Friday 1 July 2022

गांव म रोका-छेका तईहा के चलत हे--*


 

*गांव म रोका-छेका तईहा के चलत हे--*


हमर ग्रामीण अंचल में लोक संस्कृति के भंडार भरे हवे। गंवई-गांव में किसिम-किसिम के तिहार माने जाथे, जेकर अलग-अलग संदेश भरे होथे। ग्रामीण संस्कृति के जुड़ाव सोझे प्रकृति ले जुड़े होथे। प्रकृति अउ गाय-गरु के असली संगवारी ओकर रखवार गांव के मनखे मन ही बने हवय। गाय-गरुवा बिना गांव के कोनो काम नई होय सकय। गांव के कृषि संस्कृति म गाय-गरुवा मन के अब्बड़ महत्व हवय। गाय-गरु अउ प्रकृति ले जुड़े के सेती गांव के मनखे मन जादा ठहिल होथे। गंवईया मनखे के जादातर सबो आवश्यकता के पूरती घलो गंवई-गांव ले ही हो जथे।


गांव म रोका-छेका तईहा जुग ले चलत हवय। जेला गांव मे रऊत के लऊठी लेना के नाव ले जाने जाथे। धान बोय के पन्द्रह-बीस दिन बाद जब धान हरियर-हरियर दिखे ल लगथे,अउ उही बेरा म गरुवा मन हरियर चारा देख के चरे बर खेत के भीतरी में खुसर जथे। तब ये रोका-छेका के उदिम करे जाथे। गांव म जादातर बुधवार-रविवार के दिन तिहार सही मानके शुरू करे जाथे। ओकर बिहान दिन ले रोज बरदी चरईया रऊत मन गरु-गाय मन ल खैरखाडाँड़ म छेके के चालू करथे। यही सेती येला रोका-छेका के नाव के जाने जाथे। अभी छत्तीसगढ़ के संस्कृति ल पोठ करैया वर्तमान सरकार घलो रोका-छेका अभियान के नाव ले हर साल 1 जुलाई के कार्यक्रम ल तिहार सही मनाथे। जेहर ओकर ठेठ छत्तीसगढिहा होय के बडका कारण हरे।


लउठी लेय के दिन बिहिनिया ले तिहार के सेती महतारी मन घर-अंगना के लिपई-पुतई ल घलो जल्दी कर डारथे। फेर रउत मन हूम-धूप नरियर-फाटा धरके गांव के खैरखाडाँड़ म बिराजे सांहड़ा देव के तीर म पहुँच जथे। गांव के बैगा अउ सियान मन के गोधन के मंगल कामना अउ बढ़वार बर सुमरन करत पूजा-पाठ के संग रउत मन के नवा बनाके लाये तेंदू के लउठी के घलो पूजा करे जाथे। पूजा के पीछू लउठी ल सांहड़ा देव के सुमरन करत अपन कर रख लेथे अउ इहि ल रऊत मन के लउठी लेवई के नाव के जानथे। फेर गाय-गरुवा मन ल एक जगह छेके के शुरू हो जाथे।


इहि दिन ले गांव भर के मनखे मन अपन सबो गाय-गरुवा मन ल बिहिनिया ले खैरखाडाँड़ म लाके रउत के हाथ म चराय बर सौप देथे,अउ रोका-छेका अभियान के सुघ्घर शुरुआत हो जथे। गांव के जम्मो गाय-गरुवा के मालिक मनखे मन आज ले चराय के शुरुआत होत हे कहिके अपन बरदिहा मन बर सेर चाँउर जेमे चाँउर, दार, साग,नून, मिरचा सुपा म धरके बिहिनिया ले गरुवा मन संग ले आथे,तेला सांहड़ा देवता कर खड़े रउत मन ल भेंट करत देय जाथे। रऊत मन परेम से अपन मालिक के देय सेर चाँउर ल रख लेथे। येला साल भर बर गरुवा चराय के परेम-बंधन म बंधे के सेती भेंट कही सकथन। रऊत मन के साल भर के कमई ल धान-कोदो ल मिंजे के बाद देय जाथे। तेला जेवर देवई कहे जाथे।


बरदी छेकाय के बाद किसान मन के जीव हाय लगथे। काबर के अब गाय-गरुवा मन उँकर फसल के नुकसानी नई कर सकय। फेर बिना फिकर के खेती-किसानी के बुता शुरू हो जाथे। कई ठन गरुवा मन हरहा-हरही घलो रथे,ओमन बरदी में अउ गरवा मन संग चरना पसंद नई आये ओला तो अकेला निकल के सोतंत्र चरना बने लगथे। रउत भैया मन कर एकरो उपाय रथे। जादा अतलंग करईया गरुवा मन के नरी में खड़पड़ी,घण्टी,टेपरा,झूला,लहंगर,लादका घलो बांध देथे। फेर उँकर अलगाये के बेरा म चरईया रउत मन ल पता हो जथे अउ ओमन ल छेक म फेर बरदी म संघेर लेथे।


गांव म जादा हरही-हरहा गरु-गाय जेहर बरदिहा मन ले छुट के नंगत भाग जाथे। अईसन भगईया गरुवा मन के कतिक पीछू परे रही। उँकरो बर गांव के मन घलो छेके के बेवस्था करे बर एक ठन अउ उदीम रखे रथे। जेला मुड़का केहे जथे। मुड़का में गांव भर के लोगन मन के पारी चार-पांच घर के मनखे मन संग रोज के ओरी-पारी लगथे। येमन अपन-अपन पारी म गांव के जम्मो खार कोती दिन भर घुमत हरही-हरहा गरुवा मन ल देखत रथे। कहूं ककरो गरुवा ल खेत म चरत देख डारिन त ओला सबो झन छेक बांध के गरुवा वाले घर अमरा देथे। अउ तुंहर मुड़का लगगे कहिके बता देते। फेर ओ किसान ल गांव म तय मुड़का के दाम धान-पैसा ल देय ल पड़थे। जेहा मुड़का पारी वाले मन के होथे। येकर ले भगईया गरुवा वाले किसान मन गरुवा ल मत भागे अईसन उपाय रउत भैया मन संग मिलके करथे। फेर उही खड़पड़ी, झूला,लहंगर,घण्टी बांधे के जोरा करथे। सबो फसल लुवाय के पीछू मुड़का पारी अवइया साल के आत ले बन्द रथे। अउ रऊत मन के बरदी चरई ह फागुन तिहार के बाद छेलला हो जथे।


गंवई-गांव के किसान मन अइसने ढंग ले रोका-छेका के उदिम ल करत अपन खेती-किसानी के जब्बर बुता एक-दूसर के बने परेम ले सहयोग ल करत अउ सबो जीवधारी मन बर जेवन के बेवस्था करत धरती दाई के सेवा करत रथे। 


          हेमलाल सहारे

मोहगांव(छुरिया)राजनांदगांव


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