Friday 17 March 2023

व्यंग्य - चमाकोबदर

 व्यंग्य - चमाकोबदर 

एक रात पीपर के डारा म चमगेदरी सीर्सासन करत लटके रहय। एक झिन मंदहामुँहा घुघुवा लड़भड़ावत आइस अऊ ओकरे ऊपर ‘जझरंग-ले’ झपा गे। कामा अपट गेवँ कहिके सोचत-गुनत मुड़-धुनत घुघुवा उठिस। अकचकाए आँही -बाँही ल देखिस। का देखथे, चमगेदरी सीर्सासन म ओरमे हे। घुघुवा चकरित खा गे। आँखी ल छटकार दिस, मुँह ल फार दिस- 

‘अरे बाप रे ! रामदेव बबा ले बड़े आसन।’ 

घुघुवा के झपाए ले चमगेदरी झकनका गे। ओकर धियान भंग हो गे। वोहँ मनेमन अब्बड़ खुस हो गिस। सोचिस- ‘आखिर कोनो अनदेखना इरखाहा मन मोर असन विस्वामित्र के तपस्या भंग करे बर मेनका ल भेजी दिस।’ 

आँखी ल जगजग ले उघारके देखिस त का देखथे ? घुघुवा आँखी ल नटेरे वोला बोटोर-बोटोर देखत रहय। चमगेदरी के बहुरूपिया आसाराम हँ उदासाबाई म तब्दील हो गे। 

खिसियाइस - ‘अरे ! संस्कारहीन रहिस के संस्कारी औलाद। खुदे आके झपावत हस अऊ उल्टा मोहि ल आँखी देखाथस रे।’ 

घुघुवा तुरंत चमगेदरी के गोड़ म डंडासरन घोलन्ड गे - ‘वइसन बात नइ हे प्रभु !’

चमगेदरी कहिस - ‘अच्छा बेटा ! नाँव के सिक्षित साक्षर मनखे ले प्रसिक्षित होके आए हस। जिहाँ फँसे उहाँ घोलण्ड के नाक घिंसे। हँय .......!’

घुघुवा दूनो हाथ ल जोड़के एक गोड़ म खड़ा हो गे। कहिस - ‘साहेब मैं योग बबा ल घला अइसन करतब करत नइ देखे हौं। वोहँ तो भुइयाँ म सीर्सासन करथे। तुमन तो अधर म कर डारथौ। तुँहर किरपा बरसतिस ते महूँ सीख लेतेवँ कहिथवँ।’ 

पतरी देखै चाँटै कुकुर 

गठरी देखै काहै हुजूर

का फरक मनखे कुकुर

धुर्र धुर्र धुर्र धुर्र धुर्र.......   

चमगेदरी मुड़ ल हलावत कहिथे - ‘हूँ......। ओ चमाकोबदर मनखे तोला कोलिहा (सियार) के हुसियारी घलो सिखो डारे हे। घुघुवा के कान डम्फर के पीछौत कस टेंड़ा गे। बक खाके मुँह ल फार दिस। अकर-जकर ल बकर-बकर देखत पूछिस : ‘चमाकोबदर ! ये चमाकोबदर का होथे भई ?’ 

ओतका म चमगेदरी भड़क गे। कड़किस - ‘स्साले ! तोर कनपटी म अइसे ‘झम्म-ले’ तानपुरा बजाहूँ के ‘बंग-ले’ आँखी बर जही। आगू कहिस - ‘देखा देस न अपन औकात ल। आ गेस नहीं मनखे के कुत्तईपना म। पहिली प्रभु कहेस। फेर गुरू म उतरेस। अब भाई म गिर गेस।’

‘अगास ले गिरे खजूर म अटके।’

‘अंगरी धरत-धरत घेंच ल धरबे का रे ! मैं सहिस्नु हौं येकर मतलब तैं कुछ भी बोले-बके जाबे।’ 

घुघुवा सुकुरदुम हो गे। मारे डरके काँपे लगिस लदलद-लदलद। हाथ जोरके रोनहू मुँह बनावत कहिस - ‘छिमा करो प्रभु ! मोर ले भारी-भरकम भूल हो गे।’ 

‘अरे उल्लू के पट्ठा ! टेटका बरोबर भक्कम रंग घला बदलथस। ये मंगरा के आँसू ल बंद कर अऊ सोझ-बाय बता, तोला योग सीखना हे के नहीं ?’ 

घुघुवा कहिस - ‘सीखना हे प्रभु ! सीखना हे।’ 

‘हाँ, त सुन ! बिना फीस के फुस-फास काँही नइ होवय। गुरूजी किताब नइ उघारय। आफिस के बाबू फाईल नइ हलावय-डोलावय। डाक्टरमन नाड़ी छूवय, न वकील मुँह उलावय-खोलय। त तैं कइसे समझ लेस कि अपन ग्यान के पिटारा ल मैं सुक्खा, फोकट अउ बिगारी म खोल देहूँ ?’ 

घुघुवा बोलिस - ‘आपे मन कुछु रद्दा बतावव। मैं अबड़े अबूझ हौं, किरपा करके आपे समझावव गुरूदेव !’ 

‘समझाहूँ। सब के मतलब बताहूँ। दम धर। पहिली तैं ये बता, जेने म खाना उही ल भोंगरा करना सीखे हस।’ 

घुघुवा मुड़ ल डोलाइस - ‘नहीं।’

‘त काए सीखे हस रे भोकवा ?’ फेर कहिथे -‘अच्छा ! समझ गेवँ। त वो बइमान मनखे तोला फरजी डिगरी भर ल धरा दिस। तैं अइसे कर, तुरते जा। बिसनू-लक्ष्मी अभी छीरसागर म मीटिंग-सीटिंग म व्यस्त होही। धीरे से एकात बंडल गाँधी छप्पा उठाके ले लान। जब फीस पटही तभे तोर पढ़ई सुरू होही। नइते ‘शिक्षा के अधिकार’ के तहत तोर भरती तो कर लेहूँ, फेर पढ़ई के बेवस्था उही गरीबी रेखा किसम ले होही।’

चोरी के नाम सुनके घुघुवा के घिग्घी बँधा गे। डर के मारे काँपत कहिस : ‘अऊ कहूँ जान परही त ? घू घू घू ......।’

‘अरे ! अभीन ले हवा-पानी बंद हो गे।’ चमगेदरी आँखीं ल चमकावत कहिस - ‘बेटा ! गीदड़ धमकी दे भर ल जानथस। दम-वम कुछु नइ हे। घू घू घू घू कहिके लोगन ल डरवाए भर ल आथे। कतका पढ़े हस रे ?’

घुघुवा छाती ल तनियावत कहिथे - ‘बी. काम. पास हौं।’ 

‘बी.काम. रहस कि एम.काम. रहस कुल मिलाके पढ़े-लिखे बेकाम बइला हस। लछमी मेहरबान तिहाँ घुघुवा प्रधान। ले चल जा, बाते करत-कढ़ारत खड़े झन रहा।’

घुघुवा रहिस तेन दऊड़के गिस। पाँच बंडल गाँधी छप्पा धरके हँफरत आ गे। 

चमगेदरी कहिस - ‘साब्बास बेटा ! अब ये बता। बिहनिया दाँत-मुँह म झाड़ू -पोछा करथस कि नहीं ?’ 

घुघुवा गुटका म रचे-पींवराए अपन बत्तीसी ल खबखब ले उघार दिस - ‘हौ’ अउ मोबाइल ल देखावत कहिथे - येदे ब्रस करत सेल्फी घलो ले हौं।’

‘अब भूलके मत करबे।’ 

घुघुवा चेंधिस - ‘काबर ?’ 

चमगेदरी कहिस - ‘ले पहिली वो चमाकोबदर मनखे के गुन ल सुन-सीख।’ 

घुघुवा के समझ म मनखे तो आ गे। फेर चमाकोबदर ल सुनके जिग्यासाबस कान ल फेर टेंड़ दिस - ‘चमाकोबदर !’ 

अन्तर्यामी चमगेदरी घुघुवा के अंतस ल पढ़ डारिस - ‘स्साले ! बी. काम. पास हस फेर गदहा ले इंच भर कम नइ हस। उहीच्-उही बात ल घेरी-घँव पूछथस। काए पढ़े-लिखे हस रे !’ 

‘भेंड़िया धसान कस नौकरी के चक्कर म जिहाँ पाथस उँहे फारम भर भरत-भटकत हस।’ घुघुवा ल बइठे के इसारा करत आगू कहिस - ‘तोर मन के मन्सूबा काबर रहय ? तोला सबले पहिली मनखे के औकात ले साक्षात्कार करा देथौं, तेकर पीछू आगू-पाछू ल पढ़ाहौं।’

घुघुवा पालथी मारके बइठत कहिस - ‘मनखे जे होथे न वोहँ सबसे उच्च कोटि के नीच प्रानी होथे। वोकर हाल ’‘दिखत के साम सुंदर पादे म ढमक्का’’ ले कम नइ होवय।’ 

‘मीठ-मीठ खाथे भर। मीठ बोली बोल नइ सकय। खाए बर तो पिस्ता, बदाम, काजू, किसमिस खाथे फेर जब गोठियाथे गुहइन-गुहइन । उप्पर ले खुस्बूदार सौचालय अऊ चमकदार सफई के गोठ करथे।’ 

‘एक से एक पेस्ट करथे तभो मुँह बस्सावत रहिथे। क्रीम, पावडर, सेंट चुपरथे -पोतथे। थोथना भर चमकथे। मन मलीन हे। मन ले गंदगी जाबे नइ करय - 

मीन सदा जल म रहय, कतको धो बस्साय। 

कतको धन-दोगानी ल दारू म बोहवा देथे। पियासे ल दू बूँद पानी नइ पीयाए सकय। कतको पइसा ल गुटका-माखुर खाके थूँक देथे। भूखे ल भोजन कराए बर जियान परथे।’ 

पखरा के मंदिर म लाखो दान करथे फेर गरीब के हाल-चाल पूछे बर छाती धसके लगथे।

कुकुर के हागे लीपे के न थोपे के तेन ल इन दूध बिस्कुट खवाथे। संग म सुताथे। चाँटथे-चँटवाथे, चुमथे-पुचकारथे। दूध-घी के देवइया गाय बर पसिया नइ निकलय।

उल-जलुल कुछ भी बोलत-बकत रहिथे। अनाप-सनाप बयानबाजी करत रहिथे। छींही-छींही बात बर लड़ई। तहीं बता अइसन चटक-मटक चेहरे भर के का मतलब ? मुँहे भर के धोए ले का मतलब ? ओकर ले ब्रसे मत कर तेने बने हे। 

मोर बात मान, तहूँ मोरे कस हो जा। जेने मुँह म खाथस उही मुँह ले हग। मन कइसनो बिरबिट करिया रहय, तन उज्जर-ओग्गर होना, झक्क दिखना अउ फक्क रहना चाही। ये स्साले मनखे जात हँ गदहा, कुकुर, कोलिहा, टेटका, मंगरा, बेंदरा, सुरा सबके मिलवट बेंवारस औलाद हरे। इन्कर बर दुनिया के जम्मो गारी कम हे। सब बेकार हे। ऊँट के मुँह बर जीरा बरोबर हे। 

सस्ता रोवय घेरी-बेरी, महँगा झाड़य हमेरी।

मैं सोचेवँ, सोनार के ठुक-ठुक लोहार के ‘भकरस-ले’ कस एके ठन जोरदरहा गारी होना चाही।

ओकरे सेती मैं हँ दुनिया भर के सब्बो गारी ल सकेलेवँ। पहिली सबो ल अलग -अलग चिखेवँ-चाँटेवँ। चिचोरेवँ-चाबेवँ। सुवाद ल परखेवँ। अपन तन-मन म उन्कर असर देखेवँ। तेकर पाछू सब्बो ल मिलाके पीसेवँ-फेंटेवँ । सेव-सेवके राखेवँ। मति ल भयंकर मताएवँ।

फेर चिखेवँ-चाँटेवँ। चिचोरेवँ-चाबेवँ। अपन प्राइभेट कंपनी म छै महिना ले सोध करेवँ। तब जाके सातवा महिना म नवा गारी के निर्मान करेवँ। जेन हँ सिरिफ अऊ सिरिफ मनखेमन बर एकदम सर्वसुलभ, बहुपयोगी, सबले सस्ता, सुग्घर अउ टिकाउ हवय - 

ओ गारी हे - ‘चमाकोबदर !’ 


धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346

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