Friday 31 March 2023

वो काय होही*


      *वो काय होही*


येहा तब के बात ये जब मै हर कालेज मा रेहेंव। मोर छोटे भाई शैलेष हर घलो कालेज के पहिली साल मा रिहिस हे। ओखर कालेज मा वार्षिकोत्सव मनाय जात रिहिस। दुर्ग सुराना कालेज मा।वहू हर भाग ले रिहिस हे। शैलेष संझाकुन कार्यक्रम हे मोर, कहिके  गांव ले तीन किलोमीटर अपन कालेज निकल गे। घर मा माँ अउ बाबूजी नइ रिहिस। घर मा बाँच गेन मँय अउ मोर तीन झन छोटे भाई।मँय राध- गढ़  के भाई मन ला खवा -पिया के सुता देव। फेर मोर आँखी में नींद नहीं।मन में इही चलत रहे, 

 शैलेष जल्दी आ जतिस।रात के लगभग एक बज गे।भाई के कोई अता पता नइ।एक ठन डर अउ रहे मन में, की कहीं कालेज में लड़ई झगरा झन हो जाय। डर अउ तनाव में मोर नींद उड़ा गें।मँय महा डरपोंकनी,अँगना में निकले के हिम्मत नइ, खोर पार निकलना तो दूर के बात ये।आधा सोवत आधा जागत रात पहा गे।बेरा के पँगपँगावत मुहाटी में खडे़ होके, भाई के रद्दा देखत राहँव। मन मा एके बिचार चलत रहय कालेज मा पक्का लड़ाई झगरा होय होही। 

कार्यक्रम तो कब के खतम होगे होही।  फेर शैलेष कहाँ होही  भगवान। मन मा एकेविचार चलत रहय।बगल में चाचा ला घलो खबर कर देव। चाचा कथे थोरिक अउ देख लेथन तहाँ पता करहूँ। 

ये संस्मरण ला लिखत लिखत वो दिन के मोर स्थिति हर आँखी मा झूलत हे। थोरिक देर 

में का देखथो कि शैलेश आवत हे।साइकिल में। तीर में अइस त देखथो चेहरा उतरे हे। 

मोर पहली सवाल "कहाँ रेहे रात भर" मँय अंदाजा लगाय रेहेव। ये कहीं " दोस्त के यहाँ रूक गे रेहेंव" । फेर नही - - शैलेष ला बुखार रिहिस। वो अपन आप- बीती अउ रात - बीती सुनाइस। जेहर रहस्य ले भरे रिहिस। जेकर कल्पना मँय कइसे कर पातेव। आपमन ला विश्वास नइ होही। त सुनव - - - - शैलेश कार्यक्रम खतम होते साठ कालेज ले निकल गे।रात 11से 12 बजे के बीच। तब आदर्श नगर अउ बोरसी कालोनी के जघा पटपर भाँठा रिहिस ।स्ट्रीट लाइट सिर्फ कसारीडीह तक रिहिस। महराजा चौंक ले लेके पोटिया रोड तक घुप अधियार। तब गाँव घर में बिजली रिहिस। फेर पोटिया ले बोरसी तक स्ट्रीट लाइट नइ रिहिस अउ सड़क  भी कच्चा। शैलेष अपन दोस्त ला बोरसी गाँव छोड़ के वापस पोटिया सड़क मा आ गे। अगल बगल मा खेत अउ घुप्पअँधियार। ।वोहा का देखथे कि कोई रोशनी खेत कोती ले अरक्ट्टा मोर कोती आवत हे। वो का होही -  वोहा अपन जान बचाये बर -  साइकिल ला मोड़ के वापस जेती ले आय रिहिस वोती फेर भागिस ।वोकर बगल में वो रोशनी दउड़त रहे अउ सड़क में तेजी से साइकिल भगावत रहे भाई। जब वो कसारीडीह के आसपास पहुँचिस तब वो प्रकाश हर घलो नइ दिखिस। 


शैलैश सीधा मौसी- मौसा जो कसारीडीह मा रहे, उंकर इहाँ पहुँचिस । मारे डर के - - मौसी दरवाजा खोल- खोल मौसी। मौसी बताथे - - शैलेश के हालत खराब रिहिस  ओला पानी पियायेन। वो घटना ला सुन के हमरो नींद उडा़गे। मौसी बताय। 


आज भी ये प्रश्न मोर मन में दस्तक देथे। वो का होही?? अब तो मोर गाँव हर शहर बन गे हे। फेर वो समय तो  पटपर भाँठा अउ खेत खार के अलावा कुछु नइ रिहिस।  वो अँधियार में जे भाई के संगे संग दौड़त रहे वो का होही??? 


शशि साहू 🙏

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