Sunday 17 July 2022

तुतारी

 तुतारी 

                                          चन्द्रहास साहू

                                मो   8120578897


      हा.. हा.. तो.. तो.. के  आरो के संग खेत जोतत हावय सियनहा हा । बइला मन घला आज अब्बड़ मेछराइस । फेर सियनहा के हाथ के तुतारी हा कच्च ले बाखा म परे तब तरमरा के रेंगें। सियान के जी घला कउवागे आज। अगास ला देखे । सादा करिया गुंगवा कस बादर हा रेंगत रहाय फेर भुइयां म नइ गिरीस । चिरीरिरी फट्..... अब्बड़ आरो संग गरजिस- घुमरिस बादर हा फेर बूंद भर नइ बरसिस । कभू अगास कोती ला, कभू नांगर कोती ला देखे अउ नांगर के पड़की ला धर के कुंड मा कुंड मिलाये परदेसी हा । फेर भुइयां मा बरोबर पानी दरपाये नइ हावय तब कइसे नांगर हा गड़ही ...? बइला हा घला तुतारी के डर मा रेंगे , सामरथ करे । ....बइला लाहकगे अब । 

"गिर जा गंगा मइया ! गिर जा !  पानी गिर जा ।''

अब्बड़ बिनती करिस परदेसी हा। फेर.. येहा परदेसी आवय कोनो भगीरथ थोड़े आय ? आ गंगा मइयां कहि अउ ..आइच जाही, रदरदा के गिर जाही।

 .. पानी नइ गिरिस अउ काया के पसीना हा गिरे लागिस तरतर - तरतर । परदेसी के नांगर फेर चभकगे । हला - डोला के अटेसीस अउ फेर चमकाइस बइला ला।

" हर्रे ..हर्र.. तता ... तता...त त....।''

बाखा म फेर तुतारी मारिस। बइला बमियागे। ताकत नस - नस मा दउड़े लागिस । जइसे  दस हाथी के बल समागे । दुनो बइला संघरा ताकत लगाइस जुड़ा मा... फेर नागर तो टस ले मस नइ होइस अतका सामरथ घलो। ... अबके सामरथ मा जुड़ा हा सुलरागे । नोई टूटगे ।...अउ बइला मन  बारा हाथ आगू कोती दउड़े लागिस । परदेसी मुड़ी ला धर के बइठगे।

" का करव भगवान ! पानी के बेवसथा कहाँ ले करव..? एक - एक पइसा ला जोर के बोर खोदवाये हँव । पानी घला हावय । फेर बिन बिजली अबिरथा हावय। अब्बड़ दउड़े-भागेव घला । कतको झन साहब मन आइस - गिस। जम्मो कोई ला तो पइसा देये हँव । फेर बोर मा बिजली कनेक्शन नइ खिचाइस। 

            परदेसी तरमराये लागिस।

" का करव मेंहा.. ?'' 

हफरगे । कुंदरा ले टूटहा साइकिल ला निकालिस अउ डंडिल मा बांस के कमचील बांध के दुनो चक्का मा हवा भरिस । परदेसी के आरो ला पाके कलवा कुकुर हा घला आगे अउ राख - माटी मा घोण्डइया मारे लागिस । 

“ नानजात ! ”

 बखानत नानकून ढ़ेला मा फेंक के मारिस परदेसी हा कुकुर ला । कु.कु... करत भागगे ओहा । लकड़ी के बोझा ला बोहो के आइस परदेसी के गोसाइन दमयंतीन हा ।

 “कहाँ जावत हस, मार तरमिर. तरमिर.....? "

बोझा ला पटकत किहिस । अउ पछिना ला गुड़री मा पोछे लागिस । फेर पछिना पोछाये के आगू देख डारिस परदेसी हा दमयंती के चेहरा ला ससन भर । दमकत सिकल, चमकत टिकुलिया अउ पछिना मा बोहाये मांग के कुहकू । ललहु गाल, गाल के तेलई अउ तेलई के तीर कान के पीछू सादा - सादा नुन फूटे हे ..। सब ला देख डारिस परदेसी हा ।

 "जात हँव । उही डाहर, तहू जाबे ते चल । ” परदेसी किहिस । गड़गड़ - गड़गड़  एक लोटा पानी ला पियिस दमयंतीन हा अउ नानकून पोटरी मा कुछू ला धरत साइकिल के केरियल मा बइठगे ।

       अब्बड़ सइमो - सइमो करत रिहिस आफिस हा। आफिस के एक कोती बिगड़ाहा टासफारमर, तार , केबल अउ दुसर कोती पावर हाऊस बड़का - बड़का बिजली खम्बा । संगमरमर लगे आफिस के डेरउठी ला जइसे खुंदिस कान मा आरो आइस ।

“फरस ला मइलाहा झन कर डोकरा !”

चपरासी आए तमकत रिहिस । परदेसी हा पनही ला हेरके खनखोरी म चपक लिस अउ दुसर हाथ मा तुतारी ला धरे रिहिस । 

"बड़का साहेब ले भेंट करना हे बाबू ।"

परदेसी के गोठ ला सुनके चपरासी हा भभकत रिहिस। अंगरी देखा के बड़का साहब के कुरिया ला देखा दिस ।  

“ राम राम साहेब !”

 परदेसी जोहार करिस । गोटारन कस आँखी नटेरत चश्मा ले देखिस अउ फेर फाइल मा गड़गे । 

"मइलाहा घोंघटाहा ओन्हा पहिरके आ जाथो। कोन जन के दिन के नहाये नइ हावय ते.. ?मेनरलेस डर्टी पीपल ? पसीना के बस्सई छीः छीः...।"

 साहब फुसफुसाइस अउ मुँहू ला करू - करू करे लागिस । 

"स ..स.. साहेब मोर फारम  ?“

गोटारन कस आँखीवाला हा फेर देखिस दुनो  परानी ला अउ फेर फाइल मा आँखी गडि़या दिस । दुनो परानी भुइयां मा फसकराके बइठगे । आगू के गद्दा वाला खुरसी मे बइठे के सामरथ नइ करिस । 

“भागवत !” 

साहब के आरो ला सुनके चपरासी आगे।

 “बरा भजिया अउ चाहा लानबे  गरमा - गरम जा ।’’

 ” हव  ।"

चपरासी हुकारू दिस अउ ठाड़े रिहिस।

 ” दे दे पइसा ताहन तोर फारम ला देखहू ।"

साहब किहिस । परदेसी अउ गोसाइन एक दूसर ला देखे लागिस । सलूखा के खिसा ले चिपटी कस मुड़े पचास रूपिया ला दिस ।

“अतकी मा का होही डोकरा...?"

 चपरासी मुचकावत किहिस

 “पच्चीस पचास अउ दे दे ! ” आँखी ला रमजत साहब किहिस अउ दमयंतीन हा पोलखा के खिसा ले पंदरा परत ले चिपटाये बीस रूपया ला हेर के दिस । 

“बिन पइसा के आ जाथो ।” 

चपरासी हा फुसफुसावत किहिस अउ रेंग दिस । अब साहब के नजर हा दमयंतीन के उपर ठाढ़े होगे । झुंझी चुंदी मुड़ी ,बजरहा खिनवा, रवाही फुली, चिरहा लुगरा अउ चिरहा पोलखा के ओ पार...। 

         टेबल मे परदेसी के फाइल माड़े रिहिस । बड़का-बड़का कागज नकसा खसरा बी वन । परदेसी झटकुन चिन्ह डारिस अपन अंगठा के चिन्हा अउ संरपच के ठप्पा ला। चश्मा ला उठा - उठाके अपन आँखी ला एक - एक पन्ना मा गडि़याइस । कभू करिया पेन मा कभू लाल  पेन मा कागजात मा चिन्हा लगाये लागिस। अपन गुड़गुड़ी वाला खुरसी ला आगू तिरत साहब हा कहिथे ।

  ’’परदेसी तोर इस्टीमेट बने नइ हे। टांसफारमर  ले तोर खेत हा सात पोल के दुरिहा हावय । अउ ऐमा पांच पोल देखावत हे । ’’

  “कोन जन साहेब नाप जोख तो तुमन ला आथे । हमन तो अड़हा आवन ।” 

परदेसी किहिस । कभू नकसा खसरा बिगड़गे हावय किहिस तब कभू फारम मा सरपंच के दसकत नइ हे किहिस अउ आने साहब मन। "कब बिजली लगही भगवान ..?''

परदेसी संसो करे लागिस । 

"तोर ले आगू वाला साहब ला चार हजार देये रेहेंव। ओखर आगू वाला ला तो पंद्रा सौ देये रेहेंव साहेब ! बछवा ला बेचके।" 

परदेसी अब हाथ जोर डारे रिहिस।

 ’’ये जस के बुता तोरे हाथ मा होही अइसे लागथे साहेब ! मोर बनौती बना दे । हाथ जोरत हँव साहेब । मोर बनौती बना दे ।’’ 

दमयंतीन घला हाथ जोर के किहिस । 

"बन तो जाही परदेसी फेर तोला खरचा करे ला परही , पचीस तीस हजार ।’’ 

साहेब हा जुड़ सांस लेवत किहिस अउ बरा भजिया ला झड़के लागिस । 

"कहाँ ले लानहू साहेब ?''

परदेसी किहिस । साहेब के आँखी दमयंतीन के बांहा के पहुची मा जामगे । 

"तोर घरवाली हा बांहा मा पहिरे हावय ते का गहना आए परदेसी...? "

दमयंतीन बांहा  ला अछरा मा तोपे लागिस

 “पहुंची आय साहेब ! ”  ।

सुघ्घर दिखत रिहिस चांदी के चमकत जोखी भराये सांप कस सलमिल - सलमिल करत हे । सुघ्घर  फुल छप्पा अउ सोनार के कलाकारी घात सुघ्घर हे । 

"साहब मोर दाई हा चिन्हा देये हे। अब्बड़ मया करे साहेब। एक दिन मलेरिया के बुखार होइस अउ एके दिन मा ताला - बेली होगे । पान - परसाद घलो नइ खवा सकेन । दमयंतीन ऐके सांस मा गोठियाइस । ओखर आँखी जोगनी कस बरिस अउ बुता घला गे । आँखी के कोर के आँसू ला पोछिस दमयंतीन हा । 

   " एक ठन उदीम हावय परदेसी तोला पइसा नइ लागे ।''

साहब हा परदेसी डाहर नवगे । परदेसी के घांम मा भूंजाये सिकल मा आँखी गड़ियावत किहिस।

 “का साहेब !’’ 

परदेसी अउ तीर मा जाके पुछिस। 

"सरकार हा एक ठन योजना बनाये हावय जेखर लाभ देवाहू अउ योजना कोती ले पइसा जमा हो जाही । तोला एको पइसा नइ लागे फेर ... । "

साहब  काहत - काहत अतरगे । चाहा ला ढोक्कोम - ढोक्कोम पीये लागिस ।

 "परदेसी ! मेंहा मोर घर मा छत्तीसगढ़ महतारी के मुरती बनवात हँव।  ओहा तोर गोसाइन के पहुंची ला पहिरही तब सुघ्घर लागही । सौहत छत्तीसगढ़ महतारी लागही । अब जमाना घलो बदलगे । कोनो नारी परानी अइसन गहना जेवर नइ पहिरे ....।"

 साहेब महाभारत के सकुनी ममा कस अपन चतुराई मा मुचकाये लागिस । अउ ये दुनो परानी एक दुसर के सिकल ला देखे लागिस । 

  ’’इनाम तो मांगत हव परदेसी ! कतको किसान हा अंकाल मा मरत  हावय । मेहां तोला बचाये के उदीम बतावत हावव । तोर बोर मा बिजली अमरही तभे तो भक्कम पानी निकलही।  ....अउ अंकाल-दुकाल के मुँहू ला नइ देखस । 

“ देख ले परदेसी ! तोर गोसाइन के बांहा के पहुची हा मोर घर मा पहुचही..। तभे तोर खेत मा बिजली पहुचही, परदेसी इमान से ।” 

साहेब हा किरिया  खाइस अउ पान घला । 

’’इमान से मेंहा घुस नइ लेवत हव । ओ ....तो.. छत्तीसगढ़ महतारी के मुरती के सवांगा बर मांगत हव। "

साहब अउ आगू किहिस । 

 परदेसी के आँखी मा उज्जर भविस दिखे लागिस । दमयंतीन घला अंकाल के परछो ले  निकले के रद्दा देखे लागिस। अउ पहुची ला हेर के दे दिस । छाती म पथरा लदक के सुल्हर डारिस पहुंची ला । आँखी ले झर - झर ऑंसू आवत रिहिस। अपन पहेलात नोनी ला गवाइस तब के दुख अउ अब के दुख दुनो बरोबर रिहिस । कतको बड़का दुख आ जावय परदेसी ठाढ़े रहिथे पहार कस । कोनो आँधी धुंका झन आये अइसे । सिरतोन आज के धुंकी तो अधमरहा कर दिस दुनो कोई ला। साहब मुचकाये लागिस जइसे कुबेर के खजाना ला पोगरा डारिस अइसे । कोन जन  ओखर बोर के पानी कब बोहाही ते फेर दमयंतीन के आँखी ले अरपा पैरी के धार  बोहाय लागिस । हाथ गोड़ टूटे कस लागिस । झिमझिमासी लागिस । अउ परदेसी के खांध ला धरके थामिस । 

“ए ...एक महीना पाछू आके आरो कर लिहू ।” साहब किहिस अऊ खिड़की कोती ले पच्च ले पान के पीक ला थूकिस । 

चपरासी हा कोल्ड्रिक के गिलास धरके ठाढ़े रिहिस । साहब झोकिस। पीये लागिस ढ़ोक्कोम - ढ़ोक्कोम । 

"हअये'' साहब ढ़कारिस अउ सांस छोड़ीस ।

" लेवव तहू मन पी लेव कोल्ड्रिक । '' 

 "न ...नही साहेब ! हमन ला नइ पचे आनी - बानी के जिनिस हा ।''

परदेसी के अंतस मा अंगरा बरत रिहिस फेर जुड़ाके किहिस । चपरासी के गोठ सुनके।

                        अब साइकिल के मुठा मा सामरथ फबे लागिस। नस - नस मा लहू दउड़े लागिस। साइकिल उत्ता- धुर्रा दउड़त हे घर कोती लहुटे के रद्दा मा। दमयंतीन केरियल मा बइठे रिहिस अउ  पोटरी के फुटे चना ला खवावत गिस परदेसी ला । फुटे चना के संग डुरू चना ला घला मसक डारिस परदेसी हा । अउ कभु - कभु तो गोटी - माटी ला घला खटरंग ले चाबिस। लीम के जुड़ छांव मा अतरके पानी पियिस । अउ फेर रेंगे लागिस अपन रद्दा। पेट के भभकत आगी ला कतका बुताइस चना हा.....? उही जाने  ...।  फेर कोनो डाहर आथे - जाथे तब अइसना चना ला धर लेथे दमयंतीन हा ।

             बटकी भर बासी अउ चुटकी भर नून के खवइया परदेसी हा कोनो जिनिस के लालच नइ करिस फेर अगास ला देखथे तब संसो हो जाथे । सावन भादो मा आगी सुलगत सुरूज देवता अऊ अइलावत खेत के धान । पानी के मारे पियासे भुंइया अउ मरत मछरी कोतरी...।

"बटकी भर बासी के बेवसथा कइसे होही भगवान.....? तहू ठगत हावस का लबरा बादर ...?  बिजली वाले साहब कस लबरा । दू महीना होगे आज ले बिजली के दउहा नइ हावय। पइसा पहुंची जम्मो गवागे । परदेसी बियाकुल होगे । 

साइकिल ला निकालिस ।  तुतारी ला धर के रेंग दिस आने गॉंव के रद्दा ... अकेला ।


"कइसे साहेब मोर खेत मा बिजली कब लगही ...? ...अउ लगही कि नही वहू ला बता ...?''

 परदेसी बड़का साहब के कुरिया मा खुसरत किहिस।  ओखर आँखी मा लहू उतरे कस लाल रिहिस । चुन्दी छतराये , माथा मा लाल टीका अउ हाथ मा तुतारी । चिरहा सलूखा अउ नानकुन पटका । कोठ मा टंगाये तिरसूल धरे भगवान  भोलेनाथ के रौद्र रूप देखे साहब हा तब तुतारी धरे परदेसी के बरन ला।

“ल ..ल..लग जाही न परदेसी !  संसो झन कर । ” 

साहब डर्रावत किहिस । 

"इही गोठ ला तो सुनत जोजन होगे साहेब ! फेर कब लगही ते ..? महू जानथव सुचना के अधिकार ,लोक सेवा गारंटी अधिनियम ला । जान डारेव तुहरे आफिस मा लगे सी0सी0 टी0वी0 केमरा के आगू मा मोर गोसाइन के पहुंची ला नगाये हस तौन ला । सी0डी0 घला बनवा डारे हव इमानदार बाबू जेखर टरासफर करवाये हस तेखर ले मिलके ।’’

परदेसी किहिस मेछा ला अइठत। 

    साहब थरथराये लागिस अउ टेबल के तरी मा कही ला खोजे के उदीम करिस ।

’’साहेब कतका लबारी मारथस तौन ला अब घला जान डारेव । साहेब खेत जोतथन अउ बइला मेछराये लागथे तब बाखा मा तुतारी परथे तब सोझिया जाथे ।"

 परदेसी फेर किहिस ।

   परदेसी के हाथ के तुतारी ला देखे लागिस  साहब हा । डेढ़ दु हाथ के पातर लउठी अऊ आगू कोती खिला लगे सुचकी ....। कच्च ले गड़े कस लागिस साहब ला अउ लाइनमेन ला बला के कागज मा दसकत करत बिजली खंभा तार अउ आने जिनिस ले भरे ट्रक ला पठोय बर किहिस परदेसी संग । टेबल मा माड़हे अपन गोसाइन के पहुंची ला धर लिस परदेसी हा  अउ गरेरा कस बाहिर कोती आ गे । 

  साहब हा पसीना पोछे लागिस ।

" अड़हा परदेसी हा अब सब ला जानथे ....एवेरी थिंग....।'' फुसफुसाइस  अपने  - अपन साहब हा। तुतारी लागे सही कच्च ले गडि़स साहब के..।        

                     


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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

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