Friday 1 July 2022

हमर संस्कृति हमर पहिचान**


 

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   **हमर संस्कृति हमर पहिचान**


       " हमर छत्तीसगढ़ के संस्कृति हर देश म ही नहीं बल्कि,  विदेश घलाव म अपन अलग पहिचान रखथे। 'हमर छत्तीसगढ़ के पानी अउ हमर छत्तीसगढ़ के बानी ' के मिठास हर इहां अवइया सबे मइनखे के मन म रच बस जाथे। 

     हमर छत्तीसगढ़िया मन के सरल स्वभाव, ओकर सहज रहन-बसन अउ वेशभूषा, ओकर बोली-भाखा हर जम्मो झन के मन ल  मोह लेथे तेकरे सेथी हमर छत्तीसगढ़  ले दूर प्रांत के मइनखे  मन घलाव आके इहां रच-बस जाथें; हमर बोली अउ हमर संस्कृति ल घलाव ओमन हर अपना लेहे हें। हमर छत्तीसगढ़ के लोकपर्व, हमर लोक गीत, हमर लोकगाथा, हमर पकवान के कहर  हर देश-विदेश तक बगरे हावै। हमर छत्तीसगढ़ के कई नामी-गिरामी कलाकार मन देश-विदेश भर म अपन कला के परचम लहराय हें अउ छत्तीसगढ़  के अलख जगाय हें। छत्तीसगढ़ के सुआ अउ कर्मा नृत्य हर जम्मो झन के मन मोह लेथे, पंथी नाच म छत्तीसगढ़ के कलाकार मन विदेश के रहइया मन ल घलाव अचरज म डाल देथें, हमर सरगुजिहा गीत अउ नृत्‍य हर विदेशी घलाव मन ल थिरके बर मजबूर कर देथे। छत्तीसगढ़ के भोजली के परंपरा हर देश-विदेश म चर्चा के विषय हे, येकर ऊपर कतको विदेश के ज्ञाता मन हर शोध करत हावंय।

     हमर छत्तीसगढ़ ल धान के कटोरा के नाम से जाने जाथे, इहां  के माटी म जम्मो फसल उपजाय के क्षमता हे, संगे-संग खनिज के अकूत भंडार भरे हे। कहे जाय त छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा म धन-धान्य के भंडार भरे हे त ओकर कोख म नाना प्रकार के नव रतन के भंडार घलाव भरे हे। हमर छत्तीसगढ़ के संपदा अउ संपन्नता के संग छत्तीसगढ़ के संस्कृति हर जम्मो झन ल अपन कोती आकर्षित करे हे। आज देश-विदेश के आदमी हमर छत्तीसगढ़ म देखे जा सकत हे। 

     हमर छत्तीसगढ़ हर एक तरफ तो दुनिया म अपन पहिचान बनाय हे त दूसर कोती कुछ नुकसान भी उठाय हे, वो कथें न कि, 'फलदार पेंड़ ल जम्मो झन पथरा धर के झोरियाय हें ' वोही हाल छत्तीसगढ़ के हावै। ये कहना  गलत नइ होय कि, जइसे हमर भारत-भूमी म दूसर देश के मन आके आक्रमण करे रहिन वइसने आज हमर छत्तीसगढ़ प्रांत म अतिक्रमण हो गय हे। अब्बड़ संभावना होय के बावजूद छत्तीसगढ़ के आदमी आज घलव पलायन करे बर मजबूर हे। हमर संसाधन के अलावा हमर भाषा अउ हमर संस्कृति म भी एकर प्रभाव देखे बर मिल जाथे। आज छत्तीसगढ़ म हर प्रांत के आदमी देखे बर मिल जाथे। जम्मो तिहार अउ परब के मनाने वाला इहां मौजूद हें। जम्मों भाषा के बोलइया, किसिम-किसिम के वेशभूषा छत्तीसगढ़ म चलन म आ गय हे। येहर हमर छत्तीसगढ़िया मन के सरल स्वभाव कहे जाय कि ओमन कोनो भाषा अउ संस्कृति के विरोध नइ करंय बल्कि हरेक पर्व म बराबर के शामिल होथें।

     ये कहना घलव गलत नइ होय कि आज हमर छत्तीसगढ़ के तीज-तिहार,भाषा अउ संस्कृति म अतिक्रमण हो चुके हे, एक तो दिगर प्रांत के, ऊपर ले बाजार वाद अउ भौतिकता, आधुनिकता जम्मो तरह ले हमर छत्तीसगढ़ म बोजा गय हे। बावजूद येकर, संतुष्टि अउ खुशी के बात ये हे कि, आज भी कतको छत्तीसगढ़िया मन छत्तीसगढ़ के भाषा अउ संस्कृति ल बचा के राखे हें। रहिस बात पहिनावा के धीरे-धीरे नंदावत हे; अब येहर दूरांचल म घलव देखे बर मिलथे। पुराना मइनखे मन के संगे संग छत्तीसगढ़ के पहिनावा इहां के वेशभूषा हर छत्तीसगढ़ ले नंदा जाही।

     आज हमर छत्तीसगढ़ के कतको जागरुक मइनखे मन छत्तीसगढ़ के भाषा अउ संस्कृति ल बचाय बर प्रयासरत हें। छत्तीसगढ़ी भाषा अउ छत्तीसगढ़िया संस्कृति के सरलग प्रचार-प्रसार करे जावत हे। कतको लेखक, कवि अउ विद्वान मन आज छत्तीसगढ़ी भाषा म साहित्य रचना करत हें, वहीं इहां के कलाकार मन इहां के संस्कृति ल बगरावत हें। अब जरुरत हे त छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी भाषा म शिक्षा के अउ सरकारी कामकाज म येकर चलन के। जब ये हो जाही त हमर नवा पीढ़ी के बीच घलव हमर भाषा हर जिंदा रही अउ छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी भाषा के दुनिया म पहिचान बनही जेकर लाभ छत्तीसगढ़िया मन ल मिलही। छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़िया दूनों के तरक्की निश्चित होही जेकर ओहर हकदार हावै।

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  **अंजली शर्मा **

बिलासपुर (छत्तीसगढ़ ).

7470989029.

8889529161.

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