Friday 17 March 2023

कुकरूस कूं "

 "कुकरूस कूं "

              पहली के समे म एक ठन कुकरा बासे "कुकरुस कूं" ताहने गांव भर उठ जाय।अब तो पड़ोसी के कुकरा बासही तभो ले नींद नई खुलय।कुकरा मन के संख्या दिनों दिन घटत जात हे।वहू मन ल अपन अस्तित्व बंचाय के खतरा मंडरात हे।काली का हो जही कोई (गारंटी)ठिकाना नही।असल बात अब कोनो कखरो सुनना नी चाहे। कोनो ल जगाना ही अपराध (गुनाह)हे।इंहा मंदिर मस्जिद मे लगे पोंगा ल झेल नी पाय ते मन कुकरा के बांग ल का झेल पाही। अऊ आजकल तो कखरो मुंहू ल बंद करना बड़ सुभीता हे ,मुंह म ईडी, सीडी ल गोंज दे मुंहू बंद। अब तो मनखे मन के न सुते के ठिकाना न,उठे के ठिकाना?पहिली गंवई गांव म सात अऊ जादा ले जादा आठ बजे खा पी डरे,अब कहां पाबे एक आवत हे एक खावत हे अऊ जादा होगे त मोबाइल म बारा बजावत हे।तो एमे कुकरा के का दोष?

                हमू मन ल कुम्भकरण असन सोय के आदत पड़ गेहे। रावण ल घमंड अपन धन,बल,महल, के थोड़िना रिहिस, घमंड तो ओला 


अपन परिवार के रिहिस। जेन परिवार मन ऐके म हे तेखर कोती कोई आंखी ततेर के तो देखे? एक ठन लौठी ल तो कोनो टोर देथे,फेर चार पांच ठन जुरियाय म एंड़ी चोंटी करे ल पड़थे।इंहा तो बर बिहाव होईस ताहने 'हम दो हमारे दो 'बांकी को भां----में जाने दो।असल म सुखी परिवार के परिभाषा गलत गढ़े हे।अऊ सही काहंव त कुकरा मन के घटे के इही कारन आय।

                  नारी के महिमा अपरम्पार हे। नारी शक्ति ल परनाम। फेर कभू कभू यहू मन अति कर देथे।सुरपनखा ह अपन जिद अऊ कामुकता ल अपन बस म राखतिस त का ओकर नाक कटातिस? अब के लईका मन घलो नाक कटाय म कमी नी करे।नाक कटाय के पीरा दाई-ददा अऊ परिवार के मन जानही।जतका पीरा महतारी ल बियाय म होथे,ओकरो ले जादा पीरा नाक कटाय म होते।हमला तो सरम लागथे हमन अइसन देश म रहिथन जिंहा 'बचपन का प्यार भूल नहीं जाना रे' गवईया ल फूल माला डाल के कार म घूमाथन,उहां नाक नी कटही त का कटही।

कहिथे गुरु बनाओ जान के, पानी पीयो छान के।अऊ मे कहिथों परेम करो छान के नही थे पैंतीस कुटका होही तुंहर जान के।

                    दुरपती हर कोनो ये गोठ नी करतिस 'अंधरा के बेटा अंधरा 'त का कौरव पांडव मे लड़ई होतिस? भाई भाई ल कईसे लड़ाना हे ऐकर अनुभव अपन सुवारी मन ले मिल सकथे।कई झन मन तो ऐकर  जनमजात एक्सपीरियंस रहिथे।मईके म पूरा ग्रेजुएट हो जाय रहिथे। डिगरी पाय के बाद कईसे फालो करना हे ऐकर तलाश रहिथे। कतको झन ल एकर ए बी सी डी  मालूम नई राहय।बिचारी मन अड़ोसी पड़ोसी मन ले सिखथे।अऊ सही बात आय पड़ोसी मन कब काम आही।भले चुंदी ल हपाटिक हपाटा होही त छोंड़ाय बर नी आही। कतको झन मन कहिथे जम्मो सफल मरद के पाछू ओकर सुवारी के हांथ रहिथे। फेर कोन सुवारी चाही ओकर मरद असफल राहय। कतको झन मन तो भट्ठी म घोनडईया मारत रहिथे त ओला का समझना चाही। सही काहंव त सफल होय के बाद सुवारी के नाम मरद के संग जोड़ देथे।जईसे मास्टर संग मास्टरिन, डाक्टर संग डाक्टरिन ।भले दवई गोली ल नी जाने फेर कहिथन डाक्टरिन।

               फकीर प्रसाद साहू

                "फक्कड़"सुरगी

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