Friday 31 March 2023

सुर-बईहा* *(छत्तीसगढ़ी कहानी)*

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                  *सुर-बईहा*


          *(छत्तीसगढ़ी कहानी)*


              हमन पाँच संगवारी गुरु के चरन मा बईठ के रमायन पोथी सीखे के उजोग करे रहेन । गुरु-सिस चाला हर हमर ये। येई हर हमर भारतीय संस्कृति आय। बिन गुरू गयान कहाँ... ! येकरे सेथी रमायन के मरम ला कुछु अरथ मा समझ के फेर कंठ साधना करके रमायन मंडली बनाय के हिच्छा हमन के मन मा रहिस । मानसाय के घर के पाछु कोती के खाली खोली मा अब अगर धूप कहरे बर लाग गय रहिस | सनातन महाराज ... जाँत-पाँत के

गोठ ला तियाग के येई कोती हमर पारा आके रमायन गान सिखोय के सुरु करे रहिन । मानसाय, बहादुल, झनक, केंगटा अऊ मैं,

अतका झन तो पक्का रहेन, एक दू झन अऊ आन संगवारी मन घलो आ जाँय अऊ चिमटा, खड़ताल हर मात जाय । अवईया जवईया मन

देख के मुचकाय घलो। वोमन के हाँसे मुचकाय मा गहरा अरथ हर छुपे रहे फेर हमन कुछु नई कहन काकरो से ।


             हमन के ये उजोग हर स्कूल कस पढ़ई रहिस । पहिली महराज हर हमन ला दोहा - चौपाई के सधारन अरथ फेर वोमन के असली मरम ला बूझाय के कोसिस करें तेकर पाछु सब झनजुर मिल के सुर ला उठावन। मैं पेटी मा अंगुरी नचाय के कोसिस करँव त केंकटा के बाँटा मा तबला - डुग्गी रहेय अऊ बाकी संगवारी मन आन अलंकार बाजा मन ला संभाले । अईसनहा बच्छर भर करे के बाद

गुरु महराज ला लागिस कि ये चिरईया मन अब थोर मोर उड़े के काबिल हो गय हें । एकरे बर एक दिन वो कहिन... दऊ हो अब येती

बर... तुहर अभ्यास अऊ विस्वास हर ही गुरु आय। पहिली रमायन के दोहा -चौपाई मन के अरथ मा बूड़ जावा फेर माता सरसती-भवानी

तुँहर कण्ठ मा खुद आ बिराजहीं फेर देखिहा तुँहर  कंठ ले उपजे नाद-बरम्ह हर कईसे सुनईया मन ला भाव - समुंदर मा बोर दिही ।


           येला सुनके हमर जीहर धक्क ले करिस । दुख ये बात के लिए,अब गुरु हर सिखोय बर बंद करते हे फेर खुसियाली ये बात के रहिस कि अब हमन अपन साज-सिंगार ला धर के नवधा.. साप्ताहिक

रमायन मा गाये बजाये जाय सकबो । गुरु महराज छेवर मा कहिन...

बेटा हो, गीता रमायन ला तो छूये कि हिच्छा तो करत हावा फेर... पढ़े बर रामायन पोथी अउ कीरा परे भीतर कोती... झन होवे...

बस्स येईच्च हर मोर आखिरी दिक्छा... मंतरा आय । 


           हमन सब के सब उन्कर चरन ला धर दारेन । गुरु तो हमन ला समारत भर रहिन ।


     *               *            *               *


            मैं तरिया मा नहावत पूरब के अगास मा रगबगात भगवान उदित नरायन ला ओंजरी ओंजरी पानी के अरध देवत रहँय कि वोतकीच बेरा कोन जानी कहाँ कोती ला गुरु महराज के बानी रमायन के चौपाई के रुप मा मोर भीतरी कान अऊ हिरदे मा गूँजे बर लागिस... पर हित सरिस धरम नहीं भाई... पर पीड़ा सम नहीं

अघमाई। एक पईत मोर नजर तो वो सुरुज नरायन से मिल गय अऊ मोला लागिस वोहू हर ये गोठ के हुँकारू देवत हें । मैं अपन आखा -बाखा देखें सबेच्च कोती एईच्च गोठ गूँजत हे कहू लागत रहे.... परहित

सरिस धरम नहीं भाई... | मैं पानी से बाहिर निकल आँय हाथ ला जोरे-जोरे...। 


          तीर के पथरा मा भकवा डोकरा अपन अंगोछा ले पीठ ला लगरे के कोसिस करत रहय फेर हाथ हर उहाँ तक नइ अमरात रहे । ये ला देखके मैं वोकर पीठ ला लगरे... लगरे करें । एक पईत तो वोहर मोर मुँहु ला देखिस बट्ट ले फेर हाँसत कहिस, जुग-जुग जी बेटा सील लोढ़ा मा पीसके खा.. । 

तोरे कस बबा.. मैं कहेंव अऊ वोला लगर घस्स के उप्पर आ गँय तरिया के पार मा। सैलिन बई हर बाँगा मा पानी बोहे रहिस अऊ धीरे रेंगत रहिस। मैं वोकर तीर मा जाके टप ले वोकर पनिहा ला मोर खाँद मा मढ़ा लेये... दे बई मोला कहत। बई मोर मुँह ला देखत रहि गय पाछु-पाछु रेंगत ।


            घर आके तेल फुल चुपर के मैं खोर कोती निकल आँय । आज मोर मन मा हिच्छा होवत रहिस के जब हमर सास्तर हर... वसुधैवव कुटुम्बकम कहत हे फेर तब  तो ये सब मनखे अपनेच आँय। एकर सेती

आज मैं गाँव भर के सब्बो घर ला जाँहाँ वोमन दुख -दरद हाल- चाल पूछहाँ। मैं अईसन करें घलव... । जे डेहरी मा कभ्भु नई जाना हो

उहाँ तक भी गँय अऊ राम जोहार करके आयें। सबके सब मोला अचरज मा देंखे... का होगय एला कहिके ।


           बेरा चढ़त ले मैं मोतीलाल के डेहरी ले आँवत रहें कि पाछु ले वोकर गोठ मोर कान मा पर गईस। “ये छोकरा हर सुरबईहा गय हे देख न गाँव भर ला घरो-घर किंजरत हें।'' 


        घर आयें अऊ अपन गुसाईन ला सब बात बताये लागें त वो कहिस... ये सब ठीक हे... | रमासन पोथी सब ठीक हे... फेर..?


            वो चुप हो गय रहिस।



*रामनाथ साहू*



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