Friday 31 March 2023

संस्मरण साध अधूरा रहिगे

 संस्मरण 

साध अधूरा रहिगे


सन् दू हजार आठ म मैं स्नातकोत्तर अंतिम के परीक्षा रविशंकर विश्वविद्यालय ले देवत रहेंव तब पूरा समय सारणी बना के रखे रहेंव अउ उही हिसाब ले तियारी चलत रहिस दू पेपर होगे रहिस मोर छोटे भाई के उही घरी बर - बिहाव बर छोकरी देखे के तियारी घलोक जोर सोर ले चलत रहिस । शनिच्चर के दिन बिहनिया सात बजे ले मोर बड़ा के बेटा अउ मोर भाई दूनो झन दुर्ग गइन अपन कुछ आने बूताकाम करे के बाद छोकरी देखे बर जाबो कहे रहिन। 


वोती ले दस बजे फोन आथे कि उँकर भयंकर दुर्घटना होगे हे अउ मोर भाई के गोड़ कई कुटका म टूटगे हे कहिके, घर में सियान नइ रहै डोकरीदाई भर रहै अब सबो भार मोर अउ मोर छोटे बहिनी ऊपर आगे रहिस सुध-बुध हरागे अउ तुरते दुर्ग गेन भाई के ईलाज कराके रातोरात घर लानेन अर्थविज्ञान के पेपर छूटगे तेकर मोला होश नहीं रहिस अउ सोमवार के पेपर हे कहिके  परीक्षा देये बर रविशंकर विश्वविद्यालय पहुँचेंव अउ जाके परीक्षा कमरा म अपन ठउर ला खोजत रहेंव तौं परीक्षक महोदय हर पूछथे तोर आज का के पेपर हे? 

मैं कहेंव अर्थ विज्ञान। 

वो कहिथे कोन से साल? 

मैं कहेंव स्नातकोत्तर अंतिम। 

परीक्षक कहिस आज तो इहाँ भूगोल पूर्व के परीक्षा चलत हे कार्यालय में जाके पता कर ले। मोला अब कुछ समझ में नइ आवत रहिस कान साँय साँय करत रहै अउ गोड़ लदलद लदलद काँपता रहै। कार्यालय में जाके पता लगायेंव मोर स्थिति ला देख के मैड़म अउ सर मन मोला अब्बड़ समझाइन अउ बताइन कि शनिवार के तोर पेपर रहिस हे। आँखी अंधियार परगे पानी लान के पियाइन अउ समझावत कहिन एक पेपर छूटे हे ना कुछु नइ होय अगला पेपर के बने तियारी करबे कहिके मोला कहिन मैं एकघंटा उहें बइठे रहेंव मोला अब आगू का करना चाही तेन समझ म नइ आवत रहै । कार्यालय ले निकल के एकठन पेड़ के छाँव म फेर एक घंटा बइठे रहेंव, मोर बुद्धि छरियागे रहै अउ आँसू सरलग बोहावत रहै। मैं मन म सोचत रहौं ये मोर जिनगी के सबले बड़का गल्ती कहौं कि परिस्थिति के मार कहौं जेकर कभू भरपाई नइ हो सकै अउ घर जाके का बताहूँ कहिके रंग रंग के बिचार मन म आवत रहै। घर म मोर भाई के हालत खराब रहै वोकर गोड़ के सर्जरी करवाये बर उहीच सोमवार के दिन साँझ के रायपुर नवकार नर्सिग होम लेगेंव जेन चार महिना म रेंगना चलना शूरू करिस । कुछ अंक के सेती भाषाविज्ञान म पीएचडी करे के मोर साध अधूरा रहिगे।  

कभू कभू विपरीत परिस्थिति अउ भुलाये के हर्जाना ला जीयत भर भुगते बर लागथे खासकर विद्यार्थी जीवन के एक भूल हर जिनगी के दिशा अउ दशा तय करथे। 


शोभामोहन श्रीवास्तव

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