Sunday 17 July 2022

व्यंग्य--गुरू गूगल दोउ खड़े

 व्यंग्य--गुरू गूगल दोउ खड़े 


गुरूर्ब्रम्हा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वरः।

गुरूः साक्षात् परब्रम्ह तस्मै श्रीगुरूवे नमः।

गुरूपूर्णिमा गुरू - नमन, वंदन, पूजन के दिन हरे। असाड़ के पुन्नी ल गुरूपूर्णिमा कहिथे। ये दिन प्रकृति म गुरूतत्व ह हजार गुना क्रियाशील रहिथे, जेकर ले ओकर फल तको हजार गुना फलित होथे। इही दिन कृष्ण द्वैपायन महर्षि वेदव्यास जी ह 18 पुरान अउ उपपुराण मन के रचना करे रिहीन। पंचम वेद ‘महाभारत’ के रचना विश्व के प्रथम आशुलिपिक शिव-शिवानंदन श्रीगणेश के करकमल ले पूर्ण करे के पीछू ‘ब्रम्हसूत्र’ लेखन के श्रीगणेश करीन, तेकर सेति येला व्यासपूर्णिमा के रूप म तको मनाए जाथे। कतको व्हाटसेपिया ज्योतिषाचार्य मन व्यासजी ल तको असाड़ पूनम के दिन अवतरित कर डारे हावय। इही व्हाट्सेपिया-फेसबुकिया सखा-सहेली मन के परसादे ये दिन ल व्यासपूर्णिमा नाम देके ओकरो जनमदिन के बधई गा-गवा लेथन। व्यास जी ल आदिगुरू अउ आद्यशंकराचार्य जी ल महर्षि वेदव्यास के अवतार माने जाथे।

भारतीय संस्कृति म गुरू के जगा अबड़ ऊँच हे। गुरू के महिमा बड़ पोठ, महान अउ गरू होथे। भगवान तको इहां अवतरथे त गुरूच के शरन म जाथे। इही कारण मया, राजनीति अउ प्रबंधन के पुरोधा लीलाधारी कृष्ण ह सांदीपनी के आश्रम म तन-मन-धन ले सेवा करिस, त मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम तको गुरू वशिष्ठ के चरन-कमल के अनुरागी बनिस। कहे जाथे कि गुरू- शिष्य परम्परा ले घिसा -पिटा के ‘सिख’ शबद बने हे। गुरू-शिष्य परम्परा ह सिख समुदाय के मऊर-मुकुट हरे।

‘गु’ माने अंधकार या अज्ञान अउ ‘रू’ माने तेज, प्रकाश या ज्ञान। अर्थात गुरू ही ब्रम्ह हरे, जउन अज्ञानता के अंधियार ल मेटार के जिनगी म ज्ञान के अंजोर बगराथे।

गुरू ज्ञान के खदान, उड़ान के ऊँचान अउ भक्ति के मचान होथे। गुरू भक्ति के उचान-मचान ले ही ईश्वर के संज्ञान अउ मिलन होथे। आजकल के विद्यार्थी भले बड़े -बड़े डिग्री ले अपन परिचय-पहिचान कराथे, अर्थ के सीढ़ी चढ़ विद्या के अर्थी निकालथे, सोचिंग के पाठशाला ले निकल कोचिंग के गौशाला म झींगालाला कर लेथे, फेर पहिली कोनो भी शिष्य के पहिचान ओकर गुरू ले होवत रिहिसे। सही कहिबे त गुरू बिना मानुष जिनगी अधूरा, अबिरथा अउ गारद हे। 

एक योग्य शिष्य ल ‘कुत्त सुत्त बक्क ध्यानम्’ (श्वान निद्रा बको ध्यानम्) माने कुकुर बरोबर सुतई-उठई अउ कोकड़ा बरोबर एकथई मन ले लक्ष्य ल साधना-बेधना चाही तभे जिनगी के लक्ष्य- स्वयंवर म मछरी के आँखी छेदन -भेदन संभव हो सकथे । आज के शिष्य अतेक गुनी, ग्यानी अउ डेढ़ हुसियार हे कि अपन लक्ष्य म शेर बरोबर झपट्टा मारके काकरो भी मुँह के कौंर ल लपके-झटके म महारथ हासिल कर लेहे। कोनो- कोनो शिष्य अपन योग्यता, अनभो अउ अनुमान ले अतेक सीख डारथे कि गुरू ल तीन कोस पीछू ढकेलके अपन पाँच कोस आगू निकल जथे। गुरू गुरूता के गुर धरे, माछी झूमत गुड़ के ढेला रहि जथे अउ चेला शक्कर -मिश्री के रद्दा होवत सिंघासन बिराज नरियर के भेला झेले-पगुराए लगथे। 

गुरू के गुरूता अउ महानता के पहिचान ओकर शिष्य ले होथे तेकर सेति योग्य गुरू योग्य शिष्य के तलाश म लगे रहिथे। इही कारन गुरूजी गनित के असली गुर ल कक्षा म नइ बताके ट्यूशन म बताथे। जे दिन गुरूजी नाक ल ऊँच करके राजप्रासाद ले राजप्रसाद के रूप म श्रेष्ठ गुरूजी के प्रमाणपत्र झोंक-पा लेथे ओ दिन ले ओकर सिद्ध-शुद्ध चरू लोटा म काई रचे लगथे। ओमा के पवित्र गंगाजल ह तको ताम के लोटा म धरे अम्मट कस कसा जथे। ओकर मान-सम्मान ह जोंखी छाँड़के गुरूजी ले गरूजी होय लगथे। जे दिन वो ह गुरूता अउ श्रेष्ठता के टोंटा ल मुरसेट के अपन आप ल राजसात कर लेथे वो दिन ले अतेक हरू हो जथे कि राजपुरूष अर्जुन बरोबर श्रेष्ठ धनुर्धर ल तको गरीबहा, अधनंगा अउ बनवासी एकलव्य के अंगठा के आगू मुड़ी नवाए बर पर जथे। ये ह गुरूजी के महानता अउ गुरूता के गरूता हरे कि एकलव्य के अंगठा काटके चरणदास जइसन चोर-ढोर ल अर्जुन सही श्रेष्ठ घोषित करे म कोनो संकट आवय न संकोच। राजयोग अउ हठयोग के राम-भरत मिलाप इतिहास के स्वर्णिम पल होथे जब करन जइसन योग्य अउ गुनी मनखे ल तको मंत्रालय म अंगराज के पद पाए बर दुर्योधन जइसन कायर, कपटी अउ चालबाज राजपुरूष के सिफारिश अउ ठगयोग के आसरा लेहे बर परथे।

गुरू गोविन्द दोउ खड़े काके लागू पाय।

बलिहारी गुरू आपनो, गोविन्द दियो बताय।।

जिहां गुरू अउ गोविन्द दूनों मया ओरमाए खड़े रहिथे ओमेर गुरू के पहिली पाँव परना-पखारना भल मानना चाही काबर कि गुरूच ह ईश्वर ले परिचय कराए हे कहिथे। कोनो- कोनो अइसनोहो ब्याख्या करथे कि गुरू अउ गोविन्द दूनो खड़े रहिथे अउ कहूँ चेला के मुड़ म शंका के ढेला माढ़के विचार के डंका ठठाए लगथे कि काकर पायलगी पहिली करवं, त गोविन्द खुदे कहि देथे - इही चंडाल के पहिली पर बेटा ! काबर कि मोला तो तोर चिन्ता हावय-च, मैं ह तो कइसनो करके तोला उबारी लेहूँ। येला ‘एनी नॉट फिकर-संसो’। येला अपन गुरूता अउ गरूता के चिन्ता हे। एकर पायलगी पहिली नइ करबे त ये ह तोला कोनो मेर उदुपुहा बोज देही, नाश देही।

गुरू गूगल दोउ खड़े ..........।

चेला जब चितिया-चिथिया जथे तब ओकर चेथी म दही चटाकन चटकावत गूगल कहिथे - रिचार्ज के गुग्गुल जला, मोला पहिली मना। तेकर पीछू प्रश्न के नाँगर जोतबे रे बइला !! खखुवाए-भकुवाए चेला दऊँड़े - दऊँड़े रिचार्ज कराथे, तेकर पीछू गूगल बताथे- हे वत्स ! तोर गुरूजी के मोबाइल सेवा ल अस्थायी रूप ले बंद कर देहे गे हे। अइसे तैं जिहाँ खड़े हवस, सर्च इंजन म उही मेर तोर गुरूजी के मोबाइल नंबर बतावत हे। छू- टमरके खोज-देख ले।


जय जोहार !!

धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346

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