Friday 8 July 2022

पानी ले किसानी अउ किसानी ले जिनगानी


 

पानी ले किसानी अउ किसानी ले जिनगानी 

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    *चउमास के महीना न सिरिफ छत्तीसगढ़ बल्कि भारत देश के खेती-किसानी,व्यवसाय, तीज-त्योहार, खान-पान,कला अउ संस्कृति ल जीवंत बनाए बर साल भर के ०८ महीना ले खूब महत्वपूर्ण होथे |*

    *पानी ले किसानी*

     *किसानी ले जिनगानी*

    *किसानी ले सब उच्छामंगल आनी-बानी*

   

    *आज ले लगभग ५० साल पहिली पोथी-पंचाग के जानकार पंडित मन अषाढ़ बदी परूवां के दिन गांव-गांव के गुड़ी म बइठ के किसान मन ल संवत के जानकारी बतावत रहिन- "एसों कै बिसवां पानी हे ? कै बिसवां धान हे ? कै बिसवां घास-बन हवयं ? जैसे ०८ बिसवां धान हे, १६ बिसवां पानी हे, ०६ बिसवां बन-कचरा हे | तेकर मतलब होवय-एसों खूब फसल होही,अच्छा सुकाल हवय | ए रहस्य ल अइसे समझे जा सकथे -"जब हम चाऊंर ल भात बनाए बर चुरोथन, तब चाऊंर ले दूगुना पानी डाल के रांधे ले चोवा भात बढ़िया पक जाथे | जैसे  कूकर म भात पकाथन, या बिना कूकर के गंजी-तबेलिया म  चोवा भात पकाथन तब ०१ गिलास चाऊर म दू गिलास पानी डालथन |  चाऊर ले दूगुना पानी नइ डाले से भात नइ पकय,डांकर- चऊंरहा हो जाथे अउ  जल जाथे ! खाए के लाईक नइ रहै |*

     *तईसने पंडित मन बतावैं -"एसों धान ले डबल पानी हवय | एकर मतलब खूब अच्छा फसल होही-सुकाल होही* |

     *जउन साल घांस-फूस जादा रहय जैसे ०८ बिसवां घांस-फूस,०६ बिसवां धान | एकर मतलब एसों पानी कमती बरसही, तेकरे सेती घास-बन घपट जाही, धान ल चगल डारही अउ खूब दुकाल परही !*

    *कोनो साल ०६ बिसवां धान अउ १५-१६ बिसवां पानी बतावैं, तेकर मतलब एसों पानीच-पानी म धान ह जलजला जाही अउ पनिहा दुकाल होही !*

     *अइसे ढंग से संवत बताए के बदला म गांव भर के किसान मन वो पंडित ल चाऊर-दार, साग-भाजी, दू-चार आना पैसा दक्षिणा के रूप म देवत रहिन, तेला बैला गाड़ी म भर के ओ पंडित ह अपन घर लेगत रहिन | 

    *आजकल तो लोगन खूब जागरूक हो गईन, टी. बी., समाचार पत्र, आकाशवाणी ले प्रसारित कृषि समाचार सुन के, या  अपन स्मार्टफोन मोबाईल ले पानी-बादर के जानकारी ले लेथैं |

    *पहिली के किसान मन "अकती तिहार" (परसुराम जयंती) के दिन अपन खेत म गोबर -खातू डाल के पांच मुठा धान सींच के "मुठ" ले लेवत रहिन | अउ आद्रा नक्षत्र म दंदोर के पानी बरसत रहिस, तब बोए धान मन भकभक ले जाम जावत रहिन | वो बखत "चउमास" ह अषाढ़ ले कुवांर (आश्विन नक्षत्र) तक माने जावत रहिस |*

      *अब नवा-नवा हाईब्रेग धान के प्रजाति आ गे, जऊन ८० या ९० दिन म भरपूर उत्पादन होथे, साथ ही नवा-नवा कृषि यन्त्र, ट्रेक्टर आ गे | तेकरे सेती "खुर्रा पद्धति" के धान बोवाई लगभग समाप्त हो गे | अब खेत म पानी भर जाथे, तब ट्रेक्टर म मता के "रोपा पद्धति" से धान के फसल उगाए जाथे |*

     *अब चउमास महीना ह सावन ले सुरू हो के कार्तिक तक माने जाथे |*

      *सावन बदी अमावस्या के दिन हरेली तिहार होथे | हमर छत्तीसगढ़ राज्य म हरेली तिहार ल चउमास के पहिली तिहार माने जाथे | ए दिन किसान मन अपन कृषि औजार ल धो के अंगना म लाल मुरूम ऊपर राखथें अउ चाऊर पिसान-गुलाल लगा के, गुड़-घी के हूम-धूप देथैं, चाऊर पीसान के गुरहा चीला चढ़ाथैं, खेत म जा के घलो चीला चढ़ाथैं | 

    *खेती-किसानी के बूता ले थके बईला-भैंसा ल अंडी के पत्ता म नून ल भर के खवाथैं, जेकर से थके बईला-भैंसा के पाचन क्रिया भरपूर होथे | कोठा के अउ जम्मो मवेशी ल घलो अंडा के पत्ता म नून लपेट के खवाथैं, ढोर डाक्टर से बीमारी रोधक टीका लगवाथें,जेकर से मवेशी ल सावनाही बीमारी-खुरहा, चपका,गलघोंटू से बचाव होथे | किसान मन के अन्न धन अउ गौ धन दूनो खूब महत्वपूर्ण होथे |*

       *हरेली तिहार के पहिली रात  गांव के बईगा मन गांव के देवी-देवता ल मनाए बर  सिवाना म अंडा, कुकरा देथें अउ गांव के सिवाना ल बांध के गांव सुधार करथैं,ताकि चउमास म गांव के जम्मो मनखे अउ मवेशी मन ल कुछु बरसाती बीमारी झन होय | गांव के लोहार ह घर-घर जा के घर दुवारी चौखट म खीला-पाती ठोंकथैं,ताकि जम्मो मनखे स्वस्थ रहैं | गरूवा चरवाहा राऊत मन अपन किसान के कोठा म जंगली दवाई खोंच देथैं,ताकि जम्मो मवेशी मन स्वस्थ रहैं, बदला म किसान मन जम्मो पौनी-पसारी ल दार-चाऊंर देथैं*|


     *सावन सुदी पंचमी के दिन "नागपंचमी तिहार" होथे | ए दिन किसान मन धरती माता म नांगर नइ चलावैं, न ही रांपा-कुदारी म खनै, बल्कि श्रद्धा-भक्ति पूर्वक नाग देवता के पूजा करथैं, खेत-खलिहान अउ भिंभोरा म  जा के नाग देवता बर दूध चढ़ाथैं*

      

      *सावन सुदी सप्तमी के दिन गांव के बहिनी-बेटी मन अपन पारा के मुखिया घर सामूहिक रूप से "भोजली" बोथैं | तेकर रोज संझा खेत ले आ के धूप अगरबत्ती जला के पूजा करथैं अउ श्रद्धा भक्तिपूर्वक "भोजली गीत गाथैं:-*

      *देवी गंगा-देवी गंगा लहर तिरंगा ओ लहर तिरंगा*

       *हमरो भोजली दाई के भींजे आठो अंगा*

       *आ हो $$$ देवी गंगा*

      *माड़ी भर जोंधरी पोरीस कुसियारे-पोरीस कुसियारे*

     *जल्दी-जल्दी बाढ़ा भोजली जाहा ससुरारे*

      *आ हो $$$ देवी गंगा ........*

    *आई गई पूरा,बोहाई गई कचरा-बोहाई गई कचरा $$$*

      *हमरो भोजली दाई के सोने-सोन के अंचरा*

      *आ हो $$$$ देवी-गंगा ........*

     *लीपी डारेन, पोती डारेन, छोड़ी पारेन संगसा, ओ छोड़ी पारेन संगसा $$$*

     *हमरो भोजली दाई ल चाबथे मंगसा !*

      *आ हो $$$¢ देवी गंगा .........*


    *सियान मन के हाना भी एक मंत्र समान होथे : - सावन म सांवा फूले, भादो म कांसी*

    *कुवांर म ठग दीस बरखा*

      *किसान ल हो गे फांसी*

     *ए किसम से सावन शुक्ल सप्तमी के दिन बोए "भोजली दाई" के नौ दिन- नौ रात तक खूब श्रद्धा भक्तिपूर्वक पूजा करके राखी के बिहान दिन संझा बेरा गांव के तरिया या नदिया-नरवा म ठंडा (बिसर्जन) करथें | चैत अउ कुवांर म बोए जोत-जवांरा जैसे "भोजली दाई" के नौ दिन-नौ रात सेवा करके गांव के बेटी,बहिनी, बहूरिया,काकी,बुढ़ी दाई मन के "भोजली दाई" के प्रति अपार श्रद्धा भक्ति जागृत हो जाथे | भोजली दाई ल बिसर्जन करत बेरा कई झन बेटी-बहिनी मन खूब रो डारथैं ! पर्यावरण अउ प्रकृति के प्रति अपनापन अउ अपार श्रद्धा भक्ति होथे | हमर छत्तीसगढ़ के बेटी-बहिनी,बहुरिया मन के प्रकृति प्रेम,अपनापन भाव के हिरदय ले स्वागत करथन, कोटि-कोटि वंदन, अभिनंदन करथन*

    *सावन शुक्ल पूर्णिमा के दिन "राखी तिहार" खूब मया-दुलार अउ अपनापन भरे होथे | ए दिन जम्मो बहिनी मन अपन भाई के हाथ म रेशमी धागा के डोरी बांध के अपन रक्षा के वादा करवाथें | ए पवित्र तिहार के प्रभाव अतेक जादा होथे- जऊन भाई के बहिनी नइ रहै, तऊनो ह दूसर के बहिनी ल अपनेच बहिनी के भाव से मानथें अउ दूसर के बहिनी ह ऊंकर हाथ म "राखी" बांध के जीयत भर अपन सग्गे भाई सहीं व्यवहार करथैं* |

     *भादो कृष्ण पक्ष छठ के दिन "खमरछठ" तिहार होथे | ए दिन जम्मो महतारी मन अपन संतान के सुरक्षा अउ दीर्घायु के कामना कर के उपवास रहिथैं अउ हलषष्ठी देवी" (माता पार्वती) के पूजा करथैं* |

      * *भादो कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण जी के जन्माष्टमी महोत्सव खूब धूमधाम से मनाथें | ए दिन घर भर के जम्मो लईका-सियान उपवास रहि के भक्तिपूर्वक पूजा-आराधना करथैं अउ रात के १२ बजे भगवान के जन्म मान के फरहार करथैं*

    

     *भादो कृष्ण पक्ष अमावस्या के दिन "पोला तिहार" मनाथैं | ए दिन नान्हे-नान्हें बेटी-बहिनी बर माडल स्वरूप जांता अउ पोरहाई बिसा के जांता-पोरहाई के प्रति रूचि जगाए जाथे,ताकि बड़े हो के ससुरार जा के ढेंकी-जांता म अन्न कूट-पीस के अपन परिवार बर भोजन बनाए के रूचि होवय |  तईसने छोटे-छोटे बेटा मन बर माडल स्वरूप बईला बिसा के किसान मन के खेती के आधार बईला के प्रति प्रेम-भाव अउ अपनापन जागृत होवय | आजकल कृषि वैज्ञानिक मन के किसम-किसम के कृषि यन्त्र, ट्रेक्टर के आविष्कार होय से बईला नांगर द्वारा खेती अब कमती होवत जाथे, लेकिन पुरातन पद्धति बईला नांगर द्वारा खेती अपेक्षाकृत सस्ता अउ जादा लाभदायक होथे | अब लोगन जादा सुविधाभोगी, आराम धर्मी हो गईन, तेकर सेती बईला नांगर संग मेहनत करें बर ढेरियाथें* | 

     *"पोला तिहार" के दिन जम्मो किसान अपन घर के कुल देवी-देवता म छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध व्यंजन ठेठरी-खुरमी बना के चढ़ाथे अउ खुद ए लजीज व्यंजन के आनंद लेथें | ठेठरी-खुरमी रोटी के खास विशेषता होथे- ए ह पंद्रह-महीना दिन तक बसियाय नहीं, एकर सेवाद ह जस के तस रहिथे अउ खेती-किसानी के बूता करके  घर आ के जब रिमझिम-रिमझिम बारीस होवत रहिथे,तब जम्मो परिवार मिल-जुल के ए रोटी के सेवाद लेथैं अउ अपन भूख मिटाथें* |

     *पोरा तिहार मान के जम्मो भाई या जेकर भाई नइ रहै, तिंकर कका, ददा मन अपन बेटी,बहिनी ल लेहे बर ऊंकर ससुरार जाथें | पोरा तिहार के ओही रोटी ठेठरी-खुरमी ल धर के बेटी-बहिनी घर लेगथें | छत्तीसगढ़ के जम्मो बेटी बहिनी मन "तीजा तिहार"  बर अपन मईके जाए बर दिन-रात ददा-भईया के रद्दा जोहत रहिथें | घर के छांधी या लेंटर ऊपर बईठ के कोनो कौआ कांव-कांव करथे,तब बेटी-बहिनी खूब गदगद हो जाथें-"ए कौंआ ह मोर ददा-भईया के आए के सोर लाने हे" तोला बहुत-बहुत धन्यवाद हे कौंआ | पोरा के बिहान दिन कोनो बेटी-बहिनी के ददा-भईया ह लेहे बर नइ पहुंचै, तब घेरी-बेरी गली-खोर म निकल के कुकूर-बिलाई ल निटोरत रहिथें ! कहिथें-"मइके के कुकूर-बिलाई दुर्लभ अउ अनमोल होथे !*

     *तीजा तिहार हमर छत्तीसगढ़ के बेटी बहिनी मन के सब ले बड़े तिहार होथे | ए दिन सकल बूता ल अंतार के मईके जाथें, दीदी-बहिनी, संगी-सहेली गले मिल के अपार आनंद के अनुभव करथें, फेर चौबीस घंटे निरजला उपवास रहि के तीजा के बिहान दिन चीला,कतरा,बीनसा पानी, घारी,भजिया, इड़हर अउ बासी के फरहार करथें | अपन सुहाग बर जैसे माता पार्वती ह कठिन तपस्या करके "अपर्णा" कहलाईस अउ महादेव ल प्रसन्न करके अपन पति बनाईस |*

      *वोही किसम से हमर छत्तीसगढ़ के बेटी-बहिनी मन "तीजा तिहार" म निर्जला उपवास रहिके माता पार्वती अउ महादेव से अपन सुहाग के सलामत अउ दीर्घायु के कामना करथैं ! छत्तीसगढ़ के जम्मो बेटी बहिनी ला अतेक सराहनीय पतिव्रत धर्म के पालन करे बर कोटि-कोटि वंदन अभिनंदन अउ साधुवाद देवत हौं* |

     

      *तीजा के बिहान दिन बिघ्न विनाशक लंबोदर स्वामी भगवान गणेश जी के स्थापना करथैं अउ  ११ दिन तक खूब पूजा-आराधना कर के कुवांर कृष्ण पक्ष परूंवा अर्थात पीतर पाख के पहिलीच दिन बिसर्जन करथें* |

     *कुवांर कृष्ण पक्ष प्रथमा से ले के अमावस्या तक पीतर दाई-ददा,पुरखा मन ल पीतर तर्पण दे के तृप्त करथें | पीतर देवता मन अपन कुल-परिवार ल सुख-समृद्धि के आसीरवाद देके पीतर बिसर्जन के दिन फेर पीतर लोक चले जाथें |*।    

   *पीतर पाख समाप्त होते ही कुवांर शुक्ल पक्ष प्रथमा से ले के नवमी तक "नवरात्रि पर्व" होथै, तेमा महालक्ष्मी, महासरस्वती अउ महाकाली के खूब श्रद्धा भक्ति पूर्वक पूजा-आराधना करथें | कुवांर नवरात्रि अउ चैत नवरात्रि पर्व ल महापर्व कहे जाथे, ए पर्व म जम्मो लईका-सियान के तन-मन म माता के प्रभाव देखे जा सकथे | ए पर्व है सुख,शांति अउ समृद्धि प्राप्त करे के महान पावन पर्व होथे* |

      *नवरात्रि पर्व के समाप्त होते ही कुवांर शुक्ल पक्ष दसमी के दिन"दसहरा तिहार" होथे | ए दिन भगवान श्री राम चंद्र जी ह दस सिर वाले पापी, दुराचारी रावण के अंत करे रहिस | एही खुशी म देश भर दसहरा तिहार खूब श्रद्धा भक्ति की उत्साह पूर्वक मनाए जाथे*|

     *दसहरा तिहार के बीसवां दिन "दीपावली महापर्व" होथे |  कार्तिक कृष्ण पक्ष तेरस के दिन "धनतेरस" , चौदस के दिन "नरक चौदस" अउ अमावस्या के रात ", दीपावली तिहार मनाथें | कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रथमा के दिन "मातर तिहार" अउ बिहान दिन "गोवर्धन पूजा" खूब धूमधाम से मनाय जाथें |*


        *चउमास महीना के वर्णन आध्यात्मिक भाव से भी ओतप्रोत हवय | ए संबंध म एक लोकगीत प्रस्तुत हवय :-*

   *,निकल चले दुनो भाई जी, वन को निकल चले*

    *आगे-आगे रामे चलतु हैं-२*

    *पीछे म लछिमन भाई जी*

      *वन को निकल चले*

     *मांझ-मंझोलन सिया-जानकी*

      *चित्रकूट बर जाई जी*

      *वन को निकल चले*

     *सावन महीना रिमझिम बरसे-२*

      *भादो म गहिल जनाई जी*

    *वन को निकल चले*

     *निकल चले दूनो भाई जी*

      *वन को निकल चले*



*चउमास के वर्णन गोस्वामी संत तुलसीदास जी ह किष्किंधा काण्ड के दोहा क्रमांक-१३ से ले के दोहा क्यों १५ तक लिखे हवंय, तऊन अद्वतीय अउ मंत्र समान हवय*

*दो. लछिमन देखु मोर गन*

    *नाचत बारिद पेखि*

*गृहि बिरति रत हरष जस*

   *,बिष्णु भगत कहुं देखि*


*दो. हरित भूमि तृन संकुल*

     *समुझि परहिं नहि पंथ*

   *जिमि पाखंड वाद तें*

    *गुप्त होहिं सद्ग्रंथ*


*दो. कबहुं प्रबल बह मारूत,*

    *जंह-तंह मेघ बिलाहिं*

*जिमि कपूत के उपजे,*

   *कुल सद्धर्म नसाहि*

      *ए किसम से छत्तीसगढ़ के चउमास सावन से ले के कार्तिक तक खेती-किसानी के बूता के साथ-साथ अधिकांश तिहार भी ह़ोथें | हमर पूर्वज मन खूब ज्ञान-विज्ञान अउ भक्ति भाव से ओतप्रोत रहिन | ऊंकर बनाए तीज-त्योहार , लोक गीत, संगीत, खान-पान, वेश-भूषा, रहन-सहन, आचार-विचार, परंपरा के हम सब ला श्रद्धा भक्ति पूर्वक पालन करना चाही, एकर से हमर जिनगी म सुख शांति अउ समृद्धि मिलथे अउ हमर जिनगी सरल-सुगम पूर्वक व्यतीत होथे |*

      *आप सब ला छत्तीसगढ़ के चउमास महीना के जम्मो तीज-त्योहार बर गाड़ा-गाड़ा बधाई अउ शुभकामना देवत हौं*


     

दिनांक-०५.०७.२०२२


आपके अपनेच संगवारी


*गया प्रसाद साहू*

   "रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)

मो नं-9926984606

🙏☝️✍️❓✍️👏



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