावत कालेज चल दिसा अब छाया बर तो घर के छया हर रईबै करिस। अब वोला लागिस.... काबर पुरेंद्र महाराज हर वोकर नाँव छाया धरे हावे... । थोरकुन दिन बाद अगास हर छाया के घर आईस तव पता

चलिस कि वोहर एयर फोर्स बर चुन लिये गेय हे । जाती के बेरा अगास छाया करा फेर आईस... जावत हंव छाया... कहे बर।

जा अगास... तोर उड़े बर तो पूरा के पूरा अगास हे...उड़...। मैं तो छाया अँव... मोर जगहा तो घर के भीतर हे न..! एसो के चईत- वईसाख म मोर बिहाव होही घर के मन कह

रहिन... । छाया धीरे कहिस अगास के पाँव रुक गय येला सुनके।


जा... जा भई... जा! फेर मोर बिहाव मा जरुर आबे... । 

छाया आँखी ला पोंछत किहिस ।


*रामनाथ साहू*

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हमर भारतीय समाज एक बखत नोनी जात ल स्कूल नइ भेजत रहिस। कहय अउ सोचय कि नोनी पढ़ के करहिच का ? चुल्हा च तो फूॅंकही। फेर समे बदलत गिस, शिक्षा के जोत गाॅंव गाॅंव अंजोर करे लगिस। नोनी मन बर वरदान साबित होइस। फेर अंतस् ल ए अंजोर मांज नइ पाइस। खासकर गरीबहा परिवार बर ढाक के तीन पात बरोबर होगे। पेट देखय कि पढ़ई। पढ़ई के महत्त ले जादा लोक-लाज के संसो नोनी जात के पढ़ई बर बाधा बनथे। गरीबहा अउ सामान्य परिवार बर सबे के ॲंगरी उठे लगथे। जे मनखे ते गोठ होय लगथे। पढ़ाथे तब, नी पढ़ावय तब...। नोनी गुण म बने रही तब ले लोगन सहे नइ सकयॅं। समाज नोनी जात ल सादा ओनहा/कपड़ा मानथे। मनसा पाप के चलत झट दाग लग जथे। इही डर म नोनी बाबू म भेद सरी दिन बने रहिथे। ऊप्पर ले नोनी दूसर घर के धरोहर आय। जतका जल्दी अपन घर चल दयॅं, मुड़ के बोझा उतर जय, कहि बिहा रचा देथे। 

         आज समाज के सोच तेजी ले बदले हे। फेर कहूॅं ले बने नता आइस, नोनी के हाथ रंग दे जाथे। नोनी के सपना धरे रही जथे। गाॅंव देहात म अइसन सपना जादा टूटथे। नोनी कलेचुप अगास छुए के सपना ल अंतस भीतरी मार देथे, कुछे च नोनी मन अपन सपना ल बता पाथें अउ पूरा घलव कर लेथें। 

         'छाया अउ अगास' कहानी नोनी पिला के इही सपना टूटे अउ नोनी संग भेद भाव के कहानी आय। कहानी के भाषा म प्रवाह हे, शैली गजब हे। चरित्र के मुताबिक संवाद लिखाय हे। पात्र छाया अउ अगास के नाम उॅंकर चरित्र के अनुरूप हे। जेकर विमर्श पात्र मन के बीच संवाद म घलव दिखथे।

        कहानीकार नारी मन के पीरा ल अगास अउ छाया के मुॅंहाचाही के रूप म छाया के आड़ लेके कहे म सफल हें। अंतस् ल छेदत मार्मिक संवाद ल देखव-  

        "जा अगास..तोर उड़े बर तो पूरा अगास हे...उड़ ...। मैं तो छाया ॲंव...मोर जगहा तो घर के भीतरी हे न..!"

        कहानी के शीर्षक कहानी के सार्थकता ल समेटे हवय। नारी विमर्श के सुग्घर कहानी बर आद. रामनाथ साहू जी ल बधाई...जउन मन अपन लेखन कौशल ले सुग्घर कहानी गढ़ तथाकथित पुरुष प्रधान समाज म नारी संग होवत अनियाव ल उठाय हें। 


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह, पलारी जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग.

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