Friday 31 March 2023

अंधवा

 *अंधवा*


अंधवा केहे ले मनखे के ध्यान सहज रूप मा मनखे के दुनों आँखी नइ होए के तरफ जाथे। फेर मँय कहिथौं कि मनखे अंधवा सिरिफ आँखी के नइ होए ले ही नइ कहावै। अंधवा के तीन किसम होथय। पहिली आँखी के अंधवा, दूसर मया मा अंधवा अउ तीसर विरोध मा अंधवा।

मनखे जे आँखी के अंधवा होथय वोहर देख नइ सके,फेर सुन के सबके बात ल समझथे। बोली अउ बोली मा तुलना करथे कि कोन बने कहत हे अउ कोन गिनहा। आँखी के अंधवा, मनखे के भाखा ल ओरख के समझ जाथे कि कोन अपन आये अउ कोन बिरान। भाखा ओरखे के क्षमता ओकर कर आँखी वाले ले जादा होथय। आँखी के अंधवा अनुमान लगा के या फेर लउठी के सहारा मा सही रद्दा के पहिचान कर लेथे।

दूसर मया मा अंधवा के बात करन तब मनखे जब मया मा अंधवा हो जाथे तब वोला अपन मयारू मनखे के गलती नइ दिखय या फेर गलती ल ढाँके के कोशिश करथे। परिणाम ये होथे कि गलती करइया के गलती मा सुधार नइ होवै, बल्कि गलती ऊपर गलती करे के सम्भवना अउ बढ़ जाथे। जइसे कोनों कोनों माँ-बाप मन अपन लइका के मया मा अंधवा हो जाथे। परोसी जब लइका के सुधार खातिर गलती बताथे तब ओकरे संग झगरा करे बर उमिहाथे। अइसन करे ले लइका के भविष्य बिगड़थे। लइका कोई ल कुछु बोले या कोनों काम ल करे के पहिली नइ सोचय। काबर कि माँ-बाप मन सदा सपोट करथे। मया मा अंधवा मनखे के लइका कभू अपन कुल के नाँव रोशन नइ कर सकय। अपजस ओकर तीर मा लोटत रहिथे। धृतराष्ट्र आँखी के अंधवा होए के संगे-संग अपन लइका दुर्योधन के मया मा घलो अंधवा होगे रिहिस। तेकरे सेती जब्बर महाभारत होइस। अपन लइका दुर्योधन ल बरजे ल छोड़ वोकर साथ दिस। परिणाम ये होइस कि कौरव कुल के नाश होगे। मया करना बुरा बात नइ हे फेर मया मा अंधवा होना बने नोहे। संसार मा कोनों के मया मा मनखे ल अंधवा नइ होना चाही। 

तीसर किसम के अंधवा होथय, विरोध मा अंधवा। मनखे जब मनखे या दूसर के जाति -धरम के विरोध मा अंधवा हो जाथे, तब आगू वाले मनखे या जाति-धरम के सुघरई वोला नइ दिखय। ये किसम के अंधवा बहुत खतरनाक होथय। कब का कर दिही कुछु नइ केहे जा सकय। अइसन अंधवा के अंतस मा सदा आगी धधकत रहिथे। विरोध के अंधवा ल समझा पाना बिलई के नरी मा घण्टी बाँधना होथे। राजा हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु के विरोध मा अंधवा होगे रिहिस। भगवान विष्णु के पूजा करइया साधु-संत मन ल अड़बड़ सतावै। अइसन किसम के अंधवा चाहथे कि वो जेकर विरोधी हावे ओकर सब विरोधी होवय। विरोध नइ करइया ल अपन विरोधी समझ के ओकर ऊपर जुलुम करे ल लग जाथे। विरोध के अंधवा ल अपन विरोधी के बड़ाई थोरकु नइ भावै। अइसन अंधवा ल समझाना मतलब खुद ल ओकर विरोधी बनाना होथे। महापुरुष मन कहिथे कि- 'विरोध अइसन आगी आवय, जेन सुलगथे विरोधी बर फेर जलाथे खुद ला।' येकर ले बचके रहना चाही। येकर ले ये बात साफ होथय कि आँखी के अंधवा बने फेर मया अउ विरोध के अंधवा बने नोहे। आँखी के अंधवा ल बताए मा सही रद्दा चल लेथे। फेर मया अउ विरोध के अंधवा ल सही बात घलो बुरा लगथे। 


           राम कुमार चन्द्रवंशी

           बेलरगोंदी (छुरिया)

            जिला-राजनांदगाँव




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