Friday 17 March 2023

छंद के छ परिवार के अर्जुन मनीराम साहू 'मितान' रचित कालजयी खंड काव्य- 'हीरा सोनाखान के'


 

छंद के छ परिवार के अर्जुन मनीराम साहू 'मितान' रचित कालजयी खंड काव्य- 'हीरा सोनाखान के' 

        छत्तीसगढ़ी साहित्य आज अपन शैशव काल ल पार कर डारे हवय। काव्य साहित्य के दृष्टि ले छत्तीसगढ़ी साहित्य पहिलीच ले सजोर हे। हमर पुरखा मन गीत कविता सिरजा के एकर दमदार अउ पोठ नेंव रख के चल दे हें। हिंदी काव्य साहित्य म आज 'नई कविता' भाव प्रधान सशक्त सृजन होवत हे। फेर सनातनी छंद के माँग अउ महत्तम न कमतीयाय हे अउ न कमतियावय। छत्तीसगढ़ी साहित्य म घलव अभी के बेरा म खूब छंद लिखे जावत हे। ए छंद लेखन गुरु शिष्य परंपरा ले सरलग आगू बढ़े हे अउ बढ़त हे। 9 मई 2016 के दिन 'छंद के छ' नाम ले ऑनलाइन कक्षा के शुरुआत करे गिस। गुरु-शिष्य परंपरा निभावत ए परिवार के आदि गुरु छंदविद् श्री अरुण कुमार निगम आयँ। जउन मन छंद के छ के संस्थापक आयँ। जेन ल आज सबो साधक भाई-बहिनी मन 'गुरुदेव' कहि मान देथें। आज 'छंद के छ' के 22 कक्षा खुलगे हे। इहाँ भर्ती होय के एके शर्त हावय - 'सरलग अभ्यास के संग सीखना अउ सिखाना।'। इहाँ कोनो किसम पइसा-कौड़ी नइ लगय। इही छंद के छ परिवार के अर्जुन आयँ मनीराम साहू 'मितान'। मास्टरी के नौकरी करत अनगढ़ गीत लिखइया मितान जी छंद साधना करत जब छंद म मास्टरी हासिल कर लिन, तब गुरुदेव निगम जी भरोसी ले उन ल खंड काव्य लेखन बर कहिन। गुरु के आज्ञा अउ प्रेरणा जान उन सतत् साधना, श्रम, एकाग्रता ले खंड काव्य सिरजन के लक्ष्य भेद कर लिन। अरुण कुमार निगम अपन जम्मो शिष्य के प्रतिभा अउ क्षमता ल पहिचानथें। उँकर ले अपेक्षित काज कराथें अउ खुद प्रेरणा बन आगू लाय के उदिम करथें। इही कारण आय कि आज 'छंद के छ' छत्तीसगढ़ी पद्य बर एक आंदोलन के रूप पा गेहे। कतको बुधियार साहित्यकार मन एला गुरुकुल कहिथें, त कुछ मन विश्वविद्यालय घलव कहिथें।

        छत्तीसगढ़ अपन खनिज संपदा, वन संपदा, लोकसंस्कृति, लोकगीत अउ लोक व्यवहार ले अपन अलग छाप बनाय हे। तभे तो धान के कटोरा छत्तीसगढ़ के रहवइयाँ मन बर एक ठन कहावत जग जाहिर हे- छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया। छत्तीसगढ़ आज अपन विकास के संग देश के विकास म सरलग अपन भागीदारी निभावत हे। योगदान देवत हे। 

         छत्तीसगढ़ भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लड़ई बखत देश के आने हिस्सा मन के संग कदम ले कदम मिला चले हे। इहों के शूरवीर मन माँ भारती के खातिर अपन जिनगी ल होम दिन। इहाँ के लाल मन कोनटा-कोनटा ले आजादी खातिर अँग्रेज मन ले लड़े बर भिंड़े रहिन। १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम ले ही छत्तीसगढ़ के लाल मन गुलामी के जंजीर ले भारत माँ ल मुक्त कराय बर ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आवाज उठइन। देश हित म अपन स्वारथ ल खूँटी म दिन। अपन सुख-चैन ल भूर्री बार दिन। ए बेरा के छत्तीसगढ़िया महानायक शहीद वीर नरायण सिंह ले फिरंगी मन थर-थर काँपे लगिन। उँकर युद्ध कौशल, बुद्धि अउ नीति के आगू अँग्रेज टिक नइ पावत रहिन। अइसन बीर योद्धा के शौर्यगाथा के वर्णन सिरीफ छत्तीसगढ़ भर बर नइ भलुक देश के सबो जन बर गौरव के बात आय। उहें उँकर जीवनगाथा ले जम्मो कोई ल देशहित म सोचे-विचारे के प्रेरणा मिलही। शहीद बीर नरायन सिंह के बीरता के गुनगान करत मनीराम साहू 'मितान' जी मन खंडकाव्य 'हीरा सोनाखान के' लिख भारत महतारी के अपन करजा ल उन उतार लिन, कहे जाय त बिरथा बात नि होही। आजो बाहिर-भीतर दूनो ठउर म देश ल एक सच्चा सपूत के जरूरत हवय। जे देश हित म बिचार करयँ। 'हीरा सोनाखान के' पढ़े पाछू ए बिचार पाठक के अंतस् म उदगरही, ए पक्का हे। एकर श्रेय मितान जी ल उँकर लेखन शैली के नाँव ले मिलना च चाही।

          कोनो भी साहित्य अपन विषय अउ अध्ययन ले सज-धज के अउ निखर के आगू आथे, लोक के तिर पहुँचथे, त ओकर आरो दुरिहा-दुरिहा ल अमरथे। मितान जी ए खंडकाव्य ल सिरजाय म बड़ पछीना बोहाय हें। उँकर मिहनत ला एला पढ़ के समझे जा सकत हे। खंडकाव्य या फेर उपन्यास के लिखई कोनो ठठ्ठा-दिल्लगी के बात नोहय। घटना अउ कालक्रम ल क्रमवार सिल्होय के पाछू लिखे बर बड़ लगन के जरूरत पड़थे। चिंतन के संग लोकरंजक गढ़े बर सावचेत रहना बड़ चुनौती होथे। मितान जी छंद साधना के अभ्यास म अतेक मँजा गेहें कि उन ल रकम-रकम के छंद म सिरजन करे म दिक्कत नइ होइस होही। अइसे भी खंडकाव्य सिरजइया बर पहिली शर्त तो छंद-सुजानिक होना च आय। कठिन बुता आय त छंद के मुताबिक घटना के वर्णन ल तुक बिठा के सरलग बढ़ात लिखई हरे। जेकर शब्द कोठी भरे-पूरे रही, उही ह अइसन कमाल कर पाथें। भाषा अउ शब्द भंडार अलंकार अउ छंद चयन के बीच बाधा नि परे हे। बीर के बखान बर आल्हा छंद सबले उपयुक्त होथे, अतिशयोक्ति अलंकार के संग बीर के बखान जन-जन के हिरदे म लड़े के हौसला अउ हिम्मत दूनो पैदा करथे। ए संग्रह म इँकर समन्वय अचरज म डाल देथे। इही रचनाकार के सफलता आय। अइसन साहित्य छत्तीसगढ़ी साहित्य ल नवा ऊँचई दे म सक्षम हे। अवइया बखत म छत्तीसगढ़ी साहित्य सेवा बर मनीराम साहू 'मितान' जी के नाँव बड़ सम्मान के संग लिए जाही। 

         अब चिटिक गोठ किताब म लिखाय जिनिस (छंद मन) के कर लेवन।

         कोनो भी बड़का ग्रंथ/खंड काव्य/महाकाव्य के सिरजन के शुरुवात मंगलाचरण के संग करे जाय के परम्परा मिलथे। हर सर्ग के शुरुवात म मंगलाचरण रहिथे। आजकाल तो काव्य के जम्मो किताब म अइसन शुभ संकेत दिखथे। चर्चित ए किताब म अपन देवधामी अउ ईष्ट देव के बंदना भर नइ हे, बल्कि गुरु, दाई-ददा के संग जनमभुइयाँ के बंदना हे। बंदना इहें थिराय नइ हे वोहर अपन डीह-डोंगर के जम्मो देवी-देवता ल सुमिरन करत छत्तीसगढ़ के जम्मो पबरित भुइयाँ ल माथा टेके हे।  संत महात्मा के पावन सुमिरन हे। 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।' के मंगलभावना के दर्शन होथे। भारतीय परम्परा म नदी ल माता के दर्जा दे गेहे। छत्तीसगढ़ भुइयाँ ल अपन निर्मल अउ अमृत धार ले सबरदिन खुशहाल रखइयाँ नदी मन के सुमरनी एक कोति अध्यात्म ले जोड़थे, त दूसर कोति उपकार माने के संग खंडकाव्य के कथानक ले जोरे के बढ़िया उदिम हे। 

          भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बीर योद्धा शहीद बीर नरायन सिंह के ऊपर लिखे संग्रह म भारत माँ के वैभव के गान हे।

         ए संग्रह म भारत भुइयाँ के नामकरण, संस्कार, विश्व कल्याण, दया-भाव के सुग्घर चित्रण करे गे हे। हमर इही दया-धर्म के फायदा उठइयाँ जम्मो आक्रमणकारी मन के इतिहास ह छंद म छँदाय नजरे नजर म दिखे लगथे। भारत कइसे गुलाम होइस एकर जानबा मिलथे। 

      'जहाँ सुमति तहाँ सम्पत्ति नाना, जहाँ कुमति तहाँ बिपति निदाना।'

        ए बात के सुरता करावत उल्लाला छंद देखव जेमा गुलामी के फाँदा म हम कइसे फँसेन एकर चिंतन हे अउ आगू बर नवा संदेश घलव हे-

      सुमता जब दुबराय तब, होथे बइरी पोठ जी।

      संगी जम्मो जान लव, सार करत हँव गोठ जी।। (पृष्ठ 23)


          गुलामी ले मुक्ति अउ अँग्रेज के अत्याचार बिरुद्ध विद्रोह के सुर ल देखव - 

          मंगलपांडे नाव रहिस जी, भारत माँ के बाँकेलाल।

          करिस खुला विद्रोह छावनी, बनके गोरा मन के काल।।

          अँग्रेज शासन के बिरुद्ध उठे विद्रोह के ए आगी जब छत्तीसगढ़ पहुँचिस तेकर बानगी देखव-

        बनके अगुवा लड़िस लड़ाई, सन्तावन मा बाँके बीर।

        नाव रहिस गा बीर नरायन, रख दय बइरी ठाढ़े चीर।। पृ. 28

        छत्तीसगढ़ के शहीद बीर नरायन के जन हितवा, न्यायप्रियता, साहसी, पराक्रमी, परमार्थ सेवाभावी, दृढ़ संकल्पी जइसे जम्मो गुन अउ शारीरिक सौष्ठव अउ सुंदरता ल बड़ सुघरई ले चित्रण करे म मितान जी कहूँ मेर कमती नइ दिखयँ। 

      अँइठे-अँइठे करिया मेंछा, लम्बा-लम्बा ओकर बाल।

       मूँड़ सजावय बड़का फेटा, खोंचय कलगी दिखय कमाल।।

दूसर हे-

        लाल तिलक वो माथ लगावय, झुलै सोनहा बाली कान।

        दुनो हाथ मा चाँदी चूरा, चमक बढ़ावय ओकर शान।। पृ. 29

         रमायन म पढ़े सुने ल मिलथे कि लंका जाये बर श्री राम जी समंदर ले रद्दा माँगथे, विनती करथे, फेर समंदर ह चिटिक अनसुना कर देथें, तब भगवान राम क्रोधित हो जथे... अइसन त्रेतायुग के सुरता ए डाँड़ पढ़त आ गइस-

       नइ देवय जब चाबी प्रहरी, दय कनपट ला ओकर झोर।  पृ.33

        जन हितैषी अउ संवेदना ले भरे गुन के चित्र देखव-

          केलवली कर कहय बीर हा, मानव माखन हमरे बात।

          तालाबेली जनता मन हें, मरत हवय बिन बासी भात।।

            जनमभूमि बर मर मिटना शान के बात होथे, जे जनमभूमि ल ताक म रख सुवारथ ले जीथें, उन ल धिक्कारत कहिथे-

            ओकर जीना बिरथा जेला, महतारी बर नइये प्यार।

            काम जेन भुइँ के नइ आवय, वो जिनगी ला हे धिक्कार।।

           इही किसम ले युद्ध के फोटू खींचे म मितान जी बड़ सक्षम हें।  

           हो जयँ फाँकी-फाँकी धड़ मन, कतको छर्री-दर्री होय।

           हाड़ा-गोड़ा खुदे पिघल जय, करयँ बुता सब धीरज खोय।। पृ. 48

          मैं पहिली च लिखे हँव कि बाहिर भीतर दूनो ठउर म देश ल सच्चा सपूत के जरूरत हे। इही जरूरत ल भाँपत मितान जी ए गाथा लिखे के पाछू के संदेश देवत देशभक्ति के भाव युवा मन के मन म जगही के आस सँजोथें।

         जब-जब आही संकट भुइयाँ, बइरी मन करही अतलंग।

         सिंह गाथा हा चेलिट मन के, तन मा भरही जोश उमंग।।

        काव्य सौंदर्य के सबो माप म खरा उतरत ए संग्रह स्वतंत्रता संग्राम के अउ बीर मन के गाथा ल सरेखे बर प्रेरणा बनही। 'हीरा सोनाखान के' ए संग्रह नवा पीढ़ी ल अपन आजादी के इतिहास ल जाने के मौका दिही, उहें देश हित बर हरदम एक रेहे के संदेश बगराय म सुफल रही, ए मोला पूरा अजम हे। दू-एक जगह के वर्तनी म चूक जरूर दिखिस। खंडकाव्य के दृष्टि ले एला थोरिक मिहनत अउ गुनान करके जरुरी सर्ग म बाॅंटे के उदिम होना रहिस हे। जेला मितान जी कर सकत हें। नवा संस्करण ह सर्गबद्ध  संग्रह के रही एक उमीद हे।

         आखिर म मनीराम साहू मितान जी ल ए संग्रह बर बधाई पठोवत, घर-परिवार अउ समाज बर उँकर लिखे संदेश ले भरे दू डाँड़ ल लिखना चाहत हँव, काबर कि दमदार घर परिवार अउ समाज ले ही देश घलव दमदार बनही।

         सुमता के संदेश, बाँटबो घर-घर जाबो।

         मुटका असन बँधाय, एकता अलख जगाबो।।


किताब : हीरा सोनाखान के (खंडकाव्य)

रचनाकार : मनीराम साहू 'मितान'

प्रकाशक : वैभव प्रकाशन रायपुर (छत्तीसगढ़)

 प्रकाशन वर्ष : 2018

मूल्य : 100/-

पृष्ठ सं.  : 64


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला -बलौदाबाजार भाटापारा छग.

पिन 493228

मो. 6261822466

2 comments: