Friday 1 July 2022

गुनान -सरला शर्मा राम कथा ( राम चर्चा ) लेखक मुंशी प्रेमचंद ...




 

गुनान -सरला शर्मा

     राम कथा ( राम चर्चा ) लेखक मुंशी प्रेमचंद ...

 प्रकाशक ....साहित्यागार    एस . एम . हाइवे जयपुर 

संस्करण ....1992 

     अभी तक मैं मुंशी प्रेमचंद के साहित्य ल समाज , परिवार , देश , राजनीतिक फेर बदल के बारे मं पढ़त आए हंव चाहे कहानी होवय , उपन्यास होवय या लेख होवय फेर राम कथा सुन के चिंहुंक गएवं ..। एक ठन साहित्यिक ग्रुप मं लिख देहेवं के ये कोनो आने प्रेमचंद होही त बुधियार साहित्यकार दिनेश कुमार गर्ग कहिन " किताब के पीछू डहर मुंशी प्रेमचंद के आने किताब मन के नांव घलाय तो छपे हे दूसर बात के डॉ. हरि महर्षि लिखे हें " राम कथा " मुंशी प्रेमचंद की अनचीन्ही रचना है ..........

रोचक शैली और सरल सुबोध भाषा में प्रस्तुत करने का प्रेमचंद का स्तुत्य प्रयास है । " 

    पेट भर सांस लेके पढ़े बर शुरु करेवं ...फेर मन तो बगटुट भागे लगिस, गुने लागेवं अरे भाई ! तइहा दिन ले तो रामकथा लिखत आवत हें साहित्यकार मन ...त मुंशी प्रेमचंद असन प्रतिष्ठित लेखक ल रामकथा लिखे के जरुरत काबर पर गिस ?

साहित्य ल हमन वाचिक परम्परा अउ शिष्ट साहित्य के रुप मं जानथन फेर वाचिक परम्परा के साहित्य संग ही लौकिक साहित्य दूध मं पानी कस मिले मंझरे मिलथे । रहिस बात राम कथा के त वाल्मीकि रामायण , आध्यात्म रामायण ल जानथन फेर सबले ज्यादा लोकप्रियता मिलिस तुलसीदास के रामचरित मानस ल इन तीनों पोथी के अनुसार तो राम के जन्म त्रेता युग मं अयोध्या के राजा दशरथ अउ महारानी कौशल्या के घर होए रहिस ...माने राम अवतारी पुरुष रहिन ...फेर हाड़ मांस के चलत फिरत मनसे च तो रहिन न ? अपन कर्तव्य निभाईन , सत के रस्ता मं चलिन , राक्षस मन के विनाश करिन तभे तो मर्यादा पुरुषोत्तम कहाइन ...लोक मन मं देवता के जघा पाइन । सुरता आइस के नर तन के तीन रूप होथे ...देव , दानव अउ मानव विद्वान मन कहिथें के मनसे जब धर्म के रस्ता मं चलथे त देव बनथे , कुमारग मं चलथे त दानव बन जाथे मतलब तो इही होइस न के जनम से सबो झन मनसे च होथें कर्म के अनुसार देव , दानव बनथें तभे तो तुलसीदास लिखे हें " कर्म प्रधान विश्व करि राखा ...। " 

मुंशी प्रेमचंद के राम चर्चा मं राम के कर्म प्रधान जीवन के मानवोचित रुप के प्रतिष्ठा करे गए हे । 

     एक बात उनहूँ कहे हें के दशरथ पुत्र राम के अवधारणा समाज मं आदर्श के स्थापना बर करे गए हे चाहे वो शिष्ट साहित्य होय चाहे वाचिक ...। ध्यान देहे लाइक बात एहू हर तो आय के त्रेता युग के राम कथा के बहुत पहिली भी शिष्ट साहित्य मं राम के चर्चा होए हे ...देखव न ऋग्वेदीय साकल संहिता के दशम मंडल के 99वें सूक्त मं विस्तार से राम स्मरण हे ...

" भद्रो भद्रया सचमान आगत् स्वसारम् 

  जारो अभ्येति पश्चात् । 

       इही तरह " मंत्र रामायण " मं 240 राम विषयक मंत्र संकलित प्रकाशित हे जेकर भाष्यकार हें पंडित नीलकंठ शास्त्री ..। 

एकर अलावा भी " नारद रामायण " अउ " कौशिक रामायण " भी तो उपलब्ध हे ..। कहि सकत हन के प्रत्येक कल्प मं देश , राज , समाज मं आदर्श के स्थापना बर भगवान के अवतार होवत गए हे ...प्रश्न तभो मूड़ उठाए खड़े हे के अवतार होइस मनसे के रुप मं जेला भगवान के रुप मं प्रतिष्ठित करिन मनसे च मन ...जिन मन ल हम युगीन साहित्यकार भी कहि सकत हन । 

तभे तो एक झन लिखे हे ...

" आदमी टूटा हुआ ख्वाब है , फरिश्तों का ..। " माने मनसे हर मनसे च आय भगवान नोहय त फेर एहू तो कहि सकत हन के ईश्वरत्व या देवत्व हर गुण ,धर्म ,आचरण आय तभे तो जेन मनसे ए तरह के दैवीय आचरण करिन तेन मन ल मनसे देवता या ईश्वर या भगवान कहे लगिन चाहे वो दाशरथि राम होय चाहे वासुदेव कृष्ण । 

    मुंशी प्रेमचंद संक्षिप्त मं रामचरित मानस के सातों कांड के कथा बोधगम्य भाषा मं लिखे हें । उन किताब के आखिर मं लिखे हें .....अंत...

" उनके ( राम के ) जीवन का अर्थ केवल एक शब्द है और उसका नाम है " कर्तव्य " । उन्होंने सदैव कर्तव्य को प्रधान समझा , जीवन भर कर्तव्य के रास्ते से जौ भर भी नहीं हटे , चौदह वर्ष जंगलों में रहे , अपनी जान से प्यारी पत्नी को कर्तव्य पर बलिदान कर दिया । प्रेम, पक्षपात और शील को कभी कर्तव्य के मार्ग में आने नहीं दिया । यह उनकी कर्तव्यपरायणता का प्रसाद है कि सारा भारत देश उनका नाम रटता है और उनके अस्तित्व को पवित्र समझता है । इसी कर्तव्यपरायणता ने उन्हें आदमियों के समूह से उठाकर देवताओं के समकक्ष बैठा दिया । यहां तक कि आज निन्यानवे प्रतिशत हिन्दू उन्हें आराध्य और ईश्वर का अवतार समझते हैं । " 

  बच्चों ! तुम भी कर्तव्य को प्रधान समझो । कर्तव्य से कभी मुंह न मोड़ो इसे पूरा करने में बड़ी बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा किन्तु कर्तव्य पूरा करने के बाद तुम्हें जो प्रसन्नता प्राप्त होगी वही तुम्हारा पुरस्कार होगा । " 

        अब समझ मं आइस के मुंशी  प्रेमचंद संसार प्रसिद्ध गोदान , गबन , कर्मभूमि , मान सरोवर ( आठ भाग ) अउ बहुत अकन किताब लिखे के बाद भी राम कथा काबर लिखिन ? राम कथा के बहाने ओ समय अंग्रेजी राज के विरोध मं स्वराज्य प्राप्ति बर लइकन के मन मं देश के प्रति कर्तव्य बोध जगाना चाहत रहिन । लइकन ही तो देश राज के भावी कर्णधार , नागरिक होथें न ..। 

  पुरौनी 

******  रामकथा मुंशी प्रेमचंद के हिंदी मं लिखे किताब आय तभो ले लोकाक्षर छत्तीसगढ़ी ग्रुप मं एकर चर्चा करें हंव एकर कारण आय के ये किताब हर चर्चित नइये ते पाय के बहुत झन पढ़े भी नइएं ...। किताब के फोटो भी इही पाय के देहे हंव । 

     सरला शर्मा 

      दुर्ग


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