Sunday 19 March 2023

छाॅंटत-छाॅंटत अटल कुॅंवारी


 

छाॅंटत-छाॅंटत अटल कुॅंवारी


            महेंद्र बघेल


आजकल सालभर बर-बिहाव के सररे-सरर हवा उड़त रहिथे, येहा मनमरजी वाले लप-झप के रेंज म होय चाहे घर-मरजी वाले अरेंज म।जब फटाखा अउ डीजे के परमात्मीय ध्वनि ह कान अउ हिरदे के उपर वायरस कस धाय-धाय हमला करथे तब तरवा के साइन बोर्ड म परघनी अउ रिसेप्शन के सूचना ह अपने आप चिपक जथे।तहाॅं अड़ोस-पड़ोस के गबरू-पाठा मन के चरण-कमल ह जुगाड़ अउ नाटू-नाटू के जुगलबंदी म व्यस्त हो जथे।इही दिलझटकू डीजे के परसादे परोसी घर के सियान-सामरत मनखे मन ल अस्पताल म भर्ती होय के बिहतरा लाभ भी प्राप्त होथे। आखिर आयुष्मान कार्ड ल अइसने बेरा म परोसी धरम निभाय खातिर तो बनाय जाथे।

        बाप-महतारी बर लइका मन तो लइकाच होथे, बीपीएल बरोबर जब तक लइका बीएमएल (बिलो मेच्योरिटी लाइन) के सीमा म रहिथे तब तक सियान के चिंता फिकर ह संडे मनावत रहिथे। उनला  चना-चबेना, मुर्रा-मुरकू, केक-चिप्स , पापड़-पेप्सी, टोस बिस्कुट, आइसक्रीम, चाकलेट अउ मिकी माऊस जइसे कार्टून के भरोसा भुलवार डारथें। फेर लइका के संज्ञान होय के डेंजरस लाइन ल छूते भार ओकर काया के उपजाऊ धरती ले मेछा के भूरवा रेख फूटना शुरू हो जथे अउ हिरदे के तानपुरा ह टुनुन-टुनुन बाजे बर लफलफायच ल धरथे। फेयर एंड लवली, डिंपल पाउडर, सेंट-डिओ के उत्ता-धुर्रा उपयोग संग कुकरा छाप हेयर कटिंग के सजई-धजई अउ दर्पण के आगू म मटमटई के आवृति बढ़ जथे।

     कुछ -कुछ असमानता ल छोड़ लइका प्रजाति के दूनो जेंडर के इही कुदरती कहानी हे।हाइटेक जमाना म सबे लइका मन सरकारी समय सीमा के पहिली संज्ञान हो जथें। सोला-सतरा के पहलीच गुगल गली म किंदरत आज्ञाकारी शिष्य के पदवी घलव पा जथें। तब लगथे ऊपरवाला ह मनखे के हाथ ल मोबाइल धरे बर अउ ॲंगरी ल कोचकेच बर बनाय हे।येमन मोबाइल नेट के मितानी म दुनिया के ताकी-झाॅंकी करत दुर्गम इलाका के सांगोपांग दर्शन लाभ ल घर-बैठे प्राप्त कर लेथे।

        लइका मन के ये हलचल ल परखत अनुभो के घाम म करियाय ये विषय के भूतपूर्व छात्र मन (ददा,कका भैया) एलर्ट हो जथे।कि लइका ह लइकुसहा के परीक्षा म पास होके अब संज्ञान शाला म भर्ती होगे हे।

             एती हमर भैया संतू ह संज्ञान शाला म भर्ती अपन बेटा सुंदर के घर-बसाय बर जम्मो संडे ल रद्द कर दिस। अउ विषय के पहिली कालखंड म बहू खोजव अभियान म लगगे।

            सुंदर ह सहीच म बड़ सुंदर हे, ऊंचपुर, गोरा बदन, हंसमुख चेहरा, पढ़े-लिखे अउ काम-काज म हुशियार। दस साल पहिली च कम्यूटर साइंस म बीई कर डरे हे मने इंजिनियरिंग के उलेंडा पूरा म भकरस ले उलंड के अपन माथा ल फोर डरे हे। बिहाव के जरूरी योग्यता पाय बर  सुबे-शाम सरकारी नौकरी के एकतरफा सपना देखई के काम जारी हे।

      एती-ओती जिहाॅं पता लगे उही कोती फटाफट दौड़े-भागे , हाव-हाव होवत-होवत म बस नौकरी के नाम म रिश्ता लटक जाय।

  बहू खोजत-खोजत संतराम के मति ह अति-तति होगे रहय। संतराम के मतलब ये नइहे कि ओहा कोनो साधु-संत हरे। संत तो सिरिफ नाम आय ,माया मोह के सखरी म अरझे बीबी-बच्चा वाले संयासी टाइप के आदमी।संत ल आशा हे ओकर सुंदर के आस ह पूरा होही। मने ओकर जीवन म आशा हे आशाराम नइहे। येकरे सेती घर म एके झन सुंदर हे ,सुंदर मन के कबड्डी टीम नइहे। संतराम ह मंच म छम-छम नाचत आशाराम ल देखे  रहिस अउ पंचेड़ बूटी के गुणवत्ता ल सुने भर रहिस।कहुॅं उपयोग कर पारतिस ते कृष्ण जन्म स्थली म आशाराम ले सेक हेंड करे के अवसर भी मिल जतिस।

        बीरबल के कुछ अलग इमेज हे, अपन ह सुधवा अउ भौजी ह तेज हे। वो अतिक सुधवा कि कई घाॅंव अपन सुध ल घलव भूला जथे। भौजी ह बजार ले जब मुनगा मॅंगाथे त ये मुरगा धर के आ जथे.., एक दिन कतरा (हलवा) पागे बर सूजी मॅंगाइस त वीरबल्लू ह कपड़ा सीले के सूजी ल धरके आगे।आजकल गली-मुहल्ला, बजार-हाट अउ रद्दा-बाट म बारो-महिना मुरगा मिलना सहज हे फेर मुनगा ह नोहर होगे हे। 

           अइसे भी मुनगा के महत्तम के कोई लेखा नइहे फेर ओकर ले जादा मुनगा चुचरे के चमत्कार ह चकमिक-चकमिक करत हे।भाटा अउ मुनगा चुचरई के आध्यात्मिक दरसन-परसन ले बजरहा झोला म कई किसम के छद्म-फ्री अवार्ड घलव टपक जथे। छत्तीसगढ़ के मान-सम्मान बर मुनगा चुचरई ह कोनो अश्वमेध यज्ञ ले कम हे का..?

           रकम-रकम के आयोजन फाग,रामधुनी, मानस गान, जसगीत प्रतियोगिता ले गांव-गांव म फुतकी उड़त हे।बिहान वाले दीदी बहिनी मन ठऊॅंका परीक्षा के बेरा म सुबे ले साॅंझ तक पोप-पोप पोंगा बजावत भरे मंच ले बिहान-बिहान खेलत हें। 

     अउ येमन मुनगा के महत्तम ल नइ जाने..! अरे कम से कम मुनगा के महत्व ल समझत मुनगा चुचरो प्रतियोगिता तो रखे जा सकथे।एती छत्तीसगढ़िया मन मुनगा चुचरे म मस्त हें ओती ठढ़बुंदिया मन छत्तीसगढ़ ल चुहके म व्यस्त हें।

         हाल-चाल ये हे कि आजो सुंदर ल कोनो शुभ समाचार नइ मिलिस। बाप संत ह मुरझाय कस बर रूख के खाल्हे म मितान बीरबल दूनो बैठे हें।संत ह बहूखोजी अभियान म विलेन मन के चरित्र हनन म लगे हे, बीरबल अपन लइका के मोबाइल प्रेम के प्रसंग ल विस्तार देवत हे। 

      फुर्र- फुर्र उड़त, चिऊॅं- चिउॅं करत चिरई- चिरगुन मन बर (बरगद) के लाली फर ल ठोनक-ठोनक के फोलत हें त कतको फर ह बर के जर म गिरत बुद-बुद बोलत हे। का करबे ये दूनो मन चिरई- चिरगुन के चारा बाटे सही अपन- अपन घर-दुवार के सुख-दुख ल बाॅंटत हें, गृहस्थी के डोरी ल अनुभो के ढेरा म ऑंटत हें।

         संतराम ह बीरबल ल बतावत हे- "देवारी तिहार ले शुरू होके फागुन तिहार तक बहु खोजे के रटाटोर उदीम ह चलत हे।सुंदर ह उत्तर, दक्षिण ,पूरब,पश्चिम चारो दिशा म भटकत हे, फेर को जनी कते कोन्टा म किरपा ह अटकत हे।"

           अतिक म बीरबल के मौन हड़ताल ह टूटिस अउ ओकर सुधवा बाणी ले बक्का फूटिस -" ओ.. हो..! अतराब म पढ़े-लिखे लड़की तो अबड़ हे छोटे, फेर अतिक दिन म बात फत्ते कइसे नइ होइस।ये समस्या जग जाहिर हे, हमर समझ ले बाहिर हे !"

             एती देखते-देखत छे महीना ह बीतगे, सुंदर के यात्रा ह फलित नइ हो पाय हे। नवा रिश्ता बनाय बर लड़की खोजना मामूली बात तो नोहे। ये उदीम म पहिली लड़का अउ लड़की के हाॅं, बाप-महतारी के हाॅं फेर रास-बरग अउ गण-गुण के नंबर लगथे। ये बूता ह हिमालय चढ़े ले कम नोहे।

      कुछ सोचके बीरबल फेर बोलिस - "अरे भई लइका इंजीनियरिंग पढ़े हे त  किरपा ह कहाॅं अटके हे। अभीन लइका ह का बूता करथे...?"

  "का बतावॅंव भैय्या,लइका ह पढ़ लिखके निकलिस तहां प्राभेट बैंक म दस हजारी होगे, गांव म खेती ह मोर अकेल्ला बर भारी होगे। मॅंय सुंदर ल घर बलालेंव, आज उही ह खेती ल सॅंभाले हे। हमर कर दस एकड़ खेती हे, टेक्टर हे, हार्वेस्टर हे अउ का चाही" - संतू राम कहिस।

बड़ बेर ले सोचके बीरबल कहिस- "सुंदर के उमर के का हाल-चाल हे, ये दस साल म बिहाव बर चेत काबर नइ करेव जी। उमर के सेती रिश्ता ह अटकत तो नइहे.?"

   गंज बेर ले दूनो झन ल बैठे देखके उनकर तीर महूॅं पहुचगेंव ।उनेंव न गुनेंव उनकर बहुखोजी अभियान के कांफ्रेंस म बरपेली वफलेंव।

             दूनो झन ल तिखारके पूछेंव - "बर रुख के छइॅंहा म गंज बेर ले का चारा बाॅंटत हो भैया..?"

   संतू ह तुरते बात ल अपन कति लपक के कहिस - "अरे इहाॅं कोन ल चारा बाॅंटबे , रात-दिन के खोजई बूता म टायर घिसा गेहे,सपना ह चिरपोटी बंगाला कस पीसा गेहे। ॲंजोर के चक्कर म सब ॲंधियारी हे, हमर बर फाऊ उकर बर फरहारी हे। बनत-बनत म सुंदर के रिश्ता लटक जथे, सरकारी नौकरी के ब्रेकर म बात अटक जथे।"

       कुछ-कुछ समझ म तो आवत रहिस तभो ले मॅंय बात ल साजेंव,फूटहा तबला कस फेर  बाजेंव- " दूल्हा बने बर के घाॅंव वेकेन्सी भरेव.., का सरकारी नौकरी बर कभू कोशिश करेव..?"

          अतका सुनके संतू ह चिलमाहा सही बड़ लम्बा सुवाॅंसा खींचत कहिस - " मॅंय का गोठियाॅंव ..उही दस-बारा साल पहिली फूटू फूटे कस जगा-जगा इंजिनियरिंग कॉलेज खुलिस, लइका ल इंजिनियर बनाय के सपना ह ऑंखी-ऑंखी म झूलिस। लोभ म काल होगे, आज बारा हाल होगे। प्राभेट कालेज म कतको पैसा धसगे , संदूक के तारा म कुची ह फसगे। जइसे सब मन करथें, हाॅंसत-हाॅंसत हमू करेन।फेर हम का जानन हमर सुंदर ह पेल-ढकेल के पास होही। लइका ह बीई करे हे,नाॅंगर मुठिया ल धरे हे।अब लड़की वाले मन पूछथे, लड़का सरकारी नौकरी म हावे का..?"

          मॅंय कहेंव- "सबो बात के इही सार हे ,बेटी ओकर आय ओला बने दमाद खोजे के अधिकार हे।सबे चाहथें कि बेटी ससुराल म राज करे, नौकर-चाकर ह काम-काज करे। ससुर ह साग लाय,सास ह चाय बनाय..।"

         संतू के पारा फेर हाई होगे.., तमतमावत कहिस-  का किसान होना अपराध हे..? माथा ल पोतके कान म मंत्र फूकइया, सदन म कुर्सी-कुर्सी खेलइया, कंपूटर के लीड म ताता-थैया करइया, पत्रकारिता के ढोल पिटइया, धरम के नाम म बिल्डिंग टेकइया अउ दुनिया के ए कोना ले ओ कोना तक मुॅंहुॅं मरइया सबे के पेट बोजवाव के ठेका किसान के  मत्थे तो हावे का..? दुनिया के जम्मो किसान सुम्मत होके जे दिन हड़ताल म बैठ जही उही दिन ये बैठांगुर मन ल अपन औकात समझ म आ जही।

         भरे पेट म दस ठन किसम-किसम के बोल फूटथे,जे दिन इनकर पेट ल एक दाना नसीब नइ होही उही दिन एसी म बैठके किसानी म भाषण पेलइया ये बजरंगा पेट वाले मन ल हड़ताल के साइड इफेक्ट पता चल जही। धर्म-अध्यात्म, दर्शन, विज्ञान ये सब भरे पेट के पैदावारी आय। का हार्डवेयर, साफ्टवेयर, करेंसी अउ क्रिप्टोकरेंसी ल चाॅंट-चाॅंट के खहू, उही म पेट ल भर लेहू..? सुबे-शाम जेकर सुरता करना चाही ओहा आखरी कोंटा म फेकाय हे अउ लफराहा मन के चरण वंदना होवत हे। चाकलेटी चेहरा म घर ह नइ चमके, सरकारी पिया खोजइया मन हमरे उपजारे अन्न ल खावत होही कि पथरा-ढेला ल।"

   गोठे-गोठ म आगी कस धधकत ओकर तमतमाय बरन ल देखके बीरबल अउ मोर हिम्मत ह उही मेर हथियार डाल दिस, सही म छे महिना ले हलाकान मनखे ल कोचकबे त अइसनेच छटारा मारही।

       संतू के ये हाइपरसोनिक दर्शन विद्या ल सुनके मॅंय तुरते ओकर दर्शनाभिलाषी होगेंव अउ ओकर दुःख-दरद ल हुॅंकारू के झेंझरी म तुरते झोकेंव।

             मॅंय कहेंव - "ले बड़े भैया ये बहू-खोजी अभियान म अब हमू मन तोर संग-साथ देबो, समाजिक पत्रिका ल खोधिया- खोधिया के पता लगाबो।चल देखथन कइसे रिश्ता नइ ठसही..।"

    इही बोली-बचन ह संतू के धधकत लावा ल तुरते ठंडा करे के बनेच काम करिस।

            अधियाय गोठ ल लमावत संतू ह फेर कहिस- " जेकर घर जाबे उही ह अग्नि मिसाइल कस सवाल दागथे , ..का लड़का ह सरकारी नौकरी म हावे..। महिना म कतिक कमाथे, का कभू-कभू पीथे- खाथे..। छे-छे महिना ले बस इहीच तो सुनत हॅंव। सुनत-सुनत कान  गदला गेहे, दिल-दिमाग पगला गेहे।सामाजिक पत्रिका के जरिए कते दिन फोन नइ करे होहूॅं..। जेला फोन घुमाबे उकरे एके टप्पा बोल.., लड़का ह का करथे। मॅंय कहिथव लड़का कंप्यूटर साइंस म बीई हे, आजकल खेती-बाड़ी म बीजी हे..।ओमन कहिथे खेती के छोड़ अउ का करथे.., नानमुन बिजनेस हे, कम से कम पान ठेला तो होना चाही..। त नौकरी के नाम म मॅंय सुंदर ल भट्ठी के ठेकेदार बना दॅंव कि मुहल्ला के दारू कोचिया..? इनकर नजर म आज किसानी के इही कीमत हे।"

     संतू के ये संतवाणी ह मोर तन के नस-नस ल छिल दिस, नौकरी के घमंड ल बरसाती पानी कस ढिल दिस।

       आखिर म वीरबल अउ मोर सटकाई म कइसनो करके सुंदर के बनौती बनगे, लड्डू पापड़ बरा संग हमरो छनगे।

     फेर रूपवती, गुणवती बेटी वाले दाई-ददा मन के डिमांड ह सरकारी नौकरी म अटके हे, बेटी ह भला बूढ़ा जाय उनला ये मंजूर हे। नौकरी वाले लड़की मन ल सरकारी सजन चाही। जेकर बाप ह नौकरी म हे तेकर ठसका कुछ अलग हे वोला आइएएस, आइपीएस, जज अउ डाक्टर दमाॅंद चाही।

       तब लगथे बाढ़त हाइटेक शिष्टाचार ह ये दुनिया ल अटल कुंवारी के तपोभूमि बनाके छोड़ही।

          सही म मनखे के सोच म कतका बदलाव आ गेहे। लड़का नौकरी म रही त लड़की के बाप ल नौकरी संग खेती-खार वाले दमाद चाही, जनो मनो अपन बेटी ल रोपा लगाय बर भेजही। कहुॅं बाप-महतारी के सपना के आगू म बेटी मन बेबस हे त कहुॅं बेटी के इच्छा खातिर घर वाले मजबूर हें।

          कतरो मन बिन बिहाव के जिनगी ल जियत हें फेर ठोसरा ल सुसक-सुसक के पियत हें। तीस-पैतीस साल वाले अटल कुॅंवारी मन के एके आस हे, नौकरी वाले सरकारी सजन के तलाश हे। जनों मनो "तुमने पुकारा और हम चले आए‌ ..."  सही नौकरी ह ओकर ओली म आके गिर जही..।

सबके अपन जिनगी हे फेर समझौता एक्सप्रेस म चढ़के जिनगी ल सॅंवारे म जादा समझदारी हे ,का भरोसा कते दिन जम्मों सरकारी नौकरी ह सरकार के डिक्शनरी च ले गायब हो जाय..?


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

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