Friday 8 July 2022

मंगतुगुड़ी अउ चीतवाडोंगरी के नामकरण*





*मंगतुगुड़ी अउ चीतवाडोंगरी के नामकरण* 



  *दुर्गा प्रसाद पारकर*                         


      छत्तीसगढ़ म गांव मन के नाव ह अइसने नइ धरा गे हे। कोनो करा आमा होवत रिहिस त ओकर नाव आमगाँव अउ कोनो करा जाम (बिही) बगीच्चा म मनखे मन बसीन त ओ गांव के नाव ह जामगाँव परगे। अइसने किसम ले कतको जघा ह सुजानिक मन के सेती जाने जाथे जेकर प्रमाण हे कमकापार ले भंडार मुड़ा बसे मंगतुगुड़ी के। ए गुड़ी के आगु दूरिहा दुरिहा ले सोर उड़े अउ काबर नइ उड़तिस काबर कि ओ गांव म ओ समे मंगतू बाबा राहत रिहिस। जेला मंगतू ठाकुर के नाव ले जाने जाय । ठाकुर जी ह सत्य के उपासक रिहिस हे। उहें के तीर तार वाले मन बताथे कि एक घांव के बात आय जब गांव के सियान ह लकड़ी फाटा लाए बर सिवनी गे रिहिस। आवत-आवत रद्दा म ओकर गाड़ा के दुनो कनखीला निकल गे। कनखीला के निकले ले चक्का हिट (निकल) गे। कोनो चिन्ह न पहिचान अब कइसे करँव कहिके सियान ह तरवा धर के बइठ गे । जंगल म मउत ह दिखे बर धर लिस जग जग ले फेर कोनो करा आसरा के ठिकाना नइ दिखिस |आखिर म हलाकान हो के ओ सियान ह मंगतु ठाकुर के सुमिरन करिस- बबा कोनो तोर सत ह आजो हे त अपन सत के ताकत ले ए साधक के रक्षा करो, रक्षा करो मेंहा तोला दू नरियर चढ़ाहूं  कहिके बदना बदिस। सत के प्रताप ले लकड़ी ले भराए ओकर गाड़ा ह गांव आगे। बिना कोनो रोक - छेक के।

अइसने अउ कानो गोठ हे जेकर ओ डाहर कतको प्रमाण मिलथे। काकरो मवेशी कभू गंवागे त पवित्र मन ले बाबा के सुमिरन करे ले मवेशी ह हाथ लग जथे। लांघन भूखन मनखे ओकर कुंदरा म सरन लेवय। बाबा ह बिमरहा मन के सेवा करय तिही पाय के लोगन मन परमार्थी पुरुष काहय 

 तभे तो ओकर नाव म अतना ताकत रिहिस हे।

ओकर इंतकाल (निधन) के बाद आजो घलो ओकर देवता अस पूजा पाठ करके असीस लेथे। पहिली बाबा के आसन ह लकड़ी के रिहिस। उही करा श्रद्धालु मन अपन मनोकामना बर पूजा पाठ करय। मनोकामना पुरा होवत गिस ताहन ओ आसन ल माटी के बनवइन कुछ दिन के गे ले पखना के पक्का

बनवा डरे हे। गंवाए माल मत्ता मिले के बाद इही - गुड़ी म माटी के गाय, बइला, नही ते घोड़ा चघाए के बहाना अपन श्रद्धा फूल ल चघाथे। आजो घलो सड़क के कोर म बने मंगतूगुड़ी म कतको बइला घोड़ा अउ गाय के मुरती देखे जा सकत है। आजो घलो मंगतू ठाकुर के मंगतू गुड़ी ह आस्था अउ बिसवास के केन्द्र आय।

मंगतू गुड़ी ले आधा किलोमीटर आगु डाहर जाबे त सड़क के डेरी बाखा म भारी जंगल हे तेंदू  ,आंवरा, लीम अउ हर्रा बहेरा के। इही जंगल म एक ठन नरवा हे जिंहे बाघ, चीता, तेंदुआ मन सुसी भर पानी पीयय। इसी जंगल झाड़ी के बीच म अंदाजी पैतालीस पचास फुट ऊंच पहाड़ी हे जेला डोंगरी के नांव ले जानथन । इही डोंगरी के आजु बाजु दू ठन गुफा हे। एक ठन नान्हें हे त दूसर ह बड़े जन। छोटे गुफा के मुहाटी ह अढ़ई फीट व्यास के अउ बड़े गुफा के मुहाटी ह करीबन दू फीट व्यास अतका होही। भीतरी देखबे त भारी डर लागथे। काबर कि भीतर म दस गियारा फीट खोह हे जउन ह खाल्हे डाहर सुल्लू  (सकरा )होवत गेहे। आगु डाहर जा के जेवनी डार मुरक जथे। अइसे केहे जाथे ए गुफा मन म चीता राहय तिही पाए के एला चितवा डोंगरी केहे जाथे । चीता ह इही गुफा म दिन भर अराम करे के बाद संझा कना गुफा के उप्पर आ के बइठ जाये। जिंहा ले दु तीन किलोमीटर तक हरखेली (असानी से) देखे जा सकथे। अइसे लागथे कि चीता ह अपन शिकार खातिर ठीहा ल बनाए होही। जउन जघा म चीता बइठे ओ जघा ह गुफा ले दस फूट ऊंचा म पखना ले बने मचान कस लागथे।

इकराज सिंह भामरा के मानना हे कि चीता ह समतल भुईंया कस ढिलवा, अखरा-पखरा अउ जंगल झाड़ी म जल्दी चढ़ - उतर सकथे। तभे तो अइसन अड़चन वाले जघा म राहत रिहिस हे। काबर दुसरा जानवर मन म अइसन विशेषता देखे बर नइ मिले। पहिली कस अब न जंगल हे न जीनवर तभे तो एकर माड़ा म अब चीता घलो नइ दिखै। एक डाहर हमन जंगली जीव जन्तु के जतन करो कथन अउ दूसर डाहर जंगल ल उजाड़त जाथन त उमन तो अइसने बिन मारे के मारे मरत जात हे। अब बतावौ कहां राखे जाये। कभू समे अइसनो आ झन जय के सरकस म घलो सेर अउ भालू देखे बर नइ मिल पाही का?

दुर्गाप्रसाद पारकर

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