Sunday 5 March 2023

अमृत चाॅंटे के भरम महेंद्र बघेल

 अमृत चाॅंटे के भरम


                     महेंद्र बघेल


प्रकृति ह जीव-जगत ल मुफत म धरती-अकाश, सुरुज-चंदा, नदी-नरवा, हवा-पानी, पेड़-पौधा, माटी-पथरा, जुड़-ताप अउ जंगल-पहाड़ संग जिनगी के उपहार देय हे।एकरे परसादे ये दुनिया म मनखे के जिनगानी हे। मनखे के छोड़ दूसर जीव-जंतु मन प्रक‌ति ल अकारण नुकसान पहुंचाय बिन इहें जीथे अउ मरथे।फेर सबो जीव-जंतु ले अलग दूगोड़िया मनखे के चाल अउ चरित्तर हे।

            आज के मनखे मन अजबे-गजब आधुनिक हें, विकास के ड्रोन म झूलत तमाशा देखे के शौकिन। मनखे मन हवाई जिहाज म झूलत ए पार ले ओ पार कतको दूरिहा पहुॅंच जाय भला कालाच देख डारहीं। दुनिया के कोनो भी कोना म चले जाबे सबोच मन विकास के डेना पहिर के फड़फड़ाते मिलहीं।जब अपने ऑंखी ले नटेर के देखबे तब समझ म आही कि विकासवादी मनखे के विकास के नेंव भीतर घोषणा के गारा-गिट्टी म भ्रष्टाचार के मसाला ह चटके हे।जिहां के निकास नाली डहर ले खलबल-खलबल करत सुख-सुविधा ह नावगईन्ता बईहा पूरा कस बोहावत हे।ये खलबली ले निकले अमृत जइसे जिनिस ल पाईप लमाके दस पर्सेंट वाले पेटला मन के पेट म शिफ्ट करे बर लिफ्ट करे जावत हे।बाकी नब्बे पर्सेंट वाले मन के भाग म तो काल हे, जेन अमृत चाॅंटे के भरम म अपन हिस्सा म मिले अम्मट-गोम्मट के भरोसा राष्ट्र धरम निभावत हें।

      पर के घर-दुवारी म कहाॅं जाबे, अपने गांव-गली के हवा-पानी के चिटक आरो ले लव।तब आबो-हवा म बेबस्था के खिल्ली उड़ावत सॅंउहत झाॅंकी के दर्शन इहें हो जही।

           आज के गोठ करे बर काली के सुरता घलव करना पड़ही। सियान मन रद्दा-बाट ल रेंगें-रूंगाय बर बनाय रहिन,ओमा जनता मन रेंगई के संगे-संग लगे हाथ कई ठन व्यक्तिगत काम-कारज के निपटारा घलव कर डरॅंय।चाहे ओ गाड़ा रवन, धरसा, पयडगरी, प्रधानमंत्री सड़क होय चाहे स्टेट हाइवे,सबे रद्दा के पाई मन के एके कथा कहानी ,प्रेशर ल थाम्हे लोटा भर पानी।मनखे प्रक्षेपित अपशिष्ट मलमा ले उपजे वायु प्रदूषण अउ मक्खी के भनभनाहट ले पर्यावरण ल बचाय खातिर खुल्ला म खुलासा करे के लोटाई परम्परा ल धराशाई करे बर घर भीतरी शौचालय के निर्माण करे गीस।

                  ओडीएफ के योजना ले त्रिस्तरीय पंचायती राज के पंच-परमेश्वर अउ बाबू-साहेब मन खूब मालपुआ झोरिन। कई-कई जिला म कलेक्टर मन बस अपने घेखरही चलइन। शौचालय बनाय बर हितग्राही मन के खाता म सीधा पैसा नइ भेजके अपन मुताबिक सीमेंट, छड़,ईटा, रेती दरवाजा अउ सीट ल भेज दिन।जिलाधीश के चलता पुरजा निर्णय ले हितग्राही समाज मन सीट ले होगें।

          पैसा के हल-चल अउ टोर-भाॅंज के सपना संजोय हितग्राही मन के सपना ह सपनाच रहिगे, आखिर म चुरमुरावत अपन ऑंखी के नुनछूर पानी ल गटागट पीगॅंय।

     जेन मन प्रकृति ले जुड़े रहय के लालच ल चिटको दूर नइ कर पाइन तेन मन आज ले सुबे-शाम शुद्ध आबो-हवा के मजा लेवत अपन आप ला कंफर्ट जोन मा घलव पाथें।

       सुबित्ता के आगू म यहू मन चाहथें कि शौचालय ह फोकट धुर्रा खावत काबर परेटहा परे रहय, येकर उपयोग येमा नइते ओमा जरूर होना चाही। तेकर सेती घर म बने शौचालय के उपयोग खरसी-छेना, झिटका-छिलपा अउ लकड़ी धरे के काम आथे । ये घटना ह नवाचारी जनता के बहुआयामी सोच ल घलव प्रदर्शित करथे।

          फेर का कहिबे ओ डी एफ के सिरसिरी बजावत धड़-पकड़ वेवस्था ले चातर पाई अउ प्रकृति के गोद म फारिग होय के नीजी अउ ग्रुपिंग गतिविधि म तारा लगिचगे।

           शौचालय अउ स्वच्छता के प्रचार-प्रसार ले मनखे मन के सोच में गजब बदलाव आइस।ये स्वच्छता के सपना ला अपन होके देखबे करेन, सरकार डहर ले घलव सपना देखाय के एकतरफा इंतजाम रहिस।

        जहाॅं सोच वहाॅं... के नारा ले प्रेरित होके मनखे के सोच ह पाई-परिया, तरिया-नदिया  अउ भाठा-टिकरा ले निकलके घर के दहलीज म स्थापित होगे। ये तो सुविधा हरे, सुविधा सबला चाही। का कहिबे येकर तो बड़े जन प्रेमकथा घलव हे।अब शौचालय म एक लोटा पानी ले काम नइ चले, बाल्टी-बाल्टी पानी के जरवत पड़थे। मने पानी (इज्जत) बचाय बर पानी के जादा जरवत होगे हे।

            विकासवादी मनके पूछी धरे उद्योगपति मन के गोटारन ऑंखी म बड़े-बड़े कारखाना बर सस्ता-सुकाल जगा गांव-गॅंवतरीच ह नजर आथे। तेकरे सेती कारखाना के कार्बोपवित चिमनी ले निकलत चिटियाहा धुॅंगिया ह गांव के वातावरण ल भक्तिमय बनाय बर कोई कसर नइ छोड़त हे। 

     ये भक्ति म टीवी-टाईफाइड , खाॅंसी-दमा अउ जर-बुखार हे।ऑंवाजुड़ी, मुड़पीरा एनीमिया-निमोनिया झाराझार हे। कारखाना के मंत्रोपवित उत्सर्जित पानी ले खेतखार अउ नरवा-ढोड़गा के बेड़ागरक हे, सैफो-सैफो करत मनखे बर येकर ले बढ़के अउ का नरक हे। 

      उही लद्दी पानी म डुबकैया मारत श्यामवर्णी भैसा-भैंसी मन के खस्सू-खजरी म हालत पस्त हे,डिस्टर्भ डायजेशन के नाम म पोकर्री दस्त हे। उद्योगपति ह एक ठिन अउ दूसर गांव ल मुर्गा बनाय म व्यस्त हे।

       गली-मोहल्ला होय चाहे आफिस सबे जगा के घुर्रा-माटी अउ गंदगी ल साफ करे बर सरकारी पैसा म  ब्रस-बहारी, साबुन-सोडा, सुपली-बाल्टी खरीदे के बजट  पास होइस। बजटई योजना के गुरतुर सवाद ह कते भलेमानुष ल नइ भाय होही। इही कड़ी म नौ-नौ झन ल ग्रुप म जोड़े के नौरतन अभियान चलिस। नौ-नौ झन ल ग्रुप म जोड़ो , एक ठन धाॅंसू फोटू खिंचवाव अउ वाट्सेप म ढील देव,फेर चुमुक ले ठंडा पर जाव। 

       दू दिन मंत्री-संत्री मन ल घलव साफ-सफई के भूत धरे रहिस। ये जनाब मन सरकारी बहारी ल धरॅंय अउ कोनो भी आफिस म घुॅंसर जाॅंय अउ बाहरी ल लहरावत धुर्रा के धुर्रा उड़ावत मेनस्ट्रीम मीडिया बर मटक-मटक के फोटू खिंचवावॅंय। फेर धुर्रा महारानी के अकड़ तो अकड़ हरे, मंत्री-मंडली के लहुटते साट आफिस म जस के तस पैठारो ले डरॅंय। सत्ता सरकार मन पता नहीं काबर धुर्रा के धुर्तता ल देखत धुर्रा उन्मूलन आयोग अउ धुर्रा मंत्रालय नइ बना सकिन।

      देश के दिल दिल्ली म सादा कुरता-पजामा वाले मन स्वच्छता के संदेश देय के नाम म घुरवा के कचरा ल खुलेआम बगराके बहारी म बहारत, मटमटावत ,  एंगल बदल-बदल के फोटू खिंचवाय रहिन। तेकरे सेती बहारी ह फूल-पत्ती के संशो ल छोड़के दूसर कति पल्टी मार दिस अउ अपन सुभिमान के रक्षा करे खातिर अपन मुठिया ल दूसर ल धरावत झाड़ू बनके तनगे।

         विकास के सरपट एकंगू दौड़ म गांव-गली के सोंदहा माटी म कांक्रीट के कब्जा होगे।

सुभित्ता के नाम म गांव-गांव अउ शहर-शहर म मीनार कस बड़े-बड़े पानी टंकी ठाढ़े हे जिहां ले पीयाऊ पानी ह घरोघर म पहुॅंच बनावत हे।

      तरिया-नदिया म तऊॅंर के नहवइया मन घलव आजकल घरे भीतरी म हर-हर गंगा हर-हर पाई,नहा-खोर के बासी खाई ,करत हें।

         सब कुआं-बावली ह पुण्यात्मा मन के पूजा-पष्टीय  फूल-पत्तर, राख माटी अउ आधुनिक कचरा ल अंगीकार करत पवित्रता के आखरी साॅंस गिनत हे।                  घरोघर के मुॅंहाटी म पक्की नाली तनगे हे। संगसी कस गली म नाली के अभाव ल झेलत नाहनी अउ रॅंधनी के पानी ह गॅंगरेल कस गली म सलंगत हे।धरती म पानी सोखे के माटी-धरम ह लहुलुहान हे, विकसित के सवाॅंगा म जनता हलाकान हें।

         किसम-किसम के ममहाती साबुन, डिटर्जेंट, टूथपेस्ट, रसायनिक खातू अउ कीटनाशक के बऊॅंरे ले धरती के गरभ के तलातल पानी ह जहर-महुरा होगे हे।तभे तो बोरिंग के पानी म नहाय-धोय ले चुॅंदी-मुड़ी लटिया जथे, कपड़ा धोय म साबुन के झाग ह कतरा-कतरा हो जथे।पीये म पियास नइ बुझाय,पानी के मिठास गायब होगे हे। जाॅंच ले पता लगथे कि पानी के टीडीएस बाढ़ गेहे। इही टीडीएस के नाम म आरओ वाले मन चाॅंदी काटत हे।

जेकर घर ह नाली के आखिरी छोर म बसे हे ओकर बर ये जिनगी ह नरक ले कम नइहे।सुबे-शाम नाली अउ डबरा म जलक्रीड़ा करत कोरी-कोरी सूरा परिवार के दर्शन लाभ जो मिलथे। शौचालय बने ले इकरो पेट म चोट तो लगेच हावय।

       डबरा ल का कहिबे नरवा ह खुदे नाली के पानी म उबुक-चुबुक हे। पोस्टर-बैनर म मेछरावत कका के ये चिन्हारी ह खुदे अपन चिन्हारी खोजत-खोजत लसिया गेहे।

       सुनगुन-सुनगुन चुनाव के आरो पाके नगर के नगर प्रमुख ह नाली के तीरे-तीर म फाग मशीन ले गुॅंगवा उड़ावत हे।फेर जनता के भाग म, न राग हे न फाग हे। जनता ल पाॅंच साल बर बुकिंग करइया विकास मंत्री के फोटू वाले पाकिट म चाऊर-दार अउ बरी साग हे।अहोभाग हे कि जनता बर मंत्री के अतना अनुराग हे।

       नाली के गर्भगृह ले आसवित इत्र ह फेफड़ा ल मित्र बनात हे,त घुनघुट्टी, मच्छर, काकरोच अउ माछी के भनन-भनन ले का दिन अउ का रात सबे एके बरोबर हे। मार्टिन, मैक्सो, आल-आउट, अउ रिलेक्स-प्लस के निर्माता मन एयर फ्रेशनर के सुंगध लेवत फुसुर-फुसुर सूतत हें अउ जनता मन मच्छर मार उदबत्ती जलाके मच्छर भगाय बर जगराता म चिभके हें।

       जनता मन के खुदे कोंदा होय के कीमत म नेता मन सब भैरा होगे हें।उरला-धुरहा के सॅंशो करे बिना चक्का ढुलत हे।पता नहीं कते दिन मनखे ह मनखे के चेत करे बर चेतही .!

           शौचालय,नाहनी, रॅंधनी घर अउ कारखाना के उगलत पानी ले जम्मों नाली बोजाय हे। येकर अद्वितीय जीलेवा महक ह विशेष सुविधा के नाम म जनता ल बोनस के रूप म मिलत हे। देश के नामी गिरामी नाली विशेषज्ञ अउ बजबजहा चिंतक मन के कहना हे कि येकर गैस ले कई घना बरा अउ मुॅंगोड़ी राॅंधके बेरोजगारी ले लड़े जा सकथे।

      ये बायो कम बजबजायो गैस म चूरे बरा-मुॅंगोड़ी ल आर्गेनिक प्रोडक्ट के नाम म वैश्विक बजार म ऊॅंचहा दाम म खपाय जा सकत हे। अउ "नाली ले थाली तक" जइसे नारा के जरिए  मॅंहगाई म लेसावत, थरथरावत जनता ल भरमाये जा सकथे।

         सड़क, शौचालय, नहानी-नाली सबे तो पक्की हे त पानी ल का पथरा ह सोखही, जनता ल कोई बताही कि गंदा पानी के आखरी ओरिजिनल जगा कहां हे..? का येकर निस्तारी बर कोई योजना हे..?अगर हे त योजना ह कते डहर मुड़ी ल गड़ियाय हे। का राजधानी एक्सप्रेस म घूमतहे, किंगफिशर म माला सही झूलत हे, ईरिक्शा म ढुलत हे कि पदयात्री बरोबर रेंगत हे।

             चारो मुड़ा के विकासात्मक कचरा अउ चिटियाहा पानी ले गंगा ह बहुतेच गंदा होगे हे। फेर गंगा ल साफ करे के योजना ह आज ले गंगा म उफलत हे,पता नहीं कते दिन थाह मिलही। सबे मन जानत हन हवनकुंड के आगी म हूम-धूप ल अर्पित करत समय स्वाहा-स्वाहा कहे जाथे। इहाॅं तो सफाई के नाम म अरबों-खरबों रुपया ह गंगा म स्वाहा होवतहे।मने आगी ते आगी पानी म घलव सब स्वाहा हे..?

        अतिक बड़े समस्या के ये हाल हे। त गांव-गली, नहानी-नाली, नरवा-डबरा , तरिया-परिया के आत्मशुद्धि बर दिलपुरिहा अउ रयपुरिहा  ल हमर कोनो  चिंता-फिकर हावय कि नइ गोतियार..?


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

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