Saturday 30 July 2022

कृषि संस्कृति मा हरेली के मान""




 

""कृषि संस्कृति मा हरेली के मान""


       ये धरती मा जब मनखे आखेट ( शिकारी) युग चरवाहा युग अउ ओकर बाद कृषि युग मा पाॅव धरिन तब सभ्यता अउ संस्कृति घलो मानविय विकास के सॅग अपन पाॅव जमावत गिस । अइसे हम कल्पना या विचार रख सकथन। विकास के धारा मा बोहावत जब कृषि संस्कृति के अॅगना मा जाथन तब ये जाने समझे ला मिलथे कि कृषि कारज मा हरेली जइसन परब के उद्गार कोन किसम ले होइस। हरेली तिहार के नाम हर ही अपन आप मा कतको अर्थ भाव ला समेट के धरे हे । जेकर चित्रण कतको साहित्य सिरजन मा पढे देखे ला मिलथे । 

     कृषि कारज जब मनखे के जीवन यापन के हिस्सा अउ मुख्य साधन के रूप मा आइस तब ये काम बर जतका साधन उपकरण काम आइस वो सब ला  पूजनिय मान लेय गिस । नाॅगर जूड़ा रापा कुदारी साबर टॅगिया के सॅग बइला भैंसा शुरुवाती खेती के बेरा ले मुख्य साधन आय। येकर बिना खेती के काम पूरा नइ हो सके। खेत मा बीजा डाले के पहिली इही सब के हियाव करे जाथे । खेती काम मा दू ठन काम बहुते खास रथे। एक तो बाॅवत अउ दूसर बियासी। सही समय मा बाॅवत अउ बियासी होगे पानी पवन साथ दे दिस तब तो खेती सोला आना हो जथे। 

             किसानी काम मा जब ये दुनो काम सध जथे तब ये भान हो जथे कि किसानी के आधा काम होगे। अउ एकर बाद नाॅगर जूड़ा रापा कुदारी साबर टॅगिया के सॅग अउ कतको खेती के काम आने वाला उपकरण ला धो माज के साफ सुथरा करके अवइया बेरा तक ले जतन के राखे के चलन बनिस । अइसन दशा मा ये खास औजार मन पूजनिय होगे। कल्पना तो यहू कर सकथन कि जे पूजनिय हे ओकर पूजा के शुरुवात कोन किसम ले होइस होही । खेती के आधा काम निपटे के बाद हर किसान अपन आप मा संतुष्ट होके आगू डहर बर नवा आस सॅजो के चलथे। बाॅवत अउ बियासी के काम सिधोय के बाद जौन संतुष्टि अउ आनंद के भाव किसान के मन मा उपजिस वो हर तिहार के रूप ले लिस। इही दिन हर हरेली के नाॅव ले चलन मा आगे। ये दिन ला खेती के काम ला बिराम देके अपन औजार उपकरण के रखरखाव हियाव अउ सकला जतन के दिन बना डारिन। अउ तन मन लगा के समर्पित भाव ले मिल जुल के ये काम ला करे के उदिम सॅजो डारिन। 

        हरेली ये वो बेरा हरे जब धरती के कोरा चारो मुंड़ा ले हरियाय रथे। खेत खार हरियर। फसल बारी बखरी हरियर डोंगरी पहाड़ी मा हरियर पाना धरे लहसत रूख राई। कॅदली कछार मेंड़ पार मा किसम किसम के घास पूस नार बेयार के सॅग रॅग बिरंगी चिरई चिरगुन के मनभावन आरो ये सब मन हिरदे ला अइसने हरियर कर देय रथे। ओ जमाना भा सुनता सामुहिक विचार अउ मुखिया के प्रभाव के रेहे ले ये दिन ला खेती किसानी ला विराम देके किसानी कम के सबो जरूरी उपकरण बर समर्पित भाव हर तिहार परब के रूप धरलिस होही। जे हर हरेली के रूप मा पहिचान बनाके खेती जगत मा स्थापित होगे। ये तिहार मा कुछ खास बात यहू ला स्वीकारे गेहे कि कृषि युग के आरंभ से लेके अब तक खेती के काम मा जतका आइस वो सब विश्वास अउ आस्था ले जुड़गे। इही कारण हे कि आज घलो कोनो किसान सूपा काठा कलारी ला लात मार के नइ तिरियाय। अउ जेकर ले आस्था हे वो तो पूजनिय होबे करही। उही किसम ले सबो समान हर भगवान बरोबर पूजनिय बनगे। अब ओकर पूजा आराधना के शुरूवाती के कल्पना करे ले साफ जनाथे कि सबो उपकरण ला धो माज के साफ सुथरा करके अॅगना दुवार मा सजा के रखे के रिवाज बनाके नवा संस्कार ला बढावा देइन। एकर बाद खेती किसानी के असली सुत्रधार पशु धन गोधन जे हर गोबर के खाद तन के तंदुरूस्ति बर दूध मही अउ खेत जोंते बर बइला देथे। येला तो जतन के राखे नइ जाय तब एकर बचाव हियाव अउ रखरखाव बर ओकर बर बने कोठा कुरिया ला सजाय बर समय निकाले गिस। ओ समय मा चिकित्सा सुविधा के विकास नहीं के बरोबर रिहिस । तब जंगली कंद मूल ला खवाके पशु धन ला बचाय के सबो उदिम  करे गिस । जेन हर आज हमर  परम्परा  मा सामिल हे। इही दिन या इही तिहार बर एक ठन अउ परम्परा अंकुरित होइस जेला  हम बिजखुटनी कथन। ये परम्परा अपन आप भा बहुते अकन रहस्य ला समोके राखे हे। कृषि कारज हर सामुहिक क्रिया ले सम्पन्न होथे। जेमे परिवार के सदस्य के छोड़े गाॅव समाज के कतको मनखे के प्रत्यक्ष अउ परोक्ष सहयोग रथे ।जइसे कि-----

बढई----खेती बर नाॅगर बक्खर के सॅख लकड़ी से संबंधित समान बनाथे ।

लोहार----खेती के काम अवइया लोहा ले बनने वाला औजार रापा कुदारी नाॅगर नास टॅगिया साबर सजइया पजइया ।

राउत-----जे हर पशुधन के हियाव करथे अउ इंकर ले फसल के नुकसानी ले बचाव करथे। 

बइगा---------ये आस्था के सॅग बिसवास ले जुड़े मनखे आय। इंकर साधना शक्ति हर घलो वो जमाना मा प्रमाणित रिहिस। प्रकृति के देवी देंवता धरती हवा पानी आगी अगास काकरो बस मा नइये। फेर एकर बिना काकरो जीवन नइ चलय। तब ये सब के कुप्रभाव मनखे अउ खेती किसानी के सॅग कोनो जीव उपर झन होय। एकर सेती ये बइगा गाॅव के सरहद सियार डीही डोंगर  के देव वन देवी के सॅग देव रूप मा बिराजे महादेव के प्रतीक बूढा देव अउ ठाकुर देव ला सबो गाॅव के डहर ले बंदना स्तुति करके गलती के क्षमा माॅगत गाॅव के खुशहाली अउ खेती के सजोर बर आशिष माॅगथे। 

नाऊ-------जे हर गाॅव कु पुरूष वर्ग के सुन्दरता मा निखार ला के नवा उमंग भरथे। 

         कोनो किसान खेती बर बिजहा करारी नइ राखय। चार काठा उपराहा ही रखथे। अइसन क्रिया भाव हर सूझ बूझ के परिचय देवाथे। आय बखत मा खेती मा समोये जाथे ।  ओ जमाना के चलन मा कतका दुरदर्शिता रिहिस समझे जा सकथे।  दूसर खास बात खेत मा बीजा डारे के बाद बाॅचे बीजा ला वो सबो कामगार जइसे लोहार बढई नाऊ बइगा राउत मा दान रूप मा बाॅटे के रिवाज हर चलन माआइस। ये सबो मन समूह मा घर घर जाथे तब बहुते सम्मान के सॅग बाॅचे बिजहा के बीजा धान कोदो ला ही खोंची पसर जइसन बन परे दान स्वरूप सॅउपे गिस । जेन हर बिजखुटनी बिसखुटनी के नाम मा चलन मा आइस। जे हर कृषि जगत के हरेती परम्परा के सॅग आज तक चलन मा हे।

       घल के मॅझोत मोहाटी मा लीम के डारा खोंचे के रिवाज आज भी वैज्ञानिक अउ व्यवहारिक तर्क संगत हे। गुण के सिवा दोष नइये। जेकर भान वो जुग के मनखे तक ला रिहिस जे येला चलन मा लानिन। तब येला अंध मान्यता कहिके उपहास करना गलत हे। तब लीम के महत्व ला जादा कहना ठीक घलो नइये। 

           खेती के शुरूवाती समे मा तेल तेलई के झमेला कम या तो ना के बरोबर रिहिस होही। तब ये धरती के सम्मान मा खेत मा चाॅउर के चीला बनाके चघाय के उदिम करत अपन तपसी भाव ला उजागर करिन । उही किसम ले दुवार मा सजे खेती के औजार उपकरण मा चीला ला चघा के मन संतुष्टि करत रिहिन । जे हर एक ठन परम्परा के रूप मा चलन मा आगे । जेकर पालन आज तक होवत आवत हे। ये अलग बात आय कि विकास के सॅग जादा विकसित होय ले बरा सोंहारी के तेल तेलई चलत हे। चंदन बंदन गुलाल के अभाव या चलन मा नइ रेहे ले या अनजाने मन ले चाॅउर पिसान ला घोर के अॅगना मा सजे नाॅगर गुदारी उपर टीका लगाके अपन श्रद्धा अर्पण करत रिहिन।रंग गुलाल के कमी ला पूरा करइया घोरे पिसान के टीका  हर घलो परम्परा मा जुड़के आजो हरेली के सॅग निभत आवत हे। हरेली संस्कृति मा परम्परा के हिस्सा बनके आजो हमर बीच चलत हे। 

  गेंड़ी------एकर चलन के अनुमान यहू किसम ले विद्वान मन करे हे कि भरे चौमास मा सड़क रददा बाट के अभाव रेहे ले जरूरी काम के बखत आपातकालिन सुविधा बर एकर सिरजन करे गिस। चिखला माटी कीरा काॅटा अउ रात बिकाल के बहुते जरूरी काम बर आना जाना होय तब ये सुविधा ला खोजके पुरूष वर्ग मन चलन मा लानिन। जइसे मोहाटी मा लउठी रथे ओइसने ये गेंड़ी ला घलो भादो के असली बरखा के उरकत ले राखे अउ बउरे जावत रिहिस। आगू चलके जब ये हर मस्ती अउ आनंद के जिनिस जनाइस तब लइका सियान एकर चलन ला बढावा देवत सांस्कृतिक कला के हिस्सा बना डारिन। आज के दिन माने हरेली के दिन जतका काम कारज बताय गिनाय जाथे वो सब मॅझनिया बेर तक पूरा हो जथे। तब बाॅचे समय ला बिताय बर सब अपन अपन जौजर जॅहुरिया सॅग नवा नवा तरकिब निकालिन जेमे चौपाल गुड़ी मा गोठ बात भजन किर्तन के सॅग वाचिक परम्परा के किस्सा कहानी के गोठ ले मन बहलाए के उदिम करिन। जवान लइका मन खेले कूदे के सॅग नाचा गाना के कला संस्कृति ला जनम देइन। ये कला हर कृषि जीवन ले जुड़े हर मानव जीवन  बर  नवा बल संचार करे बर बहुते उपयोगी बनिस। जे हर कृषि संस्कृति मे हरेली संस्कृति के सॅग कला संस्कृति ला जनम दिस। 

       तब हम कहि सकथन कि हरेली हर कृषि जगत बर तिहार के शुरुआत भर नोहे। बल्कि कृषि संस्कृति मा हरेली कला संस्कार सभ्यता के सॅग परम्परा ला जनम देवइया आय ।

     (लेख विद्वत जन के लेख के पठन पाठन ले अधार बनाके सिरजे गेय हे) 

राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनादगाॅव ।


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