Friday 17 March 2023

मंगनी म मांगे मया नइ मिलै रे मंगनी म"……*

 *"मंगनी म मांगे मया नइ मिलै रे मंगनी म"……*


दउँड़त-भागत बिसौहा पान ठेला म तमंचा मिलगे। ये चलाए वाला तमंचा नोहय, मोर सँगवारी के बढ़उवल नाम आय। असली नाम त बने असन हे, फेर नाम म का रखे हे ? मोर मितान तमंचा ह राजश्री के पाऊच फाँकत रहिस। मोला देख के कहिस - कहाँ उत्ताधुर्रा जावत रहे ? आ...पान खा ले। मँय कहेंव - तुहिच्च ल खोजत रहेंव। पदमश्री बर अप्लाई कर दे, ऑनलाइन फारम भरे के चालू होगे हे, इही बात ला बताए बर तोला घेरी बेरी खोजत रहेंव। तमंचा ठठा के हाँसिस अउ कहिस - पान सिगरेट नइ चले त कोनो बात नइये, पद्मश्री-वदमश्री के बात झन कर, सोझबाय राजश्री खा ले। मँय कहेंव - तमंचा भाई, तँय छत्तीसगढ़ के अतका बड़े साहित्यकार आस, कतको किताब छप गेहे, बड़े बड़े सम्मान पाए हस। तोला पद्मश्री बर फारम भरना चाही। तमंचा कहिस - मांग - तांग के मिलिस तेन कइसन सम्मान ? देख भाई ! महूँ जानत हँव, अभी सीजन चलत हे। जइसे पानी-बादर के आरो पाके मेचका अउ भिन्दोल मन बाहिर आ जाथें वइसने फेसबुक अउ वाट्सएप मा टरर-टरर चलत हे। बेंगुआ मन घलो राग अलापत हें। साल भर के सुते कुंभकरण मन मार कोट-टाई मार के अपन सम्मान वाले फोटू, बड़े-बड़े कवि मन संग मंच साझा करे के फोटू, कहूँ नाटक-नौटंकी मा काम करे हे, तेकर फोटू, जुन्ना-जुन्ना यूट्यूब के लिंक अउ कतको ठन अपन बेंदरा-कुदई के कारनामा ल घेरीबेरी चेंपत हें। फेसबुक म मन नइ माड़िस त वाट्सएप ग्रूप, मैसेंजर अउ निजी इनबॉक्स तको ला नइ छोड़त हें। कोनो अध्यक्ष वाले त कोनो माई पहुना वाले नेवता पाती ला घलो चिपकावत हें, भले कई साल के जुन्ना काबर नइ रहय अउ तँय पतियाबे नइ कि कोनो कोनो त दूसर माई पहुना के नाम ला कटवा के अपन नाम जोड़वावत हें। संगी तँय अड़हा गतर के ! पदमश्री पदमश्री देखत हस, इहाँ आयोग के जुगाड़ बर अपन अपन गोटी फिट करे के चक्कर मा अपन अपन उपलब्धि ला नरी म लटका के जुगाड़ खोजत हें। कोनो कोनो मन लुकाछिपी म दूसर दावेदार मन के थाह ला तमड़त हें। एखर ओखर संग फोटू खिंचवा के पेपर म तको छपवावत हें। पंच, पार्षद ले लेके राष्ट्रपति तक के संग वाले फोटू मिल जाही। अरे बइहा, फेसबुक के हाट-बजार मा घलो किंजरे कर। तँय मोर लँगोटिया मितान आस। तोर मया के कदर करथंव,  फेर भइया तँय सम्मान अउ पद-कुर्सी के चक्कर ला नइ जानस। आने काम करइया ला आने बात बर सम्मान मिल जाथे। हमर बातचीत ला बिसौहा सुनत रहिस अउ कहिस - साहेब ! राजश्री लेना हे त जतिक चाही ले लेवव। मँय दुहूँ, कहाँ पदमश्री के चक्कर म अरझत हव। अरे ! इहाँ मंगनी म मया नइ मिले। तमंचा ह राजश्री के पाँच पाऊच अउ लिस फेर हमन अपन अपन घर डहर रेंग देन। 


*अरुण कुमार निगम*

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