Friday 17 March 2023

व्यंग्य - हमर गाँव वार्ड बनगे

 व्यंग्य - हमर गाँव वार्ड बनगे

एटमबम तो भड़ाभड़ फूटबे करिस। संगे-संग लरी-लरी चुटचुटिया फटाका मन तको पड़पड़ावत फुटिस। सुनके बिसन्तीन बक खा गे। मुँह ल पोर्टेबल टीबी के साइज म फार दिस। बाजू म बइठे उदे ल कोहनी म हुदरत पूछथे - ‘कस हो ! नोनी पीला के अवतरे म तीन ठन फटाका फोरे के रिवाज हे। बाबू अवतरे म पाँच ठन फोरथे। फेर यहा काय पड़पड़ऊवन फोरे जात हे ? काकर घर अतेक कोरी-खइरखा लइका अवतर गे ?

 ‘हम दू हमर दू’ हँ जाँगर थके, जियान परे म ‘हम दू हमर एक’ होइस। एक के जगा अब कतको झिन ‘हमर एको नहीं’ के रट्टा मारे लग गे हे। अउ ये कोन हरे, ओकर घर भरका-भिंभोरा फूटत हे। बरदी-पाहट रेंगाए के मन हे कि क्रिकेट टीम बनाए के, ते उही जानय।’ 

उदे हाँसत कहिथे - ‘येहँ नेता अवतरे के फटाका ये।’

 ‘नेता अवतरे के ?’- बिसन्तीन चेंधिस। 

उदे हँ फरिहाके बताथे - ‘हमर इहाँ नेता आवत हे, तेकर स्वागत म ये फटाका फूटत हे, जाने।’ 

‘गाँव देहात म नेता मन के का काम ? इन्कर बूता न कुकुर के। भइगे लूट-लूट एति किंदर लूट-लूट ओति।’ 

‘हमर गाँव वार्ड बन गे पगली !’ 

‘अई ! त वार्ड तो सरी दिन रिहिसे। तहूँ एक पंचइत म वार्ड पंच रहे हस। ठऊँका काम बूता के बेरा म अढ़ोरे-बिल्होरे बर सब आ जवै। उही पइत ले तैं कोढ़िया होगे हवस। घर के काम-बूता म थोरको ध्यान नइ देवस। गोंह-गों ले खावत हस अउ गोल्लर कस किंजरत भर रहिथस। अउ का के नवा वार्ड ?’ 

‘वो वार्ड हँ पंचइती राज के रिहिसे। अब ये गाँव हँ पंचइत नइ रहि गे।’

‘पंचइती नइ रहिगे तभो ले अतेक पंचइती कहाँ ले होवत हे ? इहाँ के मनखेमन ल कम हे कहिथस ?’

 ‘येहँ सहर के निगम म संघरगे। एकरे उद्घाटन बर नेता मन आवत हे।’ 

‘अई ! त निगमे म सामिल होय ले हमर गाँव के का मान-मरजाद बाढ़ गे ? दुनिया भर के पंचइत तो सबो जगा हे। कुछु फायदा हे ते बता ?’ 

‘तौ नहीं त का ? अब जेन सुविधा सहर वाले मन ल मिलत रिहिसे, तेन सुविधा हमू मन ल मिलही। जगा-जगा नल लगही। गाँव के निकलती म सुग्घर, स्वच्छ अउ चमकदार महमहावत सौचालय घलो बनही। दूरिहा जाए बर नइ लगय। रात बिकाल पेट-मुड़ सब बर सुविधा हो जही। गली-गली म टूबलाइट बगबगाही...... भइगे उदे अतके भर कहि पाए रिहिसे कि चुमुक ले लाइन गोल हो गे। 

बिसन्तीन हाथ ल झर्रावत कहिस - ‘ये दे ! बर तो गे बंगबंग ले तोर गली-गली के टूबलाइट हँ।’ 

उदे चऊज-ठट्ठा करत कहिस - ‘तोर चंदा कस चुकचुक ले चेहरा के आगू म टूबलाइट कोन खेत के मुरई हे बिसन्तीन ?’ 

बिसन्तीन बगियाके आगी हो गे- ‘ये कीरहा-रोगहामन ल ठउँका दीया-चिमनी के बेरा हँ दिखथे लाइन गोल करे बर। वोमन अपन घर खात-पीयत नइ होही का ?’ अइसे कहिते-काहत पटपटौवन दूनो हाथ के अंगरी ल फोरे लगिस। 

उदे सोचिस - ‘लड़े ले टरे बने हे ददा ! नहिते ये चंडी हँ मोरे बंडी उतारके रख दिही।’  

महिना भर के बूलके ले चुटचुटिया के लरी फेर फूटत सुनके बिसन्तीन फेर उदे के माथा ल चाँटे लगिस - ‘ये हँ काए ?’

 उदे जना-मना चोरी करत पकड़ाए चोर कस मुड़ी ल गड़ियाए कहिस - ‘गाँव के निकलती म सुलभ बने हे, ओकर उद्घाटन हवय।’ 

‘जस-जस मँहगई बाढ़त हे तस-तस नेता मन के भाव अतेक गिरत हे जी ?’ 

‘तैं बने फोरियाके गोठियाए-बताए कर बिसन्तीन। तोर तिरपट-तिरछट गोठ हँ मोर भेजा ले पाँच हाथ ऊपरे-ऊपर उड़ा जथे। थोरको समझ नइ आवय।’ - अब उदे कंझटागे, तरूवा ल धरत बुड़बुड़ाइस।

मरद औरत ल भले झन संभाल सकय, एक मरद ल कइसे साजना-संभालना हे, औरत मन बर लइका खेलई के बरोबर होथे। 

बिसन्तीन सट्टे सपाट जुवाब दिस- ‘मैं कहेवँ बाबू के ददा ! नेतामन के अउ कोनो काम बूता नइ रहिगे का ? अब उन टट्टी खोली के तको उद्घाटन करे बर दऊड़े परत हे ?’

 बिहान भर मुँधियार कन उदे हँफरत आके गोठियाथे - ‘यहा काए ददा ! भारी मच्छर हो गे साले हँ ! मोर जम्मो पछीत भर दोरदोरा उपज गे वो।’

 जिहाँ चिटको पोंडा पाथे बिसन्तीन टाँग घुसेरे बर थोरको पाछु नइ राहय, कहिस- ‘नाक ल थोरिक अउ ऊँच करके नाच न, सुलभ बनैया हे कहिके। चंदोर बनाए हे। सुलभ बनाए हे। उहाँ पानी के बेवस्था न काँही। उप्पर ले दू रूपिया देबे त पेट ल खाली कर नइतो परे रहा बसियावत-बस्सावत।’

उदे समझाथे - ‘बिकास हँ हलु-हलु होथे रे जकली ! कोनो मिल नोहय जेमा एक डाहर धान ल ओइर अउ दूसर डाहर चाँऊर उछरे लगही।’

‘ह हो...... बने बात ल गोठियावत हस। गाँव के जम्मो खेत-खार अउ परियामन म कालोनी बन-तन गे। गाँव वालेमन निस्तारी अउ चरागन बर ललावत-चुचुवावत हवय। गाँव के गाय-गरूमन सड़क म किंदरत हे त बेंवारस पसु हरे कहिके काँजी हौस म ओइलावत हे। इही विकास ये ?’ 

‘मरत ल ठोसरा ठसाम, पोठलगहा बर काजू-बदाम !’

 बिहान भर दू झिन मनखे आइन अउ घर के अँगना ल भकाभक कोड़े लगिन। बिसन्तीन पूछथे - ‘यहा काए करथौ तुमन गा ?’ 

‘हमन नल लगावत हन बाई।’ 

जिहाँ लाभ के पानी पझरथे उहाँ बानी म लगाम देके ही भल के बँधानी ल भरे जाथे। नल के नाँव सुनके बिसन्तीन के मुँह बँधा-सिला गे। सोचिस - ‘चल रोगहा ल, दस कोस पानी बर रेंगे ल तो नइ परही अब।’ 

संझा काहत बिहिनिया हो गे। बिसन्तीन कनिहा ल धरे अगोरत खड़े हे। बाजू म जम्मो बरतन पानी के धार ल झोंके बर चातक चिरई कस मुँह ल फारे देखत हे। घंटो पहा गे, फेर नल म पानी नइ आइस। 

काबर आही ? वो तो किरिया खाए हे। पानी तो मिल अउ मालिक मन के ये। मरहा -खुरहा बर थोरे हरे। 

लइकामन मुँह म पानी भरके फोहारा-फोहारा खेलथे तइसे नल ल मुंधियार कन फर्र -फर्र करत देखके बिसन्तीन पूछथे - ‘कस हो बाबू के ददा ! अइसने विकास होथे का ?’ उदे के घलो मुँह सिला गे। का बोलय बपुरा हँ ? 

एक दिन अइसने बिसन्तीन हँ गली-दुवार ल बहार-बटोरके बने सुग्घर लीप डारे रहय। का देखथे ? डेरावाली मुँहरन दू-तीन झिन माइलोगनमन मुड़ भर लउठी म बाहरी बाँधे। कनिहा म खरतरिहा कमइया कस पटका बाँधे। बाहिर चौरा म माखुर गठत गपियात बइठे हे। पाउच खावत पच-पच लिपान म थूँकत हे। जम्मो कचरा अउ नाली के लद्दी-चिखला ल निकालके ओकर लीपे-बाहरे दुवार म सकेल दे हवय। बिसन्तीन के मति छरिया गे। 

बमकके कहिस - ‘तुमन का करथौ या ? जम्मो कचरा ल इही मेरन सकेल दे हवव। पाउच खा-खाके किचकिच ले थूँकत हौ अउ सफई करत हन कहिके सफई मारत हौ। माछी भनभनावत हे। फेंकौ येला। 

बाइमन कहिथे - ‘हमला तैं झन कह बाई ! जे कहना हे मुन्सीपाल्टी म जाके सिकायत कर। हमर बेरा होगे हे। हमन जावत हन’ - कहत उठिन अउ अँटियावत रेंग दिन। 

फेर एक दिन मुन्सीपाल्टी के मनखे आइन। घर के नाप-जोख कर लिन। लिख -पढ़के टेक्स के रसीद थमा दिन। घर के एक कोती दीवाल ल नवा-नवा देखके कहे लगिन - ‘ये घर ल कब बनवाए हौ ? जब बनवाए हौ त मुन्सीपाल्टी के परमिसन कइसे अउ काबर नइ ले हौ ? ओदारौ ये दीवाल ल।’ 

अतका ल सुन के बिसन्तीन जंगियागे। कहिस - ‘वाह गा चतूरा ! हमरे जगा, हमरे घर अउ तोर ले परमिसन लेबो। चल हट ये मेर ले।’

 मुन्सीपाल्टी वालेमन बिसन्तीन के काली रूप ल देखके उठिन अउ कुला झर्रावत रेंगते बनिन। 

अइसने एक दिन नाली अउ सफई टेक्स वाले मन आइन। दू दिन नइ बुलके पाइस। नल के बिल आ गे। बिसन्तीन के जी टेक्से- टेक्स म कऊवा गे। आखिर म एक दिन देखे बर मिलिस कि गाँव के जम्मो खेत-खार म मनमाड़े दर्रा-भरका फट गे हे। वो दर्रा मन ले मकान उपजे लगे हे। 

जगा-जगा गलीमन म दलालमन मड़ियावत-बइठत रिगबिग-सिगबिग दऊड़े लगे हे। 

गाँव के नाट चउँक म दारू भट्ठी खुल गे हे। अब लोगनमन एती भीनसरहा, ओती मुंधियार ले उंहेच् के भजन-कीर्तन म लगे रहिथे। 

गाँव के मंदिर-देवालामन के दीवाला निकल गे हे। चौपाल के गाल हँ चेपटी के आए ले चेपट के खोखस गे हे। कमइया जवानमन तको कोढ़िया होगे हवय। विकास अतेक तेज गति ले आइस कि लइकामन के सपाट चेहरा म जवानी ले पहिली बुढ़ापा पाँव मड़ाए लगे हे। 

लोगनमन जब भट्ठी के विरोध करिन, त पुलुसवालेमन विरोध करइयामन ल गजब सोंटयाइन। भट्ठी वालेमन अपन घर के छट्ठी कस पौवा बाँट-बाँटके आधा गाँव ल अपने कोती उन्डा लिन। पौवा-पौवा म लिखे हे पीनेवालन के नाँव। विरोध के कनिहा अइसने टूट गै।

 गाँव हँ अभीन उखरू होय बर नइ सीखे हे। गँवइहामन के दुनिया भर के टेक्स अउ बिजली के बिल म कनिहा-कुबर टूटे लग गे हे। मया-पिरीत के बोल राम-रमौवा हँ सुवारथ के बेंड़ी म बँधाय-छँदाय बोकबाय देखत भर हे। 

मनखे के थोथना म चाइना कंपनी के ‘चुकचुक-ले’ मुस्कुराहट हँ ‘चमचम-ले’ चिपक गे हे। असल मुस्कान नदारद होगे हवय। मया-पिरीत म भेंट होवइया फोकट के चना-चबेना, भाजी-पाला, धुर्रा अउ पानी असन जिनिस हँ बेचाय लग गे हे। 

गाँव के पइसा म सहर चकाचक हीरवइन कस संभर-ओढ़के मटमटाए लगे हे। कालोनीमन बिजली म चकाचक हे। गाँव अंधियार म सीतका कुरिया म बाघ गुर्राए कस हाल अब ले साँय-साँय करत हे। सड़कमन म आठो काल बारा महीना फागुन कस गुलाल धुर्रा उड़ावत हे। बड़े-बड़े कंपनी मन चोरी के बिजली म धकाधाक चलत हे। तिहाँ नोटिस तको नइ भेजावत हे। अउ गाँव म बिल नइ पटावत हौ कहिके कनेक्सन ल कचाकच काटे जात हे। 

गाँव वालेमन भइगे बोमियावत भर हे - ‘हमर गाँव वार्ड बनगे ! हमर गाँव वार्ड बनगे !!’


धर्मेन्द्र निर्मल 

9406096346

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