Friday 8 July 2022

गुनान गोठ-सरला शर्मा


 

गुनान गोठ-सरला शर्मा

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   असाढ़  पुन्नी अवइया च हे त सुरता आइस बड़े फूफू कहय  साल के बारहों पुन्नी मं असाढ़ पुन्नी के बड़ महात्तम हे काबर के इही पुन्नी के दिन गुरु के पूजा , अर्चना करे जाथे तभे तो एला गुरुपूर्णिमा कहिथें । हाथ जोर के बिनतीं करय " अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया , चक्षुः उन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः । " 

  उषा नोनी चिचिया के कहिस " बड़े फूफू ! अतेक कठिन श्लोक याद नइ होवय तेकर ले सुरता राख लिन न ..के आजे के दिन पांच झन शिष्य मन महर्षि वेद व्यास के सदेह पूजा करे रहिन तेकरे सेतिर आजो लोगन गुरु पूजन करथें । " 

शरद कइसे पिछुवाये रहितिस चट ले फोरन दिहिस "  वेद  व्यास के जनमदिन घलाय तो आय उही हैपी बर्थडे ...। " 

    सुरता के बादर तो आय जेला बरसे बर असाढ़  सावन तो लागय नहीं जब तब बरसे धर लेथे ..फेर कहे गए हे न के जेन मनसे हर अज्ञान के अंधियार ल ज्ञान के अंजोर ले दुरिहाथे , आँखी ल जग जग ले उघार देथे अइसन गुरु ल प्रणाम । ठीके कहे होही भाई फेर एहू विचार तो मन मं आबे करथे के तइहा दिन मं गुरुकुल रहय जिहां राजा , प्रजा , गरीब अमीर सबो के लइकन मन एके संग रहयं , पढ़यं , खेलयं खावयं अतके नहीं एके झन गुरु रहय । धीरे धीरे समय बदलत गिस , जघा जगह स्कूल खुलत गिस , शिक्षा व्यवस्था बदलिस , परीक्षा पद्धति लागू होइस त हर कक्षा मं गुरु बदले लगिन । आजकल के लइकन मन के तो स्कूल , कॉलेज के गुरु अलग त ट्यूशन , कोचिंग के अलग होथें ओहू विषयवार , भाषावार गुरु ..। बपुरा लइका मन कोन ल गुरु मानयं ?सबो गुरु तो अज्ञान ल दुरिहा के ज्ञान देथें । नहीं भाई ! आजकल शिक्षा देना , ज्ञान देना हर नौकरी हो गए हे इनमन ल शिक्षक कहना ही ठीक हे गुरु नहीं ...। ठीक बात हे त गुरु काला कहिबो ? धर्म के ज्ञान देवइया ल ? ओहू तो अलग अलग होथें कोनो गुरु राम के कोनो रहीम के कोनों ईश्वर  के ज्ञान देथें । थोरकुन आउ आघू आए ले देखथन के तकनीकी विकास के चलते सोशल मीडिया के माया बगरे हे उही व्हाट्सएप , फेसबुक , ब्लॉग , यू ट्यूब , इंस्टाग्राम कतका न कतका झन ज्ञान बांटत हें , सबले बड़े गुरु तो गूगल महराज रात दिन ज्ञान देवत हे । बड़ा मरन होगिस जी काला गुरु बनाईं काकर पूजा करिन ? 

      कोन ल साक्षात् परब्रम्ह कहिबो , कोन हर अखण्डमंडलाकारं व्याप्तम्  आय ? मूड़ पिराये बार सुरु कर दिस । 

            भाषा के विकास के संगे संग जन जीवन मं विज्ञान , चिंतन , धर्म , आध्यात्म के स्वरूप हर बदलत गिस ए बदलाव ल मनसे ल स्वीकार करे च बर परही ..गुरु शब्द हर भी इही विकासवाद के प्रक्रिया से गुजरत आवत हे । जीवन मं जेकर से भी ज्ञान मिलिस , सीख मिलिस ओहर गुरु आय तभे तो दत्तात्रेय महराज चौबीस ठन गुरु बना डारिन । 

 गुरुपूर्णिमा जरूर मनावव , 5 सितम्बर के शिक्षक दिवस घलाय मनावव कोनो किसिम के उजर आपत्ति नइये । मूल विचार ऊपर ध्यान अटक गिस के जीवन मं  जेकर से भी , जौन विषय के ज्ञान मिलिस , चाहे ओहर उमर मं कतको छोटे होवय , कोनो भी जात धर्म होवय ओकर सनमान गुरु रूप मं करना चाही इही हर आधुनिक रूप से गुरुपूर्णिमा मनाना होही । अईसे करतेन का ? ऐसों के असाढ़ पुन्नी माने गुरुपूर्णिमा के दिन फोन पूजा अपना लिन ...ओ हो ..नइ समझेव ? अरे भाई ! जेन मनसे से जब कभी ज्ञान मिले हे ओला फोन कर लेवव ..। फूल , नरियर , चन्दन  अगरबत्ती घलाय बांच जाही । असल बात तो मन के श्रद्धा , विश्वास , कृतज्ञता हर आय । नहीं ..नहीं ...अपन रुचि , श्रद्धा अनुसार गुरु मंत्र घलाय जप लेवव कुलगुरु बर खीर बना लेवव , नरियर सुपारी , होम धूप , गुरु वंदना , पूजा अर्चना कर लेवव ...चिटिकन थिरा के आधुनिक फोन पूजा उपर घलाय विचार कर लेतेव जी ...बुधियार , पढ़इया लिखइया मन----


सरला शर्मा

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