Friday 1 July 2022

रामनाथ साहू: *सात भांवर के बरे - बिहाय/कहानी* ----------------------------------------------

  रामनाथ साहू: 

       *सात भांवर  के बरे - बिहाय/कहानी*

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         नावा- बहु हर, अपन गोसांन ल पीट दिस हे रे..!नावा ...बहु हर अपन गोसांन ल पीट दिस हे रे..!! बबा रे..!


           गांव भर म हल्ला  मात गय रहे।


        येहर सच रहिस।सिरतोन म चंपा हर अपन सात- भांवर के बरे -बिहई,अपन गोसांन.. अपन मालिक बोधराम ल पीट देय रहिस।


"घोर कलिजुग..!ये धरती म पाप हर उपलाईच गय न।"


" देखइ तो धुरिहा, कान म सुने नइ रइबे,तइसन -तइसन जिनिस मन अब सुनई परत हे।"


"कुछु भी हो जाय ,तभो ले दई..!अइसन करे के  काम  नइ होय।"


"अरे,एकर हिम्मत ल तो देख ।"


"जेकरे  अन्न ल खावत हे, जेकर वस्तर ल पहिनत  हे, जेकर छ्या म जुड़ावत हे, तउन ल मार दिस- भई!"


" अइसनहेच मन ल माटी तेल छींच के काड़ी मारत होंही.. अब जा कहके। "


" हाँ..रोज न रोज गजट म अइसन कछु न कछु छपेच रइथे ।"


        अउ येती पागा -वाला मन अलगे बइठे हें-


"अइसन पत्तो  के घेंच ल तरी आड़ा उपर आड़ा करके चीप देय के काम आय।"


"टुरा उप्पर..जनम दिन बर दागी लगा दिस।"


"बने देख ताक के नइ माँगथे जी, मन मोहना ।"


"ये मन मोहना, कहाँ ले का बहु ले आनीस।"


"येकर देखा -सीखा अउ आन मन घलव अइसन करिहीं ।"


"कुछु रोक -रुकावट करो भाई, अइसन हर नइ बनत ये।"


"अरे विरज ,तँय काबर हदर मरत हावस।देखत तो रह।अभी बहुत कुछ होही।"


" ड*की .. हर ...ड*का ल मारही।बाबू अभी बोकरा- भात चुरही।चाहे मनमोहन देय ,चाहे वोकर समधी देय।"


"बुलाव मन मोहना ल..,अभी।"



       झमाझम  गुड़ी जुरे हे।तिल राखे के जगहा नइ ये । सरपंच -पति हर गुड़ी के अध्यक्षता करत हे। वोहर ,ये खबर ल सरपंच गायत्री के काने म नइ जान देय ये। चंपा के दई अउ ददा थर ...थर कांपत  हें ।


"कइसे जी,मनमोहना। ये काय सुनत हन भइ...!"सरपंच -पति पुछिन।


"अब मंय का  बतावंव, सरपंच साहब...!"


"हं...!तोर समधी का कहत हे।"


"अउ मंय , हमन का कइबो , महराज...!"


"तब तुमन ल ,हमर ये करा के फैसला मंजूर ....सरपंच -पति के गोठ हर पूरे नइ पाय रहिस, के वो जगह म सरपंच-गायत्री आ खड़ा होइन।


"तँय इहाँ कइसन..!" सरपंच पति कहिस।


"तुँ इहाँ कइसन.. ?"गायत्री थोरकुन  रिसहा मुस्कुरात  कहिन । सरपंच पति रिस म उठिस अउ वो जगहा ल परा गय।


"नावा बहुरिया चंपा  हर ,अपन गोसांन,बोधराम ल पीट देय हे, आना।अतकेच मंय सुने हंव।" सरपंच गायत्री कहिन।


"कइसे चंपा ,काबर पीट देय नोनी।"सरपंच गायत्री लटपट अपन हाँसी ल रोके सकत रहिन।


"......"


"वोहर तोला पीटीस..?"


"......."


"अइसन चुप रइबे ,तब थोरहे बन ही।डरा झन अउ बता,वोहर तोला पीटीस?"


"  हाँ..!"


"अउ बलदा म तहुँ ,पीट देय वोला।"


"नहीं.. बिल्कुल भी नहीं।"


"तब काबर पीटे,तँय वोला चंपा?"


"  सरपंचीन काकी,येहर मार के मोर पीट ल फटो  देय रहतिस,तभो ले वोहर मोला चिटिक घलव नइ जनातिस ।"


"तब फेर..?"


"येहर काल दारू पी के आय रहिस, तेकर स सेथी येला दु रहपट लगा पारेंव ।"चंपा सरपट कहिस।


           अब तो येती सरपंच गायत्री के आंखी ल अँगरा बरसे के शुरू हो गय रहिस-मार येला, अउ मार..! मोर आगु म मार..!!


        बोधराम तरी मुड़ी कर के बइठे रहिस ।


"अउ आन दिन ल ,अउ अइसन कुछु करही तव फेर लगाबे,डराबे झन मंय हंव।"सरपंच गायत्री फेर दहाड़ीस ।


"कइसे दाउ साहब, तोर का कहना हे। गुड़ी तँय जोरे हस न ..?"वो बोधराम ल पुछिन।


"मंय  कहाँ जोरे हंव। ये गुड़ी तो अपने -आप जुरे रहिस।" बोध राम कहिस, "बोकरा भात लागही कह के कहत रहिन।"


          सरपंच -गायत्री मुड़ ऊँचा कर के देखिन-कहाँ  हें गुड़ी वाले मन कह के।फेर वो करा तो कनहुँ नइ  दिखत रहिन अब।


          पीटिस तब मोला तो पीटिस..!अउ वोकर से मोला कुछु भी तकलीफ नइये,काकी... कहत बोधराम सरपंच -गायत्री के डेरी गोड़ ल धर डारिस।जेवनी गोड़ ल तो चंपा हर पहिलीच के धर डारे रहिस।



*रामनाथ साहू*


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समीक्षा

पोखनलाल जायसवाल: 



आज कतको किसिम के नशा ह समाज के रग-रग म समा गे हे। का शहर अउ का गाँव? सबो जगा गली-खोर म ठउर-ठउर म नशा के दूकान सजे मिलथे। सरकार नशा मुक्ति के अभियान चलाथे। फेर लाखों रूपया खर्चा करे के बावजूद नशा के दूकान काबर बाढ़ते जावत हे? सोचे के लइक हे। सरकार के आबकारी विभाग कतको अवैध कारोबार पकड़थे, तब ले चोरी-छुपे बेचइया दलाल मन के कारोबार बंद नइ होवत हे। न बाँस रइही, न बँसरी बाजही। फेर सरकार अपन राजस्व म कमी नइ करे सकय। इही कारण आय कि कोनो सरकार नशा बंदी लागू करे के जोखिम नइ लय। जनता ल दिखाय बर छापा मारे के ढकोसला भर करथे। अउ सरकार शराब बंदी के अपन घोषणा ल घिरयाय धरे हे।

        समाज ल नाश के ए जड़ ले बाँचना हे त खुदे उदिम करे ल परही। नइ त समाज ल एकर दियार ह खोखला करते जाही। घर-घर म रोजेच झगरा लड़ई चलते च रइही।

      अइसे तो समाज म शिक्षा के असर जग-जग ले देखे बर मिलत हे। नारी-परानी के पढ़े-लिखे अउ जागरूक होय ले समाज अउ नारी के हाल म कहूँ-कहूँ सुधार दिखथे। नारी अपन अधिकार ल समझे लग गेहे। अउ पुरुष के अँगरी म नचई भुलागे हे। सबला बने के रद्दा म चले लगे हें। मर्यादा म रही के घर-परिवार चलाना चाहथें। जरूरत के बखत म तुतारी घलव चलाय बर तियार दिखथें। गायत्री अउ चंपा   एकर उदाहरण आय।

       नारीसशक्तिकरण के आरो देवत श्री रामनाथ साहू के कहानी 'सात भाँवर के बरे-बिहाय' नशा मुक्ति बर घलव बड़का हथियार नारी हो सकथे, ए बताय म सक्षम हे। काबर कि समाज ल बचाय के नारी के घलो जिम्मेवारी हे। परिवार के सुधरे ले, समाज सुधरथे। जे दिखथे, ते बिकथे। मान के जब दूकान चला सकथे, त का? जेकर ले नकसान हे, वोकर ले बाँचन कहि के अपन परिवार ल नइ बचा सकन? चंपा मर्यादा ल भूले नइ हे। नशा के फेर म अपन ऊप्पर हाथ उचाय बोधराम के होश लाय बर चंपा के हाथ उचई ह भारतीय नारी के चरित्र नइ हो सकय।... फेर यहू सुरता राखन कि चंपा नवा जमाना के नारी आय।। जादा दिन ले ....धँधाय नइ रेहे सकय। ...गायत्री जइसन सजोर ताकत के भरोसा म ही चंपा समाज ल नशा मुक्त करवा सकत हे। 

      कहानी के संवाद पात्र मन के अनुरूप गढ़ाय हे। भाषा सरल अउ सहज हे। 

      कहानीकार नशा मुक्त समाज के अपन कल्पना ल नारी शक्ति के भरोसा पूरा करना चाहथें, जउन सच आय। 

बड़ सुग्घर कहानी बर कहानीकार रामनाथ साहू जी ल बधाई💐🌹🙏


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला बलौदाबाजार छग

9977252202

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