Saturday 9 July 2022

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक छत्तीसगढ़ी अनुवाद - दुर्गा प्रसाद पारकर


 

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक

छत्तीसगढ़ी अनुवाद - दुर्गा प्रसाद पारकर


लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के जनम 23 जुलाई 1956 म महाराष्ट्र के तटीय नगर रतनागिरि म होए रिहिस। ओकर लालन-पालन धार्मिक परिवार म होय रिहिस। ओकर ददा (पिता) के नाम गंगाधर राव अउ दाई (माता) के नाम पार्वती बाई रिहिस। ओकर पिता जी स्कूल मास्टर रिहिस, बाद म स्कूल मन के निरीक्षक बन गे। पिता कट्टर अनुषासन प्रिय अउ गम्भीर सुभाव के मनखे रिहिस। तिलक उपर पिता के अनुषासन प्रियता के प्रभाव परिस।

    लोकमान्य तिलक के ननपन ले ही पढ़ई बर लगन रिहिस। गणित, इतिहास अउ संस्कृत म ओकर जादा रूचि रिहिस। एक घांव अपन पिता जी ल एक ठन संस्कृत नाटक कादम्बरील पढ़त देख के अपनो ह पढ़े के इच्छा जाहिर करिस। सुन के पिता जी ह आष्चर्य चकित तो रिहिसे काबर कि ओ किताब ह बड़े लड़का मन के रिहिसे तभो ले ओला मना तो नइ करिस फेर एक ठन

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गणित के कठिन सवाल हल करे के बाद ओला किताब दे बर शर्त रखिस। गणित के प्रष्न ह बाल गंगाधर के उमर के लइका मन बर बिक्कट कठिन रिहिस तभो ले तिलक ह ओकर चुनौती ल स्वीकार करके ओला हल कर दिस। 

तिलक जब दस बच्छर के रिहिस तभे ओकर महतारी (माता) के इंतकाल हो गे। सोला साल के उमर म तिलक के बिहाव घर तीर के (पड़ोसी) तापीसत्यभामा बाई नाम के नोनी संग होइस। बिहाव म दहेज के रूप म तिलक ह पढ़े बर किताब लेना स्वीकार करिस।

तिलक ल वाद-विवाद बहुत पसन्द रिहिस। एमा ओला बोले के क्षमता ल बढ़ाय बर सफलता मिलिस। जउन ओकर बाद के जीवन म बहुत काम अइस।

तिलक ह छात्र के रूप म कालेज म पाँच बच्छर बितइस। गणित म प्रथम श्रेणी म पास होके सन् 1877 म स्नातक के डिग्री लिस। दू बच्छर बाद कानून के डिग्री प्राप्त करिस। ओकर बाद अपन संगवारी (मित्र) आगरकर के संग वकालत सुरू कर दिस।

मनखे मन म उचित षिक्षा के कमी ले तिलक बिक्कट (बहुत) दुखी रिहिस। ओहा षिक्षा ल स्वतंत्रता अउ विकास के मूल षर्त मानिस। सन् 1880 म न्यू इंग्लिष स्कूल के स्थापना करिस।

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सन् 1885 म डेकन एजुकेषन सोसायटी के स्थापना षिक्षा के क्षेत्र म ओकर मुख्य कदम रिहिस।

जन समुदाय ल षिक्षित अउ ज्ञानवर्धक बनाए बर तिलक ह मराठी म केसरीअउ अंग्रेेजी म मराठासमाचार पत्र निकालिस। अपन अखबार के माध्यम ले लोगन मन ल तिलक ह ब्रिटिष सरकार के नीति मन के अउ अपन राष्ट्रीयता के बारे म बतइस। ओकर जोरदार लेख मन ह समाचार पत्र ल बिक्कट लोकप्रिय बना दिस अउ स्वतंत्रता के जरूरत बर जन समुदाय के आँखी ल उघार (खोल) दिस। ओकर राष्ट्र के लक्ष्य अउ आदर्ष मन के बारे म लेखन अउ बिचार ह सबके धियान ल अपन डाहर तिरिस। बाल गंगाधर तिलक सबके इज्जत के पात्र लोक मान्यबन गे।

    समाज म लइका बिहाव (बाल विवाह) जइसे कुरीति मन ले छूटकारा देवाना अउ नवा समाज गढ़े बर माईलोगन मन म षिक्षा अउ विधवा बिहाव ह अनिवार्य हे कहिके ओकर समर्थन करिस। स्वदेषी के भावना ल बढ़ाये बर अउ समाज म सुधार लाए खातिर तिलक ह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलावा पुणे सार्वजनिक सभा अउ दूसर संस्था मन म सक्रिय भूमिका निभइस। तिलक जन समुदाय म चेतना जगाए खातिर किरिया

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खाए रिहिसे। ओकर इच्छा अइसे रिहिसे कि कोनो ओला एती ले ओती नइ कर सकय।

सन् 1907 म कांग्रेस के सूरत अधिवेषन म तिलक ह दहाड़िस स्वराज मोर जन्म सिद्ध अधिकार आय ओला मँय लेके ही रहूं।” (“स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा”) ओकर दृढ़ इच्छा शक्ति अउ कर्तव्य के ए मूल मंत्र ह देष के, जन-जन के मूल मंत्र बन गे। भारतीय राजनीति म उठत गरेर (तूफान) ले ब्रिटिष सरकार ह तमतमा (बौखला) गे अउ बर्बर दमन कारी तरीका ले ओला दबाए बर कोनो कसर नइ छोड़िस। ओकर उपर राज द्रोह के इल्जाम लगा के मुकदमा चलइन। तिलक करोड़ो उत्पीड़ित भारतीय मन के प्रवक्ता अउ लोगन मन के स्वतंत्र होए के इच्छा के प्रतीक के रूप म कटघरा म खड़ा होइस। ओकर बाद राजद्रोह एक्ट अउ दमनकारी तरीका के घोर निंदा बिना डरे करिस। 21 घंटा ले भी जादा समय तक के भाषण ओकर अद्भूत कानूनी क्षमता के प्रदर्षन रिहिसे अउ ओकर बचाव के स्पष्टीकरण ह स्वतंत्रता बर विधान बन गे।

22 जुलाई 1908 म ओला छै बच्छर बर काला पानी के सजा सुनाए गिस। ब्रिटिष सरकार के ए निर्णय के विरोध म हड़ताल अउ हिंसात्मक घटना घलो घटिस। सड़क मन घलो सुन्ना परगे रिहिस।

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जीवन म जइसे ठहराव आ गे। छै बच्छर के सजा के बदला म छै दिन तक ले बम्बई म जीवन बिल्कुल थम गे।

    7 जून 1912 म ओकर गोसइन (पत्नी) के इंतकाल (मृत्यु) होगे जेकर खबर ओला तार के माध्यम ले मांडले म राहत-राहत मिलिस। तिलक ल चालिस बच्छर के उमर म जीवन साथी के मृत्यु ले भारी धक्का लगिस। तिलक के जिनगी म भगवत गीता के बहुत प्रभाव रिहिस। ओहा गीता रहस्यके रूप म अपन विचार मन ल सकेल के किताब के रूप दिस जउन ह ओकर गहन दर्षन ल प्रगट करथे।

    तिलक बर स्वराजमात्र एक शब्द भर नइ रिहिस बल्कि बलिदान अउ संघर्ष के माध्यम ले स्वतंत्रता बर रद्दा बनइस। अपन सबले बड़े निष्ठा के सेती ओहा भारतीय स्वतंत्रता के नेव (नींव) रखिस। एक अगस्त 1920 के दिन ओहा आखरी सांस लिस।

    स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान ओकर विचार अउ शब्द ह प्रेरणा देवत राहय तहान स्वराज एक सच्चाई बन गे। देष के कोन्टा-कोन्टा म लोकमान्य के बुलंद आवाज मनखे मन के हिरदे म गूंजत रही, “स्वराज मोर जन्म सिद्ध अधिकार आय अउ ओला मँय ले के ही रहूं।

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