Saturday 23 July 2022

संस्मरण- मोर नान्हेंपन के चउमास


 

संस्मरण- मोर नान्हेंपन के चउमास //*=======०००=========

(दिनांक-१८.०७.२०२२)


     मोर नान्हेंपन के चउमास के सुरता करके बचपन के वो अल्हड़पन, चुलबुलेपन, हरदम हंसमुख वो चेहरा  सुरता रूपी आईना म जस के तस झलके लगीस :-

*वाह-वाह ! वो बचपन के ज़िन्दगी कत्तेक सौभाग्यशाली अउ अनमोल रहिस, जेमा कुच्छु बात के न तो संसो-फिकर, न ही कोनो प्रकार दुख-तकलीफ के एहसास रहिसे, तभे तो ये पंक्ति बरबस याद आ गे :-

*ये दौलत भी ले लो*

*ये शोहरत भी ले लो*

*भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी*

    *मगर मुझको लौटा दो*

   *बचपन का सावन*

    *वो कागज की कश्ती*

    *वो बारिश का पानी*

    *सिरतोन वो जिंदगी अनमोल रहिस | जब चउमास के पहिली बारिश होवय,तब गांव बाहिर के खेत-खार, डबरा-तरिया म ओंय-ओंय के आवाज करत  करिया-पींवरा भिंदोलवा ला खेलौना बना के खेलत रहेन | पहिली तो बेसरम के सुटिया ला पटक-पटक के ओमन ला बीदारत रहेंन,जब ओ भींदोलवा मन चंग-चंगौहन पानी भीतरी कूदत रहीन,तव हमू मन ओ डबरा के चारों मुड़ा दौड़-दौड़ के कुदावत रहेन | फेर कोनो ल रस्सी म बांध के चल बईला, चल बईला कहिके आनंद लेवत रहेन*

 *

    *जब कोनो तरिया-पोखर  नदियां म तऊड़े लाईक पानी हो जाय, तब खूब तऊड़-तऊड़ के मजा लेवत रहेन, तऊड़त-तऊड़त आंखी लाल हो जाय !  फेर हम ला कुछू बात के चिंता-फिकर नइ रहत रहिस | जब घर पहुंचत रहेन, तव बुढ़ीदाई ह हमर आंखी ल लाल-लाल देखत रहिस, तब खूब खिसियावै-डबरा म तैं खूब तऊड़े हस का रे ?  तऊड़े हस के नहीं ? अउ तड़तड़ौहन अउहर-चउहर ल थपरा मारे, अउ कहै- अब झन तऊड़बे ,वो तरिया म खूब जोखवा हवय ! समझे के नहीं ?    

      तब हव दाई कहन अउ बिहान दिन फेर कोनो संगी-साथी ल देख के फेर तऊड़त रहेन | 

     *नवा अउ गंदला पानी म तऊड़े से कई बार सर्दी-बुखार हो जाय, फेर हम ला कहां ये सब बात के ग्यान रहिस ?*

     *जब पढ़े बर स्कूल जावत रहेन, तव बरसत पानी म भींजे के मजा लेवत रहेन | पांव म चप्पल-जूता नइ रहत रहिस, गली-खोर म नहर सहीं बोहावत पानी म छपाक-छपाक रेंगे के मजा ही कुछ अलग रहै | सिरिफ हमर पुस्तक-कापी भर झन भींजे सोंच के मोरारजी भाई देसाई ब्रांड राखड़-यूरिया के बोरी ल डबल मोड़ के मुड़ी ले पीठ डहर तोप लेवत रहेन अउ छपाक-छपाक रेंगत पढ़े जावत रहेन |*

     *सावन सोमवार के दिन हाफ डे के बाद छुट्टी हो जावत रहिसे, तब पारा-मुहल्ला म कोनो किसान के रोपा लगाए बर जावत रहेन, तव बीस पैसा, या कोनो चार आना देवत रहिन | वो बखत जेब म एक पैसा,दू पैसा, तीन पैसा, दस पैसा, बीस पैसा, चार आना, आठ आना कभू एक रूपीया धरे रहन, तव खूब पैसा धरे हौं, तईसे लागै*

     *वो बखत आठ काड़ी वाला छाता ह आठ आना अउ बारह काड़ी वाला छाता ह बारा आना म मिलत रहिस, तभो ले खूब महंगी हवय कहिके बीसावत नइ रहेन | हमर गुरूजी या गांव के कोनो मनखे  मन छाता ओढ़े रहत रहिन, तऊन मन ल  खूब पूंजीपति समझत रहेन*

     

    * *कोनो दिन स्कूल ले पढ़ के आते साथ दौड़त गली डहर भाग जावत रहेन, फेर सबो संगी जुरिया के बीच गली के चौरा म नदी-पहाड़ खेलत रहेन | कोनो दिन भौंरा-बांटी, डंडा-पचरंगा, गिल्ली डंडा खेल ला  खूब बिधून हो के खेलत रहेन*

      

     *कभू जम्मो संगवारी जुरिया के अपन दूनो हाथ ल भुईयां म पल्टी राखत रहेन अउ एक गड़ी ह गीत गावत कहै :-

*अटकन बटकन दही चटाका*

*लउहा लाटा बन के काटा*

*तुरू-रूरू पानी आवै*

*सावन म करेला फूटै*

*चार-चार बिटिया गंगा गईन*

*गंगा ले गोदावरी*

*पाका-पाका बेल खाईन*

*बेल के डारा टूट गे !*

*भरे कटोरा फूट गे ,!!*

*मुड़ म बांधे पागा*


*गोपाल सिंह राजा*

   कभू सब गड़ी गोल घेरा बना के खड़े रहत रहेन अउ एक झन संगवारी ह  सब सहेली मन  ल कविता/गीत सुनावत रहिस  :-

     *

*अक्कड़ बक्कड़ बाम्बे बोल,,,*

*अस्सी नब्बे पूरे सौ*

*सौ मिलाकर धागा*

*चोरी करके भागा !!*

       *फुर्र -फुर्र*.........


*कभू सब संगवारी जुरिया के एक-दूसर के हाथ ल पकड़  के गोल खड़ा हो जावत रहेन अउ बीच म एक संगी खड़े रहै तऊन ह जोड़े-जोड़े हाथ ल छू के कहै :-

*अतका-अतका पानी*

*घोर-घोर रानी*-२

*घुठवा अतका पानी*

     *घोर-घोर रानी*

*माड़ी अतका पानी*

       *,घोर-घोर रानी*

*कनिहा अतका पानी*

      *घोर-घोर रानी*

*छाती अतका पानी*

     *घोर-घोर रानी*

*नरी अतका पानी*

     *घोर-घोर रानी*

*मुड़ी अतका पानी*

     *घोर-घोर रानी*

*पोरीस अतका पानी*

      *घोर-घोर रानी*


*एमा ले जाऊंगी*?

     *ताला लगाऊंगी*

*एमा ले जाऊंगी ?*

      *कुंडी लगाऊंगी*

*एमा ले जाऊंगी ?*

   *बहिरी मुठिया मारूंगी*

*एमा ले जाऊंगी ?*

   *डंडा लगाऊंगी*


तब वो बीच खड़े वाला गड़ी ह जोड़े हाथ के तरी ले बुलक के भागै, तब सब संगी ओला कुदाते हुए कहैं-पकड़ो पकड़ो पकड़ो ..........


   *कभू गिल्लीअअ(इब्बा)-डंडा खेलन, कभू डंडा-पचरंगा खेलते रहेन :-

      ( *चाक पक्की*)

    *कभू एक कमरा म कोनो स्लेट, पट्टी, पल्ला या भीथिया (दीवाल) म एक गड़ी द्वारा चाक या बत्ती ले कई कोरी छोटे-छोटे लकीर खींचे रहन अउ दूसरे गड़ी जऊन आने खोली म चाक/बत्ती ले कई कोरी लकीर खींच के छुपाए रहन, तऊन ल खोझे बर बुलावत रहेन | एक-दूसरे के खींचे लकीर ल जतेक देखाऊ पावत रहेन, ओतेक सब ल चाक से काट देवत रहेंन, अउ जितना लकीर बांचे रहै वोला  गिनती करके ओतके मुटका हरू-हरू मारत रहेन | ए ला "चाक-पक्की" खेल कहत रहेन*

   *ये जम्मो खेल मन ल चऊमास म ज्यादा खेलत रहेन*

    *जब सावन महीना म रंग-बिरंगी तितली अउ फुरफुंदी ल उड़ावत देखन, तव ऊंकरो संग खेले के मन होवय | रंग-बिरंगी तितली ल पकड़ के खूब आनंदित होवत रहेन |*

    *एक विशेष बात अउ सुरता आवत हवय-"पकड़े रहन तऊन फुरफुंदी ल मार के छोटे से गड्ढा म गड़िया देवत रहेन अउ मन म जिग्यासा रहै के बिहान दिन वो फुरफुंदी या तितली ल खोद के देखबो,तब वो ह पैसा बन जाही ! लेकिन ए ह सिरिफ भ्रम मात्र आय, कभू एको पैसा हम ला नइ मिलीस !*

   

  *चऊमास म झुंड के झुंड उड़ावत कोकड़ा ल देख के कहत रहेन-"चाउर दे कोकड़ा, चाउंर दे कोकड़ा-चाउंर दे कोकड़ा ......  जब कोकड़ा मन उड़ते-उड़ते दूरिहा चले जावत रहिन, तब अपन हाथ के ऊंगली के नाखून मन ल देख के कहत रहेन-"ए दे कोकड़ा ह मोला चाऊंर देहिन हवंय*! 

    *कभू-कभू खाली-खाली माचिस ल जोड़ के रेलगाड़ी बनावत रहेन, तव कभू दूं ठन खाली माचिस के बीच म लम्बा सुतली बांध के दूसरे छोर से संगी-साथी मन हलो-हलो कहैं, तब अईसे लागत रहिस-सिरतोन म टेलोफोन से बात करत रहेन, जबकि वो बखत हमन टेलीफोन देखे-सुने नइ रहेन | ये खेल ह हमर जिग्यासू प्रवृत्ति या वैज्ञानिक विचार के प्रथम लक्षण कहे जा सकथे* |

      *अषाढ़-सावन महीना म पतंग उड़ाए के आनंद खूब मिलै | पतंग जतके दूरिहा उड़त जावत रहिसे, हमर इच्छा अभिलाषा अउ कल्पना के उड़ान ओतके उंचाई उड़ते जावत रहिस*

      *सावन सुदी पंचमी (नागपंचमी) के दिन विशेष रूप से कबड्डी,कुश्ती खेले के आनंद खूब मिलै*

      *वो दिन नोनी मन गांव के गुंड़ी (चौपाल) म खो-खो प्रतियोगिता खेल के खूब आनंदित होवत रहिन*

      *तईसने सावन लगते ही तलाव खाल्हे अमरैया म आमा के डाली म रस्सी बांध के नोनी मन सावन झूला के खूब आनंद लैवत रहिन अउ वोही आमा तरी रेहचुल गड़े रहै,तेमा झूल के खूब मज़ा मिलत रहिस*

    *चऊमास महीना म जब करिया-करिया बादल उमड़ै, ज़ोर-जोर से पुरवाई हवा चलै, तब चिरई-चिरगुन मन अटखेलिया करते हुए खूब कलाबाजी करते हुए आसमान म उड़ावैं," तब चिरई-चिरगुन मन ल उड़ावत देख के मोरो मन होवय-मैं भी आकाश के ऊंचाई म खूब दूर तक उड़तेंव !" एही सोच के मैं भी अपन दूनो हाथ म छोटे-छोटे सुपेली ल बांध के आसमान म उड़े के कोशिश करेंव, फेर सफल नइ हो सकेंव, मोर मन आज तक एही भावना भरे हवय-"आसमान के खूब ऊंचाई म उड़ते हुए जातेंव, लेकिन ए अभिलाषा ह अभी तक पूरा नइ हो पाए हवय, पता नहीं कब पूरा होही ?*


(दिनांक-१८.०७.२०२२)


    आपके अपनेच संगवारी

*गया प्रसाद साहू*

   "रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)

पिन-४९५११३

मो नं-९९२६९८४६०६

🙏☝️✍️❓✍️👏

1 comment:

  1. प्रिय भाई जितेंद्र वर्मा "खैरझिटिया" जी
    जोहार पांयलागी
    "संस्मरण मोर नान्हेंपन चउमास के" निबंध ल लिखते-लिखते सिरतोन म मोर नान्हेंपन के वो सब बात ह आईना सहीं दगदग ले झूलत रहिस | बचपन के बात ल सुरता कराए बर ए विषय देवैया आदरणीय गुरूवर श्री अरूण निगम जी की छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर वाट्सअप ग्रुप के निर्माता आदरणीय डाक्टर सुधीर कुमार शर्मा जी ल हिरदय ले धन्यवाद अउ आभार |
    साथ ही मोर लिखे ए संस्मरण ल "छंद के छ" गद्य खजाना म सदा दिन बर सहेज के राखे बर आप ला हिरदय ले धन्यवाद अउ आभार व्यक्त करत हौं

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