Friday 31 March 2023

अलकरहा अँजोर

 अलकरहा अँजोर 


घटना आज ले बीस बछर पहिली के आय चरबज्जी पहाती बेरा हमर शरद भइया दरवाजा ला खटखटाथे आँखी रमजत सँकरी खोलेंव तौ भइया हर दुखद समाचार सुनाथे कि सुधा भउजी के महतारी हर परलोक चल दिस अउ वोकर संग रहे बर अउ संभाले बर तोला संग म जाय बर लागही, मैं उँकर बात कभू नइ काटेंव हौ भइया कहिके झटपट तियार होगेंव भउजी के अउ दू झन लराजरा नत्ता सैना घलोक रहिन संग म चिर्रबोर रोवत गावत भउजी के आँसू ला फेर पोंछौं फेर जोर जोर से रोवै। अपन महतारी बाप के एकौंझी बेटी वोकर दुख हर पहाड़ असन रहिस हमन राजिम ले डेढ़ दू घंटा म गंधरी पँहुचगेन । उहाँ जाय के बाद भइया अउ भतीजा मन काठी माटी के तियारी म लगगे अउ भउजी के तो रोवई के मारे सुध बुध नइ रहिस। उँकर गाँव के दगदेवा हर निच्चट लकठा रहिस अउ जब मुखाग्नि होइस तहाँ ले घर तक मास जरे के गंध आय लगिस। पता नहीं का प्रेरणा होइस मोला वो जगह जाय के मन होगे अउ मैं रेगें धरेंव सौ फलांग म सरगी रहिस अउ भरभर भरभर चिता जलत रहिस जइसे ही आगी ला लपट झपट के बरत देखेंव उही पाँव लहुटगेंव । पूरा दिन बीतगे रहै बेरा उतरत रहै अउ सब झन भूख म कलबलागे रहैं तहाँ सब जलपान करेन अउ उहाँ साँझ के घर आय बर निकलेन ।  मर्रा म एकझन सगा नोनी ला छोड़ने चहा पानी पियेन अउ नौ बजे रतिहा राजिम बर निकलगेन

कोनजनी कोन मुहुर्त म निकले रहेन के भुलनजड़ी खुँद डरे रहेन वो गाड़ी चलैया रद्दा भुलागे गंधरी ले अंडा फुंडा अउ का का गाँव रद्दा म परिस हमर गाड़ी म पूरा टंकी भर पेट्रोल भराय रहै दू झन अउ हुसियार जानकार मनखे 

बइठे रहैं ककरो बुद्धि काम नइ करत रहै धाँय दस किलोमीटर ऐती गाड़ी लेगै धाँय बीस किलोमीटर वोती लेगै। सब गाँव गाँव म होली तिहार के पहिली के ढोल नगाड़ा फागगीत चलत रहै । पाटन जाय के रद्दा पूछन वोमन बताय फेर हमन कहूँ नहीं पहुँचत रहन फुंडा गाँव म तो सड़क म बड़का ठुड़गा रुख ला लामीलामा  होलेछेंकैंया मन मड़ा दे रहैं वोला टारना ककरो बस के बूता नइ रहिस असली कहिनी इही मेर ले शूरू होथे तौ डाक्टर कका हर कहिथे चल अरकट्टा गाड़ा रावन म गाड़ी ला लेग मैं रद्दा बताहूँ अब ड्राइवर मसक दिस उही कोती  हदकहिदिक के मारे हम सबके पोंटा छरियावत हे तइसे कस लागत रहै अउ एकठन ऊँच मेंड़ म जाके गाड़ी धपोर दिस तहाँ ले डाक्टर कका मैं अउ मोर बहिनदमांद उतरेन तहाँ ले खार म रंगबिरंगी के जीव जिनावर मन के आवाज गूँजत रहै अउ अब्बड़ डर लागत रहै गाड़ी ला ढ़केलिन तहाँ गाड़ी गरगर ले नाहकगे कका अउ बहिनदमांद बड़े बड़े डंका मारत रेंग दिन मैं पछुवागे रहौं खार म अतका ऊँच अतका बड़का अँजोर जेकर ओर छोर नइ दिखत रहै तेन हर मैं रेंगौं त रेंगै अउ रूकौं तौ रूक जाय मैं जोर जोर से चिल्लावौं कका रूकौ कहिके फेर मोर मुँह ले निकले आवाज उँकर तक नइ जाय दस फलांग दुरिहा कतका होथे फेर मोर चिचियाना बिरथा होगे तहाँ ले भगवत प्रेरणा ले गायत्री मंत्र के जाप करे बर धर लेंव अउ पल्लाछाँड़ के भागेंव वहू मोर संगेसंग दँउड़त रहै मोर चप्पल फेंकागे चुनरी फेंकाके अउ मैं सड़क म पहुँचगेंव तब मोर जीव म शिव आइस। डेढ़ घंटा के रद्दा ला हमन पूरा रात भर भटके के बाद पहाती पाँच बजे असन राजिम अभरेन। 

कोनो ला बतावौं तौ कहैं नइ तोर मन के भरम आय नइ तोर डर आय अइसे आय वइसे आय फेर कोनो पतियाय नहीं फेर वो घटना हर शशि बहिनी के संस्मरण ले फेर मोला बीस बछर पाछू लेगगे। 

वो अलकरहा अँजोर का रहिस ये वैज्ञानिक शोध के विषय हे अउ येला जब तक मनखे भोगाही नहीं तब तक पतियाय नहीं। महूँ अदृश्य शक्ति ऊपर विश्वास कभू नइ करत रहेंव काबर कि थोरिक तार्किक सुभाव के हौं फेर वो अलकरहा अँजोर आज तक मोर  

समझ म नइ आइस। 


शोभामोहन श्रीवास्तव

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